थोड़ी सी कोशिशों से बदल गई स्कूल की रंगत

प्रधानाध्यापिका और समाजसेवियों के सहयोग से बदली बरेली के प्राथमिक विद्यालय सूफी टोला की तस्वीर

Chandrakant MishraChandrakant Mishra   6 Feb 2019 6:46 AM GMT

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थोड़ी सी कोशिशों से बदल गई स्कूल की रंगत

बरेली। कभी गंदगी के अंबार से पटा हुआ एक स्कूल लोगों की छोटी-छोटी कोशिशों से न सिर्फ आज संवर चुका है, बल्कि बच्चों की संख्या भी स्कूलों में बढ़ी है।

"कुछ वक्त पहले की बात है, स्कूल में जगह-जगह सिर्फ कूड़े के ढेर और गोबर ही दिखाई देता था। बच्चे तो बमुश्किल ही पढ़ने के लिए आते थे। गंदगी इस कदर थी कि बच्चों का क्लास में बैठना मुश्किल होता था। मगर आज तस्वीर बिल्कुल जुदा है," यह कहना है प्राथमिक विद्यालय सूफी टोला में पढ़ने वाले गुलजार के पिता इंतजार अली का।

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वह कहते हैं, "एक बार में तो कोई यकीन भी नहीं कर सकता है कि यह वही पुराना वाला स्कूल है। यह सब मुमकिन हुआ है प्रधानाध्यापिका मैडम की मेहनत से। अब मेरा बेटा रोज स्कूल जाता है।" स्थानीय लोगों की बातों और स्कूल के हालात पर नजर डालें तो इंतजार की बात में दम नजर आता है।


स्कूल की प्रधानाध्यापिका शालिनी गुप्ता बताती हैं, "वर्ष 2016 में जब मेरी यहां नियुक्ति हुई थी तो विद्यालय की हालत बहुत खराब थी। सीलन वाले कमरे, टूटी दीवारें, न शौचालय और न ही पानी की व्यवस्था। स्कूल के आसपास कई डेयरियां थीं। डेयरी मालिक गोबर विद्यालय परिसर में फेंक जाते थे। हर तरफ गंदगी का अंबार था। लोग तो इसे गोबर वाला स्कूल कहने लगे थे।"

शालिनी कहती हैं, "उस वक्त विद्यालय में 45 बच्चे पंजीकृत थे। बदहाली के कारण कोई अपने बच्चे को यहां भेजना ही नहीं चाहता था। जो बच्चे आते भी थे वो गंदगी और जर्जर भवन के कारण कक्षा में बैठने से कतराते थे। फिर मैंने अपनी सैलरी से कुछ पैसे इकट्ठा कर टिनशेड डलवाया और डेयरी मालिकों को समझाया।"

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वह आगे कहती हैं, "उनसे अपील की कि स्कूल में गोबर न डालें। शुरुआत में लोग मेरी बात सुनने को तैयार नहीं थे। लेकिन धीरे-धीरे उन्हें मेरी बात समझ आने लगी। कोई थोड़ी सख्ती से माना तो कोई प्यार से समझ गया और गोबर डालना बंद कर दिया। धीरे-धीरे विद्यालय में सुविधाएं बढ़ी और आज विद्यालय में 76 छात्र पंजीकृत हैं।"


पति के सहयोग से बनवाई बाउंड्री

विद्यालय की बाउंड्री न होने की वजह से परिसर सुरक्षित नहीं था। आवारा जानवर आए दिन विद्यालय में घुस जाते थे। कई बार बच्चों को भी नुकसान पहुंचाने की कोशिश की। शालिनी गुप्ता के पति ओमराज विश्नोई ने डीएम से विद्यालय की बाउंड्री बनवाने की गुहार की। डीएम की मदद से विद्यालय में बाउंड्री वॉल का निर्माण कराया गया।

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समाज सेवियों का भी मिला साथ

प्रधानाध्यापिका के सकारात्मक प्रयास की खबर जब कुछ समाज सेवियों को लगी तो वे भी विद्यालय के विकास के लिए आगे आए। समाज सेवी अंशु अग्रवाल और संजीव जिंदल ने कुछ लोगों के सहयोग से विद्यालय के लिए बहुत काम किया। संजीव जिंदल बताते हैं, "जब पहली बार मैं इस स्कूल में आया तो बच्चे फर्श पर बैठकर पढ़ रहे थे। पूरे कमरे में सीलन थी। सबसे पहले हमने सभी बच्चों के बैठने के लिए बेंच की व्यवस्था की। मैं सप्ताह में एक दिन इस विद्यालय में जरूर आता हूं। बच्चों की मदद की हर संभव कोशिश करता हूं।"

120 साल पुराना है स्कूल

प्राथमिक विद्यालय सूफी टोला करीब 120 साल पुराना बताया जाता है। स्कूल के लिए एक समाजसेवी ने अपनी जमीन दान की थी। देखरेख और उपेक्षा के चलते विद्यालय खंडहर में तब्दील हो चुका था। लेकिन अब स्थिति बदल रही है।


अब रहती है स्कूल में साफ-सफाई

अभिभावक निलोफर का कहना है, " पहले स्कूल में बहुत गंदगी रहती थी, मोहल्ले के लोग कूड़ा भी यहां फेंकते थे। बरसात में स्थिति और खराब हो जाती थी। अब स्कूल काफी बदल गया है। साफ-सफाई रहती है। हमारे बच्चे भी रोज स्कूल जाते हैं। "

बच्चे खुद करते हैं पेड़-पौधों की रखवाली

विद्यालय को खूबसूरत बनाने के लिए कई पौधे लगाए गए हैं। इन पौधों की रखवाली स्कूल के छात्र खुद करते हैं। गर्मी की छुट्टी में भी बच्चे ही पौधों की देखभाल करते हैं। स्कूल में गेंदा, गुलाब और कई तरह के पौधे लगाए गए हैं।

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