पढ़ाई के साथ स्कूल में चलती है बाल संसद

बाराबंकी के प्राथमिक विद्यालय गुलहरिया में विद्यालय को बेहतर बनाने में बच्चों की रहती है महत्वपूर्ण भूमिका...

Deepanshu MishraDeepanshu Mishra   29 Oct 2018 7:05 AM GMT

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पढ़ाई के साथ स्कूल में चलती है बाल संसद

बाराबंकी। इस स्कूल में बच्चे सिर्फ पढ़ाई ही नहीं करते, बल्कि अपनी बाल संसद के जरिए विद्यालय को और बेहतर करने का भी प्रयास करते हैं।

यही कारण है कि आंचल जब बाराबंकी जिले के हरख ब्लॉक स्थित गुलहरिया गाँव अपने नानी के घर आई तो उन्हें वहां प्राथमिक विद्यालय गुलहरिहा इतना पसंद आया कि आगे पढ़ने के लिए आंचल ने इसी स्कूल में दाखिला ले लिया। स्वच्छ वातावरण और बेहतर पढ़ाई का माहौल बच्चों को विद्यालय आने पर मजबूर करता है। इस विद्यालय में सीसीटीवी कैमरे से लेकर बच्चों को पढ़ाई के लिए प्रोजेक्टर तक के सभी इंतजाम हैं।

आँचल बताती है, "हम जब नानी के घर आये थे तब यह स्कूल देखा था और बहुत अच्छा लगा था। बाल संसद में कोई बच्चा प्रधानमंत्री था, तो कोई उप प्रधानमंत्री, और हमें बाल संसद बहुत अच्छी लगी। तब हमने पापा से बोला हम इसी स्कूल में पढ़ेंगे, तब पापा ने भी मेरा एडमिशन यहां करवा दिया। अब हम यहां पढ़ाई कर रहे हैं।"


बाल संसद में प्रधानमंत्री और उप प्रधानमंत्री के साथ स्वास्थ्य एवं सफाई मंत्री, पुस्तकालय मंत्री जैसे कई पद बच्चों को बांटे गए हैं। अपने पद के हिसाब से बच्चे काम करते हैं। बाल संसद की प्रधानमंत्री नंदिनी बताती हैं, "बाल संसद की बैठक होती है। इस बैठक में हम विद्यालय को और कैसे बेहतर बनाये इस पर बात करते हैं।"

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प्राथमिक विद्यालय गुलहरिया के प्रधानाध्यापक सुशील कुमार बताते हैं, "वर्ष 2007 में ट्रांसफर के बाद मैं जब इस स्कूल में आया था तो विद्यालय के इन्फ्रास्ट्रक्चर में काफी बदलाव किये हैं। मेरा एक उद्देश्य था कि हमारे स्कूल में बच्चों को शिक्षा की सभी सुविधाएं मिलें।"

सुशील बताते हैं, "सरकार से इतनी व्यवस्थाएं संभव नहीं थी, सरकार का इतना बजट नहीं रहता था इसलिए हमने समुदाय के लोगों को जोड़ा और उनसे आर्थिक मदद न लेकर शारीरिक मदद ली। लोगों ने काफी मेहनत की और कैंपस हरा भरा हो गया। शुरुआत में जो बच्चे यहाँ आते थे, उन्हें बोलने का तरीका नहीं था, अचार-विचार सही नहीं थे इसलिए हमने काफी उस पर जोर दिया और आज बच्चों के व्यवहार में काफी बदलाव किया।"

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वह बताते हैं, "हमने धीरे-धीरे स्कूल में प्रोजेक्टर से पढ़ाई की सुविधा उपलब्ध कराई, सीसीटीवी कैमरे लगाए और बाल संसद का गठन किया ताकि बच्चे अलग-अलग भूमिका में अपनी दायित्व निभाएं।"

बाल संसद में तय होती हैं आगे की गतिविधियां

प्रधानाध्यापक सुशील कुमार के प्रयासों से हर दिन बच्चों की 75 प्रतिशत उपस्थिति स्कूल में रहती है। सुशील कुमार कहते हैं, "इस समय हमारे विद्यालय में 201 बच्चों का नामांकन है और 140-150 बच्चे रोजाना आते हैं। हमने विद्यालय में एक बाल संसद का गठन किया है। बच्चे आगे चल कर देश का कर्णधार होते हैं, इसलिए हमने इसका निर्धारण किया। विद्यालय को चलाने के लिए स्कूल प्रबंधन समिति तो है ही, इसके अलावा बच्चों में भी वो बदलाव लाया जा रहा है जिससे स्कूल के वातावरण को बेहतर बना सके। इस बाल संसद में प्रधानमन्त्री और उप प्रधानमंत्री सहित कई पद बच्चों को दिए गये हैं। विद्यालय प्रबंधन समिति का भी काफी सपोर्ट मिला है। इसकी बैठक माह के अंतिम शनिवार को होती है। इस बैठक में विद्यालय में आगे होने वाली गतिविधियों की बात की जाती है इसके अलावा आगे होने वाले कार्यों की समीक्षा की जाती है।"


विद्यालय प्रबंध समिति का रहता है पूरा सहयोग

विद्यालय प्रबंध समिति के पूर्व अध्यक्ष कन्हैयालाल बताते हैं, "मैं इस विद्यालय का अध्यक्ष रह चुका हूं। मेरे दो बच्चे इस विद्यालय में पढ़ चुके हैं। विद्यालय में जब कोई भी बच्चा नहीं आता था तो मैं उसके घर पहुंच जाता था और उनसे कारण पूछा जाता था कि बच्चा स्कूल क्यों नहीं गया है। अब गाँव के लोगों में काफी बदलाव आया है, अच्छा विद्यालय होने के कारण काफी बच्चे भी आने लगे हैं।" वहीं विद्यालय प्रबंध समिति की अध्यक्ष रामलली ने बताया, "मैं पिछले एक साल से इस विद्यालय लगातार आ रही हूं और विद्यालय में होने वाले कार्यों पर नजर रखती हूं। मेरे बच्चे यहां कई सालों से पढ़ रहे हैं। मेरे चार बच्चे हैं उन्हें यहीं पढ़ाया है और भी बच्चों को यहाँ पर भेजने के लिए बोलते हैं। इस विद्यालय में अच्छी पढ़ाई होती है।

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