बदलाव की असली कहानी गढ़ रहीं ये महिलाएं, कम पानी वाले क्षेत्र में लोटे से पानी भरकर करती हैं सिंचाई

जब हम और आप महिलाओं को खाली बर्तन ले जाते देखते हैं तो हमारे जेहन में पहली तस्वीर यही बनती है कि वो पीने का पानी लेने जा रही होंगी। लेकिन झारखंड के इस गाँव में ये तस्वीरें कुछ और ही कहानियाँ बताती हैं।

Neetu SinghNeetu Singh   29 March 2019 5:30 AM GMT

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पूर्वी सिंहभूम (झारखंड)। देश में पानी की किल्लत के तमाम किस्से आपने सुने और पढ़े होंगे। पर क्या कभी आपने ऐसा देखा या सुना है कि महिला किसान लोटे में पानी भरकर पौधों की सिंचाई कर रही हो। झारखंड में पानी की जद्दोजहद से जूझ रही ये महिला किसान ऐसा इसलिए करती हैं ताकि पानी बर्बाद न हो, क्योंकि इतना पानी भी उन्हें बड़ी मुश्किलों से नसीब होता है।

हम बात कर रहे हैं उन महिला किसानों की जो लगभग एक किलोमीटर दूर तालाब से घड़े और डिब्बे में पानी भरकर अपने फसल की सिंचाई कर टमाटर की फसल उगा रही हैं। बंगाल से सटा हुआ झारखंड राज्य का पूर्वी सिंहभूम जिले का पटमदा ब्लॉक सब्जी का गढ़ माना जाता है पर पानी की किल्लत यहाँ के किसानों की एक बड़ी समस्या है। पानी के पर्याप्त संसाधन न होने की वजह से यहाँ जमीन का एक बड़ा हिस्सा बरसात के बाद खाली पड़ा रहता है। लेकिन पिछले एक दो साल से खाली पड़ी जमीनों में यहाँ की महिला किसान जमीन के छोटे-छोटे हिस्सों में सब्जियां उगाने लगी हैं।

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ये मेहनतकश महिला किसान न तो सरकार को कोसती हैं और न ही पानी की किल्लत का हवाला देती हैं बल्कि ये खुद मेहनत करने पर भरोसा रखती हैं। जब हम पटमदा ब्लॉक के राहेडीह गाँव पहुंचे तो हमने वहां दर्जनों महिलाओं को अपने-अपने घरों से पानी के खाली बर्तन ले जाते हुए देखा। इन्हें ऐसे जाते देख मेरे दिमाग में पहली तस्वीर यही बनी थी कि ये पीने का पानी लेने जा रही हैं। जो कि सच नहीं थी। इनसे बातचीत के दौरान हमें पता चला कि ये अपने खेत में लगी सब्जियों की सिंचाई के लिए एक किलोमीटर दूर तालाब से पानी लेने जा रही हैं। ये मेरे लिए आश्चर्यजनक था क्योंकि इससे पहले ये वाकया हमने अपनी आँखों से कभी नहीं देखा था।

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उन दर्जनों महिलाओं में शिवली महतों (30 वर्ष) नाम की एक महिला ने उत्साह के साथ हमें बताया, "आप भी चलिए हमारे साथ खेत पर, हमारे खेत में खूब टमाटर लगे हैं। जो बिलकुल शुद्ध और जैविक हैं।" शिवली के इतना बोलने पर वहां खड़ीं महिलाएं मुस्कुराने लगीं। उनके चेहरे पर मैंने आत्मसंतुष्टि देखी थी। वर्षों से खाली पड़े अपने खेत में शिवली महतो ने पहली बार टमाटर लगाये थे, "पहले तो बरसात में धान ही उगाते थे पूरे साल खेत ऐसे ही खाली पड़े रहते थे। लेकिन पिछले साल जब हमारे यहाँ उत्पादक समूह बना तबसे हम 60 डिसमिल खेत में सब्जी लगाने लगे हैं। धान से टमाटर लगाने में तीन गुना ज्यादा मुनाफा हुआ।" इस टमाटर से तीन गुना मुनाफा लेने की बात शिवली महतो जितनी सहजता से बता रहीं थी दरअसल वो इतना आसान नहीं था।

