घर बैठे ही माइक्रो एटीएम की मदद से झारखंड के ग्रामीणों की मुश्किलें हुई आसान, अब नहीं लगानेे पड़ते बैंक के चक्कर

माइक्रो एटीएम दीदी के जरिए ग्रामीण क्षेत्र में घर-घर बैंकिंग सेवा पहुंचाने की एक अनूठी पहल है। ये दीदी घर-घर जाकर बैंक खाता खोलती हैं, पैसे जमा करना निकालना दोनों काम करती हैं।

Neetu SinghNeetu Singh   27 Jun 2018 11:06 AM GMT

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रामगढ़ (झारखंड)। घाटी क्षेत्र के सुदूर गांव में रहने वाली मातो देवी को अब बैंक से लेनदेन करने के लिए न तो कई किलोमीटर पैदल चलकर दिनभर की भागदौड़ करनी पड़ती है और न ही घंटो बैंक में लाइन में खड़ा होना पड़ता है। जरूरत पड़ने पर ये किसी भी समय गांव में रहने वाली सरस्वती दीदी के घर चली जाती है जहां माइक्रो एटीएम पोर्टेबल मशीन के जरिए इनका बैंक से आसानी से घर बैठे लेनदेन हो जाता है।

झारखंड राज्य के रामगढ़ जिला मुख्यालय से लगभग 17 किलोमीटर दूर गण्डके गांव की रहने वाली मातो देवी (50 वर्ष) गांव से बैंक जाने के लिए होने वाली मुश्किलों के बारे अपने बीते दिनों को याद करते हुए बताती हैं, "पहले बैंक में अगर कोई काम होता तो सुबह से पैदल चलना शुरू करते देते थे, कुछ दूर पैदल कुछ दूर साधन से जाते तब कहीं जाकर बैंक पहुंच पाते। दिनभर लाइन में लगने के बाद अगर सर्वर डाउन हुआ तो शाम को दिनभर के भूखे-प्यासे घर लौट आते। पूरा दिन बर्वाद होता किराया भी खर्च होता और काम भी नहीं होता।" उन्होंने मुस्कुराते हुए समूह में बैठी सरस्वती दीदी की तरफ इशारा करते हुए कहा, "जबसे इनके पास माइक्रो एटीएम आया है पूरे गांव के लोग इन्हें दुआ देते हैं। अब जब जिस समय जरूरत पड़ती है सरस्वती दीदी के घर का दरवाजा खटखटा देते हैं तुरंत काम हो जाता है।"

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झारखंड राज्य में ग्रामीण विकास विभाग के आजीविका मिशन के तहत सखी मंडल से जुड़ी सक्रिय महिलाओं को बैंक सखी, बैंक करेसपान्डेट एजेंट, माइक्रो एटीएम दीदी के जरिए ग्रामीण क्षेत्र में घर-घर बैंकिंग सेवा पहुंचाने की एक अनूठी पहल है। ये दीदी घर-घर जाकर बैंक खाता खोलती हैं, पैसे जमा करना निकालना दोनों काम करती हैं। सरकार की बैंकिंग से जुड़ी जितनी भी योजनाएं हैं उनका लाभ सुदूर गांव में रहने वाले हर व्यक्ति को इन दीदियों के जरिए मिल रहा है।

सरस्वती देवी झारखंड राज्य में पहली माइक्रो एटीएम दीदी नहीं हैं बल्कि इनकी तरह राज्य 13 जिले के 564 गांव में 103 माइक्रो एटीएम एजेंट हैं। जिससे 5834 समूह के परिवार लाभन्वित हो रहे हैं। झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी के जरिए राज्य में इस योजना का विस्तार किया जा रहा है। जिससे कोई भी ग्रामीण सरकार की बैंकिंग से जुड़ी किसी भी सुविधा से वंचित न रह जाए। इन दीदियों के सहयोग से न केवल सुदूर गांव तक फाइनेंशियल सर्विसेज पहुंच रही है बल्कि इन्हें आजीविका का साधन भी मिला है।


