झारखंड के गांवों में हो रहा बकरियों के नस्ल सुधार का काम

अगर आपको बकरी पालन करके अच्छा मुनाफा कमाना है तो झारखंड के उत्पादक समूह की इन महिलाओं से जरुर मिलिए।

Neetu SinghNeetu Singh   27 Aug 2019 12:01 PM GMT

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लोहरदगा (झारखंड)। आदिवासी बाहुल्य झारखंड के लगभग हर घर में मुर्गियां और बकरियां पाली जाती हैं। ये छोटे पशु यहाँ की महिलाओं के आर्थिक लड़ाई के साथी हैं। राज्य में जोहार परियोजना के तहत बकरियों की नस्ल सुधार के लिए ब्रीडर विलेज बनाए जा रहे हैं। जिससे ग्रामीण अर्थ व्यवस्था को और मजबूत किया जा सके।

दो चार बकरियों का पालन करने वाली आज मुन्नी उरांव (27 वर्ष) के पास ब्लैक बंगाल नस्ल की 20 बकरियां हैं। एक बकरी का हर दिन कितना आहार हो और उनके रहने की क्या व्यवस्था हो इस बात का मुन्नी पूरा ध्यान रखती हैं। सलैया गाँव की 50 महिलाएं पशु सखी मुन्नी की देखरेख में बेहतर तरीके से बकरी पालन कर रहीं हैं। इस गाँव में बकरी के बाड़े से लेकर उनके लिए हवादार शेड तक का पूरा इंतजाम किया गया है।

चारो तरफ बांस से घिरे बाड़े में हरे पत्ते खा रही बकरियों की तरफ इशारा करते हुए मुन्नी बताती हैं, "दिन में इनको इसी बाड़े में रखते हैं। जंगल से चराने के बाद कुछ हरे पत्तों की डाल को ऐसे ही ऊपर से बांस में फंसा देते हैं जिससे ये उछल-उछल कर खाती रहती हैं। इससे इनकी पाचन क्रिया अच्छी रहती है।" उन्होंने बाड़े में रखे पानी के बारे में बताया, "गर्मी के दिन शुरू हो गये हैं ये जंगल से चरकर आती हैं तब पानी पिलाते हैं लेकिन एक बर्तन में पानी भरकर भी रख देते हैं जिससे इन्हें जब प्यास लगे ये पानी पी सकें।" इन बकरियों को सादा पानी नहीं पिलाया जाता। इन्हें माड़ पानी और मिनरल पाउडर मिलाकर पानी पिलाया जाता है जिससे इनका शारीरिक विकास अच्छा हो सके।


इस गाँव में बांस के बकरी शेड बने हुए हैं जिसमें रात में बकरियां सोती हैं और दिन में बांस से बने बाड़े में रहती हैं। बकरियों के रहने और खाने का यहाँ के पशुपालक खास ध्यान रखते हैं। जोहार परियोजना के तहत इस सलैया गाँव को ब्रीडर विलेज चुना गया है जिसमें उन्नत तरीके से बकरा प्रजनन और नस्ल सुधार पर खास काम किया जा रहा है। इस गाँव की तरह 24 ब्लॉक के 24 गाँव को ब्रीडर विलेज बनाया जा रहा है। एक ब्रीडर विलेज में उन्नत नस्ल से जन्में बकरे उस पूरे ब्लॉक के उन गाँव में जाएंगे जहाँ पर उत्पादक समूह की महिलाएं बकरी पालन कर रही हैं।

लोहरदगा जिला मुख्यालय से लगभग 20 किलोमीटर दूर किस्को प्रखंड के पाखर पंचायत के सलैया गाँव में 150 घर हैं। यहाँ लगभग हर घर में दो चार बकरियां जरुर हैं पर लकी उत्पादक समूह से जुड़ी 50 महिलाओं के पास कमसेकम 10 बकरी और एक बकरा हर महिला के पास मिलेगा। परियोजना के तहत प्रति महिला आठ बकरी और एक बकरे की राशि दी जाती है और उस महिला के पास दो बकरी पहले से होनी चाहिए।

अभी राज्य के 24 ब्लॉक को ब्रीडर विलेज बनाने पर काम चल रहा है। इन ब्रीडर विलेज को नस्ल सुधार बकरा प्रजनन को राज्य में माडल के तौर पर प्रस्तुत किया जाएगा। लकी उत्पादक समूह की कोषाध्यक्ष उषा उरांव (25 वर्ष) बताती हैं, "पहले हमारे पास न तो बकरी शेड था और न ही बाड़ा था। हम बकरियों को ऐसे ही कहीं भी बन्ध देते थे। बकरियों को भी खास देखरेख की जरूरत होती है ऐसा हमने सोचा नहीं था।" वो आगे बताती हैं, "लेकिन अब बकरी को भरपूर पोषक तत्व खाने में देते हैं। इन्हें माड़ पानी में मिनरल पाउडर मिलाकार पिलाते हैं। अजोला खिलाते हैं जिससे इनका विकास ज्यादा होता है।"


