किशोरी ने खुद गड्ढा खोद बनवाया शौचालय, गांव के लोगों के लिए बनी नजीर
किशोरी अपनी छोटी बहन और भाभी के साथ जब भी शौच के लिए खुले में जाती थी उसे ऐसा लगता कि कुछ लोग उन्हें देख रहे हैं। वो हमेशा चाहती थी कि उसके घर में भी शौचालय हो। उसने ये बात अपने पिता से कही। लेकिन उन्होंने पैसे का हवाला देकर मना कर दिया। लेकिन किशोरी ने ठान लिया था कि अब खुले में शौच नहीं जाऊंगी
Chandrakant Mishra 15 Dec 2018 5:47 AM GMT

महराजगंज। 'जहां सोच, वहां शौचालय'। इस विज्ञापन को साकार किया है जनपद की एक किशोरी ने। किशोरी जब शौच के लिए खुले में जाती थी तो वह बहुत असहज महसूस करती थी। घर की अर्थिक स्थिति ठीक न होने पर किशोरी ने खुद गडढ़ा खोदकर शौचालय का निर्माण कराया। किशोरी की इस सोच और प्रयास को देखकर गांव के अन्य लोग भी जागरूक हुए हैं।
जनपद के विकास खंड सदर के ग्राम धनेवा की आसमी निशा(17 वर्ष) कुछ समय पहले तक अपनी छोटी बहन और भाभी के साथ खुले में शौच जाती थी। इस दौरान उन्हें बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ा, लेकिन खुले में शौच जाने की मजबूर थी। घर की माली हालत इतनी अच्छी नहीं थी कि घर में शौचालय बनवाया जा सके। लेकिन आसमी की जिद पर घर वाले शौलाचय बनवाने के लिए राजी हुए।
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आसमी ने बताया, " मैं मदरसे में पढ़ी हूं। मेरे पिता सैयादिर मजदूरी करते हैं। पहले घर के सभी सदस्य खुले में ही शौच जाते थे। मैं भी अपनी छोटी बहन और भाभी के साथ जब भी शौच के लिए खुले में जाती थी ऐसा लगता कि कुछ लोग उन्हें देख रहे हैं। मुझे बहुत शर्म आती थी। मैं हमेशा से चाहती थी कि मेरे घर में भी शौचालय हो। मैंने ये बात अपने पिता से कही। लेकिन उन्होंने पैसे का हवाला देकर मना कर दिया। लेकिन मैंने ठान लिया था कि अब खुले में शौच नहीं जाऊंगी।"
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आसमी ने अपने पिता को समझाया कि शौचालय बनाने में बहुत खर्च नहीं आएगा। आसमी खुद कुदाल लेकर गड्ढा खोदने लगी। आसमी के गड्ढा खोदने के प्रयास से धनेवा गांव के स्वच्छाग्रही गयासुद्दीन बहुत प्रभावित हुए। उन्हेांने घर के अन्य लोगों को भी जागरूक किया। आसमी ने बताया, धीरे-धीरे मेरे घर के सभी सदस्य साथ आए गए। पिता भी शाम का मजदूरी से वापस आने के बाद शौचालय निर्माण में हाथ बंटाने लगे। अब मेरे घर में शौचालय बन गया है। हम मेरे घर के सभी सदस्य शौचालय का प्रयोग करते हैं।"
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गांव में शौचालय निर्माण को गति देने के लिए गयासुद्दीन ने उन महिलाओं को भी प्रेरित कर लिया जिनके घर में पुरूष नहीं थे या बाहर जाकर रोजगार में लगे हैं। गांव की एक महिला सरातुननिशा ने जब सुना कि आसमी ने अपने शौचालय का गड्ढा खुद खोदा हैं तो उन्होंने भी अपने शौचालय का गड्ढा खुद खोदा और शौचालय का निर्माण कराया।
किसी भी महिला के लिए शौचालय केवल शौच निवृति के लिए ही आवश्यक नहीं हैं, बल्कि महिलाओं के सम्मान, स्वच्छता एवं सुरक्षा के दृष्टि से भी आवश्यक है। शौचालय नहीं होने के कारण महिलाओं और युवतियों को स्वच्छता में बहुत बड़ी बाधा होती है। मासिक धर्म के समय स्वच्छता की आवश्यकता होती है।
धनेवा गांव के स्वच्छाग्रही गयासुद्दीन बताते हैं कि आसमी को देखकर गांव की 3 महिलाओं ने अपने शौचालय का गड्ढा स्वयं खोदा था और बहुत सी महिलाएं शौचालय बनवाने के लिए प्रेरित हुई हैं, जिससे गांव में शौचालय निर्माण का कार्य तेज हुआ है।
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