माइक्रो एटीएम सरस्वती दीदी को पैसे के लेनदेन के लिए हर दिन घाटी क्षेत्र के गाँवों तक पहुंचने के लिए 8-10 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है तब कहीं जाकर ये हर परिवार तक पहुंच पाती हैं। सरस्वती महतो (35 वर्ष) ने खुश होकर बताया, "जिस भी मोहल्ले से निकलते हैं सभी लोग जोहार करते हैं, अब हर कोई हमे हमारे नाम से जानता है। गांव में किसी भी कोई बीमार पड़ गया तो उसे पैसे निकालने के लिए बैंक नहीं जाना पड़ता है, जो बुजुर्ग लोग चल फिर नहीं पाते हैं उनकी पेंशन निकालने के लिए हम उनके घर ही पहुंच जाते हैं। जिनके बच्चे शहर में पढ़ाई कर रहे होते हैं उन्हें जरूरत पड़ने पर तुरंत पैसे ट्रांसफर कर देते हैं।" मोबाइल रिचार्ज से लेकर पैसे जमा करने और निकालने का काम माइक्रो एटीएम (एक पोर्टेबल मशीन) के जरिए एक क्लिक पर तुरंत हो जाता है।

लिट्टीपारा ब्लॉक की जबरतहा की रहने वाली शाइस्ता ख़ातून बताती हैं, "मैं शान्ति स्वयं सहायता समूह की सदस्य हूँ। समूह से जुड़ने से पहले हम घर पर ही रहते थे और घर का काम ही करते रहते थे। 2015 में मैं इस समूह से जुड़ी और मेरी पढ़ाई के हिसाब से मुझे सीएफ के पद पर रखा गया। समूह से जुड़ने के बाद लोगों से बोलने का तरीका और लोगों को जानने भी लगी। समूह में जुड़ने के बाद काफी कुछ सीखने को मिला। इस समूह में जुड़ने के बाद मैं काम के साथ-साथ पढ़ाई भी कर रही थी। कुछ दिनों के बाद मुझे माइक्रो एटीएम दीदी के पद पर रखा गया। माइक्रो एटीएम के लिए मुझे ट्रेनिंग भी दी गयी और मुझे सिखाया गया कि कैसे काम किया जाता है। अब यहां पर पैसे निकालना, जमा करना, एटीएम की सुविधा सभी काम यहाँ पर हो जाते हैं।

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सरस्वती देवी हर दिन 50 हजार से लेकर 90 हजार रुपए तक इस पोर्टेबल मशीन से रुपए निकालती हैं। पूरे राज्य में अप्रैल 2018 में माइक्रो एटीएम से 9 करोड़ 18 लाख रुपए निकाले गए। माइक्रो एटीएम के जरिए पैसे का लेनदेन घर बैठे लाखों की संख्या में ग्रामीण कर रहे हैं। सरस्वती देवी की तरह पाकुड़ जिले की शाइस्ता ख़ातून भी माइक्रो एटीएम एजेंट हैं ये अपना अनुभव साझा करते हुए बताती हैं, "जब भी फील्ड में जाते हैं तो गांव के लोगों को सरकारी योजना के बारे में बताते हैं। बैंक तक पहुंचने में जो लोग सक्षम नहीं है उनके घर-घर जाकर उनका बैंक से जुड़ा लेनदेन करते हैं।


झारखंड ग्रामीण बैंक के चेयरमैन बृजलाल बताते हैं, "जबसे सखी मंडल की महिलाएं बैंक करसपान्डेट एजेंट बनी हैं तबसे बैंक के व्यवसाय में वृद्धि हुई है। ज्यादा से ज्यादा ग्रामीणों को सरकार की योजनाओं का लाभ मिल रहा है। पिछले तीन महीनों में इन बीसी एजेंट ने 10 हजार 567 ट्रांजेक्शन किए हैं जिसमें दो करोड़ 92 लाख रुपए निकाले गये हैं।" वो आगे बताते हैं, "बीसी एजेंट सुदूर गांव में हर घर के दरवाजे-दरवाजे जाकर बैंक से हर व्यक्ति को जोड़ रहीं हैं। इससे बैंक की कास्ट कम हुई है और व्यवसाय में वृद्धि हुई है। ज्यादा से ज्यादा खाताधारक सरकार की जो बीमा योजनाएं हैं उससे जुड़ रहे हैं।"

