अगस्ता वेस्टलैंड मामले में लेटलतीफी क्यों?

रवीश कुमाररवीश कुमार   4 May 2016 5:30 AM GMT

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कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कह तो दिया कि अगस्ता वेस्टलैंड मामले में मोदी सरकार दो साल से क्या कर रही थी लेकिन इससे पहले उन्हें एके एंटनी से पूछना चाहिए था कि आपने दो साल में जांच पूरी क्यों नहीं की। फरवरी 2012 से इस मामले में जांच के आदेश हैं। फरवरी 2013 में सीबीआई को मामला सौंप दिया गया। एके एंटनी ने माना था कि रिश्वत का लेन-देन हुआ है फिर वो धीरे क्यों चलते रहे। उन्हीं का भाषण है इटली की न्यायपालिका वहां की सरकार से स्वतंत्र है। क्या अब वे इटली की अदालत के इस फ़ैसले को स्वीकार करते हैं, काफी स्वतंत्रता से फैसला आया है तो कोई न कोई बात तो है। हमारी पार्टी के नेताओं के नाम हैं तो नैतिक ज़िम्मेदारी बनती है।

क्या इतना पैसा बिना राजनीतिक भागीदारी के ही इधर से उधर हो गया? समस्या यह है एंटनी जैसे चूके हुए नेताओं के भरोसे कांग्रेस तब भी थी और आज भी है। एक ही बात बड़े ज़ोर-शोर से कहा कि हमारे समय में अगस्ता वेस्टलैंड को ब्लैक लिस्ट कर दिया गया था, मोदी सरकार ने प्रतिबंध हटा लिया।

क्या कांग्रेस नेता वाकई दम-खम के साथ इस मुद्दे पर आक्रामक हैं या ख़ुद को बचाते हुए आक्रामक होने की औपचारिकता निभा रहे हैं। 26 मई के आस-पास जब मोदी सरकार की समीक्षा हो रही होगी तब विपक्ष के रूप में कांग्रेस की समीक्षा होनी चाहिए। कांग्रेस के तमाम नेता अपनी ख़ाल बचाने में लगे हैं। राहुल गांधी को भी अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को जवाब देना होगा कि राज्यसभा में ऐसे नेता क्यों हैं जिनके बोलने में कोई ईमानदारी नहीं है। सिर्फ संख्या ही दिखती है, असर नहीं दिखता है। मुझे ठीक से याद है बीजेपी के समय प्रकाश जावड़ेकर और अन्य बीजेपी सांसद सूचना के अधिकार से जानकारी जुटा रहे थे। कोर्ट जा रहे थे। लड़ रहे थे। दो साल हो गए कांग्रेस का कोई बड़ा नेता अपनी पहल पर इस तरह की जोखिम लेता हुआ नज़र नहीं आता है।

एके एंटनी ने कहा कि उनके समय में अगस्ता वेस्टलैंड और फिनमेकानिका को ब्लैक लिस्ट किया गया था। जब पकड़े गए तो कहने लगे कि प्रक्रिया शुरू की गई थी। विपक्ष में भी लगता है वैसे ही सोए हुए हैं जैसे सरकार में सोते रहे। इटली की कोर्ट ने कहा रिश्वत दी गई है। भारत में ख़ुद एंटनी ने कहा था कि रिश्वत दी गई है। भारत में किसे दी गई है दोनों जगहों से पता नहीं चला है। जैन हवाला डायरी में नाम आने के बाद भी आडवाणी सहित कई नेता छूट गए।

