अक्टूबर आखिरी तक गन्ना क्षेत्र आरक्षण पर होगा फैसला

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अक्टूबर आखिरी तक गन्ना क्षेत्र आरक्षण पर होगा फैसला

लखनऊ। उत्तर प्रदेश के गन्ना आयुक्त अजय कुमार सिंह ने बताया है कि अक्टूबर महीने के आखिरी तक गन्ना क्षेत्र आरक्षण प्रक्रिया पर फैसला हो सकता है। 

"अभी हमने जि़लों को सूचना भेज रखी है, उनकी रिपोर्ट आ जाए, आवश्यकता निर्धारण की कार्यवाही पूरी करने में लगे हैं। अभी एक बार मिलों की मांग देख लें कितनी है, उसके बाद आशा है कि इस महीने के आखिरी तक हम किसी नतीजे पर पहुंच जाएंगे", सिंह ने बताया।

उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा गन्ना उत्पादक राज्य है, पिछले वर्ष 2014-15 में प्रदेश में लगभग 70 लाख मीट्रिक टन उत्पादन हुआ था। गन्ना क्षेत्र आरक्षण प्रक्रिया किसानों के लिए इसलिए महत्व रखती है क्योंकि इस प्रक्रिया के बाद यह तय होता है कि किस किसान का गन्ना, किस मिल को जाएगा।

प्रक्रिया की कार्यवाही शुरू होने से पहले ही उत्तर प्रदेश की पांच निजी मिलों ने लगातार हो रहे नुकसान का हवाला देते हुए सरकार को बंदी की नोटिस जारी कर दी। नोटिस देने वाली मिलों में सहारनपुर की गागनौली, शहजहांपुर की रोज़ा, बस्ती की वॉल्टरगंज, संतकबीर नगतर की खलीलाबाद व देवरिया की पर्तापुर चीनी मिलें शामिल हैं। इन मिलों की सम्मिलित प्रति दिन पेराई क्षमता 28,200 टन है।

''हमें जब सूचना प्राप्त हुई तो हमने (मिलों के प्रतिनिधियों के साथ) बैठक भी की थी, हमने तो उनसे कहा है कि आप चलाईए, बंद न करिए मिल। जहां तक गांगनौली में तो रिपेयरिंग का काम भी शुरू हो गया है" गन्ना आयुक्त ने बताया।

उत्तर प्रदेश में लगभग 95 निजी व 20 सहकारी चीनी मिलें कार्यरत हैं, जिनकी एक सत्र की कुल पेराई क्षमता 700 लाख टन से भी ज्यादा है।

गन्ना आयुुक्त के मुताबिक इस सत्र में विभाग को उत्पादन पिछले वर्ष के मुकाबले बढऩे की आशा है। ''इस बार प्रति हेक्टेयर गन्ना उत्पादन व चीनी उत्पादन पिछले साल से थोड़ी बढिय़ा होने की उम्मीद है। पिछले साल 71.3 लाख मीट्रिक टन का उत्पादन था हमारा, इस बार उम्मीद है कि ये 73 लाख मीट्रिक टन तक बढ़ सकता है," उन्होंने कहा।

उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों पर अभी भी तीन हज़ार करोड़ रुपए से ज्यादा का बकाया है। इस विषय पर आयुक्त ने कहा, '' कुल 20,640 करोड़ रुपए में से अभी 3600 करोड़ रुपए के आस-पास लगभग 18 प्रतिशत किसान का पैसा बकाया है। इसमें से 30-35 करोड़ रुपए सरकारी मिलों का भी है, सरकारी मिलों का बकाया अगले 1-2 हफ्तों में निपट जाएगा।"

हाल ही में बाज़ार मेें सुधरे चीनी मूल्यों का जि़क्र करते हुए गन्ना आयुक्त ने आशा जताई कि इससे मिलों को कर्ज चुकाने में सहूलियत मिलेगी। ''अभी दाम कुछ सुधरे हैं, 25 रुपए प्रति किलो के आस-पास आ गए हैं, कुछ मिलें जिनकी चीनी की क्वालिटी अच्छी है उनका दाम 26 तक भी पहुंंच जा रहा है। हम आशा कर रहे हैं कि यह चलन अस्थायी न हो, रेट और सुधरें।" उन्होंने आगे कहा, ''बैंक लोन जो मिल सकते थे ले लिए हैं मिलो ने, राज्य सरकार को जो सहायता देनी थी, दी जा चुकी है, तो अब मिलें अपनी चीनी बेचकर ही किसानों का कजऱ् चुका रही हैं, अगर रेट ऐसे ही रहे, तो मिलेंं जल्दी अपना कजऱ् चुका पाएंगी।"

हर मिल चीनी उत्पादन का 15 प्रतिशत करेगी निर्यात

गन्ना आयुक्त अजय कुमार सिंह ने देश में गन्ने के क्षेत्र को बुरी स्थिति से उबारने के लिए सरकार द्वारा उठाए जा रहे ठोस कदमों की जानकारी देते हुए बताया :

- केंद्र सरकार ने अभी एक अक्टूबर से ही सभी चीनी मिलों को अपने तीस साल के औसत उत्पादन का 15 प्रतिशत हिस्सा निर्यात करने के निर्देश दिए हैं। इससे देश में 40 लाख मीट्रिक टन का जो सरप्लस है, उससे निजात मिलेगी, इससे बाज़ार में एक सेंटिमेंट तैयार होगा, जिसका असर दिखने लगा है। इसी सरप्लस की वजह से चीनी उद्योग की स्थिति बिगड़ती है।

- दूसरा केंद्र सरकार ने एथेनॉल की पेट्रोल में ब्लैंडिंग की सीमा जो अभी तक पांच प्रतिशत थी, बढ़ाकर 10 प्रतिशत कर दिया है, यानी एथेनॉल की बाजार में डिमांड दुगनी हो गई। एथेनॉल पर भारत सरकार ने पांच प्रतिशत का टैक्स भी कम किया है, जिससे एथेनॉल का दाम 49 रुपए प्रति लीटर हो गया है, जो कि अच्छा रेट है। लेकिन एथेनॉल को अब जब सरकार प्रोमोट कर रही है तो मिलों को इसका उत्पादन बढ़ाने के लिए अपनी यूनिटों में जो ज़रूरी विस्तार करने हैं उनमें थोड़ा समय ज़रूर लगेगा।

 

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