राजस्थान के कपास किसान सीधे सरकार को बेच सकेंगे अपनी उपज, विरोध में आढ़तिए

Mithilesh DharMithilesh Dhar   11 Sep 2018 11:12 AM GMT

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राजस्थान के कपास किसान सीधे सरकार को बेच सकेंगे अपनी उपज, विरोध में आढ़तिएइस चालू सत्र में कपास का निर्यात बढ़ सकता है। (फोटो- गांव कनेक्शन)

लखनऊ। राजस्थान के कपास किसानों को अब अपनी फसल बेचने के लिए आढ़तियों या बिचौलियों के फेर में नहीं फंसना होगा। कॉटन कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (सीसीआई) अब इन किसानों से एमएसपी की दर पर सीधे फसल खरीदेगा। लेकिन आढ़तिए इस फैसले के विरोध में उतर आये हैं।

राजस्थान उत्तर भारत का पहला ऐसा प्रदेश बनने जा रहा है जहां के कॉटन किसानों को एमएसपी का पैसा सीधे उनके खाते में भेजा जाएगा। सीसीआई के एक अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि राजस्थान के 12000 हजार किसान इसके लिए तैयार हैं। इस अक्टूबर से जब नयी फसल मंडियों में आने लगेगी तो हम उनसे सीधे फसल की खरीदारी करेंगे। राजस्थान सरकार ने एमएसपी के पैसे के बारे में हमसे बात भी की है। किसानों का पैसा फसल खरीदने के एक सप्ताह के अंदर दे दिया जायेगा।

ऐसी उम्मीद है कि राजस्थान के बाद पंजाब और हरियाणा में ये सुविधा लागू की जाएगी। ऐसा इसलिए किया जा रहा क्योंकि आढ़तिए और बिचौलिए किसानों का हक मार लिया करते थे। ऐसे में किसानों से सीधे फसल खरीदने पर उन्हें ज्यादा लाभ तो होगा ही साथ ही समय से पेमेंट भी मिलेगा।

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केंद्र सरकार ने कुछ महीने पहले ही कॉटन का एमएसपी दर बढ़ाया था। मीडियम स्टेपल का दाम 28 फीसदी बढ़ाकर 5150 प्रति कुंतल कर दिया तो वहीं लाँग स्टेपल की कीमत 26 फीसदी बढ़कर 5450 रुपए कर दी गयी। व्यापारियों को उम्मीद है कि इस फैसले से भारत में कॉटन की कीमतों में मजबूती मिलेगी। वहीं सीसीआई ने एक विज्ञप्ति जारी करके बताया कि कपास की कताई और भंडारण की व्यवस्था शुरू कर दी गयी है।


राजस्थान के एग्री एक्सपर्ट और व्यापारी विजय सरदाना कहते हैं "इस फैसले से निश्चित रूप से किसानों को फायदा होगा। व्यापारी भी खुश हैं। इससे हमें रेट सही मिलेगी।" उधर कपास निगम (सीसीआई) द्वारा सीधे फसल खरीदे जाने के फैसले से पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के आढ़ती नाराज हो गये हैं। आढ़तियों ने इस फैसले के विरोध में प्रदर्शन भी किया। द एसोसिएशन आढ़तिया के मुख्य सुरेंद्र मिंचनाबादी कहते हैं "सरकार के इस फैसले से आढ़तिए बर्बाद हो जाएंगे। हम इसका विरोध करेंगे।"

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सुरेंद्र आगे कहते हैं "सरकार आढ़तियों के खिलाफ हाथ धोकर पीछे पड़ी हुई है। कभी ई-नेम ट्रेडिंग के नाम पर तो कभी नरमा-कपास की सीधी फसल खरीदने के नाम पर आढ़तियों को परेशान किया जा रहा है। हम इसके खिलाफ आंदोलन करेंगे।"

कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीएआई) की रिपोर्ट के अनुसार चालू सीजन 2017-18 में कपास का उत्पादन 365 लाख गांठ होने का अनुमान है जबकि नई फसल के समय बकाया स्टॉक 36.07 लाख गांठ का बचा हुआ था। चालू सीजन में करीब 15 लाख गांठ कपास का आयात होने का अनुमान है। ऐसे में कुल उपलब्धता 416 लाख गांठ की होगी। अगस्त के आखिर तक उत्पादक राज्यों की मंडियों में 358 लाख गांठ कपास आ चुका है। जबकि कपास का आयात मई आखिर तक केवल 13.50 लाख गांठ का ही हुआ है। फसल सीजन 2016-17 में कपास का आयात 27 लाख गांठ का हुआ था, जबकि चालू फसल सीजन 2017-18 में आयात घटकर 15 लाख गांठ का ही होने का अनुमान है।

बुवाई में आयी कमी

कृषि मंत्रालय के अनुसार कपास की बुवाई चालू खरीफ सीजन में 2.39 फीसदी पिछे चल रही है। अभी तक देशभर में कपास की बुवाई केवल 118.10 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक इसकी बुवाई 120.98 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी।

सीएआई अध्यक्ष अतुल गणत्र ने बताया "आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब और कर्नाटक जैसे राज्यों में कपास के रकबे में कमी आयी है, जहां किसानों ने सोयाबीन जैसी आकर्षक फसलों की ओर रुख किया है। वर्ष 2017-18 में 3,050 रुपए प्रति कुंतल के न्यूनतम समर्थन मूल्य के मुकाबले वर्ष 2018-19 में इसे बढ़ाकर 3,399 रुपए प्रति कुंतल करने के बाद किसानों को सोयाबीन की खेती ज्यादा भा रही है।"

गणत्र आगे बातते हैं "महाराष्ट्र में कपास उत्पादक 21 हजार गांवों में से सात हजार गांवों में कपास की फसल पिंक बॉलवर्म से संक्रमित पायी गयी है। इस वजह से भी कपास के उत्पादन पर असर पड़ने की आशंका है।"


   

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