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इनसे बातचीत के दौरान हमने ये महसूस किया कि इन्हें पानी की इस किल्लत से किसी से कोई शिकायत नहीं है। बल्कि वर्षों से जूझ रही इस समस्या को अब ये स्वीकार कर चुकी हैं। ऐसे विषम हालातों में इनकी सकारात्मक सोच से मेरा उत्साह और बढ़ गया। हम भी इनके साथ खेत की पगडंडियों से होते हुए ऊँचे टीले पर स्थित उस तालाब पर पहुंच गये जहाँ से ये पानी भरकर लाती हैं। जब हमने बिना चप्पल पहने पानी लेने गयी काजल महतो (27 वर्ष) से पूंछा 'आपने चप्पल तो पहन ली होती पैरो में कुछ लग जाएगा' वो बेखबर लहजे में बोली, "अरे दीदी ये तो हमारी रोज की आदत है हमें कुछ नहीं होगा हम लोग बहुत मजबूत हैं।"


तालाब से पानी लेकर वापस लगभग आधे घंटे बाद हम सब शिवली महतो के उस टमाटर के खेत में खड़े थे जिस खेत को उन्होंने शुरुआत में हमसे देखने की बात कही थी। एक-एक करके सभी महिलाएं लोटे और प्लास्टिक के छोटे से डिब्बे में पानी भरकर टमाटर की जड़ों में डालने लगीं। ये नजारा देखना मेरे लिए जितना सुखद था उतना ही चिंताजनक। टमाटर की जड़ों में पानी डाल रही शिवली महतो ने कहा, "जब भी ये पौधे सूखने लगते हैं तब हम शाम के समय ऐसे ही सिंचाई करते हैं। दिन के चार से पाच घंटे इस छोटे से खेत की सिंचाई करने में ही गुजर जाते हैं। जब धूप ज्यादा निकलती है तब तो हर रोज तीन चार घंटे सिंचाई करनी पड़ती है।"

शिवली महतो जिस उत्पादक समूह बनने के बाद सब्जियों की खेती करने की बात बता रही थीं वो उत्पादक समूह में झारखंड में चल रही जोहार परियोजना के तहत बनाये गये थे। जोहार परियोजना का मुख्य उद्देश्य सखी मंडल से जुड़ी महिलाओं के उत्पादक समूह बनाकर कृषि क्षेत्र में छह साल में महिला किसानों की आय को दोगुना करना है। इस योजना की शुरुआत वर्ल्ड बैंक, झारखंड सरकार और ग्रामीण विकास विभाग के साझा प्रयास से नवम्बर 2017 में शुरू हुई थी। ये योजना झारखंड के 17 जिले के 68 ब्लॉक के दो लाख परिवारों के बीच चल रही है।

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हम राहेडीह गाँव की जिन महिलाओं की बात कर रहे हैं ये जिला मुख्यालय से लगभग 70 किलोमीटर दूर रहती हैं। बंगाल से सटे होने की वजह से इनकी भाषा बंगाली है जिसे हमने हर महिला की बात को हिन्दी में लिखा है। राहेडीह आजीविका उत्पादक समूह का गठन मार्च 2018 में हुआ। जिसमें 46 महिला सदस्य हैं। ये दिलचस्प कहानी झारखंड के पहले उत्पादक समूह की नहीं है बल्कि झारखंड में जोहार परियोजना के तहत अबतक 2000 से ज्यादा उत्पादक समूह बनाए जा चुके हैं। जिसमें कई उत्पादक समूह की कहानियाँ ऐसी ही उत्साह बढ़ाने वाली और सीख देने वाली हैं ये उनमे से एक है।