बीजेपी को पता है कि फैसले में लिखा सिन्योरा गांधी भले ही सबूतों पर खरा न उतरे मगर राजनीतिक लाभ तो उठाया ही जा सकता है। फ़ैसले की कापी का अनुवाद किसी के पास नहीं है मगर राजनीति शुरू हो चुकी है। रक्षा मंत्रालय और सीबीआई दो-दो एजेंसियां अनुवाद कर रही हैं। कांग्रेस नेता इन दिनों छत्तीसगढ़ को लेकर सवाल कर रहे हैं सीएजी ने लिखा है कि राज्य सरकार ने अगस्ता से हेलिकॉप्टर ज्यादा दामों पर ख़रीदा और इसके लिए दस्तावेज़ों में हेरफेर किए गए। इतने दिनों से कांग्रेस क्यों चुप थी? क्या इसलिए कि हम चुप रहेंगे तो बीजेपी भी चुप रहेगी? बीजेपी चुप तो हो ही गई थी लेकिन इटली की अदालत के फैसले और भारतीय मीडिया में ख़बरें छपने के बाद क्या चुप रह सकती थी?

कांग्रेस के पास भी आक्रामक होने का मौका था जब 16 फरवरी 2016 के टेलीग्राफ में ख़बर छपी कि न्यूयार्क में भारत और इटली के प्रधानमंत्रियों ने अलग से एक मुलाकात की है। बिचौलिया मिशेल ने अंतर्राष्ट्रीय ट्रिब्यूनल में अर्ज़ी दी कि दोनों के बीच समझौता हुआ है कि अगर इटली गांधी परिवार के ख़िलाफ़ सबूत दे दे तो भारत के प्रधानमंत्री, इटली के नौसैनिकों की रिहाई में मदद कर सकते हैं। कमाल है मिशेल यह बात जान जाता है कि भारत और इटली के प्रधानमंत्री क्या बात करते हैं। इसे सीबीआई से लेकर इटली की अदालत तक खोज रही है और यह ऐसी बातें अंतर्राष्ट्रीय ट्रिब्यूनल को बता रहा है जिससे इटली के ही दो नौसैनिकों का केस ख़राब हो सकता है। भारत सरकार ने ऐसी किसी भी मुलाकात का सिरे से खंडन कर दिया है।

सीबीआई अभी इसके ख़िलाफ़ नोटिस ही भेज रही है। आज तक भारत नहीं ला सकी। अब यही मिशेल कह रहा है सोनिया गांधी को न जानता है न कभी उनसे मिला है। क्या बीजेपी मिशेल की इस बात पर यकीन करती है, करती है तो क्या मिशेल की मुलाकात वाली बात पर भी यकीन करेगी! इटली की कोर्ट के फैसले में सिन्योरा गांधी का ज़िक्र आया है मगर कॉपी पढ़ने के बाद ही स्पष्ट हो सकेगा, सोनिया गांधी की भूमिका है या नहीं और सिन्योरा गांधी कौन हैं।

इटली के नौसैनिकों को लेकर बीजेपी विपक्ष के दिनों में कांग्रेस को खूब घेरती थी, वो यह संदेह पैदा करने का प्रयास करती थी कि सोनिया गांधी की निष्ठा भारत से ज़्यादा इटली के प्रति है इसलिए वे कातिल नौसैनिकों की मदद कर रही हैं। एक राजनीतिक दल के नाते बीजेपी अपना मौका क्यों छोड़ेगी। कांग्रेसी ख़ुद को बचाने के लिए हर मौक़ा छोड़ देते हैं। सोनिया गांधी भले ही दावा करें कि उनके ख़िलाफ़ कोई सबूत नहीं है लेकिन क्या वे यह भी दावा कर रही हैं कि किसी भी कांग्रेसी नेता या मंत्री के ख़िलाफ़ कोई सबूत नहीं है? अगस्ता मामले में इटली की अदालत का फैसला है, रिश्वत की बात साबित हुई है तो बीजेपी को पूरा हक है वो यह सब सवाल करे। भारत में रिश्वत किसने ली यह पता करने की जवाबदेही अब बीजेपी की है।

