झारखंड के सुदूर गांव की महिलाएं पुरुषों के 'राज मिस्त्री' काम को चुनौती देकर बन गयी रानी मिस्त्री

रानी मिस्त्री का हुनर सीखने के बाद अब जंगल में भरी दोपहरी में लकड़ी बीनने नहीं जाना पड़ता और न ही रोज-रोज मजदूरी खोजने के लिए भटकना पड़ता, चार पैसा अब हाथ में आता है और इज्जत भी मिलती है। झारखंड में 50 हजार से ज्यादा सखी मंडल की महिलाएं रानी मिस्त्री बनकर स्वच्छ भारत अभियान को गति दे रहीं हैं।

Neetu SinghNeetu Singh   27 Jun 2018 8:00 AM GMT

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बोकारो (झारखंड)। शौचालय बना रही पहाड़ी क्षेत्र के सुदूर गांव में रहने वाली आदिवासी महिला सपना देवी (35 वर्ष) ने आत्मविश्वास के साथ मुस्कुराते हुए कहा, "जब कोई रानी मिस्त्री के नाम से बुलाता है तो ऐसा लगता है कि जैसे हमें हमारे काम और नाम की पहचान मिल गयी हो। रानी मिस्त्री का हुनर सीखने के बाद अब जंगल में भरी दोपहरी में लकड़ी बीनने नहीं जाना पड़ता और न ही रोज-रोज मजदूरी खोजने के लिए भटकना पड़ता, चार पैसा अब हमारे हाथ में आता है और इज्जत भी मिलती है।"

शहर की चकाचौंध से कोसों दूर वंचित तबके की सपना देवी हाथ में कन्नी (शौचालय निर्माण का औजार) पकड़े बड़ी फुर्ती से शौचालय निर्माण की दीवार में ईंट के ऊपर गारा लगा रही थी। सपना देवी के लिए पुरुष बाहुल्य क्षेत्र में पुरुषों के काम को चुनौती देकर रानी मिस्त्री बनना इतना आसान नहीं था। वो आज भी अपने पति से मार खाकर आयी थी लेकिन चेहरे में सिकन की बजाए आत्मविश्वास भरी मुस्कान थी। सपना देवी ने हाथ में कन्नी दिखाते हुए कहा, "जबसे इन हाथों ने औजार उठाया है पति की चार दिन मार खाई है। पति कहता है कि ये काम हमारा है, जो तुम्हारा काम है वो काम करो। आज भी मार खाकर आयी हूँ पर शौचालय बनाना नहीं छोडूंगी। पहले दिनभर लकड़ी बीनकर 100 रुपए भी कमाना मुश्किल होता था लेकिन रानी मिस्त्री बनने के बाद अब दिन का 200-250 रुपए कमा लेते हैं।"


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रानी मिस्त्री सपना देवी झारखंड राज्य के बोकारो जिला मुख्यालय से लगभग 45 किलोमीटर दूर जरीडीह ब्लॉक के अराजू ग्राम पंचायत के कमलापुर गांव की रहने वाली हैं। इस गांव में जगह-जगह अभी शौचालय निर्माण का कार्य चल रहा है। ये निर्माण कार्य यहां के राज मिस्त्री नहीं बल्कि रानी मिस्त्री कर रही हैं। सपना देवी यहां की पहली आदिवासी महिला नहीं है जो लकड़ी बीनने और मजदूरी करने का काम छोड़कर रानी मिस्त्री बनी हों और पुरुषों के काम को टक्कर दे रही हों।

इनकी तरह झारखंड राज्य में आजीविका मिशन के सहयोग से 50 हजार से ज्यादा आख़िरी कतार की ग्रामीण महिलाएं रानी मिस्त्री का हुनर सीखकर शौचालय निर्माण का कार्य बखूबी कर रही हैं। रानी मिस्त्री के सहयोग से अबतक राज्य भर में वर्ष 2016 से अबतक एक लाख 70 हजार शौचालय का निर्माण पूरा हो चुका है जबकि 50 हजार शौचालय का निर्माण कार्य चल रहा है।