जोहार परियोजना राज्य की एक महत्वपूर्ण योजना है जिसमें किसानों की छह साल में आय को दोगुना करने का लक्ष्य है। जिसमें छोटे पशुपालन की महत्वपूर्ण भूमिका है। क्योंकि छोटे पशुपालन यहाँ के लोग बहुत ही आसानी से पालन कर सकते हैं। इस परियोजना के तहत उत्पादक समूह बनाये जा रहे हैं जिसमें सखी मंडल की महिलाओं को जोड़ा जा रहा है। इन महिलाओं को सामूहिक रूप से हर महीने गाँव में ही किसान पाठशाला लगाई जाती है साथ ही हर उत्पादक समूह में एक पशु सखी होती है जो अपने गाँव में सभी छोटे पशुओं की देखरेख करती है।

सुबह के साढ़े बजे जंगल से बकरी चराकर लौट रही बालो उराँव (22 वर्ष) ने बताया, "हर दिन सुबह आठ नौ बजे जंगल बकरी लेकर चले जाते हैं और दोपहर के 11-12 बजे वापस बाड़े में छोड़ देते हैं। पानी पिलाकर ये दो तीन घंटे आराम करती हैं और फिर दो तीन बजे जंगल लेकर चले जाते हैं। शाम पांच बजे वापस ले आते हैं। जंगल के आलावा इन्हें सुबह नाश्ते में दाना कहलाते हैं।" जंगल में बकरियां चराने का समय मौसम के अनुसार बदल जाता है। ये जंगल में चराने के आलावा सुबबूल, मुनगा (सहजन) और दूसरे पौधों के हरे पत्ते भी खिलाते हैं।

उत्पादक समूह में वही महिलाएं जुड़ सकती हैं जो सखी मंडल की सदस्य हों। उत्पादक समूह में जुड़ने के लिए 100 रूपये प्रति महिला सदस्यता शुल्क और 1000 रूपये अंश पूंजी जमा करनी होती है। परियोजना में जो उत्पादक समूह बनाये जा रहे हैं वो अलग-अलग तरीके से कई काम करते हैं जैसे कोई उत्पादक समूह उन्नत खेती करता है तो कोई पशु पालन तो कोई मछली पालन जैसे काम करता है। पर इन सभी का उद्देश्य एक ही है आय को दोगुना करना।

ऐसे होता है ब्रीडर विलेज का चुनाव

ब्रीडर विलेज ऐसे गाँव को चुना जाता है जिसके आसपास एक दो किलोमीटर तक दूसरा कोई गाँव न हो। जिससे इस गाँव की बकरियां दूसरे गाँव की बकरियों के साथ मिलकर न चल सकें। जिस गाँव को ब्रीडर विलेज चुना जा रहा हो वहां की महिलाएं बकरी पालती हों और उन्नत तरीके से बकरी पालने की इच्छा रखती हों। उत्पादक समूह में जुड़ने वाली हर महिला के पास पहले से दो बकरियां होनी जरूरी हैं।


जोहार परियोजना की तरफ से बकरी उन्ही महिलाओं को मिलेगी जिसने बकरी के रहने का बकरी शेड और बाड़ा बना लिया हो। जोहार की तरफ से ब्रीडर विलेज में उत्पादक समूह से जुडी हर बकरी पालक महिला को शेड और बाड़ा बनाने के 7500 रुपए अलग से दिए जाते हैं।

हर महीने किसान पाठशाला में इन विषयों पर होती है चर्चा

ब्रीडर विलेज के हर गाँव में अलग-अलग तारीखों में हर महीने किसान पाठशाला का आयोजन किया जाता है। जिसमें परियोजना की तरफ से प्रशिक्षक जाते हैं जो बकरियों की देखरेख, मेमने की देखरेख उनके खान पान और उन मुद्दों पर चर्चा करते हैं जिसे पशुपालक बताते हैं।

सलैया गाँव में हर महीने की तीन तारीख को किसान पाठशाला का आयोजन होता है। एक ब्लॉक में जो ब्रीडर विलेज बनाया जाता है उसके अच्छी नस्ल के बकरे उस पूरे ब्लॉक के पशु पालन करने वाले उत्पादक समूह में जाते हैं। सलैया गाँव के बकरे किस्को प्रखंड में चल रहे 24 उत्पादक समूह में जायेंगे।

