नक्सल क्षेत्र की ये महिलाएं कभी घर से नहीं निकलती थीं, आज संभाल रहीं कोटा की दुकान

Neetu SinghNeetu Singh   20 Feb 2019 7:00 AM GMT

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पूर्वी सिंहभूमि (झारखंड)। नक्सल प्रभावित क्षेत्र गुड़ाबांदा प्रखंड की महिलाओं को एक समय घर से बाहर कदम निकालने से पहले कई बार सोचना पड़ता था। लेकिन सखी मंडल से जुड़ने के बाद इन महिलाओं में न केवल निर्भीकता आई है, बल्कि समूह को ये अपनी ताकत भी समझती हैं। जंगलों से अपनी जीविका को चलाने वाली ये महिलाएं अब अलग-अलग तरह के काम कर रही हैं।

नक्सल प्रभावित क्षेत्र की महिलाओं को किया जा रहा सशक्‍त

पूर्वी सिंहभूमि जिला मुख्यालय से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर स्‍थ‍ित गुड़ाबांदा प्रखंड के भालकी गांव में मां दुर्गा स्वयं सहायता समूह की 10 महिलाएं जन वितरण प्रणाली की दुकान का संचालन कर रही हैं। ये महिलाएं समूह से वर्ष 2012 में जुड़कर सप्ताह के 10 रुपए जमा करने लगीं। ग्रामीण विकास विभाग के सहयोग से झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी द्वारा इस नक्सल प्रभावित क्षेत्र की महिलाओं को सशक्त किया जा रहा है। सबसे पहले इन्हें सखी मंडल से जोड़ा गया जिससे ये बचत करना शुरू करें और सरकार द्वारा चल रही विभिन्न योजनाओं की जानकारी प्राप्त कर सकें।


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समूह की सचिव रेबिका मंडी (42 वर्ष) ने अपने हाथों को दिखाते हुए कहा, ''पहले इन हाथों से जंगल में लकड़ी बीनते थे और उसे बेचकर जो पैसा मिलता था उससे रोज का खाना बनता था। इतने पैसे नहीं थे जिससे बैंक में खाता खुलवाना पड़े। पढ़े-लिखे भी नहीं थे, सखी मंडल से जुड़ने के बाद पांच-छह साल में सबकुछ ऐसा बदला जिसके बारे में कभी सोचा ही नहीं था।'' उन्होंने सखी मंडल की खूबियां गिनाते हुए कहा, ''अब हर दिन जंगल में लकड़ी बीनने नहीं जाना पड़ता। बैंक में खाता हो गया और बचत भी हो गयी है। अब अंगूठा नहीं लगाते बल्‍कि साइन करते हैं। तराजू से कभी कुछ तौल नहीं की थी, लेकिन अब इलेक्ट्रॉनिक तराजू से जन वितरण प्रणाली की दुकान का राशन तौलते हैं।''

आर्थिक रूप से सशक्त हो रही महिलाएं

सखी मंडल से जुड़ने के बाद नवम्बर 2017 में मां दुर्गा स्वयं सहायता समूह की 10 महिलाओं ने एक लाख रुपए लोन लिया और जन वितरण प्रणाली के दुकान की शुरुआत की। इससे पहले जन वितरण प्रणाली की दुकान चलाने का जिम्मा पुरुषों के हाथों था। झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी की ये कोशिश है कि ग्रामीण महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त करने के लिए केवल इन्हें सखी मंडल से ही न जोड़ा जाए बल्कि सरकार द्वारा संचालित कई तरह की योजनाओं से भी इन्हें जोड़कर इनकी आजीविका मजबूत की जाए। इसलिए सखी मंडल से जुड़ी महिलाओं को राशन कोटा संभालने की जिम्मेदारी दी गयी।


ऑनलाइन तरीके से संचालित कर रहे कोटा की दुकान

समूह की अध्यक्ष लक्ष्मी सामद (25 वर्ष) सखी मंडल की पढ़ी-लिखी सदस्य हैं। ये ऑनलाइन पोर्टेबल मशीन के जरिए कार्डधारकों का आधार कार्ड से लिंक कर चुकी हैं। पहाडी और सुदूर गांव होने की वजह से नेटवर्क की अभी भी यहां समस्या है। लक्ष्मी सामद ऑनलाइन मशीन लेकर गांव से कुछ दूर नदी के पास जाती हैं जहां से कार्डधारकों का अंगूठा लगवाती हैं, तब कहीं इन्हें राशन मिलता है। लक्ष्‍मी खुश है कि इस क्षेत्र का ये पहला राशन कोटा की दुकान है जो ऑनलाइन तरीके से संचालित हो रही है। संसाधनों के अभाव और विपरीत परिस्थितियों में रहने वाली ये महिलाएं ऑनलाइन तरीके से राशन कोटा का संचालन कर खुद को सशक्त कर रहीं हैं।


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''सुबह छह बजे दुकान खोल लेते हैं और शाम पांच बजे तक राशन बांटते हैं। बारी-बारी से सभी दीदी काम करने आती हैं। राशन आने के बाद दुकान महीने की आख़िरी तक खोलते हैं। पहले हमें भी लगता था राशन की दूकान चलाना पुरुषों का काम है, अब जब खुद चला रहे हैं तो अच्छा लगता है।'' लक्ष्मी सामद ने बताया, दीदी लोग पढ़ी-लिखी भले ही नहीं हैं, लेकिन लेनदेन अच्छे से करती हैं। पहले हमें सरकार की किसी योजना के बारे में कोई जानकारी नहीं हो पाती थी, लेकिन अब मीटिंग में हर बात पता चलती है।''

जन वितरण प्रणाली की दुकान का संचालन करने वाली ये वो महिलाएं हैं जो कभी जंगलों में लकड़ी बीनने तक सीमित थीं, लेकिन अब ये बैंक जाती हैं। समूह के साथ-साथ ब्लॉक बैठक में जाती हैं। राशन कोटा की दुकान का संचालन करती हैं। एक समय ये महिलाएं सरकारी योजनाओं से कोसों दूर रहती थीं, लेकिन आज ये सरकारी योजनाओं की जानकारी लेकर सशक्त हो रही हैं।

          

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