सखी मंडल और ग्राम संगठन की ये महिलाएं रानी मिस्त्री बनकर समुदाय की सहभागिता सुनिश्चित कर रही हैं। ये महिलाएं शौचालय निर्माण से सटरिंग तक का काम बखूबी कर लेती हैं। शौचालय निर्माण के बाद इन रानी मिस्त्रियों की जिम्मेदारी समाप्त नहीं होती है। ये अपने-अपने सखी मंडल और ग्राम संगठन की बैठक में शौचालय के उपयोग पर चर्चा भी करती हैं जिससे हर परिवार इसके महत्व को समझे, अपने व्यवहार में परिवर्तन लाए और शौचालय का उपयोग करना शुरू करे।

ग्रामीण विकास विभाग झारखंड सरकार के मंत्री नीलकंठ सिंह मुण्डा ने इन रानी मिस्त्रियों की सराहना करते हुए कहा, "रानी मिस्त्री बनकर महिलाएं आर्थिक रूप से सशक्त हो रही हैं, ये शौचालय निर्माण में गुणवत्ता का ख़ास ध्यान दे रही हैं। अभी ये 50 हजार से ज्यादा रानी मिस्त्री शौचालय निर्माण का काम कर रहीं हैं आने वाले दिनों में इन्हें प्रधानमंत्री आवास योजना के निर्माण कार्य में भी शामिल किया जाएगा।"

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इन हुनरमंद रानी मिस्त्रियों की चर्चा इस समय राज्य के साथ-साथ पूरे देश में हो रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अभी चार जून को खूंटी जिले की रानी मिस्त्रियों से वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए सीधे बात की थी। प्रधानमंत्री ने रानी मिस्त्री से बातचीत के दौरान कहा था, "अब तो आप सब रानी मिस्त्री बनकर अपने ही गांव में इंजीनियर बन गयी हो।" प्रधानमंत्री ने मार्च महीने में अपने कार्यक्रम 'मन की बात' में भी रानी मिस्त्री के कार्यों की सराहना की थी। प्रधानमंत्री की सराहना के बाद इन महिलाओं का उत्साह दोगुना हो गया है।

वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए जब खूंटी जिले की रानी मिस्त्री गायत्री देवी से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पूंछा कि लोग आवास बनाने में आपके काम पर भरोसा कर लेते हैं तो गायत्री देवी ने जबाब दिया, "कई शौचालय बना चुके हैं, प्रधानमंत्री आवास बनाने में कुछ लोगों को भरोसा हो गया है तो कुछ को अभी नहीं हुआ है।" नरेन्द्र मोदी ने इस जबाब को सुनकर कहा, "पुरुषों का स्वाभाव ही ऐसा होता है।" रानी मिस्त्री बनने के बाद इन ग्रामीण महिलाओं को अपने ही समाज में अब सम्मान मिलने लगा है, इनकी आर्थिक स्थिति पहले से बेहतर हो गयी है। रानी मिस्त्री पूर्णिमा देवी (40 वर्ष) ने शर्माते हुए कहा, "अब तो हमारे पति भी घर पर रानी मिस्त्री कहकर बुलाने लगे हैं। इस उम्र में इतनी इज्जत मिलेगी सोचा नहीं था, रानी मिस्त्री का काम करने से अच्छे पैसे मिल जाते हैं, अपने बच्चे को अब अच्छे स्कूल में पढ़ाते हैं।

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ग्रामीण विकास विभाग के विशेष सचिव एवम झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी के सीईओ परितोष उपाध्याय बताते हैं, "ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत सखी मंडल की महिलाएं रानी मिस्त्री बनकर जिम्मेदारी से राज्य में शौचालय निर्माण का कार्य बेहतर तरीके से कर रही हैं, सरकार की कोशिश रहेगी ग्रामीण क्षेत्र में जो भी निर्माण कार्य हों चाहें वो मनरेगा से जुड़ा निर्माण कार्य हो या फिर आगनवाडी के भवनों का निर्माण हो उसमें ज्यादा से ज्यादा रानी मिस्त्री को जोड़ा जाए।"

