अधिकारियों की लापरवाही से डूब गये 80 परिवार

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अधिकारियों की लापरवाही से डूब गये 80 परिवारgaonconnection

ललितपुर। सिंचाई विभाग के अधिकारियों की लापरवाही के चलते जमडार बांध के पास की बस्ती पानी में डूब गई। यहां के लोग बार-बार अधिकारियों से विस्थापित करने को कहते रहे पर अधिकारियों के गलत आंकलन का खामियाजा इन लोगों को भुगतना पड़ा।

क्योलारी के पास जमडार बांध बन रहा है। बांध के गेट खुले थे और इस बीच बारिश होने से क्षेत्र में क्वाटरन नाम की बस्ती डूब गई। बस्ती में 15 सरकारी आवास और 40 घरों में लगभग 80 परिवारों की 200 से अधिक जनसंख्या रहती थी।

बस्ती के सुन्दर बुनकर (55 वर्ष) ने बताया, “विस्थापन के बारे में अधिकारियों से बार-बार कहा गया कि बरसात आने वाली है। हमारी बस्ती डूब जाएगी। हम बेघर हो जाएंगे, लेकिन सिंचाई विभाग के अधिकारी आश्वासन देते रहे कि आपकी बस्ती तक पानी नहीं पहुंचेगा। आप लोग आराम से रहो।'' लेकिन जिसका बस्ती वालों को डर था वही हुआ। जोरदार बारिश हुई और देखते ही देखते बस्ती जलमग्न हो गई।

पौने दो सौ करोड़ की जमडार बांध परियोजना की शुरुआत 15 जून 2008 को की गई थी। ललितपुर जनपद के महरौनी तहसील की पूर्व दिशा में 48 किमी. दूर क्योलारी में मडावरा क्षेत्र से आने वाली जमडार नदी और छपरा नाले पर बांध बनाया जा रहा है। इस परियोजना में शासन से 60 करोड़ रुपए जारी किए गए हैं, जिससे 8-9 किमी. लम्बा प्रस्तावित बांध सिर्फ 3.6 किमी. तक ही बन पाया है।

बसपा शासनकाल में स्वीकृत हुए जमडार बांध की सर्वे से लेकर निर्माण कार्य में लापरवाही बरती गई है। बांध के गेट ऊंचाई पर बनाये गए और बस्ती नीचे थी। इसका खामियाजा ग्राम क्योलारी सहित आसपास के ग्रामीणों को भुगतना पड़ रहा है। आने वाले अक्टूबर महीने में मौजूदा सरकार के मंत्री द्वारा बांध का उद्घाटन कराने की संभावना है।

बस्ती के लोगों ने बताया कि छह जुलाई को ऐसा मंजर दिखा कि पूरी बस्ती कुछ ही देर में पानी मे समा गयी। लोग जितना सामान ले जा सके बटोर कर ले गए, लेकिन उनके घरों में रखा कुन्तलों अनाज पानी में डूब गया। बस्ती के लोग किसी तरह से अपने बच्चों को लेकर जान बचाकर भाग निकले। 

गढ़ाबाई (44 वर्ष) सड़े और फूले हुए गेहूं को हाथ में दिखाते हुए बताती हैं, "हमारी पूरी बस्ती के घर डूब गए, घर का सामान बह गया। हर परिवार बेघर हो गया। पशुओं का भूसा, कन्डे, लकड़ी सब कुछ बह गया। हम लोग जैसे-तैसे निकल पाए।” वो आगे बताती हैं, “बस्ती का सैकड़ों कुन्तल गेहूं सड़ गया। थोड़ा-बहुत अनाज ही सही बचा है। खाने-पीने के लाले पड़े हैं। वहां से निकलकर जान तो बच गई, लेकिन कालोनी वालों ने यहां रहने से मना कर दिया। किसी तरह गाँव वालों के सहयोग से रहने को जगह मिली है।”

उसी गाँव के हरिसिंह लोधी (58 वर्ष) बताते हैं, "विभाग ने जमडार नदी का स्वरूप बदल दिया। जिस ओर पानी का ढलान है वहां पर गेट नहीं लगाए गए। सड़क से लगभग पांच सौ मीटर की दूरी और ऊंचे स्थान पर गेट लगवाए गए तभी खुले गेट की स्थिति में इतना भराव हुआ कि क्वाटरन की पूरी बस्ती बर्बाद हो गयी।”

साथ ही में बाठे लट्टू अहिरवार (62 वर्ष) बताते हैं, "पानी बहुत तेज था, जिसके कारण दीवारें गिरनें लगीं, जिसमें मेरी एक गाय दब कर मर गयी। मैं पूरी रात गाँ की बर्बादी का नजारा देखता रहा। चारों तरफ से बचाव-बचाव की आवाजें आ रही थीं।”

एक कमरे में रहे छह-छह परिवार

कॉलोनी में भी लोगों का हाल बहुत बुरा है। एक एक कमरे में छह-छह परिवारों को गुजारा करना पड़ा रहा है। लोग अपने बचे सामान को सहेजकर किसी तरह दिन गुजारने को मजबूर हैं। चूल्हे में बनाने को कुछ नहीं है, ऐसी स्थिति में सिंचाई विभाग द्वारा भोजन की व्यवस्था तो की गयी, पर पर्याप्त भोजन नहीं मिल पाया। सुबह दाल-चावल और शाम को सब्जी और पूड़ी दी जाती है।

रिपोर्टर - अरविन्द्र सिंह परमार/ सुखवेन्द्र सिंह परिहार

 

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