छोटे-छोटे बच्चे जला रहे शिक्षा की अलख, बड़ों को करते हैं प्रेरित

Divendra SinghDivendra Singh   4 Jan 2019 6:18 AM GMT

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छोटे-छोटे बच्चे जला रहे शिक्षा की अलख, बड़ों को करते हैं प्रेरित

ललितपुर। रश्मि रविवार को छ्ट्टी वाले दिन भी निकल पड़ती है। वह हर उस बच्चे के घर जाती हैं जो स्कूल नहीं आ रहे होते हैं। स्कूल न आने की वजह जानने के साथ उन्हें समझाती भी हैं। ऐसी ही कोशिश रश्मि के साथ उनके कई साथी कर रहे हैं।

रश्मि ललितपुर जिले के बालाबाहेट प्राथमिक विद्यालय में पढ़ती हैं। सहरिया समुदाय बाहुल्य इस गांव में कुछ साल पहले तक शिक्षा की स्थिति बहुत गंभीर थी। यहां के ज्यादातर परिवार जंगलों से लकड़ियां बीनने और मजदूरी का काम करते हैं। ऐसे में वो अपने बच्चों की पढ़ाई पर न के बराबर ही ध्यान दे पाते।

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लेकिन आज उसी गाँव के छोटे-छोटे बच्चे शिक्षा की अलख जगा रहे हैं। यह सब इतना आसान नहीं था। इसके पीछे छिपी है एक बड़ी कोशिश। एक्शन एड व ललितपुर की गैर सरकारी संस्था ने यहां अभिभावकों को प्रेरित करना शुरू किया और बाल मंच का गठन किया। ये छोटे-छोटे गाँव में घूमकर अभिभावकों समझाते हैं कि पढ़ाई-लिखाई कितनी जरूरी है।

एक्शन एड की सहायता से गाँव में बाल मंच का संचालन हो रहा है। पहले रश्मि, दुर्गा, शारदा, अभिषेक, सुरेश, अरुण जैसे प्राईवेट स्कूलों में पढ़ने जाते थे, ऐसे में उनके अभिभावकों के ऊपर हर महीने फीस का बोझ बना रहता। बाल मंच की बैठक में रश्मि ने बताया कि उनके अभिभावकों को कितनी परेशानी उठानी पड़ती है।

रश्मि बताती हैं, "जब हमने बात की तो पता चला कि सरकारी स्कूल में तो कोई खर्च ही नहीं लगता, वहां पर तो दोपहर को खाना, किताब, बैग, यूनिफार्म, स्वेटर सब कुछ मिलता है, कोई फीस भी नहीं लगती है। अब हम लोग वहीं पढ़ते हैं।"


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रश्मि के एडमिशन के बाद भी कई बच्चे स्कूल नहीं जाते थे, ऐसे में बच्चों ने एक्शन एड के वालेंटियर से ये बात बतायी कि अभी कितने बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं। अब उस गाँव के हर बच्चे स्कूल जाते हैं।


गैर सरकारी संस्था साईं ज्योति के महेश रिछारिया बताते हैं, "हमारी यही कोशिश रहती है कि हर बच्चे को शिक्षा मिले, सहरिया समुदाय के लोग ज्यादातर मजदूरी करते हैं और बाहर जाकर नौकरी करते हैं, ऐसे में यहां ड्राप आउट की भी समस्या है। इसलिए इस बात पर विशेष ध्यान दिया जाता है कि नामांकन के बाद कोई स्कूल बीच में न छोड़ दे। इसलिए विद्यालय प्रबंधन समिति के सदस्यों को समय-समय पर ट्रेनिंग की भी दी जाती है।"

कोई बनना चाहता है शिक्षक तो कोई डॉक्टर

रश्मि और दुर्गा शिक्षक बनकर गरीब बच्चों को पढ़ाना चाहती हैं, तो शारदा डॉक्टर बनकर गरीबों का इलाज करना चाहती हैं। शारदा बताती हैं, "एक्शन एड की मदद से हमें बहुत सारी जानकारी मिलती रहती है, कैसे हम पढ़-लिखकर आगे अच्छी नौकरी कर सकते हैं। तभी तो मैं पढ़-लिखकर डॉक्टर बनना चाहती हूं।

    

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