अगर इन जानवरों से सरकारें मुंह न मोड़तीं तो लाखों परिवार कई गुना कमाते

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अगर इन जानवरों से सरकारें मुंह न मोड़तीं तो लाखों परिवार कई गुना कमातेgaonconnection

बुंदेलखंड का किसान अगर मौसम की मार के बाद अपने आप को किसी के सामने मजबूर पाता है तो वो हैं वहां लाखों की संख्या में लोगों द्वारा छोड़ दिए गए और खेतों में फसलें रौंदते गाय और बैल। लेकिन इस विशाल क्षेत्र की 15 लाख गायों को भरपेट चारा, बांझ गायों का कृत्रिम गर्भाधान और नस्ल सुधार की व्यवस्था हो तो ये गायें करीब चार लाख लीटर रोजाना दूध दे सकती हैं, जो बुंदेलखंड के लोगों की आमदनी के कई गुना बढ़ाने का ज़रिया बन सकता है।

2012 में आई कृषि मंत्रालय द्वारा जारी 19वीं पशुगणना के अनुसार पूरे बुंदेलखंड में 23 लाख 50 हजार गोवंश हैं। जिनमें से अधिकांश छुट्टा हैं, जिन्हें स्थानीय भाषा में अन्ना कहा जाता है। इन्हीं पशुओं की बदौलत बुंदेलखंड दुनिया में सबसे कम उत्पादकता वाले क्षेत्र में शामिल है।

दुग्ध एवं दुग्धशाला विभाग के आंकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश के दूसरे हिस्सों में गायों का औसत उत्पादन ढाई लीटर दूध प्रतिदिन तो बुंदेलखंड

में एक से सवा एक लीटर है। यानी प्रदेश के बाकी हिस्सों के अनुपात में 40 फीसदी।

उत्पादकता में पिछड़े ये छुट्टा पशु किसानों के लिए भी किसी मुसीबत से कम नहीं है। छुट्टा जानवर यानी वो पशु जिनके मालिक दूध निकालने के बाद चरने के लिए खुला छोड़ देते हैं, लेकिन बाहर चारे का इंतजाम न होने पर वो किसानों के खेतों में उत्पात मचाते हैं। इनमें सबसे ज्यादा संख्या गायों की है, उसके बाद सांड और बछड़े हैं। इस बार बेहतर बारिश हुई तो भी उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश के लाखों किसान इन जानवरों के डर से फसल नहीं उगा पाएंगे।

छुट्टा जानवरों का आतंक किस कदर है ये बांदा जिला मुख्यालय से उत्तर दिशा में अतर्रा तहसील के कल्हारा गाँव के युवा किसान आशीष वर्मा (23 वर्ष)

की बातों से समझा जा सकता है, “बरसात हो भी गई तो हमारे इलाके के सैकड़ों खेत खाली पड़े रहेंगे। किसान इन जानवरों के डर से फसल बोएगा ही नहीं। हमारे यहां तो अब अब वही किसान खेती कर सकता है, जिसके पास पैसों है। और खेत बचाने के लिए मजदूर। किसानों को रात खेतों में गुजारनी पड़ती है।”

अन्ना जानवरों के चलते किसानों की फसल, मेहनत और पैसा तो बर्बाद होता ही है तो कई बार जान भी चली जाती है। बांदा में जखनी गाँव के किसान अशोक कुमार अवस्थी (50) बताते हैं, “सालभर पहले गाँव के बुजुर्ग किसान श्यामलाल प्रजापति अपने गेहूं की रखवाली के लिए खेत गए थे, सुबह उनकी लाश मिली। उनकी मौत सर्दी से हुई लेकिन वजह ये जानवर ही थे।” 

जखनी को अभी हाल में जलग्राम घोषित किया गया है। यहां के चार तालाबों में पानी है तो गाँव तीनों नलकूपों भी पानी देते हैं। लेकिन गाँव के इक्का-दुक्का खेत ही हरे-भरे नजर आए। बुंदेलखंड के लगभग हर गांव में 100-200 गाय बछड़े इधर-उधर घूमते दिख जाएंगे। 

उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश को मिलकर करीब 45,032197 कुल हेक्टेयर कृषि योग्य जमीन है, जिसमें 24,402,267 हेक्टेयर जमीन सिंचित भी है। लेकिन इनमें आधी से ज्यादा जमीन पर अन्ना पशुओं का प्रकोप है। सरकारी अधिकारी खुद भी मानते हैं, 20 फीसदी फसलों को अन्ना पशु चट कर जाते हैं।

बांदा जिले के कृषि जिला अधिकारी बाल गोविंद यादव बताते हैं, “किसानों को अगर सूखे से राहत मिल भी गई तो अन्ना जानवर उनके लिए समस्या हैं। किसानों ने इन जानवरों की वजह से जायद की फसलों की बुवाई करना ही बंद कर दिया है। ये जानवर हर साल 20-25 फीसदी फसलों को चौपट कर देते हैं।” वो आगे बताते हैं, “जिन किसानों ने फैन्सिंग (तार की बाड़) लगाई है वही अपनी फसल बचा पाते हैं। मझोले और छोटे किसान ज्यादा परेशान हैं।”

