बहुत खास हैं बकरियों के ये घर, बाढ़ और बारिश में सुरक्षित रहेंगी बकरियां; सालों साल तक नहीं होंगे खराब

देश के कुछ राज्यों में बाढ़ का समय बकरियों के लिए घातक साबित होता है, क्योंकि उनके घरों में पानी भर जाता है। लेकिन इस एक पहल से बकरियां बाढ़ और बारिश में भी सुरक्षित रहेंगी, इस पहल की शुरूआत बिहार में की गई है।

Update: 2022-11-22 13:55 GMT

ये प्रोजेक्ट उत्तरी बिहार के 6 जिलो- वैशाली, मधुबनी, समस्तीपुर, सीतामढ़ी और दरभंगा में चल रहा है, ये सभी जिले बाढ़ प्रभावित जिले हैं। जहां हर साल बारिश और बाढ़ से ग्रामीणों को नुकसान उठाना पड़ता है। सभी फोटो: अरेंजमेंट

संजू देवी का बाढ़ आने पर अब इस बात की चिंता नहीं रहेगी कि उनकी बकरियों को कोई नुकसान हो जाएगा, क्योंकि अब उनकी बकरियां भी एक बहुत ही खास शेड में रहनी लगी हैं।

35 वर्षीय संजू देवी बिहार के बाढ़ प्रभावित दरभंगा जिले के भुवरी गाँव की रहने वाली हैं, वो इस खास बकरी घर के बारे में गाँव कनेक्शन से बताती हैं, "पहले पानी भरने पर कीचड़ में बकरियों को बांधना पड़ता था, अब तो हमें इसमें बकरी बांधने में बहुत अच्छा लगता हैं, मेरे गाँव के ही नहीं दूसरे गाँव के लोग भी इसके बारे में पता करने आते हैं।

संजू देवी खुशी स्वयं सहायता समूह से जुड़ी हुई हैं, संजू देवी के यहां भी हेफर इंटरनेशनल इंडिया के सहयोग से बकरियों के लिए एक खास तरीके का शेड बनाया गया है। इनमें तेज बारिश और बाढ़ आने पर भी बकरियां सुरक्षित रहती हैं।

अब संजू देवी की बकरियों का इंश्योरेंस भी हो गया है, वो बहुत साल से बकरी पालन से जुड़ी हैं, एक बार बीमारी से उनकी 9 बकरियां मर गई थीं। वो कहती हैं, "बाढ़ के बाद पता नहीं कौन सी बीमारी आ गई, एक-एक करके 9 बकरियां मर गईं बहुत नुकसान हो गया था।

हेफर इंटरनेशनल इंडिया के सहयोग से बकरियों के लिए एक खास तरीके का शेड बनाया गया है। इनमें तेज बारिश और बाढ़ आने पर भी बकरियां सुरक्षित रहती हैं।

बिहार के 6 जिलों में ये खास गोट शेड बनाने की शुरुआत की गई है। आर्थिक रूप से कमजोर आय वर्ग वाले लोगों की आजीविका को बढ़ाने के लिए हेफर इंटरनेशनल इंडिया (Heifer International India) स्‍थानीय महिलाओं की मदद से कर रहा है। खास बात है कि इसमें पशुपालन विभार और बैंक भी सहयोग कर रहे हैं।

हेफर इंटरनेशनल इंडिया के प्रोग्राम डायरेक्टर डॉ अभिनव गौरव इस प्रोजेक्ट के बारे में गाँव कनेक्शन से बताते हैं, "पिछले 20 साल से भारत में काम कर रहे हैं, जिसमें हम यहां के तीन राज्य- बिहार, ओडिशा और आंध्र प्रदेश में काम कर रहे हैं। बिहार में जो हमारा प्रोग्राम है वो हम बिहार सस्टेनेबल लाइवलीहुड डेवलपमेंट परियोजना के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। हम महिलाओं के साथ काम कर रहे हैं, इनमें से ज्यादातर महिलाएं एससी और मायनरिटी कम्युनिटी से आती हैं।"

ये प्रोजेक्ट उत्तरी बिहार के 6 जिलो- वैशाली, मधुबनी, समस्तीपुर, सीतामढ़ी और दरभंगा में चल रहा है, ये सभी जिले बाढ़ प्रभावित जिले हैं। जहां हर साल बारिश और बाढ़ से ग्रामीणों को नुकसान उठाना पड़ता है।

इस प्रोजेक्ट के बारे में डॉ अभिनव आगे बताते हैं, "जिन महिलाओं के साथ हम काम कर रहे हैं, उनमें से ज्यादातर महिलाएं भूमिहीन हैं, या तो बहुत कम जमीन है, उन महिलाओं के साथ जब हम काम करते हैं तो उनके लिए कुछ ऐसी व्यवस्था करनी होती है, जिसमें उनकी लागत कम आए और आमदनी का जरिया भी बना रहे।"

