बिजली के अभाव में पढ़ाई नहीं कर पा रहे थे छात्र, 'सोलर दीदी' ने दूर किया अंधेरा

Neetu SinghNeetu Singh   25 Sep 2018 6:03 AM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo

पश्चिमी सिंहभूमि। शहर से दूर पहाड़ी क्षेत्रों के जो बच्चे बिजली के अभाव में ठीक से पढ़ाई नहीं कर पाते थे, आज वे सोलर लैम्प की जगमग रोशनी में अपना भविष्य गढ़ रहे हैं। सखी मंडल से जुड़ी 600 ग्रामीण महिलाएं सोलर दीदी बनकर अंधेरा मिटा रही हैं।

झारखंड के आठ जिलों के 53 ब्लॉक में जून 2017 में 'सोलर स्टडी लैंप योजना' उन क्षेत्रों में चल रही है जहाँ 50 प्रतिशत तक केरोसिन तेल का उपयोग किया जाता था। यहां बिजली की पहुंच नहीं थी। बच्चे ढिबरी की रोशनी में पढ़ाई करने के लिए मजबूर थे। फिर भारत सरकार एक योजना लेकर आयी जिसके तहत विशेष सब्सिडी पर 600 रुपए वाली सोलर लैम्प छात्रों को महज 100 रुपए दिया जा रहा है। पहली कक्षा से बाहरवीं कक्षा तक के बच्चों को आधार कार्ड की फोटोकॉपी देने पर इस योजना का लाभ मिल रहा है। झारखंड में अब तक लगभग साढ़े पांच लाख छात्रों को इस योजना का लाभ मिल चुका है।

पश्चिमी सिंहभूमि जिला मुख्यालय से लगभग 45 किलोमीटर दूर हाटघमरिया ब्लॉक के हापुगुटू गाँव की रहने वालीं तरुलता गोप अपने आसपास के गाँव में अब सोलर दीदी के नाम से जानी जाती हैं। इनकी तरह सखी मंडल से जुड़ी 600 ग्रामीण महिलाएं सोलर दीदी बनकर '70 लाख सौर स्टडी लैंप योजना' को क्रियान्वित कर रही हैं। ये महिलाएं लैम्प बनाने से लेकर इसकी बिक्री और मरम्मत का सारा काम खुद सम्भालती हैं। तरुलता गोप सोलर लैम्प की मरम्मत करती हैं और जरुरतमंद छात्र-छात्राओं तक सोलर लैम्प पहुंचाती भी हैं।

ये भी पढ़ें- पुरुषों के काम को चुनौती देकर सुदूर गाँव की ये महिलाएं कर रहीं लीक से हटकर काम

सौर ऊर्जा लैंप के मरम्मत एवं रखरखाव केंद्र पर लैम्प ठीक कर रहीं तरुलता गोप (35 वर्ष) ने मुस्कुराते हुए कहा, "ये जो लैम्प ठीक कर रहे हैं इसका बच्चों से कोई पैसा नहीं लेते हैं। जिन गाँव में अभी भी बिजली नहीं पहुंची या फिर बिजली है तो बेवक्त आती है वहां बच्चों की पढ़ाई अब इस सोलर लैम्प से हो जाती है।" बच्चों की दी जा रही सोलर लैम्प में अगर कोई खराबी आती है तो इन केन्द्रों पर लैम्प को दिसंबर 2018 तक नि:शुल्क ठीक किया जाएगा। तीन हजार सोलर लैम्प पर एक मरम्मत केंद्र खोला गया है। राज्य में कुल 174 रखरखाव एवं मरम्मत केंद्र हैं।


"हम स्कूल-स्कूल जाकर टीचर के साथ बच्चों को इस योजना के बारे में बताते हैं। अगर बच्चा एक बार इसे खरीद लेता है तो सालों साल उसे पढ़ाई के लिए लाइट का इंतजार नहीं करना पड़ेगा। अगर ये लाइट खराब होती है तो हमारे रखरखाव मरम्मत सेंटर पर फ्री में ठीक कर दी जाती है।" तरुलता ने आगे बताया। ये सप्ताह में तीन दिन सोमवार, मंगलवार और शुक्रवार को खराब लैम्प की मरम्मत सुबह 10 बजे से शाम चार बजे तक करती हैं।

केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने पिछले वर्ष पायलट के तौर पर देश के पांच राज्यों के 70 लाख छात्रों को मुफ्त में सौर लैंप उपलब्ध कराने के लिए सौर स्टडी लैंप योजना की शुरूआत की थी। भारत सरकार के 70 लाख सोलर स्टडी लैम्प योजना को आईआईटी बॉम्बे औरएनर्जी एफिशिएंसी सर्विसेज लिमिटेड (ईईएसएल) के तहत बिहार, असम, झारखंड, यूपी और ओडिश में शुरू किया गया है।

