ऐसी पढ़ाई का क्या करें जो आगे किसी काम न आए
श्रृंखला पाण्डेय 14 March 2016 5:30 AM GMT

श्रृंखला पाण्डेय
लखनऊ। एमए करने के बाद भी राजीव कुमार (27 वर्ष) ने लगातार तीन वर्षों तक नौकरी की तलाश की लेकिन उन्हें कोई भी काम नहीं मिला और हार मानकर अब वो खेती में पिता का सहयोग कर रहे हैं।
इतिहास से परास्नातक राजीव बताते हैं, ‘’पढ़ाई लिखाई काम नहीं आई जो नौकरी मिली उसमें हम फिट नहीं बैठे। रुपये पैसे लगाकर पढ़ाई की और हाथ कुछ न आया। आखिर वही खेती बाड़ी कर रहे हैं अब।"
राजीव जैसे कई युवा आज पढ़े लिखे होने के बाद भी बेरोजगार हैं क्योंकि उन्हें रोजगारपरक शिक्षा नहीं मिली। शुरू से रट्टामार पढ़ाई करने वाले ये छात्र परीक्षाएं तो उत्तीर्ण करते गए लेकिन उन्हें कहीं नौकरी नहीं मिल पा रही।
छात्रों के पाठ्यक्रम में काफी समय से बदलाव नहीं हुआ पेपर पैटर्न थोड़ा बहुत बदला। हिंदी के विषय का उदाहरण देते हुए लखनऊ के इरम इंटर कॉलेज के हिंदी के अध्यापक पंकज कुमार बताते हैं, ‘’हिंदी के छात्रों को हम कक्षा नौ से ही लेखकों का जीवन परिचय, कब जन्म हुआ कब मृत्यु हुई ये सब पढ़ाते हैं। कहीं न कहीं ये सब आगे प्रतियोगी परीक्षाओं में काम आते हैं लेकिन उसके साथ भाषा और व्याकरण पर जितना ध्यान देना चाहिए उतना पाठ्यक्रम में नहीं होता।"
हाईस्कूल की परीक्षा दे चुकी साक्षी शुक्ला (16) बताती हैं, ‘’सबसे बेकार तो जीवनी लिखना होता है वो याद नहीं होता हम किसी तरह रटकर या उल्टा सीधा बनाकर लिखते हैं। इसके बजाय तो व्याकरण अच्छी लगती है समझना होता है रटना नहीं उसमें।"
ज्यादातर छात्र और अध्यापक स्वयं इन पाठ्यक्रमों से परेशान हैं जिनका उनके जीवन में आगे चलकर कोई महत्व नहीं रह जाता। ग्रामीण क्षेत्रों में अगर अंग्रेजी विषय की बात करें तो भी यही हाल है। कक्षा नौ के छात्र विवेक कुमार (14) भले ही अंग्रेजी कक्षा एक से पढ़ रहे हों लेकिन उन्हें अभी भी कई सारे सरल शब्दों की स्पेलिंग लिखना और उसका उच्चारण करना नहीं आता है लेकिन उनके किताबों में बड़े बड़े लेखकों के बारे में उन्हें किसी तरह रटना पड़ता है।
विवेक बताता है, ‘’हमें बिल्कुल अंग्रेजी पढ़नी नहीं आती न कभी ये शब्दों को बोलना सिखाया गया न लिखना। अब ऐसे ऐसे लेखक हैं जिनका नाम हम बोल नहीं पाते इतने कठिन होते हैं लेकिन किसी तरह पास हो जाते हैं। इसी तरह विज्ञान में समझाया नहीं जाता प्रयोग करके नहीं दिखाया जाता बस किसी तरह बिना समझें हम रटकर चलाते हैं।" गोंडा के रोजवुड इंटर कॉलेज में अंग्रेजी अध्यापक राकेश कुमार पांडेय बताते हैं, "पाठ्यक्रम में व्याकरण पर ज्यादा जोर देना चाहिए, क्योंकि आगे चलकर वही काम आता है। सेक्सपीयर और राबर्ट ब्राउनी जैसे दिग्गज लेखकों की लंबी जीवनी और उनकी कविताओं से छात्रों को कोई फायदा नहीं होता है, लेकिन अब पाठ्यक्रम में है तो हमें पढ़ाना पड़ता है, जबकि आज के समय को देखते हुए इंग्लिश स्पीकिंग को पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहिए।"
इस बारे में लखनऊ विश्वविद्यालय की शिक्षाविद् डॉ शिवबाला सिंह बताती हैं, ‘’पहली बात तो पाठ्यक्रम में बदलाव काफी समय से नहीं किया गया है, दूसरा हम विषयों को प्रैक्टिली न लेकर उन्हें रटने की आदत शुरू से बच्चों में डाल देते हैं जो आगे चलकर किसी काम का नहीं होता। कई ऐसे विषय और टॉपिक्स हैं जिनका कोई भी इस्तेमाल आगे चलकर नहीं होता।" वो आगे बताती हैं, ‘’गणित विषय में ही दुनिया भर के सूत्र मिलेगें लेकिन उनका इस्तेमाल कुछ नहीं है इससे अच्छे बच्चों में कौशन और रोजगारपरक पाठ्यक्रम को शामिल किया जाए, जिससे छात्रों का विकास हो सके। यही कारण हैं कि बच्चे आगे जाकर नौकरी के लिए भटकते हैं और उन्हें अपना स्टीम भी कई बार छोडऩा पड़ता है।"
More Stories