आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र की इस महिला ने शुरू किया ईंट का कारोबार, कई लोगों को मिला रोजगार
एक साधारण महिला किसान के लिए ईंट भट्ठा चलाना इतना आसान नहीं था। लेकिन अपनी मेहनत और लगन से तारा कुजूर आज दूसरी महिलाओं के लिए उदाहरण बन गयी हैं।
Neetu Singh 5 Oct 2019 9:30 AM GMT

महुआडांड़ (लातेहार)। झारखंड में एक जिला है लातेहार। आदिवासी बाहुल्य ये जिला चारों ओर जंगलों से घिरा है। मोबाइल का नेटवर्क नहीं है, यहां तक पहुंचने के लिए संसाधन भी नहीं हैं। लेकिन यहां के ब्लॉक महुआड़ाड़ सेम्बरबुढ़नी गाँव की तारा कुजूर आज किसी पहचान की मुहताज नहीं हैं। इस महिला ने पुरुषों के कहे जाने वाले काम को न सिर्फ रोजगार का जरिया बनाया, ब्लकि उससे 10 लोगों को रोजगार भी दिया है।
तारा कुजूर (34 वर्ष) की किसान से भट्ठा मालकिन बनने की कहानी संघर्षों भरी है। उनके पति दूसरे के यहां मजदूरी करके बमुश्किल घर चला पाते थे। इनके पास खेत तो था लेकिन उससे बहुत मदद नहीं मिलती थी। इसलिए पूरा परिवार मजदूरी पर ही निर्भर था। इस मजदूरी से रोजी-रोटी तो चलती थी। पर तारा घर के इन हालातों से उबरने के लिए कुछ करना चाहती थीं।
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बचपन से थी पढ़ने में रुचि
तारा बीते दिनों को याद करके आज भी भावुक हो गईं, वो कहती हैं, "मुझे बचपन से पढ़ने में रुचि थी इसलिए इंटर तक पढ़ाई करने के बाद ही शादी की। पर आजकल गाँव की इतनी पढ़ाई में कहाँ नौकरी मिलती है। शादी के बाद थोड़े से खेत में खाने भर का साग सब्जी और धान पैदा कर लेते थे। जिससे साल भर खाने का इंतजाम तो हो जाता था लेकिन तेल साबुन जैसी जरूरत की चीजें खरीदने के लिए बहुत सोचना पड़ता था।"
तारा लातेहार जिला मुख्यालय से लगभग 100 किलोमीटर दूर जंगलों और पहाड़ों से घिरे दुर्गम इलाका महुआडांड़ प्रखंड के सेम्बरबुढ़नी गाँव की रहने वाली हैं। ये जिले का पहाड़ों और जंगलों से घिरा ऐसा प्रखंड है जहाँ आज भी लोग सीमित संसाधनों में जीवन यापन करने को मजबूर हैं। आधुनिकता के इस दौर में यहाँ फोन में नेटवर्क आना आज भी मुश्किलों भरा है।
तारा अपने सपनों का जिक्र करती हैं, "मैं हमेशा से कुछ करना चाहती थी जिससे हमारी गरीबी दूर हो सके। पर समझ नहीं आता था इस गरीबी में क्या करूं। मेहनत से पढ़ाई की थी कि नौकरी करूंगी लेकिन नौकरी कैसे लगेगी इसकी कोई जानकारी नहीं थी। पति को बहुत ज्यादा पैसे नहीं मिलते थे। महंगाई दिन पर दिन बढ़ती जा रही थी। इतना पढ़कर मैं कुछ कर नहीं पा रही थी ये बात मुझे परेशान करती थी।"
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तारा अपने आस-पास हमेशा ऐसे मौके तलाशती रहती थीं जिससे वो कुछ कर पाएं। एक दिन उन्होंने अपने गाँव में महिलाओं के समूह को एक जगह बैठे देखा। कुछ देर रुकने के बाद उन्हें पता चला कि यहाँ महिलाएं बचत करती हैं और जरूरत पड़ने पर पैसे लोन ले सकती हैं।
