अध्यापकों के साथ ग्रामीणों ने समझी अपनी जिम्मेदारी बदल गई शिक्षा व्यवस्था

Divendra SinghDivendra Singh   29 Dec 2018 7:21 AM GMT

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अध्यापकों के साथ ग्रामीणों ने समझी अपनी जिम्मेदारी बदल गई शिक्षा व्यवस्था

ललितपुर। कुछ साल पहले तक इस गाँव के न तो अभिभावकों को अपने बच्चों की पढ़ाई की फिक्र थी और न ही स्कूल के अध्यापकों को। बच्चे आ रहे हैं या नहीं, पढ़ाई हो रही है या नहीं कोई ध्यान नहीं देता है। लेकिन जब से विद्यालय प्रबंधन समिति का गठन हुआ यहां की स्थिति में सुधार हो गया है।

ललितपुर जिले के बरौद गाँव में साल 2008 में पूर्व माध्यमिक विद्यालय का निर्माण हुआ था, लेकिन शुरू के कुछ साल नामांकन बहुत कम थे। ऐसा तीन साल तक चलता रहा, लेकिन साल 2011 में एक्शन ऐड के सहयोग से स्थिति में सुधार हो गया है।

पूर्व माध्यमिक विद्यालय के प्रधानाध्यापक राजेन्द्र कुमार बताते हैं, "पहले बच्चों का नामांकन बहुत कम था, जिनका था भी वो बच्चे भी स्कूल नहीं आते थे, ऐसे में एक्शन ऐड हमारे लिए काफी मददगार साबित हुआ।"

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एक्शन ऐड की तरफ से शिक्षा का अधिनियम अधिनियम के तहत शिक्षकों के लिए प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन किया गया। साथ ड्राप आडट बच्चों को डेटा भी इकट्ठा करना शुरू किया। इसके बाद विद्यालय प्रबंधन समिति और बाल मंच का गठन किया गया। ऐसे में ग्रामीणों के सहयोग से उसी साल बच्चों की संख्या 42 से बढ़कर 110 हो गई।


प्रधानाध्यापक राजेन्द्र कुमार आगे कहते हैं, "साल 2015 में एसएमसी, स्कूल के छात्रों और शिक्षकों की भागीदारी के साथ एक्शन एड के मार्गदर्शन के साथ स्कूल विकास योजना तैयार की गई और मौजूदा शौचालय की मरम्मत और लड़कों और लड़कियों के लिए अलग शौचालय के निर्माण, छात्रों के लिए खेल सामग्री, विद्यालय के अंदर स्वच्छ पेयजल की व्यवस्था की गई।

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ललितपुर ज़िले में 1024 प्राथमिक विद्यालय ग्रामीण और 25 शहरी क्षेत्रों में हैं, साथ ही ज़िले में 484 पूर्व माध्यमिक ग्रामीण व 9 शहरी क्षेत्रों में हैं। जिलाधिकारी व दूसरे अधिकारियों के सहयोग से यहां पर पिछले कुछ वर्षों में बुंदेलखंड के ललितपुर जिले में प्राथमिक शिक्षा के स्तर में सुधार आया है। साथ यूनिसेफ व एक्शन ऐड ने प्राथमिक व पूर्व माध्यमिक विद्यालयों में विद्यालय प्रबंधन समितियों को प्रशिक्षण दिया गया है, जिससे अभिभावक अपनी जिम्मेदारियों को समझ रहे हैं।


विद्यालय प्रबंधन समिति के सदस्य रंजीत बताते हैं, "हमें समय-समय पर ट्रेनिंग भी दी जाती है, जिसमें हमें बताया जाता है कि कैसे अपने बच्चों के स्कूल में सुधार ला सकते हैं। पहले यहां लड़के-लड़कियों के लिए अलग-अलग शौचालय नहीं था, हमने मीटिंग हमने प्रस्ताव रखा कि अलग शौचालय बनाया जाए, अब न केवल स्कूल में लड़के-लड़कियों के लिए अलग-अलग शौचालय निर्माण हुआ, बल्कि पीने की पानी की व्यवस्था हो गई है।

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