और जब लिफाफे बनाने वाली महिला बनी जनरल स्टोर की मालिक

जिस उम्र में मीरा की शादी हुई तब इन्हें शादी का मतलब सिर्फ रांची घूमना पता था लेकिन शादी के बाद हकीकत में ऐसा नहीं था। खुद तेरह साल की थी और और इसी उम्र में ससुराल आते ही ये दो बच्चों की माँ गयी थीं।

Neetu SinghNeetu Singh   20 Dec 2018 6:02 AM GMT

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और जब लिफाफे बनाने वाली महिला बनी जनरल स्टोर की मालिक

सिल्ली(रांची)। नीली साड़ी पहने मीरा देवी की आँखों ये बताते हुए आज भी आंसू थे, "गरीबी की वजह से मैं नहीं पढ़ पाई पर कैसे भी करके मेरे बच्चे पढ़ जाएं। इसलिए मैंने आज तक अपने लिए कोई नई साड़ी नहीं खरीदी है।" लेकिन आज वही मीरा समूह से जुड़कर अपने घर का खर्च निकाल लेती हैं।

छह बहन और एक भाई में मीरा तीसरे नम्बर की हैं। 13 साल की उम्र में जब मीरा सातवीं कक्षा में पढ़ती थी तब इनकी शादी 35 साल के उम्र के एक व्यक्ति से हो गयी। जो पहले से शादी-शुदा थे इनकी पत्नी का देहांत हो गया था इनके पांच साल का लड़का और तीन साल की एक बेटी थी। मीरा (35 वर्ष) बताती हैं, "शादी के लिए मैंने इसलिए हां की थी, क्योंकि उस समय शादी का मतलब मुझे सिर्फ रांची घूमना पता था। मायके में बहुत गरीबी थी दो वक्त का खाना भी बहुत मुश्किल से मिल पाता था। तब इतनी समझ नहीं थी सोचा शादी के बाद घूमने को मिलेगा।"

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मीरा घर में रहकर कभी कागज के लिफाफे बनाती तो कभी दूसरों की साड़ी में फाल-पीको करती इसी से इनकी गुजर-बसर हो रही थी। पड़ोस की एक दीदी से जानकारी मिली तो ये वर्ष 2015 में समूह से जुड़ गयी। इनकी मेहनत को देखकर कुछ समय बाद ये राधा रानी महिला समिति की अध्यक्ष चुनी गईं। ये पतराहातू आजीविका महिला ग्राम संगठन की सचिव भी हैं।

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मीरा साड़ी के आंचल से अपने आंसू पोछते हुए बताती है, "शादी के बाद हकीकत में ऐसा बिलकुल नहीं था। यहां आते-आते हम दो बच्चों के माँ गए थे दिन में इन बच्चों के साथ खेलने लगते थे। यहां खाने-पीने की तो ज्यादा परेशानी नहीं थी लेकिन पेट भरने के आलावा और कुछ सोच भी नहीं सकते थे। शादी के बाद एक समय ऐसा भी था जब हमने एक साड़ी में ही कई साल गुजारे हैं।" शादी के डेढ़ साल बाद मीरा के एक बेटी हुई और ढाई साल बाद एक बेटा। इनकी बेटी ट्यूशन पढ़ाकर अपनी पढ़ाई का खर्चा निकाल लेती है।


मीरा ये बताते हुए अपनी सिसकियां नहीं रोक पा रही थी, "हम ऐसी गरीबी में पले-बढ़े जहां पेट भर खाना मिलना ही बड़ी बात होती थी। शादी के बाद कहीं शादी-ब्याह में या मेरी बड़ी बहनें कपड़े लेकर दे देती हैं, इसलिए कभी खरीदे नहीं उन्हीं कपड़ों से काम चल जाता है।" कुछ देर खामोशी के बाद मीरा बोली, "समूह में जुड़ने के बाद अब तो काफी कुछ सुधर गया है, एक परचून की दुकान कर ली है। घर बैठे 150-200 दुकान से बच जाता है। अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिला पाऊं बस यही एक इच्छा है।"

रांची जिला मुख्यालय से लगभग 80 किलोमीटर दूर सिल्ली ब्लॉक के पतराहातू गाँव की रहने वाली मीरा देवी शादी के कई साल तक घर से बाहर नहीं निकली। कभी खिड़की से तो कभी दरवाजे की ओट पर घंटो खड़े रहकर अपनी गरीबी और किस्मत को कोसती रहती। शादी के बाद ससुराल में ये घर पर कागज के लिफाफे बनाने लगीं। 10-15 डिसमिल जमीन थी जिसमें अरवा चावल होता था। कुछ महीने ये चावल चलता बाकी समय इनके यहां खरीदकर चावल खाया जाता।

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समूह से लोन लेकर शुरू की परचून की दुकान

समूह से लोन लेने की मीरा में हिम्मत नहीं थी। समूह की महिलाओं के कहने पर इन्होने वर्ष 2016 में 10,000 का लोन लेकर घर में तखत पर ही एक छोटी सी परचून की दुकान खोल ली। इन्होने सोलर लाइट बनाने का काम भी सीख लिया है ये सोलर लालटेन न केवल बनाती हैं बल्कि स्कूल-स्कूल जाकर बच्चों को लालटेन भी देती हैं। एक लाईट बनाने या उसे बेचने पर इन्हें 12 रुपए मिलते हैं।


मीरा बताती हैं, "धीरे-धीरे चीजें ठीक हो रही हैं। घर से जब बाहर निकले तो दो पैसे भी हाथ में आये और जानकारी भी बढ़ी।"

मीरा देवी झारखंड की पहली महिला नहीं हैं, जिन्होंने समूह से कर्ज लेकर दुकान की हो बल्कि इनकी तरह देशभर में चल रही दीन दयाल अंत्योदय योजना के तहत केवल झारखंड राज्य में एक लाख से ज्यादा महिलाओं को रोजगार उपलब्ध कराया गया है। झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी, ग्रामीण विकास विभाग के तहत ग्रामीण महिलाओं को सखी मंडल से जोड़कर उनकी आजीविका को सशक्त किया जा रहा है।

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