आर्टीमीसिया 'सिम संजीवनी' की खेती में मिलेगा ज्यादा मुनाफा

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आर्टीमीसिया सिम संजीवनी की खेती में मिलेगा ज्यादा मुनाफागाँव कनेक्शन, खेती किसानी, gaon connection

लखनऊ। परम्परागत खेती में बढ़ती लागत और कम मुनाफा होने से किसानों के लिए आर्टीमीसिया जैसी औषधीय फसलों की खेती काफी फायदेमंद साबित हो रही है। ऐसे में किसान केन्द्रीय औषधीय एवं सगंध पौध संस्थान (सीमैप) की नयी किस्म 'सिम संजीवनी' से कम लागत में ज्यादा मुनाफा पा सकते हैं।

सीमैप की साल 2004 में विकसित आर्टीमीसिया की प्रजाति 'सिम आरोग्या' की खेती उत्तर प्रदेश में लगभग पांच हजार एकड़ में की जाती है, जिसमें खर्च तो ज्यादा होता है, लेकिन किसानों को उत्पादन कम मिलता है। सीमैप की नयी किस्म 'सिम संजीवनी' से किसानों को ज्यादा उत्पादन मिलेगा, क्योंकि इसके पौधे ज्यादा घने होते हैं, जिससे सूखी पत्तियां ज्यादा मात्रा में मिलती हैं।

लखनऊ से 75 किमी दक्षिण में बाराबंकी जिले के टांड़पुर गाँव के किसान राम सांवले शुक्ला पिछले पांच वर्षों से आर्टीमीसिया की खेती कर रहे हैं। राम सांवले शुक्ला बताते हैं, ''हमने पांच वर्ष पहले आर्टीमीसिया की खेती शुरू की। इसकी खासियत है इसमें ना तो ज़्यादा खाद की ज़रूरत होती है, और न ही सिंचाई की। नयी किस्म से किसानों को और फायदा होगा।" 

आर्टीमीसिया की खेती के लिए एक ग्राम बीज प्रति एकड़ जमीन के लिए पर्याप्त होता है। इसकी खेती के लिए नवंबर माह के अंत में नर्सरी तैयार कर जनवरी से फरवरी के पहले सप्ताह तक रोपाई कर सकते हैं। फसल मई से जून माह तक कट जाती है। एक एकड़ खेत में सिम संजीवनी की 35 कुंतल पत्तियां निकलती हैं, जबकि सिम आरोग्या से 30 कुंतल पत्तियां ही निकलती है। जलभराव वाली जगह में आर्टीमीसिया की खेती नहीं करनी चाहिए। गर्मी के मौसम में दस से पंद्रह दिनों में सिंचाई करनी चाहिए, लेकिन ये ध्यान देना चाहिए कि ज्यादा पानी न भरने पाए।

सिम संजीवनी को विकसित करने वाले सीमैप के वैज्ञानिक डॉ. एके गुप्ता बताते हैं, ''भारत में आर्टीमीसिया को सीएसआईआर-सीमैप ने ही साल 2004 में शुरू किया था। इसे पहले सिर्फ चीन में ही इसकी खेती होती थी। सीमैप किसानों को बीज और ट्रेनिंग दिलाने के साथ ही कम्पनियों के साथ अनुबंध भी कराता है, जिससे किसानों को फसल बेचने के लिए भटकना ना पड़े। अनुबंध के बाद फार्मा कंपनियां किसान से सीधे फसल खरीद लेती हैं।" 

वैज्ञानिक डॉ. एके गुप्ता आगे कहते हैं, ''सिम आरोग्या के मुकाबले में सिम संजीवनी से ज्यादा आर्टीमिसिनिन निकलता है, जिससे से 0.1-1 फीसदी जबकि सिम संजीवनी में 1.2 फीसदी तक आर्टीमिसिनिन निकलता है। इससे कंपनियों को भी ज्यादा फायदा होगा, इसलिए वो आर्टीमीसिया की खेती को ज़्यादा बढ़ावा देंगी। आर्टीमीसिया की खेती के लिए किसानों को सीमैप में पंजीकरण कराना होता है।" 

सुलतानपुर जि़ले के जयसिंहपुर गाँव के किसान दिलीप यादव आर्टीमीसिया की खेती करते हैं। दिलीप यादव कहते हैं, ''पिछले दो वर्षों से आर्टीमीसिया की खेती करता हूं, किसान मेले में अर्टिमीसिया की नयी किस्म सिम संजीवनी के बारे में पता चला, इससे किसानों को और अधिक मुनाफा होगा।

डॉ. एके गुप्ता आर्टीमीसिया से होने वाले मुनाफे के बारे में बताते हैं, ''एक एकड़ में 35 कुंतल पत्तियों का उत्पादन होता है, जिसकी कीमत एक लाख पंद्रह हज़ार तक होती है। चार महीने में एक एकड़ में 25-30 हज़ार तक खर्च आता है और 70 से 80 हजार तक फायदा होता है।" 

फार्मा कंपनियों कराती हैं खेती

अर्टिमीसिया की खेती के लिए किसान को सीमैप में पंजीकरण कराना होता है। पंजीकरण के बाद फार्मा कंपनी से अनुबंध के जरिए कंपनी ही किसान से अर्टिमीसिया की खेती कराती है। फार्मा कंपनी किसान को बीज देती हैं और फसल तैयार होने के बाद आर्टीमीसिया की सूखी पत्तियां भी किसानों से खरीदती हैं।

 

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