उत्पादक समूह की सचिव मालती महतो (48 वर्ष) बताती हैं, "उत्पादक समूह बनने के बाद हमारे गाँव में आजीविका कृषक मित्र समय-समय पर कम लागत में खेती करने के तौर-तरीके सिखाते हैं। हम सब दीदी एक साथ समूह से बीजा खरीद लेते है जिससे बाजार आने जाने का सबका अलग-अलग खर्चा बच जाता है।" उन्होंने आगे कहा, "अब ये टमाटर हम लोग एक साथ सभी दीदी इकट्ठा करके बाजार भेजते हैं जिससे एक-एक आदमी का बाजार जाने का खर्चा भी बच जाता है।"

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इस परियोजना के तहत महिला किसानों के उत्पादक समूह बनाकर उन्हें बेहतर खेती के तौर-तरीके सिखाने के साथ ही उन्हें बाजार भी मुहैया कराए जा रहा है। जिससे बिचौलिये खत्म हो सकें और उन्हें उनके उत्पाद का उचित मूल्य मिल सके। इन महिलाओं को प्रशिक्षित करने वाले सीनियर आजीविका कृषक मित्र शिव शंकर महतो बताते हैं, "इनका ऐसा उत्साह देखकर हम भी बहुत खुश होते हैं। जब ये महिलाएं पानी को इतने दूर से लाकर खेती कर सकती हैं और अच्छा लाभ ले रही हैं तो अगर यहाँ पानी की समस्या न होती तो बात कुछ और ही होती।"

उन्होंने आगे कहा, "हम इन्हें उच्च मूल्य खेती करने की सलाह देते हैं जिसमें सब्जियों की फसल पर जोर दिया जाता है। इसी के तहत ये महिलाएं अपनी खाली पड़ी जमीन में धान के आलावा कुछ-कुछ डेसीमल में टमाटर, खीरा, भिंडी, करेला, बैंगन और हरी मिर्च जैसी सब्जियां उगा रही हैं।"

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टमाटर के खेत से कुछ टमाटर तोड़कर अमृता महतो (28 वर्ष) मुझे टमाटर दिखाते हुए बोलीं, "जब कम पानी में हम इतना बड़ा टमाटर उगा सकते हैं तो अगर पानी हमारे यहाँ पानी का साधन हो जाए तो हम जमीन के बड़े हिस्से में खूब सब्जियां उगा सकते हैं।" अमृता ने पानी के संसाधन न होने की बात तो कही लेकिन किसी ने भी ये नहीं कहा कि जब पानी के संसाधन हो जायेंगे वो तभी खेती करना शुरू करेंगे। वो खेती करने की शुरुआत कर चुकी हैं बस फर्क इतना है कि वो जीतोड़ मेहनत करके अभी वो छोटे-छोटे टुकड़ों में कर रही हैं। अगर पानी के संसाधन हो जाएँ तो वो ज्यादा खेत में सब्जियां उगा सकेंगी।

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अगर हम इस सब्जी उत्पादन में आर्थिक रूप से इनके फायदे की बात करें तो बहुत ज्यादा ऐसा मुनाफा नहीं हो रहा जिसे हम पचास हजार या एक लाख रुपए की राशि में बता सकें पर हम इतना जरुर कह सकते हैं कि इन महिलाओं ने पानी के सीमित संसाधनों के बीच जो अनूठा उदाहरण पेश किया है वो देश की लाखों महिलाओं में उत्साह भरेगा। इनके इस ज़ज्बे से उन महिला किसानों को हिम्मत मिलेगी जो आज पानी की समस्या की वजह से खेती नहीं कर पा रही हैं और सरकार से इस उम्मीद में हैं कि कब पानी का इंतजाम हो और वो खेती करना शुरू करें। इस खबर को करने के दौरान मैंने इन महिलाओं से ये यही सीखा कि विषम परिस्थितियों में रहकर कैसे रास्ते निकाले जाते हैं।

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