इस पहल में पशुपालन विभाग का भी सहयोग भी मिलता रहता है। विभाग के डॉक्टर समय-समय पर गाँव में मेडिकल कैंप भी लगाते हैं।

हेफर ने एक प्रोजेक्ट बकरियों के साथ शुरू किया है, इसमें महिलाओं को ट्रेनिंग देना, ग्रुप बनाना जैसे काम करते हैं और बकरी शेड बनाने के लिए उनका बैंक से टाई अप कराते हैं, ये बैंक से 20-25 हजार का लोन लेती हैं और उससे शेड बनाने के साथ ही बकरी खरीदती हैं।

वो आगे कहते हैं, "हम पिछले दस साल से बिहार में काम कर रहे हैं, हम देखते थे कि हर साल बाढ़ के समय बकरी पालकों को काफी नुकसान उठाना पड़ता, इसलिए हमने एक तरीका निकालने की कोशिश की किस तरह से हम ग्रामीणों को नुकसान से बचा सके, इसमें हमारी सहयोगी संस्था सीड ने भी हमारी मदद की, कि अगर बाढ़ भी आ जाए तो किस तरह से बकरी और उनका घर बचाया जा सके।"

बहुत खास हैं ये गोट शेड, लंबे समय तक रहते हैं सुरक्षित

पहले भी बकरी पालक बकरियों को रखने के लिए गोट शेड बनाते थे, लेकिन लगातार पानी में रहने के कारण बांस सड़ जाता था। इसलिए हेफर ने ऐसा कुछ बनाने को सोचा जो एनिमल फ्रेंडली हों। डॉ अभिनव आगे कहते हैं, "हमने इसमें लगने वाले बांस लंबे समय तक सुरक्षित रखने के उपाय किए, हमने इसमें छोटी-छोटी चीजों का ध्यान दिया जैसे कि अगर हम कील लगाकर बांस का शेड बनाते हैं तो पानी में जंग लगने से वो खराब हो सकता है।" "ऐसे में हमने ऐसे प्रबंध किया जिससे इसे लंबे समय तक सुरक्षित रखा जा सके। हर एक बांस को दीमक और पानी से बचाने के लिए उसका ट्रीटमेंट किया, ऐसे में जो बांस एक-दो साल तक रहता है, वो 10-12 साल तक सुरक्षित रह सकता है, "उन्होंने आगे कहा।


इसमें अलग-अलग उम्र की बकरियों के हिसाब से शेड बनाए जाते हैं हैं, ताकि बकरियां सुरक्षित रहें, इसके साथ ही शेड के बाहर भी ऐसा एरिया बनाया है, जहां बकरियां खुले में भी आराम से घूम सकें। इसके साथ ही शेड के इस डिजाइन को डिजॉस्टर मैनेजमेंट डिपार्टमेंट से एप्रूव कराने की कोशिश कर रहे हैं।

इसमें 20-22 हजार रुपए की लागत आ जाती है, हमने दो बैंकों से साथ एग्रीमेंट कर रखा है, उन्हीं से हम महिलाओं को कम ब्याज पर लोन दिलाते हैं। इस पहल में पशुपालन विभाग का भी सहयोग भी मिलता रहता है। विभाग के डॉक्टर समय-समय पर गाँव में मेडिकल कैंप भी लगाते हैं।

संजू देवी लोन के बारे में बताती हैं, "हमें बैंक से 21 हजार रुपए का लोन मिला था, जिसमें हमने कुछ बकरियां खरीदी और बकरी घर बनवाया। प्रोजेक्ट कोविड में ही शुरू हो गया था और शेड की एक्टिविटी 2021 में शुरू हुई, हमने 70 हजार शेड बनाने का टारगेट रखा है, अभी तक 1200 के करीब शेड बन गए हैं।

बिहार के दरभंगा जिले के गोविंदपुर की रहने वाली 23 वर्षीय रेनू देवी के यहां भी बकरियों के लिए घर बनाया गया है। वो गाँव कनेक्शन से बताती हैं, "पहले बारिश होने पर खुद से ज्यादा इस बात की चिंता रहती कि बकरियों को कहां लेकर जाएं, लेकिन अब तक बकरियों के लिए नया घर बन गया है। अभी मेरे पास दो बकरियां हैं अब आगे और बकरियां लाने वाले हैं।" रेनू देवी माँ काली स्वयं सहायता समूह से जुड़ी हैं।

हेफर ने एक प्रोजेक्ट बकरियों के साथ शुरू किया है, इसमें महिलाओं को ट्रेनिंग देना, ग्रुप बनाना जैसे काम करते हैं 

पशु और कृषि उद्यमी बनकर महिलाएं बढ़ रहीं हैं आगे

इसके साथ ही हेफर महिलाओं को पशु सखी बनने की भी ट्रेनिंग देता है, जिसमें उन्हें पशुओं के प्राथमिक उपचार की जानकारी दी जाती है। इससे महिलाएं अपने आस-पास के पशु पालकों को समय-समय पर जानकारी देती रहती हैं।

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