इस स्कूल में रसोइयां संवार रहीं बच्चों का भविष्य

मुजफ्फरनगर के विकास खंड नगर परिषद के किदवई नगर प्राथमिक विद्यालय में बच्चों को पढ़ाने के लिये एक अध्यापक है और दो शिक्षा मित्र हैं, जबकि विद्यालय में पंजीकृत बच्चों की संख्या 893 है। ऐसे में शिक्षकों की कमी पूरी करने के लिए यहां तैनात दो रसोइये बच्चों को पढ़ाने का काम करती हैं।

Chandrakant MishraChandrakant Mishra   29 Oct 2018 5:38 AM GMT

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इस स्कूल में रसोइयां संवार रहीं बच्चों का भविष्य

मुजफ्फरनगर। अब तक आप ने प्राथमिक विद्यालयों में अध्यापकों को पढ़ाते देखा होगा, लेकिन जपनद में अध्यापक के साथ-साथ रसोइयां भी विद्यालय में बच्चों को पढ़ाने का काम करती हैं। विकास खंड नगर परिषद के किदवई नगर प्राथमिक विद्यालय बच्चों को पढ़ाने के लिये एक अध्यापक है और दो शिक्षा मित्र हैं, जबकि विद्यालय में पंजीकृत बच्चों की संख्या 893 है। ऐसे में शिक्षकों की कमी पूरी करने के लिए यहां तैनात दो रसोइये बच्चों को पढ़ाने का काम करती हैं।

प्राथमिक विद्यालय की प्रधानाध्यापिका हिना समी ने बताया, "मैं बचपन से शिक्षिका बनना चाहती थी और मेरी यह इच्छा पूरी भी हो गई। मेरे पिता जी ने कहा था कि, कभी मेहनत से घबराना नहीं। उनकी यही बात मुझे आज भी ताकत देती है। मेरे विद्यालय में 893 बच्चे हैं और सिर्फ मैं एक अध्यापिका हूं। इसके अलावा दो और शिक्षा भी हैं, लेकिन बस तीन लोग 893 को पढ़ा नहीं सकते हैं। "

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हिना ने आगे बताया, "कई बार जब कोई शिक्षा मित्र नहीं आती है तो बच्चे खाली बैठे रहते थे। मैंने शिक्षकों की कमी की बात बीएसए से भी बताई। उन्होंने जल्द ही नए अध्यापकों की तैनाती का आश्वासन दिया। लेकिन जब तक नए अध्यापक नहीं मिलते हैं तब तक बच्चों की पढ़ाई प्रभावित न हो इसके लिए मैंने अपने विद्यालय में रसाइयों का सहयोग लिया। मेरे विद्यालय में पांच रसोइएं हैं, जिनमें से दो पढ़ी लिखी हैं। वे दोनों खाना बनाने के साथ-साथ बच्चों को पढ़ाती भी हैं।"

रसोइया असमा बताती है, " मेरी नियुक्ति इस विद्यालय में रसोइया के पद पर हुई है। मैं 12वीं पास हूं। विद्यालय में बच्चों की संख्या बहुत है और अध्यापकों की कम। ऐसे में मैंने कई बार देखा की बच्चे खाली बैठे रहते थे। मैंने प्रधानाध्यापिका से कहा कि, मैम मैं खाना बनाने के बाद खाली हो जाती हूं। अगर आप कहें तो मैं बच्चों को पढ़ाया करूं। मैडम ने मेरी बात मान ली। अब मैं रोज खाना बनाने साथ-साथ बच्चों को पढ़ाती भी हूं। "

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वहीं रसोइया यासमीन ने बताया, "मुझे बच्चों को पढ़ाना बहुत अच्छा लगता है। यहां नियुक्ति के पहले भी मैं एक निजी विद्यालय में पढ़ाती थी। इस समय मैं बीकॉम की छात्रा हूं।

स्कूल में खाना बनाते समय मैं देखती रहती थी कि कई बच्चे खाली बैठे हैं। कुछ बच्चे टीचर न होने के कारण विद्यालय परिसर में टहलते थे। यह बात मुझे अच्छी नहीं लगती थी।

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जब प्रधानाध्यापिका को यह बात पता चली की मैं पहले एक स्कूल में पढ़ाती थी तो उन्होंने बच्चों को पढ़ाने की बात कही। मैंने उनकी बात मान बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया। "

हर साल बढ़ रही छात्र संख्या

करीब दो किलोमीटर की परिधि में कोई सरकारी स्कूल नहीं है, इसलिए इस स्कूल में बच्चों का नामांकन सबसे ज्यादा है। हर सत्र में छात्रों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। प्रत्येक सत्र में करीब 200 नए बच्चों का नामांकन होता है।

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प्रधानाध्यापिका के पति भी करते हैं सहयोग

विद्यालय में बच्चों की सख्या को देखते हुए प्रधानाध्यापिका के पति मो. अकील भी विद्यालय के लिए श्रमदान करते हैं। विद्यालय के मिड डे मील के साथ-साथ कई अन्य काम में वे प्रधानाध्यापिका का सहयोग करते हैं। अकील ने बताया, " मुझे अच्छा लगता है कि मैं बच्चों के लिए कुछ कर पा रहा हूं। विद्यालय में इतनी संख्या है कि उन्हें संभालना बस एक टीचर के बस की बात नहीं है। ऐसे में दिन में काफी समय इस विद्यालय और बच्चों के लिए निकाल लेता हूं।"

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