ऐसे बनता है बकरी शेड

बकरी शेड वो जगह होती हैं जहाँ पर बकरियां रात में सोती हैं। इसे बनाने के लिए 20 फिट लम्बाई, 10 फिट चौड़ाई और जमीन से नौ फिट की ऊंचाई पर बांस की खपचियाँ काटकर बनाया जाता है। नीचे का फर्स खुरदरा पक्का रखा जाता है जिससे बकरियों की पेशाब को आसानी से साफ़ किया जा सके दूसरा अगर गर्मियों में दोपहर में बाड़े के पास धूप है तो इस बकरी शेड के नीचे हिस्से में बकरियों को बाँधा जा सके।


शेड में बकरियों के चढ़ने उतरने की सीढ़ी नुमा एक जगह बनाई जाती है और एक छोटा सा बांस का दरवाजा भी लगाया जाता है। बकरी शेड के पास में ही किसी पेड़ की छाया के नीचे चारो तरफ घेरकर एक बाड़ा बकरियों की संख्या के हिसाब से लम्बा चौड़ा बनाया जाता है। यहाँ बकरियां दिन में रहती हैं। रात में पीने का पानी और मिनरल ब्लॉक बकरी शेड में रख दिया जाता है।

बकरी को मिनरल ब्लॉक खिलाने के ये हैं फायदे

मिनरल ब्लॉक बनाने के लिए एक किलो लाल मिट्टी या दीमक मिट्टी को अच्छे से छान लेते हैं जिससे कंकड़ पत्थर न रहे। उसमें एक किलो पिसा नमक, छह सात अंडे का भुंजा छिलका और 200 ग्राम आटा या चोकर लेते हैं। सभी सामग्री को मिलाकर जरूरत के अनुसार पानी डालते हैं और रोटी नुमा बनाकर बीच में एक छेद कर देते हैं।

इसे बकरी के शेड में राटा में रख देते हैं जिसे बकरी चाटती रहती है। इसको खिलाने से बकरी में जो प्लास्टिक कागज खाने की जो आदत होती है वो खत्म हो जाती है। प्रजनन क्षमता बढ़ती है, खनिज तत्व मिलता है। इसको चाटने से बकरी को प्यास बहुत लगती है, उसकी पाचन क्षमता बढ़ती है और पेट में क्रीमी नहीं होता है।

हर बकरी पालक के पास होता है अजोला घास

जोहार परियोजना की क्लस्टर लाइव स्टॉक मैनेजर पिंकी उरांव (28 वर्ष) बताती हैं, "बकरियों के लिए हरा चारा खिलाना बहुत जरूरी है जिसमें अजोला घास यहाँ की दीदी बकरी और मुर्गियों को खिलाती हैं। बकरी पालने से पहले हर पशुपालक को बकरी शेड और बाड़ा बनाना जरूरी है अगर ऐसा नहीं किया तो बकरियां बहुत बीमार होती हैं और उनकी ग्रोथ रुकती है।" इस गाँव 50 महिलाओं के पास अजोला घास एक गड्ढे में जरुर मिलेगी।


इस घास को पांच फिट लम्बाई, ढाई फिट चौड़ाई और नौ इंच गहरे गड्ढे में प्लास्टिक बिछा देते हैं। इसमें पांच किलो लाल मिट्टी या दीमक मिट्टी, एक सप्ताह पुराना पांच किलो गोबर, पांच छह इंच पानी डालकर 10 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट डालकर मिला देते हैं। इसके बाद अजोला घास डालते हैं जो 15 दिन में बकरी को खिलाने लायक तैयार हो जाती है।

इस घास को खिलाने के लिए गड्ढे से हर दिन थोड़ी घास निकालकर तीन चार बार साफ़ पानी से धुल लेते हैं। इसके बाद बोरे या सूप में रख देते हैं जब पानी सूख जाता है तब इसे सूखे चोकर में मिलाते हैं और पौष्टिक आहार का पाउडर भी मिलाते हैं इसके बाद बकरी को सुबह इसी का नाश्ता करा देते हैं। बकरी का शरीर बहुत ग्रोथ करता है, बकरियों का दूध बढ़ता है, बकरों का मांस बढ़ता है और मुर्गियों के अंडे बढ़ते हैं।

पढें- बकरी के दूध को शहरों में मिल रहा बेहतर बाज़ार

   

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