यह योजना 49 जिलों के 325 प्रखंडों के लगभग 2,000 गाँवों तक पहुंचेगी। झारखंड में आईआईटी बॉम्बे एवम ईईएसएल और जेएसएलपीएस द्वारा 5.40 लाख छात्रों को सौर ऊर्जा लैम्प मिल चुका है। आईआईटी बॉम्बे के प्रोफ़ेसर चेतन सिंह सोलंकी ने एक प्रेस वार्ता में कहा, "उर्जा मंत्रालय की 70 लाख सोलर स्टडी लैम्प योजना 70 लाख ग्रामीण छात्रों को सस्ती और पर्यावरण अनुकूल रोशनी उपलभ्ध कराकर उनकी शिक्षा में बेहतरी का प्रयास है। झारखंड के कई गाँवों में आज भी बिजली नहीं पहुंच पाई है, घने जंगलों और पहाड़ी इलाकों में बिजली पहुँचाने का उपाय है कि ग्रामीण ज्यादा से ज्यादा सौर उर्जा का इस्तेमाल करें।"


हाटघमरिया के कोल्हान पब्लिक स्कूल, हापुगुटू में पांचवी कक्षा में पढ़ रहीं तृप्ति रेखा सावन ने खुश होकर कहा, "पहले घर पर लाइट की वजह से कई बार स्कूल का काम पूरा नहीं कर पाते थे, हमारे गाँव में एक बार ट्रांसफ़ॉर्मर जल जाए तो महीनों ठीक नहीं होता। अब जबसे ये सोलर वाली लाइट हो गयी है तबसे कोई दिक्कत नहीं होती।" तृप्ति रेखा सावन की तरह हजारों बच्चों को अब बिजली न आने की परेशानी से मुक्ति मिल चुकी है। स्कूल के प्रधानाचार्य जगदीश चन्द्र गो ने बताया, "पहले बच्चे लाइट न आने की वजह से रात में कई बार पढ़ाई नहीं कर पाते थे, जो कोर्स याद करने को देते वो भी नहीं करते थे लेकिन अब 100 रुपए कीमत की सोलर लैम्प इनके पढ़ाई में मददगार हो रही है। बहुत ज्यादा दाम नहीं है और ख़राब होने पर फ्री में ठीक हो रही है इसलिए बच्चों के माता-पिता इसे आसानी से खरीद पा रहे हैं।"

ये भी पढ़ें- झारखंड बना देश का पहला राज्य जहां महिलाओं के नाम होती है एक रुपए में रजिस्ट्री

''70 लाख सौर स्टडी लैंप योजना' खासकर उन क्षेत्रों के लिए है जहां अभी भी 50 फीसदी लोगों को बिजली की सुविधा नहीं मिल रही है। जिन क्षेत्रों में केरोसिन तेल का जलाने में ज्यादा उपयोग हो रहा है उन क्षेत्रों के ग्रामीणों के बच्चों तक इस योजना का लाभ पहुंचाया जा रहा है। इस लैम्प से मोबाइल चार्ज भी हो सकता है। इस योजना से अधिकतर वो लोग लाभान्वित होंगे जो अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों से हैं। जहाँ एक तरफ इस योजना से बच्चों को पढ़ाई में सहूलियत हो रही है वहीं दूसरी तरफ इससे ग्रामीण महिलाओं को रोजगार मिल रहा है।

'70 लाख सौर स्टडी लैंप योजना' के तहत सखी मंडल की महिलाओं को मिला है रोजगार

झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी के द्वारा सखी मंडल से जुड़ी 600 महिलाओं को '70 लाख सौर स्टडी लैंप योजना' के विभिन्न कार्यों से जोड़ा गया है। जिससे इन्हें आमदनी का एक जरिया मिला है। कुछ महिलाएं लैम्प बनाती हैं, कुछ साइकिल से स्कूल-स्कूल जाकर बच्चों तक ये लैम्प पहुंचाती हैं तो कुछ इन लैम्पों की मरम्मत करती हैं। इस योजना से जुड़कर एक महिला अपने काम के अनुसार महीने के पांच हजार से लेकर बीस हजार रुपए तक कमा लेती हैं।


अगर हम पश्चिमी सिंहभूमि जिले के हाटघमरिया ब्लॉक की बात करें तो डुमरिया आजीविका महिला ग्राम संगठन की 23 महिलाएं एक केंद्र पर हैं जिसमें नौ महिलाएं लैम्प बनाती हैं और 14 वितरण करती हैं। एक दिन में 450 लैम्प बनता है। वितरण करने वाली एक महिला एक दिन में 50-100 लैम्प वितरण कर देती है। इन महिलाओं को एक लैम्प बनाने या बेचने में 12 रुपए मिलते हैं।

साइकिल से लगभग 10 किलोमीटर रोजाना लैम्प वितरण करने वाली सुरु समंड (26 वर्ष) बताती हैं, "हम जितनी ज्यादा लैम्प बच्चों तक पहुंचाते हैं हमें उतना ही पैसा मिलता है। जुलाई महीने में हमने 18,000 रुपए की लैम्प बेची थी। ये काम के ऊपर निर्भर करता है कि हम महीने का कितना कमा सकते हैं।

       

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.