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झारखंड के 13 जिले के 500 से ज्यादा गांव के ग्रामीणों में से अगर किसी 60 साल के बुजुर्ग को अपनी वृद्धा पेंशन चेक करनी हो या फिर अपने खाते से पैसे निकालने हों, विद्यार्थियों को अपनी छात्रवृत्ति चेक करनी हो, मजदूरों को मनरेगा का पैसा चेक करना हो, माँ –बाप को शहर पढ़ रहे बच्चों को पैसा भेजना हो या फिर बैंक से किसी भी प्रकार का लेनदेन करना हो इसके लिए अब इन ग्रामीणों को कई किलोमीटर पैदल चलकर दिनभर की भागदौड़ नहीं करनी पड़ती है। सरस्वती दीदी की तरह हर ग्राम पंचायत में एक माइक्रो एटीएम दीदी होती हैं जो अपनी ग्राम पंचायत में आने वाले सभी गांव में जाकर ग्रामीणों की मुश्किलों को आसान करने का काम करती हैं।

शाइस्ता ख़ातून आगे बताती हैं, "हमारे यहां बैंक का काम सुबह आठ बजे से शाम पांच बजे तक चलता है, जिसमें हम आठ से दस बजे तक अपने ऑफिस में माइक्रो एटीएम का काम करती हूँ। इसके बाद हम फील्ड पर निकल जाते हैं और लोगों को इस योजना के बारे में बताते हैं और उनकी मदद करते हैं। अगर कोई महिला यहां आने सक्षम नहीं है तो हम उसके घर जाकर उसकी मदद करते हैं। हम पूरा दिन काम करने के बाद साढ़े पांच बजे काम बन्द कर देते हैं। अगर किसी दीदी को इमरजेंसी होती है तो छह-साढ़े छह बजे तक उनको सुबिधा दी जाती है। सुबह से शाम तक 50000 हजार रूपये जमा और निकाल जाते हैं।"

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पाकुड़ जिले के बैंक योजनाओं के सलाहकार कुंदन कापरी बताते हैं, "इस योजना को शुरू करना का मुख्य मकसद बैंक की सुविधाओं को उनके घर तक पहुंचना है। ज्यादातर बैंक सुविधा दूर होती हैं जिससे बैंक से पैसा निकालना जमा करना करने के लिए पूरा समय बैंक में बर्बाद कर देते हैं। प्रत्येक पंचायत में समूह की एक दीदी को एक माइक्रो एटीएम की ट्रेंनिंग देकर माइक्रो एटीएम दीदी की नियुक्ति की गयी। माइक्रो एटीएम की मशीन को लेकर दीदी घर-घर जाकर बैंक की सुविधा देती हैं।"

ऐसे होता है माइक्रो एटीएम दीदी का चयन

हर ग्राम पंचायत में ग्राम संगठन के माध्यम से सखी मंडल में माइक्रो एटीएम दीदी के चयन की सूचना दी जाती है। इसमें शर्त ये होती है कि कुछ अलग करने की इच्छुक दीदी कमसे कम दसवीं तक पढ़ी हों और समूह की सक्रिय सदस्य हो। इस चयन के बाद ब्लॉक स्तर पर बेसिक परीक्षा होती है जिसमें सामान्य ज्ञान, गुणा-भाग और बैंक से जुड़े कुछ सामान्य प्रश्न पूंछे जाते हैं। इस टेस्ट को पास करने के बाद तीन दिन का आवासीय प्रशिक्षण दिया जाता है। इसके बाद छह महीने लगातार हर महीने दो-दो दिन की ट्रेनिंग इन्हें दी जाती है। गांव में रहकर ही माइक्रो एटीएम के जरिए एक दीदी महीने का ढाई से तीन हजार रुपए आसानी से कमा लेती हैं।

रिपोर्ट- दीपांशु मिश्रा/नीतू सिंह

      

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