स्कूल की पढ़ाई-लिखाई और सुविधाओं पर नजर रखते हैं राम चन्द्र चाचा

एसएमसी अध्यक्ष स्कूल और अध्यापकों पर रखते हैं नजर, स्कूल से लौटने वाले बच्चों से लेते हैं पूरे दिन का हिसाब। लापरवाह अध्यापकों को लगा चुके हैं फटकार

Chandrakant MishraChandrakant Mishra   26 Oct 2018 11:34 AM GMT

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स्कूल की पढ़ाई-लिखाई और सुविधाओं पर नजर रखते हैं राम चन्द्र चाचा

कुशीनगर। 'बेटा जरा सुनना, ये बताओ आज स्कूल में खाने को क्या मिला? कौन-कौन मास्टर आए थे? तुमने आज क्या सीखा?' घर के दरवाजे पर बैठकर रामचन्द्र रोज गाँव के माध्यमिक स्कूल से लौटने वाले बच्चों से ये सवाल जरूर पूछते हैं। रामचन्द्र गाँव के माध्यमिक विद्यालय के स्कूल प्रबंधन समिति के अध्यक्ष हैं। इसके साथ ही वह विद्यालय और बच्चों की बेहतरी के लिए हर संभव मदद करने की कोशिश भी करते हैं।

कुशीनगर जिले के दुदही ब्लॉक के गाँव मछरिया भारती निवासी राम चन्द्र (75 वर्ष) शिक्षा को बढ़ावा देने की कोशिश कर रहे हैं। रामचन्द्र बताते हैं, 'साल 1991 में जब मैंने इस माध्यमिक स्कूल का निर्माण कराया तब नहीं पता था कि स्कूल से मेरा रिश्ता कभी खत्म नहीं होगा। आज भी स्कूल और यहां पढ़ने वाले गाँव के बच्चों की बेहतरी के लिए लगा रहता हूं। मैं चाहता हूं कि मेरे गाँव का स्कूल प्रदेश का नंबर एक स्कूल बने।'

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राम चन्द्र का घर स्कूल के रास्ते में पड़ता है। वो रोज दोपहर अपने घर के दरवाजे पर बैठ जाते हैं। वहां से गुजरने वाले बच्चों को बुलाकर स्कूल में होने वाली गतिविधियों की जानकारी लेते हैं। कुछ कमी मिलती है तो वह स्कूल जाकर अध्यापकों से पूछते हैं।

रामचन्द्र अपने गाँव के दूसरे व्यक्ति थे जो 10वीं पास थे। रामचन्द्र बताते हैं, 'हमारे जमाने में बहुत कम लोग पढ़े लिखे होते थे। स्कूल भी कम थे। मैं अपने गाँव का दूसरा बच्चा था जो दसवीं पास था। उस समय आसपास के गाँवों के लोग भी चिट्ठी पढ़ाने मेरे पास आते थे। उस समय मुझे बड़ा फक्र हुआ करता था लेकिन मन में एक टीस थी कि काश सभी लोग पढ़ लिख लेते। बड़ा हुआ और नौकरी करने गाजियाबाद चला गया। लौटा तो वर्ष 1991 में गाँव का प्रधान बन गया।'

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वह बताते हैं, 'जब मुझे गाँव का प्रधान चुना गया तब गांव में स्कूल नहीं था। तब मैंने स्कूल खोलने की सोची। जब हमारी कोशिशों से स्कूल खुला तो ज्यादातर लोग बच्चों को स्कूल भेजने लगे थे। मेरे खुद के दो बेटे भी इसी प्राइमरी स्कूल में पढ़े हैं। अब मेरे नाती पोते पढ़ रहे हैं। जब मुझे कोई बच्चा स्कूल की कमी बताता है तो खुद उसे दूर करने का प्रयास करता हूं।'


राम चन्द्र ने बताया, 'कुछ साल पहले स्कूल में अध्यापकों की लापरवाही की शिकायतें आती थीं। पहले उन्हें समझाया। नहीं माने तो बीएसए से शिकायत की। एक महीने तक उनकी सैलरी रोक दी गई। सख्ती का असर दिखा और स्कूल में बदलाव होने लगा।

राम चन्द्र कहते हैं कि जब तक प्रधान रहा तब तक स्कूल के लिए काम करता रहा। फिर वर्ष 2011 में विद्यालय प्रबंध समिति का गठन शुरू हुआ तो मुझे अध्यक्ष चुना गया। तब से सुधार में जुटा हुआ हूं।

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विद्यालय के प्रधानाचार्य संतोष कुमार ने बताया, रामचन्द्र काफी सक्रिय रहते हैं। स्कूल में होने वाली सभी गतिविधियों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते रहते हैं। उन्हीं की बदौलत स्कूल में बच्चों की उपस्थिति बहुत अच्छी रहती है, क्योंकि वह घर-घर जाकर बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित करते हैं।गाँव का हर व्यक्ति उनका सम्मान करता है। हमारे विद्यालय में इस वक्त160 बच्चे पंजीकृत हैं।

अभिभावक सुरेंद्र कुमार ने बताया, राम चन्द्र चाचा गाँव के सबसे पहले पढ़े लिखे लोगों में से हैं। पहले मैं अपने बच्चे को पास के एक निजी विद्यालय में पढ़ने के लिए भेजता था, लेकिन जब मुझे पता चला कि गाँव के सरकारी स्कूल में अच्छी पढ़ाई हो रही है तब से मैंने उसका नाम कटवाकर यहां लिखा दिया है।

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