दवाओं के सही इस्तेमाल से बढ़ा सकते हैं मछली का उत्पादन

Update: 2019-08-16 05:42 GMT

लखनऊ। मछली पालन व्यवसाय में मुनाफा होने के चलते कई युवा और किसान इस व्यवसाय को अपना रहे है लेकिन बाजारों में मिलने वाले दवाएं और रासायनों का उपयोग किस तरह करना होता है यह उनको पता नहीं होता है। अगर तालाब में सही दवाओं और रसायनों का प्रयोग नहीं किया जाए तो मछली पालकों को काफी नुकसान होता है।

ऐसे में मछली पालकों को दवाओं और रसायनों का प्रयोग कितनी मात्रा में किया जाना चाहिए यह बहुत जरुरी है। 

दवायें और रसायनों का विवरण और उनको प्रयोग करने की विधि:

फिशग्रोथ यह सभी प्रकार के विटामिन, खनिज, मिनरल, ईस्ट, लीवर एक्सट्रेक्ट, फीडप्रोबायोटिक एलेक्ट्रोलाइट, स्पाइरुलिना और वृद्वि और भार बढ़ाने के लिए सभी जरुरी तत्व मौजूद रहते है जिसको चारे में मिला कर देने से मछलियों का स्वास्थ्य ठीक रहता है, पाचन क्षमता बढ़ती है, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है और मृत्युदर कम हो जाती है । इसके रोजाना उपयोग से मछलियों में वजन जल्दी बढ़ता है।

उपयोग विधि: एक किलोग्राम प्रति टन की दर से फीड-बाइंडर के साथ चारे में मिला कर रोजाना देना चाहिए।

ऑक्सीटैब/ऑक्सीमैक्स: पानी में ऑक्सीजन की कमी मछलियों के मरने का मुख्य कारण होता है। बरसात के मौसम में बदली, कोहरा और तलहटी में गैस के कारण या किसी और कारण से पानी में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। ऐसे में ऑक्सीटैब/ऑक्सीमैक्स इसमें तुरंत असर करता है इसके प्रयोग से पानी की ऑक्सीजन की कमी तुरंत दूर हो जाती है इसके साथ ही सतह पर और किनारे आई हुई मछलियां नीचे चली जाती है। तालाब में मछली के बीज डालने से पहले ऑक्सीटैब/ऑक्सीमैक्स के प्रयोग से मछली के बीज की मृत्युदर कम हो जाती है।

उपयोग की विधि: 500 ग्राम ऑक्सीमैक्स सूखी बालू को मिलाकर अथवा 250 ग्राम ऑक्सीटैब की गोलियां प्रति एकड़ की दर से तालाब में छिड़काव करें। आपातकाल की दशा में मात्रा दोगुनी कर दें। किसी मत्स्य विशेषज्ञ से परामर्श लें। इसके लंबे उपयोग से कोई दुष्प्रभाव नहीं होता है।

ऑक्सी-जी: यह बहुत तीव्रता से ऑक्सीजन छोड़ने वाला उत्पाद है जिसके प्रयोग से ऑक्सीजन की कमी तु्रंत पूरी हो जाती है।


उपयोग विधि: 500 ग्राम प्रति एकड़(सामान्य परिस्थिति में) अथवा एक कि.ग्रा. प्रति एकड़ (आपात स्थिति में) तालाब में छिड़काव करें।

प्रोमैक्स: मछलियों में कई प्रकार के रोग तैसे कैंसर, पूंछ के हिस्से में सड़न, शरीर पर रुई जमना इत्यादि रोग लगते रहते है जिनके कारण बड़ी संख्या में मछलियों की मौत होने लगती है। प्रोमैक्स के उपयोग के लगभग सभी प्रकार के बैक्टीरियल, फंगस, वाइरस, और प्रोटाजोआ जनित रोगों के लिए यह जल्दी असरदार है।

दवाओं के सही इस्तेमाल से बढ़ा सकते हैं मछली का उत्पादन

उपयोग की विधि: एक लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से पानी अथवा बालू मे मिलाकर तालाब में छिड़काव करें अथवा बालू में मिलाकर तालाब में छिड़काव करें और जरुरत पड़ने पर 21 दिनों के बाद उसका प्रयोग फिर करें।

फिशलिव: फिशलिव में पोषक तत्व और अमीनो एसिड की पूरी मात्रा होती है जिसके उपयोग से शरीर के प्रोटीन उत्पादन में सहायता मिलती है और यह एक लीवर उत्प्रेरक भी है। फिशलिव को चारे में मिला कर देने से मछलियों का लीवर ठीक रहता है और उनकी ग्रोथ भी बहुत तेजी से होती है।