अन्ना प्रथा की मुख्य वजह चारे की समस्या है। महोबा जिले के डहर्रा गाँव में रहने वाले बाबू कुमार (45 वर्ष) के पास पांच बीघा जमीन है, “लेकिन वो खेती नहीं करते। बाबू बताते हैं, “पशुओं को खिलाने के लिए लोगों के पास इतना चारा-पानी नहीं है इसलिए लोग छोड़ देते हैं। सूखा तो अभी पड़ा है उससे पहले की यह समस्या है। बारिश होने से सूखे से तो राहत मिल जाएगी पर इनसे जो फसलों को नुकसान होता है उसकी भरपाई कौन करेगा।“

बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के सहायक प्रो. बृजेश कुमार गुप्ता बताते हैं, ये प्रथा तो 100 साल से भी पुरानी है लेकिन पिछले 10 वर्षों में इसका प्रकोप ज्यादा बढ़ा है। जंगल कम हुए, हरा चारा खत्म हुआ और इधर सूखे ने समस्या विकराल कर दी है।

नासूर बन चुके इन पशुओं पर नकेल कसने के स्थानीय स्तर पर किसान लगातार मांग करते हैं। बुंदेलखंड पैकेज के तहत यूपीए सरकार ने बैफ (कृत्रिम गर्भाधान) केंद्रों पर पशुओं की नस्लों का सुधार कार्यक्रम शुरू किया था। करोड़ों रुपये भी आवंटित किए हैं। लेकिन वो बेअसर ही रहे। 

वर्ष 2014-15 में राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अंतर्गत उत्तर प्रदेश पशुधन विकास परिषद द्वारा पायलेट प्रोजेक्ट के रुप में चित्रकूट और झांसी में अन्ना प्रथा उन्मूलन कार्यक्रम की शुरुआत की गई। इस योजना के अंतर्गत निम्र आनुवांशिक गुणवत्ता के बछड़ों का बधियाकरण, अच्छी गुणवत्ता के सांड उपलब्ध कराना, कृत्रिम गर्भाधान द्वारा नस्ल सुधार करना, हरे चारे के बीज उपलब्ध कराना था इसके साथ-साथ लोगों में जागरुकता उपलब्ध कराने के लिए प्रचार-प्रसार शुरू किया गया। इस कार्यक्रम के लिए एक करोड़ 35 लाख रुपए आवंटित किया गया था।

उत्तर प्रदेश पशुधन विकास परिषद् के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ बी.बी.एस यादव ने बताया, “सरकार की तरफ इस प्रथा रोकने के लिए दो जिलों (चित्रकूट, झांसी) पायलेट प्रोजेक्ट शुरु कार्यक्रम शुरु किया गया। दो साल का प्रोजेक्ट क्षेत्रों में काफी सफल रहा है। इसको जालौन, ललितपुर, हमीरपुर, महोबा, बांदा जिलों में शुरु करना था पर बजट न आने की वजह से इसको शुरु नहीं किया गया। सरकार को इन जिलों में कार्यक्रम की शुरुआत करने के लिए छह करोड़ रुपए का बजट बना के दिया था, जिसमें 58 लाख का ही प्रस्ताव हुआ उसके बाद चार करोड़ का बजट बनायाए जिसमें दो करोड 90 लाख रुपए का प्रस्ताव हुआ। लेकिन अभी तक कोई पैसा नहीं आए जिससे इस कार्यक्रम की शुरुआत की जाए।”

अन्ना प्रथा को रोकने के बारे में डॉ. सिंह बताते हैं, “बुंदेलखंड की यह सबसे बड़ी समस्या है वहां के पशुओं की नस्ल में सुधार की जरुरत है। अगर पशु की दूध उत्पादकता अधिक होगी तो कोई पशुपालक अपने पशु को नहीं छोडेगा। इसी उद्देश्य से इस योजना की शुरुआत की गई।”

कभी महिलाओं के हक के लिए आवाज़ उठाने वाली गुलाबी गैंग की मुखिया संपत पाल भी पिछले कई वर्षों से लोगों को जानवरों को बांधने के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं। पिछली मुलाकात में उन्हें गांव कनेक्शन से कहा था, बुंदेलखंड तभी हरा-भरा होगा जब खेत की बजाए जानवर लोगों को दरवाजे पर बंधे नजर आएंगे।“ 

गाँव कनेक्शन के सरकार को सुझाव

  • चारे और पौष्टिक आहार की व्यवस्था हो, किसान हरा चारा बोएं और सरकार उसे प्रोत्साहित करे।
  • इन गायों का कृत्रिम गर्भाधान हो और अच्छी नस्लों के सांड़ मुहैया कराए जाएं। 
  • कृषि और शिक्षा मित्र की तरह पशु मित्रों की पर तैनाती की जाए, जो किसानों को जागरूक करें।
  • चरागाह को अवैध कब्जों से मुक्त कर प्रधान को वैद्धानिक रूप से चरागाह बनाने के लिए जिम्मेदार बनाया जाए।
  • दूध निकालने के बाद पशुओं को खुला छोड़ने वाले मालिकों की पहचान कर उन पर कड़ी कार्रवाई हो।
  • पशु बांधे जाएंगे तो दूध जो स्वास्थ्य और आमदनी बढ़ाएगा, गोबर होगा तो उसकी खाद खेतों को उपजाऊ बनाएगी।

 

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