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झारखंड सरकार ने आजीविका मिशन के तहत झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी के साझा प्रयास से सखी मंडल से जुड़ी इन महिलाओं को रानी मिस्त्री का प्रशिक्षण दिलाकर देश में एक अनूठी मिसाल पेश की है। झारखंड सरकार का इन रानी मिस्त्रियों को बनाने के पीछे एक खास उद्देश्य था कि इन ग्रामीण महिलाओं को आजीविका से जोड़ा जाए, शौचालय निर्माण में बीच के बिचौलियों को खत्म किया जाए। समूह के खाते में सीधे पैसा आयेगा जिससे शौचालय निर्माण की गुणवत्ता बेहतर होगी।

जब ये रानी मिस्त्री बनी, पुरुषों ने कहा हमारे हाथ काट लिए

झारखंड की इन महिलाओं के लिए रानी मिस्त्री बनना इतना आसान काम नहीं था। किसी महिला ने अपने पति की मार खाई है तो किसी को समाज ने कई ताने दिए हैं पर ये अपने मजबूत हौसले से डिगी नहीं बल्कि डटी रहीं। आज पूरे देश में स्वच्छ भारत अभियान को गति देकर ये रानी मिस्त्री अनूठी मिसाल पेश कर रही हैं। कमलापुर गांव की रानी मिस्त्री जयश्री देवी (35 वर्ष) अपने दरवाजे पर अपना ही शौचालय बना रही थीं। जयश्री देवी ने खुश होकर बताया, "तीन दिन की ट्रेनिंग के बाद ईंटा जोड़ना सीख गये थे, जब रानी मिस्त्री बनकर दूसरी दीदी का शौचालय बना रहे थे तब गांव के दादा लोग कहते थे कि इन लोगों ने तो हमारे हाथ ही काट दिए। सुनकर बुरा लगा था, घर में शौचालय न होने से परेशानी तो हमें लोगों को होती है। रात में दूर जंगल में जाना पड़ता था अब घर पर बन जाएगा तो कोई दिक्कत नहीं होगी।"

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रानी मिस्त्री बनने से इन्हें जंगल में लकड़ी बीनने से मिली मुक्ति

भरी दोपहरी में भी ये रानी मिस्त्री अपने काम बेहतरी से अंजाम देती हैं। जब मैंने चिलचिलाती धूप में इन्हें शौचालय बनाते हुए देखा तो मैंने इनसे पूंछा बहुत मेहनत का काम है इतनी धूप में आप कैसे काम कर लेते हैं। बड़ी सहजता के साथ शौचालय बना रही पूर्णिमा देवी ने कहा, "रानी मिस्त्री के काम कोई ज्यादा मेहनत नहीं है, पहले तो हम 10-12 किलोमीटर पैदल चलते थे तब जंगल से लकड़ी बीनकर लाते थे। दिनभर खटने के बाद 100 रुपए की भी आमदनी हो जाए तो हमारे लिए बड़ी बात होती थी। अब तो आठ घंटे काम करके 300 रुपए मिल जाते हैं। अगर हमेशा ऐसे ही काम मिलता रहा तो हमे कोई परेशानी नहीं होगी।"

इन आदिवासी महिलाओं को रानी मिस्त्री का काम आसान लगता है। क्योंकि पहले इनका पूरा दिन जंगल में लकड़ी बीनने में गुजरता था, कई बार लकड़ी जब नहीं बिकती तो इन्हें अपना खर्च चलाना मुश्किल लगता था। हाथ में ईंट पकड़े दीवार पर बराबर से रखते हुए गुड़िया देवी ने कहा, "अब अपने बच्चों को अच्छे स्कूल में पढ़ाई करा पा रहे हैं बस प्रधानमंत्री जी से इतना कहना कहते हैं कि आवास बनने का काम भी हमें मिले तो कई महीने लगातार काम मिलता रहेगा। अब लोगों को हमारा काम देखकर भरोसा हो गया है, तीन-चार दीदी मिलकर दो-तीन दिन में एक शौचालय बना देते हैं।"

            

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