उपयोग की विधि: एक किलोग्राम फिशलिव प्रति 100 कि.ग्रा. चारे में मिला कर दें।

बायोरिच: यह एक असरदार जल और मृदा प्रोबायोटिक है। तालाब में समय के साथ गोबर, मृत प्लेंकटान, बचा हुआ चारा और मरी मछलियां तलहटी में जमते रहते हैं और इनके सड़ने से हानिकारक गैस जैसे अमोनिया, हाईड्रोजन सल्फाइड, मीथेन आदि बनने लगते हैं। बायोरिच में मौजूद 18 प्रकार के मित्र बैक्टीरिया तलहटी में मौजूद सभी सड़ने वाले आर्गेनिक पदार्थों को खाद में बदल देते हैं और गैस को सोख लेते हैं एवं पानी की बदबू को दूर करके मछली और झींगे को उपयुक्त वातावरण देते है।

उपयोग की विधि: 100 लीटर पानी में 3 किलो गुड या शीरा में बायोरिच घोलकर 12 घंटे रख दें उसके बाद उचित मात्रा में पानी मिलाकर तालाब में छिड़काव करें। इसका उपयोग धूप में न करें और छिड़काव करने के बाद 3 दिनों तक शिकार न करें और किसी भी दवा का प्रयोग न करें।

रिचलाईट: मछलियों की वृद्वि के लिए तालाब के पानी और तलहटी का साफ रहना बहुत जरुरी होता है। समय के साथ तलहटी में सड़ने योग्य वस्तुओं को जमाव होने से पानी में कई विषैली गैस बढ़ने लगती है जिससे पानी में ऑक्सीजन में कमी होने लगती है और पानी के पी-एच पर भी प्रभाव पड़ता है जिससे मछलियों के लिए प्राकृतिक भोजन की कमी हो जाती है। रिचलाईट रासायनिक क्रियाओं के द्वारा विषैली गैसों को बांध लेता है और यह पानी के पी-एच को भी ठीक करता है, जिससे मछलियों के लिए प्राकृतिक भोजन बना रहता है। यह पानी में ऑक्सीजन की कमी को भी दूर करता है।

उपयोग की विधि: 10-12 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से पानी में घोलकर छिड़काव करें। समस्या अधिक होने पर नए तालाब के निर्माण में 50 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से उपयोग करें या मत्स्य विशेषज्ञ से परामर्श लें।

फिशकेयर: यह एक बहुउपयोगी उत्पाद है और यह शैवाल एवं फंगस जनित रोगों में अत्यंत असर कारक है। शैवाल या फंगस के कारण तालाब का पानी गाढ़ा हो जाता है जिसके कारण पानी में अनेक प्रकार के बैक्टीरिया उत्पन्न हो जाते हैं। फिशकेयर में मौजूद फार्मेलडीहाइड, कॉपर सल्फेट एवं अक्वा-स्तर की मैलाकाईट ग्रीन सभी प्रकार के शैवाल, फंगस और बैक्टीरिया को नष्ट करता है और पानी से गाढ़ापन दूर करके पानी को सही अवस्था में कर देता है।

उपयोग विधि: एक लीटर प्रति एकड़ की दर से पानी अथवा बालू में मिलाकर छिड़काव करें।

पिंकी: यह मत्स्य पालन में उपयोग होने वाला शुद्व पोटैशियम परमैग्नेट है। यह एक ऑक्सीडाईजिंग एजेंट होता है जिसका उपयोग बायरोगों के उपचार में किया जाता है। इसके उपयोग के प्रारंभिक स्तर के बैक्टीरियल एवं फंगस जनित रोगों का उपचार किया जाता है।ऑक्सीजन की कमी की दशा में प्राथमिक सहायता के रुप में इसका उपयोग किया जा सकता है।

उपयोग की विधि: मत्स्य विशेषज्ञ के परामर्श अनुसार उचित मात्रा पानी में घोल कर तालाब में छिड़काव करें।

प्लैंकटामिन: यह प्लैंकटॉन की वृद्वि के लिए सभी आवश्यक तत्वों का घोल मिश्रण है। तालाब में प्लैंकटॉन उचित मात्रा में होना अति आवश्यक तत्वों का मिश्रण है। तालाब में प्लैंकटॉन उचित मात्रा में होना अति आवश्यक होता है। प्लैंकटॉन मछलियों का आहार होने के साथ ही प्रकाश संश्लेषण के द्वारा पानी में ऑक्सीजन भी उपलब्ध करते हैं। प्लैंकटामिन के प्रयोग से तालाब में प्लैंकटॉन उचित मात्रा में बन जाते हैं।

उपयोग विधि: दो किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से पानी में घोलकर तालाब में छिड़काव करें।

वीटा-मिन: यह सभी प्रकार की मछलियों के लिए आवश्यक मिनरल एवं विटामिन का मिश्रण है। इसके उपयोग से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती हे और भार में भी वृद्वि होती है।

उपयोग विधि: एक किग्रा. प्रति 100 किलो चारे में फीड-बांइडर के साथ मिलाकर रोजाना की भांति चारा दें। 

(साभार: मत्स्य निदेशालय, उत्तर प्रदेश )

Similar News