आम आदमी पार्टी राजनैतिक बुलबुला बन चुकी

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
आम आदमी पार्टी राजनैतिक बुलबुला बन चुकीगाँव कनेक्शन

आजकल स्टंट ड्राइविंग का बड़ा क्रेज़ है। राजनीति में भी लोग स्टंट राजनीति कर रहे हैं। मीडिया अगर साथ दे देता है तो चल भी जाता है लेकिन जब मीडिया को पता चलने लगता है यह तो स्टंट कहलाने लायक भी नहीं तो सोशल मीडिया का सहारा बचता है, वह भी कब तक चलेगा। राजनीति में जिस अनुभव, परिपक्वता और धीरज की आवश्यकता होती है वह सब में नहीं मिलती। 

आम आदमी पार्टी के धमाकेदार उदय के बाद लगा था कि देशहित की चिन्ता करने वाले प्रबुद्व लोग मिलकर एक राजनैतिक विकल्प प्रस्तुत करेंगे लेकिन शशिभूषण, प्रशान्त भूषण, योगेन्द्र यादव जैसे दर्जनों लोगों के निकलने के बाद अब लगता है सोशल मीडिया के अधाधुंध प्रयोग ने बता दिया कि धरातल के बिना संगठन नहीं खड़ा होता।

ऐसी ही पार्टियां उड़ीसा में ‘‘गणतंत्र परिषद” और आसाम में ‘‘असम गण परिषद” के नाम से बनी थी लेकिन जिस तेजी से बनी थीं उसी तेजी से बिखर गई। ‘‘आप” के मुखिया केजरीवाल सीधे मोदी पर हमला बोलते हैं और भूल जाते हैं कि सूरज पर थूकने का अंजाम क्या होता है।हमारे देश में भाजपा, लोजपा, सपा और बसपा की ही भांति आम आदमी पार्टी यानी ‘‘आप” को भी धीरे-धीरे विकसित होना चाहिए था। परन्तु कहीं का ईंट कहीं का रोड़ा इकट्ठा करने से पार्टी नहीं बन जाती, जनसमूह बन सकता है जो उतनी ही आसानी से बिखर भी जाता है। ‘‘आप” को आम आदमी पार्टी कहलाने के लिए खेतिहर मजदूरों, किसानों और छोटे दुकानदारों का बहुतायत में जुड़ना जरूरी था। 

देश के चुनिन्दा शहरों में उछल-कूद करने से आम आदमी पार्टी नहीं बनती। सुदूर गाँवों में आम आदमी को बहुत कम पता है ऐसी कोई पार्टी है। जिस गति से इस पार्टी का उदय हुआ था उसी गति से बिखराव होने लगा है, इसे देख कर लगता नहीं कि ये लोग सत्ता जाने के बाद एक पार्टी के रूप में खड़े हो पाएंगे। पहली पारी में केजरीवाल ने लोकपाल बिल न लाकर, सब्सिडी का पुराना नुस्खा अपनाकर, पानी के दाम घटाकर और समर्थन देने वाली कांग्रेस की दुखती रगों को न छूकर परिपक्वता दिखाई थीं लेकिन स्टिंग ऑपरेशन का जो अस्त्र उन्होंने आजमाया था वह उन्हें ही घायल कर गया।

किसी राजनैतिक पार्टी के लिए आवश्यक है कि उसकी स्पष्ट नीति, कार्यक्रम, न्यायसंगत कार्यशैली हो, सुगठित संगठन हो, देश की आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक व्यवस्था पर स्पष्ट सोच हो, उसके सदस्यों में अनुशासन और विचारों में सामंजस्य हो। परन्तु विचारों की ऐसी परिपक्वता एक दिन में विकसित नहीं होती। विगत वर्षों में वही पार्टियां टिक पाई हैं जिनका सूत्रधार कोई व्यक्ति अथवा परिवार रहा है। आम आदमी पार्टी में विविध विचारों के विद्वान लोग तो हैं परन्तु सब तो नेता हैं यहां, फॉलोअर कोई नहीं।  

कुशल नेतृत्व के अभाव में पार्टी के लोग परस्पर विरोधी और विवादास्पद बयान देते रहते हैं जैसे रायशुमारी के बाद ही कश्मीर में सेना भेजने का राग, न्यायाधीशों की बैठक बुलाने की बात करना और विश्वविद्यालय स्थानीय लोगों के लिए हों आदि किसी विकसित दल की निशानी नहीं हैं। अब से 30 साल पहले बोफोर्स तोपों की खरीद में कमीशन जैसे विषय से आरम्भ करके विश्वनाथ प्रताप सिंह की राजनीति मंडल और कमंडल के भंवर जाल में फंस गई, देश को कोई दिशा नहीं दे पाई। 

आम आदमी पार्टी का इतनी जल्दी बिखराव आरम्भ हो जाएगा, शायद किसी ने नहीं सोचा होगा। नरेन्द्र मोदी को ललकारने के पहले केजरीवाल को चाहिए था दिल्ली को गुजरात से बेहतर मॉडल बनाकर प्रस्तुत करते। कार्यकर्ताओं की अति महत्वाकांक्षा ने राजनैतिक बुलबुला बनाया जिसके फूट जाने की पूरी सम्भावना है। वादे करना एक बात है उन्हें पूरा करना दूसरी। 

 

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.