झारखंड की महिलाएं हैं पशु सखियां, करती हैं बकरियों का इलाज

इन पशु सखियों की मदद से यहां न सिर्फ बकरियों की मृत्यु दर रुकी है बल्कि बकरी पालकों को बकरी की अच्छी नस्ल और इनके वजन के हिसाब से अच्छा भाव भी मिल रहा है।

Neetu SinghNeetu Singh   15 Nov 2018 6:12 AM GMT

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रांची (झारखंड)। बासमती चोड़ा सुबह साढ़े पांच बजे लाल बार्डर में आसमानी रंग की साड़ी पहनकर अपनी साइकिल में दवाइयों से भरे दो बैग टांगकर आसपास के गाँव में निकल पड़ती हैं। तीन चार घंटे में ये आसपास बीमार हुई बकरियों का इलाज करके वापस आ जाती हैं।

बकरियों की असमय मौत को रोकने के लिए झारखंड की महिलाएं बासमती चोड़ा की तरह पशु सखी बनकर आगे आ रही हैं। इन पशु सखियों की मदद से यहां न सिर्फ बकरियों की मृत्यु दर रुकी है बल्कि बकरी पालकों को बकरी की अच्छी नस्ल और इनके वजन के हिसाब से अच्छा भाव भी मिल रहा है। बासमती चोड़ा (40 वर्ष) के पास आठ बकरियां हैं। बकरियों को हरा चारा स्टैंड पर हरे पत्ते रखते हुए बताती हैं, "जब हमें जानकारी नहीं थी तो बकरियों को जमीन पर ही हरे पत्ते डाल देते थे, पानी दिन में दो बार पिलाते थे लेकिन जब से पशु सखी की ट्रेनिंग से सीखकर आये हैं तबसे बकरियों की देखरेख अच्छे से कर पाते हैं और बीमार होने पर इनकी इलाज भी हम खुद कर लेते हैं।"


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बासमती चोड़ा की तरह झारखंड में 3,495 पशु सखियां काम कर रही हैं। आदिवासियों के मुख्य व्यवसाय बकरी पालन को इन पशु सखियों के सहयोग मिल रहा है। झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी के सहयोग से झारखंड राज्य में 58,990 किसानों ने बकरी पालन शुरू किया है। आजीविका मिशन की कोशिश है कि यहां की महिलाएं आर्थिक रूप से सशक्त हों और गाँव में रहकर ही उन्हें आमदनी का जरिया मिले। इसके लिए महिलाओं को आजीविका मिशन के सहयोग से समय-समय पर कई तरह के प्रशिक्षण दिए जाते हैं जिसमें पशु सखी एक है।

झारखंड में आज जो महिलाएं पशु सखी के रूप में काम कर रही हैं वही महिलाएं एक समय दूसरों की मजदूरी करती थीं। ये महिलाएं मेहनती और हुनरमंद तो थी लेकिन इनके हुनर को कोई निखारने का मंच नहीं था। जबसे यहां ग्रामीण विकास विभाग के साझा प्रयास से झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी काम कर रहा है तबसे इन महिलाओं को समय-समय पर कई तरह के कौशल सिखाए जा रहे हैं। जिससे ये महिलाएं अब पशु सखी, बैंक सखी, कृषक मित्र, उद्यमी बनकर आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन रही हैं।


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बासमती चोड़ा पश्चिम सिंहभूमि जिले के खूंटपानी ब्लॉक के बीज गाँव की रहने वाले हैं। ये पशु सखी बनने से पहले ईंट गारा ढोने का काम करती थीं। घर का खर्च चलाना इनके लिए मुश्किल था। स्वयं सहायता समूह में वर्ष 2013 में जुड़ने के बाद ये सप्ताह में 10 रुपए बचत के जमा करने लगीं। बचत के बाद समूह से कर्ज लेकर इन्होंने बकरियां खरीदीं बाद में पशु सखी की ट्रेनिंग लेकर महीने का पांच से छह हजार रुपए कमाने लगी। इन्होंने बताया, "पहले बकरियों की देखरेख अच्छे से नहीं हो पाती थी, बीमार होने पर ये मर जाती थी लेकिन अब तो हमारे गाँव में ही 490 बकरियां हैं। हर महीने 1500 बकरियों को गाँव-गाँव जाकर देखती हूँ, टीकाकरण करती हूँ, डीवार्मिंग करती हूँ, हर बकरी पालक के पालक के पास हरा चारा स्टेंड, पानी स्टेंड, दाना स्टेंड और इनके रहने का बाड़ा बनवाते हैं।"

एक पशु सखी अपने गाँव के साथ-साथ आसपास के छह सात गाँव की बकरियों की देखरेख और इलाज करती हैं। पशु सखी हर महीने बकरियों की इलाज कर तीन से छह हजार रुपए कमा लेती हैं। इसके साथ ही बकरी पालन भी करती हैं। अब इन्हें पैसे की जरूरत पड़ने पर किसी के आगे हाथ नहीं फैलाने पड़ते।

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