तीन तरफ से नदी से घिरे इस गाँव का पूर्व माध्यमिक बन रहा मिसाल

कुछ साल पहले तक यहां पर न तो बाउंड्री थी, न ही शौचालय बने थे, ऐसे में विद्यालय प्रबंधन समिति के सदस्यों की पहल पर स्कूल में पढ़ाई के साथ ही स्कूल की स्थिति बेहतर हो गई है।

Divendra SinghDivendra Singh   15 Jun 2018 7:45 AM GMT

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तीन तरफ से नदी से घिरे इस गाँव का पूर्व माध्यमिक बन रहा मिसाल

सलोन (रायबरेली)। कुछ साल पहले तक तीन तरफ से नदी से घिरे इस गाँव में जहां ग्रामीण हर साल अपना घर बदलने को मजबूर थे, वहीं पर विद्यालय प्रबंधन समिति के प्रयासों से पूर्व माध्यमिक विद्यालय की तस्वीर बदल गई है।

रायबरेली जिला मुख्यालय से लगभग 25 किमी. दूर सलोन ब्लॉक के बघौला ग्राम पंचायत के पूर्व माध्यमिक विद्यालय में कई गाँव के बच्चे पढ़ने आते थे, कुछ साल पहले तक यहां पर न तो बाउंड्री थी, न ही शौचालय बने थे, ऐसे में विद्यालय प्रबंधन समिति के सदस्यों की पहल पर स्कूल में पढ़ाई के साथ ही स्कूल की स्थिति बेहतर हो गई है।

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विद्यालय प्रबंधन समिति की सदस्य अनीता बताती हैं, "गाँव में बच्चों के मां-बाप उन्हें स्कूल ही नहीं भेजना चाहते हें, लेकिन अब धीरे-धीरे हमारे समझाने का असर हो रहा है, समिति के सदस्य और मास्टर जी लोग मिलकर गाँव-गाँव में जाकर बच्चों के अभिभावकों को समझाते हैं कि बच्चों को स्कूल भेजो।"

यूनीसेफ द्वारा यूपी के छह जिले बलरामपुर-श्रावस्ती, मिर्जापुर-सोनभद्र, बदायूं-लखनऊ के जिलों में दो साल पहले 'विद्यालय प्रबंधन समिति' पर काम हुआ था। जिसमें इन छह जिलों के हर न्याय पंचायत के दो सरकारी स्कूलों सहित 1400 विद्यालयों में काम किया गया।

गाँव में ऐसे भी कई परिवार हैं जिनकी आर्थिक स्थिति बहुत ज्यादा खराब है, इसलिए बच्चों से काम करवाते, ग्राम प्रधान और समिति के सदस्यों ने इसका हल भी निकाल लिया, ऐसे अभिभावकों को मनरेगा में ज्यादा काम मिलता है। अनीता बताती हैं, "जब बच्चों के अभिभावकों को समझाओ तो कहते कि बच्चे काम नहीं करेंगे तो खर्च कैसे चलेगा, हम लोगों ने मीटिंग की तो ये बात सामने आयी हमने ग्राम प्रधान से बताया, ग्राम प्रधान के सहयोग से उनको ज्यादा काम मिलता है।"

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कई ऐसे भी बच्चियां हैं, जिनकी मां नहीं हैं या तो बीमार रहती हैं, ऐसे में उन्हें अपने घर काम भी करना पड़ता है, ऐसी बच्चियों को छूट दी गई है कि स्कूल बंद होने के एक-दो घंटे देरी से भी स्कूल आ सकती हैं।

देश भर में 60 लाख शिक्षकों के पद स्वीकृत हैं, जिनमें 9 लाख प्राथमिक स्कूलों में और 1 लाख माध्यमिक स्कूलों में खाली पड़े हैं। अगर दोनों तरह के स्कूलों में शिक्षकों के रिक्त पदों को जोड़ दिया जाए तो 10 लाख होते हैं। बड़े हिंदी भाषी राज्यों- उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में 33.3 करोड़ लोग रहते हैं, जहां प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों में शिक्षकों की औसतन एक तिहाई सीटें खाली पड़ी हैं। गोवा, ओडिशा और सिक्किम के प्राथमिक स्कूलों में शिक्षकों का कोई पद खाली नहीं है।

इस पूर्व माध्यमिक विद्यालय में मानक के हिसाब से अध्यापक नहीं थे, लेकिन आज पूरे अध्यापक हैं। अनीता बताती हैं, "स्कूल में दो ही अध्यापक थे, हमने कई बार जिलाधिकारी, बीएसए को लिखा लेकिन कुछ नहीं हुआ, हम सब मिलकर अमेठी जिला मुख्यालय पर डीएम कार्यालय गए कि अध्यापकों की कमी से पढ़ायी नहीं हो पा रही है, तब जाकर पांच अध्यापक पूरे हो पाए।"

विद्यालय परिसर में फूलों के पौधे लगे हुए हैं, विद्यालय बंद होने के बाद इन सबकी देख-रेख की जिम्मेदारी विद्यालय प्रबंधन समिति की है, पहले स्कूल में बाउंड्री नहीं थी, तब सबने मिलकर बांस की बाउंड्री बना दी, अब सबके सहयोग से पक्की दीवार बन गई है।

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