सरकार में वो है कांग्रेस नहीं। 3 अप्रैल 2016 को जब फाइनेंशियल एक्सप्रेस ने छापा कि अगस्ता वेस्टलैंड से जुड़ी फिनमेकानिका को मेक इन इंडिया के तहत स्थानीय कंपनी से साझीदारी करने की शर्त पर भारत में कारोबार करने की अनुमति दे दी है तब कांग्रेस के नेताओं ने इस कदर हंगामा क्यों नहीं किया। सवाल मोदी सरकार से भी बनते हैं। रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने एंटनी को चुप तो करा दिया कि अगस्ता को ब्लैक लिस्ट यूपीए में नहीं एनडीए ने किया है। मगर जब यह सवाल पूछा जाने लगा है कि अगस्ता को मेक इन इंडिया में क्यों बुलाया गया तो उन्हें फिर से सारे दस्तावेज़ लेकर सामने आना चाहिए।

कुछ दिन पहले इंडियन एक्सप्रेस ने ख़बर छापी है अगस्ता का टाटा ग्रुप के साथ साझा उपक्रम है। यह कैसे हो गया जब एंटनी के समय में 1 जनवरी 2014 को सारे करार ख़त्म कर दिए गए थे। क्या वे सारे करार अब भी ख़त्म हैं या किसी न किसी रूप में बहाल हो गए हैं? क्या यह सही नहीं कि ब्लैक लिस्ट करने के बाद भी अगस्ता या फिनमेकानिका को मेक इन इंडिया के तहत भारत बुलाया गया। क्या यह फ़ैसला सिर्फ रक्षाम‍ंत्री का था या पीएमओ भी शामिल था? मनोहर पर्रिकर को बताना चाहिए कि जिस कंपनी का सीबीआई की एफआईआर में नाम है उसका भारत में किसी तरह का कोई कारोबार नहीं चल रहा है।

एंटनी ने अपने समय में अगस्ता के तीन हेलिकाप्टर ज़ब्त किए थे। ईमानदारी की शर्त के उल्लंघन के आरोप में 1500 करोड़ से अधिक पैसे वसूल लिए थे। यूपीए और एनडीए के रक्षा मंत्रियों ने इस मामले में प्रशासनिक कदम तो उठाए हैं मगर जांच को न्यायिक अंजाम तक नहीं पहुंचा सके। एक फेल हो गए और दूसरे के पास अभी समय है। बीजेपी सिर्फ इटली की अदालत के फैसले को ही अंतिम नहीं मान सकती। वहां न भारत का कोई पक्ष रखा गया है न जिनका नाम आया है उनकी कोई गवाही हुई है। इसलिए यह मामला अब भारत की अदालत से ही साबित होगा। यह मामला कांग्रेस और बीजेपी दोनों के लिए इम्तिहान बन गया है। भ्रष्टाचार के मामले में नाम के साथ नतीजा भी महत्वपूर्ण है। कांग्रेस-वायुसेना के अधिकारियों के साथ-साथ मीडिया का भी घोटाले में ज़िक्र आ रहा है। सबके नाम सामने आने चाहिए। देश के वायुसेना प्रमुख का नाम आना मनोबल तोड़ने वाली बात है। पूर्व एयर मार्शल एसपी त्यागी से मामले की पूछताछ चल रही है। 

सोनिया गांधी के साथ-साथ बीजेपी को ऐसे लोगों के बारे में भी बात करनी चाहिए। बात-बात में शहीदों के अपमान की बात करने वाले लोग त्यागी साहब को लेकर चुप क्यों हैं। देशहित में ज़रूरी है इस मामले में दूध का दूध पानी का पानी हो। मगर पहले फैसला पढ़ लिया जाए। वर्ना इस वक्त भी वही बातें हो रही हैं जो 2012 में हुई थीं। 2013 में हुई थी। 2014 औऱ 2015 में नहीं हुई थी। 2016 में फिर से हो रही है। 

(लेखक एनडीटीवी में सीनियर एक्जीक्यूटिव एडिटर हैं। यह उनके निजी विचार हैं।)

 

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