यकीन कीजिए, इस सरकारी विद्यालय में 1100 छात्र-छात्राएं हैं...

एक अच्छे सरकारी विद्यालय में छात्र संख्या ज्यादा से ज्यादा 400 से 500 होती है। लेकिन इन आंकड़ों से हटकर राजधानी लखनऊ में एक ऐसी प्राथमिक पाठशाला भी है जहां प्रधानाध्यापक और ग्रामीणों के सहयोग से 1100 से ज्यादा बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं।

Neetu SinghNeetu Singh   12 Sep 2018 8:17 AM GMT

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यकीन कीजिए, इस सरकारी विद्यालय में 1100 छात्र-छात्राएं हैं...

लखनऊ। बात जब भी सरकारी विद्यालयों की छिड़ती है तो जहन में एक ऐसी जगह की छवि उभरती है जहां चंद गिने-चुने विद्यार्थी पढ़ते हैं। आंकड़ें भी ऐसी ही गवाही देते हैं। एक अच्छे सरकारी विद्यालय में छात्र संख्या ज्यादा से ज्यादा 400 से 500 है। लेकिन इन आंकड़ों से इतर राजधानी लखनऊ में एक ऐसी प्राथमिक पाठशाला भी है जहां प्रधानाचार्य और ग्रामीणों के सहयोग से 1100 से ज्यादा बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं।

लखनऊ जिला मुख्यालय से लगभग 20 किलोमीटर दूर दुबग्गा के पास स्थित प्राथमिक विद्यालय पीरनगर नगर क्षेत्र, जोन-4 में 1107 बच्चों का नामांकन हुआ है। इस विद्यालय में प्रधानाचार्य, एक सहायक शिक्षक और एक शिक्षा मित्र तैनात हैं। लेकिन कुछ ग्रामीण, स्थानीय विधायक और एक गैर सरकारी संस्था 'बदलाव' के साझा प्रयास से नौ केयर टेकर भी उपलब्ध कराए गए हैं, ताकि पढ़ाई का स्तर बरकरार रहे। छात्रों को हर बेहतर सुविधा मिले इसके लिए विद्यालय प्रबन्धन समिति के सदस्य और बच्चों के माता-पिता भी पूरी जिम्मेदारी निभाते हैं।

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प्राइवेट स्कूल छोड़ आ रहे बच्चे


विद्यालय प्रबंधन समिति के अध्यक्ष राम सिंह लोधी ने बताया, "हर महीने चार तारीख को होने वाली विद्यालय प्रबन्धन समिति की बैठक में बच्चों की जरूरतों को पूरा करने की हम हर संभव कोशिश करते हैं। पहले स्कूल में बैठने के लिए फर्नीचर नहीं था। हम लोगों ने पैसे जोड़े और बच्चों के लिए फर्नीचर का इंतजाम किया।"

"जब हमने इस बस्ती में काम करना शुरू किया तो पता चला कि यह लखनऊ का अल्पसुविधा प्राप्त क्षेत्र है। ये बच्चे दिनभर कूड़ा बीनते और इधर-उधर खेलते रहते, इन्हें शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए बदलाव पाठशाला की शुरुआत की, इसके बाद सरकारी विद्यालय में इनका दाखिला कराया। स्कूल के बाद भी ये बच्चे पढ़ाई कर सकें इसके लिए बदलाव पाठशाला में हर शाम पढ़ते हैं। अब इनमें से कुछ बच्चे बिना अटके हिन्दी की किताब पढ़ लेते हैं, अपना नाम लिखना और बोलना सीख गये हैं।"
शरद पटेल, संस्थापक, बदलाव संस्था

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कविता हो या पहाड़ा सब जुबानी याद

'जब कोई सवाल समझ में नहीं आता तो हम सरजी से पूछ लेते हैं। अपना स्कूल हमें अच्छा लगता है। हमें कभी महसूस नहीं हुआ कि सरकारी स्कूल में पढ़ाई कर रहे हैं।' तीसरी कक्षा में पढ़ने वाली सानिया खान ने यह बात कहकर बिना अटके एक कविता सुनाई, 'हाथी राजा कहां चले सूड़ हिलाकर कहां चले..' सानिया की तरह इस स्कूल में उपस्थित कई बच्चों ने 17-18 का पहाड़ा बिना अटके सुनाया। हिन्दी-अंग्रेजी की कविता भी उन्हें जुबानी याद है।

