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कभी खेतों में बाड़ के रूप में इस्तेमाल होने वाला पौधा, आज लद्दाख के किसानों की कमाई करा रहा है

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ट्रांस हिमालय और लेह लद्दाख की बर्फीली पहाड़ियों पर एक जंगली पौधा पाया जाता है; जिसे उत्तराखंड में अमेस और हिमाचल में छरमा के नाम से जाना जाता है, ये पौधा है सी बकथॉर्न। आजकल यह पौधा यहाँ के लोगों की कमाई करा रहा है।

मानवेंद्र सिंह

यहाँ के लोग इस पौधे को खेतों में बाड़ के तौर पर इस्तेमाल करते थे, जिससे खेतों को जानवरों से बचा सकें। बाजार में इसकी कीमत न के बराबर हुआ करती थी। ऐसा शायद इस वजह से भी था क्योंकि लोग इसकी ताक़त से अनजान थे। लेकिन आज सी बकथॉर्न से कई लोगों को बेहतर रोजगार दे रहा है।  

कभी बाड़ के तौर पर इस्तेमाल होने वाला ये पौधा आज लेह और लद्दाख के किसानों की आय का मुख्या साधन बन गया है। डिफेंस इंस्टीट्यूट ऑफ हाई एल्टीट्यूड रिसर्च ने पहली बार सी बकथॉर्न का व्यवसायीकरण किया और इसको प्रोसेस करके इसका जूस बना कर बाजार में उतारा। आज इस पौधे पर 120 से ज़्यादा वैज्ञानिक रिसर्च पड़ी हुई हैं।

सी बकथॉर्न की खूबियों से अभी भी कई लोग अनजान हैं और इसके पोषक तत्वों को पूरे देश तक पहुँचाने का ज़िम्मा उठाया है, विंज़रा (winzera) नाम के स्टार्टअप ने जो किसानों से अच्छे दाम पर सी बकथॉर्न खरीदकर उसके बाद उसको प्रोसेस करके लोगो तक पहुँचा रहे है। विंज़रा ने सी बकथॉर्न के कई प्रोडक्ट्स बनाए हैं जैसे जूस, चाय, जैम और इसके अलावा सी बकथॉर्न को अन्य चीज़ों के साथ मिला कर कई तरह के सेहतमंद उत्पाद बना कर मार्केट में उतारे हैं। 2021 में शुरू हुआ ये स्टार्टअप अभी तक लाखों ग्राहक बना पाया है साथ ही आपने ग्राहकों का भरोसा भी जीत पाया हैं।

विंज़रा में काम करने वाले योगेश श्रीवास्तव गाँव कनेक्शन से बताते हैं, “2021 में हमने एक स्टार्टअप शुरू किया था, जोकि विंज़रा  के नाम से हमने स्टार्ट किया। मोदी जी का वीडियो हमको 2019 में मिला था जोकि सी बकथॉर्न्स नाम के प्लांट पर था। जब हम लोगों ने काम शुरू किया तो हमें एक चीज़ समझ में आयी कि पोषक तत्वों की कमी को दूर करने के लिए जो सबसे अच्छा तरीका है वो सी बकथॉर्न हो सकता हैं। हमारा स्टार्टअप पूरी तरह से सी बकथॉर्न पर आधारित प्रोडक्ट बनाता हैं।”

वो आगे कहते हैं, “हमारी प्रोसेसिंग यूनिट लद्दाख की नुब्रा वैली में है जहाँ पर हम सी बकथॉर्न किसानों से खरीदते हैं। उसको प्रोसेस करके उसकी पैकेजिंग करते हैं। सी बकथॉर्न जूस के फायदों की बात करें तो इसके अंदर 190 से ज़्यादा बॉयोएक्टिव न्यूट्रिशिन पाए जाते है। इसके अंदर हाई अमाउंट में ओमेगा 3, 6 ,7 और 9 पाया जाता है। ओमेगा 3, 6, 7 और 9  आपके दिल के लिए बहुत ज़्यादा फायदेमंद होता है। आज की तारीख़ में लोगो के अंदर दिल की बीमारियाँ बढ़ गयी हैं।”

डिफेन्स  लाइफ साइंस जर्नल  2017 के अनुसार सी बकथॉर्न में अधिक मात्रा में  विटामिन C  (275  mg/100g),  विटामिन  A  (432.4  IU/100g),  विटामिन   E  (3.54 mg/100g), राइबोफ्लेविन  (1.45 mg/100g), नियासिन  (68.4 mg/100g), पैंटोथेनिक  एसिड  (0.85 mcg/100g), विटामिन  B-6 (1.12 mg/100g), and  विटामिन   B-2  (5.4  mcg/100g)  पोटैशियम   (647.2  mg/l), कैल्शियम  (176.6 mg/l), आयरन  (30.9 mg/l), मैग्नीशियम  (22.5 mg/l), फ़ास्फ़रोस  (84.2 mg/l), सोडियम  (414.2 mg/l), जिंक  (1.4 mg/l), कॉपर   (0.7  mg/l),  मैंगनीज   (1.06  mg/l)  and  सेलेनियम   (0.53 mg/l)18 पाया जाता है।

कभी खेतों में बाड़ की तरह इस्तेमाल होने वाले इस पौधे का फल आज 300 रुपए किलो बिक रहा है और लेह लद्दाख के किसानों की आय का मुख्य जरिया है। वैसे तो सी बकथॉर्न ट्रांस हिमालय के क्षेत्र में कई जगह मिलता है, लेकिन लद्दाख में पाए जाने वाला सी बकथॉर्न सबसे अच्छा माना जाता है।

 योगेश इस बारे में गांव कनेक्शन से बताते हैं, “सी बकथॉर्न जितना भी हिमालय का क्षेत्र है वहाँ पाया जाता हैं साथ ही में लेह लद्दाख में भी ये पाया जाता है। लेकिन जो सी बकथॉर्न का अच्छा वैल्यू माना गया है वो लेह लद्दाख के सी बकथॉर्न का माना गया है। लेह लद्दाख में जब आप बहुत ऊपर जाएँगे जहाँ का तापमान बहुत कम होता है। वहाँ पर आपको ये पौधा मिलेगा। इस पौधे की कोई भी खेती नहीं होती ये जंगली तरीके से होता है। अभी भारत में 7 प्रतिशत तक सी बकथॉर्न का इस्तेमाल होता है।”

वो आगे कहते हैं, “1994 से इस पौधे पर रिसर्च होना शुरू हुई, डॉ भ्रम सिंह ने इस पर गहन अध्यन किया और आज इस पौधे पर 120 से ज़्यादा वैज्ञानिक रिसर्च पड़ी हुई हैं। तो अगर आपको अच्छा सी बकथॉर्न्स चाहिए तो आपको लेह लद्दाख जाना पड़ेगा। इसकी खेती और कल्टीवेशन पर रिसर्च जारी हैं और वैज्ञानिक इस पर काम कर रहे हैं और सरकार भी इस पर ध्यान दे रही हैं।”

करीब तीन महीने पहले ही लद्दाक के सी बकथॉर्न को सरकार द्वारा जीआई टैग भी दिया गया हैं। विंज़रा जैसे स्टार्टटप सी बकथॉर्न को देश के कोने-कोने में पहुँचा कर न सिर्फ लोगों की सेहत का ख्याल रख रहे हैं, बल्कि उनके इस प्रयास से लेह लद्दाख के किसानों को एक नयी उम्मीद मिली है और उनकी मेहनत को विंज़रा के माध्यम से एक पहचान मिली है।

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