आप की रसोई में लहसुन का तड़का सस्ता हुआ लेकिन किसान तबाह हुआ

माटी मोल लहसुन बेचने को मजबूर लहसुन किसान, 15 साल के निचले स्तर पर रेट, नहीं निकल रही खेती की लागत

Shubham KoulShubham Koul   25 May 2018 8:08 AM GMT

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लखनऊ/इंदौर। अगर आप किसी कंपनी या फैक्ट्री में होते और अच्छा काम करते तो ईनाम मिलता, शायद सैलरी बढ़ती और संभव था कि बोनस मिलता है। लेकिन यही काम जब किसान करता है तो उसकी मेहनत माटी मोल हो जाती है। टमाटर, प्याज के बाद लहसुन की कीमतें काफी कम गई हैं। लहसुन का भाव 15 साल के निचले स्तर पर है।
क्या आप भरोसा करेंगे, प्याज 50 पैसे किलो और लहसुन की थोक कीमतें 3 रुपए तक पहुंच गई हैं। लेकिन सच यही है इंदौर प्याज और लहसुन का गढ़ कहा जाता है। यहां प्याज जिस कीमत पर बिका है मंडी के खर्चा निकालकर उसकी कीमत 25 से 50 पैसे प्रति किलो तक पहुंच गई है। प्याज के साथ लहसुन को भी खरीदार नहीं मिल रहे हैं। ट्राली भर मंडी पहुंचने वाले किसानों को मायूसी हाथ लग रही है। ये हाल सिर्फ मध्य प्रदेश का नहीं है,उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जैसे इलाके जहां के लहसुन किसान हमेशा मुनाफे में रहते थे, वहीं भी खरीदादर खोजे नहीं मिल रहे।
"मैं एक छोटा किसान हूं, एक किलो लहसुन उगाने में 30-50 रुपए की लगात आती है, अगर मुझे दो रुपए किलो दाम मिलेगा तो मैं अपने घर का गुजारा कैसे करूंगा, बच्चों को स्कूल कैसे भेज पाऊंगा, अगली फसल कैसे बोऊंगा, "यूपी के बाराबंकी के किसान राहुल कुमार ने बताया।

ये सिर्फ राहुल कुमार अकेले की समस्या नहीं है, देश के कई राज्यों में किसानों को लहसुन माटी मोल बेचना पड़ रहा है। यूपी और मध्य प्रदेश में लहसुन का औसत थोक भाव 3 से 10 रुपए प्रति किलो यानि 300 से 1000 रुपए प्रति क्विंटल है।
लहसुन को नकदी फसल के रूप में जाना जाता है और किसानों को उम्मीद थी कि इस बार लहसुन का अच्छा दाम मिलेगा, इस बार लहसुन का रकबा भी बढ़ा है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार 2008 में जहां पूरे देश में लहसुन की खेती का क्षेत्रफल 166000 हेक्टेयर था, वहीं 2014-15 में बढ़कर 244000 हेक्टेयर हो गया, जिस कारण लहसुन का उत्पादन भी लगातार बढ़ रहा है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश के लहसुन की प्रति कुंतल औसत की कीमत 2008 में 4500 रुपए, 2017 में 6500 रुपए और मई 2018 में 1200 रुपए में आ गया।
बाराबंकी का बेलहरा कस्बा सब्जी की मंडी कहा जाता है। यहां पर कबार यानि सब्जियों की खेती प्रसिद्द है। बेलहरा के किसान संभव कुमार बताते हैं, "हमारे यहां तीन-पांच रुपए किलो बिक रहा है, जब फसल का सही दाम नहीं मिलेगा तो किसान मज़दूरी करेगा, डीज़ल-पेट्रोल 75 रुपए में बिक रहा है और हमारी फसल इतनी काम दाम में बिक रही हैं, किसान कैसे जी पाएगा।"
फसलों में लागत मूल्य न निकलने से परेशान मध्य प्रदेश के किसानों में शिवराज सरकार के खिलाफ नाराजगी है। पहले प्याज़, फिर टमाटर और अब लहसुन के चलते किसानों की हालत खराब हो गई है, पिछले 10 दिनों में 6 किसानों की मौत हो गई।
मध्य प्रदेश के आम किसान यूनियन के कोर मेंबर राम ईनानिया कहते हैं, "देश भर में यही हाल है, एक किसान ट्राली पर लादकर लहसुन ले जाता है, तीन-चार दिनों में नंबर लगता है तब किसानों को सही दाम नहीं मिलता। किसानों के पास लहसुन को रखने को ज्यादा दिन तक रखने की सुविधा नहीं, ऐसे में किसान को मजबूरन बेचना पड़ता है।"
वो आगे कहते हैं, "भावांतर के पहले रतलाम मंडी में 30-40 रुपए के भाव लहसुन बिक रहा था, भावांतर के बाद डेढ़ से दो रुपए में बिकने लगा है। चार-पांच दिनों तक किसानों को परेशान होना पड़ता है, सरकार की योजनाएं तो बहुत सी हैं, लेकिन उन पर काम नहीं हो रहा है।" किसानों को उपज का मूल्य दिलाने के लिए शिवराज सिंह सरकारन एमपी में किसानों को मंडी में कम रेट होने पर सरकार की तरफ से उसके तय मूल्य का अंतर देने की योजना 'भावांतर' शुरु कर रखी है। लेकिन किसानों का कहना है कि इसका फायदा किसान कम आढ़ती ज्यादा उठा रहे हैं।
बेलहरा, बाराबंकी के हॉर्टिकल्चर को-आपरेटिव सोसाइटी के चेयरमैन रमेश चंद्र कहते हैं, "दो साल पहले लहसुन 13000 रुपए क्विंटल में बिक रहा था, लोगों को आमदनी अच्छी हो रही थी, लेकिन इस साल रेट बहुत गिर गए हैं। सबसे अच्छे लहसुन को उगाने में 40000-50000 रुपए की लागत आती है, तो इस तरह से किसान को बहुत भारी नुकसान हो रहा है। हमने भी लहुसन लगाया था, अभी भंडारे में रखा है, जब सही दाम मिलेगा तब बेचेंगे, अक्टूबर में किसी भी हालत में इसको बेचना है।"
किसानों की सरकार से गुहार
किसानों का कहना है सरकार को मामले में दखल देना चाहिए और लहसुन का समर्थन मूल्य घोषित करना चाहिए। रमेश चंद्र मौर्य कहते हैं, सरकार समर्थन मूल्य पर लहसुन की खरीदारी करे। जो सरप्लस उत्पादन है, उसको अगर सरकार खरीद ले, तो बैलेंस जो बचेगा उसका रेट अच्छा मिल जाएगा।"

किसानी को नंबर दो बिज़नेस समझती है सरकार, हम तो मरते रहते हैं, सरकारी स्कीम आती है और चली जाती है-- फोटो- शुभम कौल




     

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