छोटे-छोटे बच्चे जला रहे शिक्षा की अलख, बड़ों को करते हैं प्रेरित

ललितपुर जिले के कुचदौं के प्राथमिक विद्यालय में बाल मंच के बच्चे बड़ों को करते हैं प्रेरित, अब बच्चे जंगल से लकड़ियां नहीं बीनते हर दिन आते हैं स्कूल...

Divendra SinghDivendra Singh   16 Aug 2018 7:27 AM GMT

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छोटे-छोटे बच्चे जला रहे शिक्षा की अलख, बड़ों को करते हैं प्रेरित

ललितपुर। रेशम रविवार को भी दिन में निकल पड़ती है। वह हर उस बच्चे के घर जाती हैं जो स्कूल नहीं आ रहे होते हैं। स्कूल न आने की वजह जानने के साथ उन्हें समझाती भी हैं। ऐसी ही कोशिश रेशम के साथ उनके कई साथी कर रहे हैं।

रेशम बुंदेलखंड के ललितपुर जिला मुख्यालय से लगभग 35 किलोमीटर दूर कुचदौं के प्राथमिक विद्यालय में पढ़ती हैं। वह तीसरी कक्षा में हैं। सहरिया समुदाय बाहुल्य इस गांव में कुछ साल पहले तक शिक्षा की स्थिति बहुत गंभीर थी। यहां के ज्यादातर परिवार जंगलों से लकड़ियां बीनने और मजदूरी का काम करते हैं। ऐसे में वो अपने बच्चों की पढ़ाई पर न के बराबर ही ध्यान दे पाते।

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लेकिन आज उसी गाँव के छोटे-छोटे बच्चे शिक्षा की अलख जगा रहे हैं। यह सब इतना आसान नहीं था। इसके पीछे छिपी है एक बड़ी कोशिश। एक्शन एड व ललितपुर की गैर सरकारी संस्था ने यहां अभिभावकों को प्रेरित करना शुरू किया और बाल मंच का गठन किया। आज तीसरी कक्षा में पढ़ने वाली रेशम व पूनम, चौथी कक्षा के आशीष व हरिराम और पांचवीं कक्षा के जितेन्द्र व गजराम बालमंच के सदस्य हैं। ये छोटे-छोटे गाँव में घूमकर अभिभावकों समझाते हैं कि पढ़ाई-लिखाई कितनी जरूरी है।


'सरजी ने मेरे पिताजी को समझाया'

पांचवीं कक्षा में पढ़ने वाले जितेंद्र (आठ वर्ष) कहते हैं, "मेरे पिताजी मजूदरी करते हैं, पहले मैं भी स्कूल नहीं जाता था, सरजी लोगों ने मेरे पापा को समझाया, तब उन्होंने मुझे पढ़ने भेजा।"

"सहरिया समुदाय के पुरुष मजदूरी करके खर्च चलाते हैं। वो मजदूरी के लिए शहरों को पलायन करते हैं। महिलाएं और बच्चे जंगल से लकड़ियां बीनकर बेचते हैं। उन्हें पढ़ाई-लिखाई से मतलब ही नहीं रहता। लेकिन जब से बाल संगठन का गठन हुआ, उसी गाँव के बच्चे दूसरे बच्चों के अभिभावकों को समझाते हैं। उन्हें बताते हैं कि पढ़ना कितना जरूरी है।"
प्रधानाध्यापक, प्राथमिक विद्यालय, कुचदौं

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ऐसे काम करता है बाल मंच

बाल मंच में 6 से 12 छात्र होते हैं। ये नियमित स्कूल आते हैं और पढ़ाई में भी अच्छे होते हैं। इनकी मुख्य जिम्मेदारी अनियमित बच्चों की निगरानी करना है। बाल मंच के सदस्यों को अध्यापक हर शनिवार को ऐसे बच्चों के बारे में बताते हैं, जो नियमित स्कूल नहीं आते। रविवार को ये सदस्य ऐसे बच्चों के घर जाते हैं और उनके अभिभावकों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित करते हैं। वो उन्हें पढ़ाई-लिखाई के फायदे भी बताते हैं। इसके बाद भी अगर बच्चे स्कूल नहीं आते तो सोमवार को बच्चों के घर जाकर उन्हें स्कूल लाते हैं।

ललितपुर जिले का हाल

ग्रामीण क्षेत्र

1024 प्राथमिक विद्यालय

484 पूर्व माध्यमिक विद्यालय

शहरी क्षेत्र

25 प्राथमिक विद्यालय

09 पूर्व माध्यमिक विद्यालय

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यह आया बदलाव

समुदाय में शिक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ रही है और लोग बच्चों को स्कूल भेज रहे हैं। स्कूल में नामांकन भी बढ़ गया है। इस वक्त कुल 112 छात्र नामांकित हैं और नियमित उपस्थिति का प्रतिशत भी बढ़ गया है। आदिवासी बाहुल गाँव में अब शिक्षा की स्थिति में सुधार आ रहा है। यहां के जिलाधिकारी व दूसरे अधिकारी भी प्रयास करते हैं कि शिक्षा के स्तर में सुधार हो।

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