हर साल बढ़ रही छात्र संख्या

इस स्कूल में बढ़ती छात्र संख्या तब है जब एक किलोमीटर की परिधि में तीन सरकारी स्कूल हैं। लेकिन बच्चों का नामांकन इस विद्यालय में ही सबसे ज्यादा है। यह स्कूल बहुत पुराना है पर इतनी छात्र संख्या यहां कभी नहीं थी। 16 मई 2015 को प्रधानाचार्य संतोष तिवारी ने स्कूल की जिम्मेदारी अपने हाथों में ली। उसी के बाद स्कूल की तस्वीर लगातार बदलती गई। हर सत्र में छात्र संख्या में बढ़ोतरी हो रही है, 200-250 नये नामांकन होते हैं। इस सत्र में 240 नए नामांकन हुए हैं।

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"विद्यालय प्रबन्धन समिति और स्थानीय लोगों के सहयोग से ही आज इतनी छात्र संख्या को हम सम्भाल पा रहे हैं। अगर हमें विभाग की तरफ से पर्याप्त शिक्षक, पर्याप्त कमरे या फिर दो शिफ्टों में स्कूल चलाने की अनुमति मिल जाए तो हम अगले सत्र में 1500 बच्चों का नामांकन और 1000 बच्चों की उपस्थिति सुनिश्चित कर सकते हैं।"

संतोष तिवारी, प्रधानाध्यापक

स्थानीय विधायक ने 2017 में गोद लिया यह स्कूल

प्राथमिक विद्यालय पीरनगर में पढ़ने वाले ज्यादातर बच्चे झुग्गी-झोपड़ी में रहते हैं। प्रधानाचार्य संतोष तिवारी ने बताया, "विधायक सुरेश श्रीवास्तव के सहयोग से सात केयर टेकर मिले हैं जो बच्चों की देखरेख करते हैं। सभी बच्चों के लिए विधायक ने फर्नीचर उपलब्ध कराया है। 'बदलाव'संस्था के संस्थापक शरद पटेल ने पिछले तीन वर्षों में झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले 250 बच्चों को स्कूल में दाखिला कराया और दो केयर टेकर दिए जो रोजाना इन बच्चों को लेकर आते हैं।' इस विद्यालय में बाउंड्रीवॉल बनाने से लेकर पौधरोपण, मिड डे मील वितरण तक हर काम में विद्यालय प्रबन्धन समिति के सदस्य और ग्रामीण मदद करते हैं। भारतीय किसान यूनियन अवध के प्रदेश उपाध्यक्ष राजा राम लोधी ने बताया, 'यह स्कूल सिर्फ सरकार का नहीं बल्कि हम सबका है, इसलिए यहां की व्यवस्थाएं जुटाना हम सबका काम है। एक व्यक्ति सारा खर्च उठा सके ऐसा संभव नहीं, इसलिए हम लोग थोड़ा-थोड़ा चंदा देकर यहां की व्यवस्थाओं को दुरुस्त करते हैं।"

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"हमारी एक बेटी अभी हाईस्कूल कर रही है उसने इसी स्कूल से पढ़ाई की है, दो बच्चे अभी पढ़ रहे हैं। स्कूल में पौधरोपण का काम हो या फिर रैली निकालना, हम हर काम में सहयोग करते हैं। इतना ही नहीं बच्चों के घर फीडबैक भी लिया जाता है। कोई बच्चा परेशानी हमसे साझा करता है तो प्रधानाचार्य से चर्चा करके उसकी समस्या का समाधान करते हैं। हमारे लिए खुशी की बात है कि हर साल 100-150 बच्चे प्राइवेट स्कूल से नाम कटवाकर यहां प्रवेश ले रहे हैं।"

राम सिंह, लोधी, अध्यक्ष, विद्यालय प्रबंधन समिति

छुट्टी के बाद 'बदलाव पाठशाला'

दुबग्गा के वसंतकुंज कॉलोनी सेक्टर-पी में भिखारियों के लिए काम कर रही 'बदलाव' नाम की एक गैर सरकारी संस्था ने 2 अक्टूबर 2016 में 'बदलाव पाठशाला' की नींव रखी। इस पाठशाला के दो किलोमीटर दूर तक कोई सरकारी स्कूल नहीं है। इस पाठशाला में वो बच्चे पढ़ाई करते हैं जो कूड़ा बीनते थे या फिर भीख मांगते थे। बदलाव पाठशाला खुलने के बाद इन बच्चों इस पाठशाला में पढ़ना शुरू किया। यहाँ के संस्थापक शरद पटेल ने इन बच्चों का दाखिला तीन साल पहले प्राथमिक विद्यालय पीरनगर में करवाया।

बदलाव पाठशाला में पढ़ाने वाली दो शिक्षिकाएं गुलशन बानो और दीपिका हर सुबह बस्ती के बच्चों को इकट्ठा करके दो किलोमीटर दूर हाईवे पार कराकर प्राथमिक विद्यालय पीरनगर ले जाती हैं। दिनभर वहां पढ़ाने के बाद छुट्टी के बाद इन्हें वापस लाकर बदलाव पाठशाला में पढ़ाती हैं।

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