तारा इस मौके को छोड़ना नहीं चाहती थीं। वहां बैठीं एक मैडम से तारा ने समूह में जुड़ने की बात पूछी। ये बात वर्ष 2016 की थी। तारा उसी साल धारणा आजीविका स्वयं सहायता समूह से जुड़ गईं। तेज-तर्रार और पढ़े-लिखे होने की वजह से इन्हें गाँव की सक्रिय महिला बना दिया गया। ये वो साल था जहाँ से इनकी जिन्दगी में गरीबी के बादल छंटने लगे।
राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत झारखंड में ग्रामीण विकास विभाग, झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी के प्रयासों से झारखंड के गाँवों में सखी मंडल (स्वयं सहायता समूह) का गठन किया जा रहा है। अब तक 26 लाख से ज्यादा महिलाएं सखी मंडल से जुड़ चुकी हैं। ये साप्ताहिक 10 रुपए बचत करती हैं। जरूरत पड़ने पर कम ब्याज पर पैसे लेकर अपना काम चलाती हैं।
तारा ने बनाए सात नये समूह
तारा बताती हैं, "जब हम समूह में जुड़े थे तब हमारे गाँव में छह समूह चलते थे। सक्रिय महिला बनने के बाद हमने सात नये समूह और बनाये। इसी बहाने मुझे घर से बाहर आने-जाने का मौका मिलने लगा और नई-नई जानकारी मिलने लगी।"
तारा ने सबसे पहले समूह से वर्ष 2017 में 10,000 रुपए का लोन लेकर मक्के की खेती अपने खाली पड़े 12 एकड़ खेतों में की। इन्होंने जी तोड़ मेहनत की। मौसम ने भी साथ दिया। पहले साल ही मक्का से लागत निकालकर एक लाख रुपए की बचत हो गयी।
तारा बताती हैं, "यही वो साल जब मुझे लगा अब सब कुछ जल्दी ठीक हो जाएगा। पहली बार इतनी बचत देखकर पति का भी खेती पर भरोसा बढ़ा। दो साल खेती करने के बाद हमने मार्च 2019 में 95,000 का बैंक लिंकेज कराया। कुछ पैसे हमारे पास थे, ऐसे सब मिलाकर हमने ईंट भट्ठा खोल लिया।" सखी मंडल से जुड़ने के तीन चार साल बाद ही तारा के घर के हालात सुधर गये और आज ये ईंट भट्ठा की मालकिन बन गयी हैं।
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'तब 15 लाख रुपए का होगा मुनाफ़ा'
तारा कहती हैं, "रोजाना हमारे यहाँ 10 मजदूर काम करते हैं और रोजाना आठ हजार ईंट पाथा जाता है। जरूरत पड़ने पर बढ़ा भी लेते हैं। अभी भट्ठा पर छह-सात लाख रुपए का ईंट है। जितना बड़ा भट्ठा हमने लगाया है अगर इसमें तीन बार भरकर ईंटें पका लें तो लगभग इस समय के भाव के हिसाब से 15 लाख रुपए का मुनाफा होगा। हम और हमारे पति दोनों पूरे दिन इसी भट्ठे की देखरेख में लगे रहते हैं।"
तारा की तरह कई महिलाओं का बढ़ा हौसला
तारा को देखकर आसपास की महिलाओं का भी हौसला बढ़ा। इनकी तरह झारखंड में सैकड़ों महिलाएं हैं जिन्होंने गरीबी से निकलने का संघर्ष किया है और आज वो तारा की तरह सफल उद्यमी बन गयी हैं। जहाँ एक तरफ सखी मंडल से जुड़ने के बाद इन महिलाओं को लोन मिलना आसान हुआ जिससे ये अपना कोई काम शुरू करके आमदनी बढ़ा सकें दूसरी तरफ इन्होंने जी-तोड़ मेहनत करके अपनी आजीविका को मजबूत किया है।
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