मई महीने में निपटा लें यूपी में खेती किसानी के ये ज़रूरी काम

खरीफ फसलों की बुवाई से पहले बीज उपचार जरूर करें, साथ ही आने वाले सप्ताह में तापमान अधिक रहेगा इसलिए ज़ायद की फसलों के साथ ही बागवनी फसलों में भी पर्याप्त नमी बनाये रखें।

Update: 2023-05-18 11:11 GMT

मई महीना ज़ायद और खरीफ दोनों मौसम की फसलों के लिए महत्वपूर्ण होता है, ऐसे में किसानों को बढ़िया उत्पादन के लिए इस महीने ज़रूरी खेती-किसानी का काम निपटा लेना चाहिए। जानिए क्या है कृषि विशेषज्ञों की सलाह।

इस महीने के ज़रूरी कृषि कार्य

खरीफ फसलों की बुवाई से पहले मृदा परीक्षण ज़रूर कराएँ।

धान की रोपाई वाले प्रक्षेत्रों में हरी खाद के लिए सनई की 80-90 किग्रा. और ढैंचा 60 किग्रा. बीज प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई करें।

खरीफ फसलों की बुवाई से पहले बीज शोधन अवश्य करें। धान के बीज को ट्राइकोडर्मा हरजियेनम की 4 से 6 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से शोधित करके बोएँ। अधिक अवधि की (145 दिन से ज़्यादा) प्रजातियों की नर्सरी पहले और मध्यम (130 से 140 दिन) और कम अवधि (115 से 120 दिन) की नर्सरी क्रमशः बाद में डालें।

ज़मीन से जुड़े रोगों के नियंत्रण के लिए ट्राइकोडर्मा विरिडी 1 प्रतिशत डब्ल्यू.पी. या ट्राइकोडर्मा हरजियेनम 2 प्रतिशत डब्ल्यू.पी. की 2.5 किलोग्राम को 60-75 किग्रा. सड़ी हुई गोबर की खाद में मिलाकर हल्के पानी का छींटा देकर 8 से 10 दिन तक छाया में रखें। इसके बाद एक हेक्टेयर क्षेत्र की बुआई के पहले आख़री जुताई के समय इसे ज़मीन में मिला देने से शीथ ब्लाईट, मिथ्या कण्डुआ आदि रोगों से बचाव किया जा सकता है।

आने वाले सप्ताह में तापमान अधिक रहेगा इसलिए उर्द, मूँग, सूरजमुखी, गर्मी की सब्जियों की फसलों और लीची, आम के बागों में पर्याप्त नमी बनाये रखें।

अरहर का अधिक उत्पादन चाहते हैं तो मेड़ों पर बुवाई करें।

बादल वाले मौसम और खेत में नमी की दशा में उर्द, मूँग की फसल में पीला चित्रवर्ण (मोजेक) रोग की संभावना रहती है, इसलिए रोग दिखाई देते ही प्रभावित पौधों को सावधानीपूर्वक उखाड़ कर जला दें या गाड़ दें। 5 से 10 बड़े सफेद मक्खी प्रति पौध की दर से दिखने पर मिथाइल-ओ-डिमेटोन 25 ई0सी0 या डाईमेथोएट 30 ई0सी0 एक लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।

धान की खेती

पूर्वी उत्तर प्रदेश के जनपदों में लम्बी अवधि की धान की प्रजातियों स्वर्णा (एम.टी.यू. 7029), सांभा महसूरी (वी.पी.टी. 5204), शियाट्स धान-3 और महसूरी की सामान्य विधि से रोपाई के लिये नर्सरी 20 से 30 मई तक अवश्य डाल दें।

धान की मध्यम अवधि वाली प्रजातियाँ एन.डी.आर.-2064, एन.डी.आर.-2065, नरेन्द्र धान-359, मालवीय धान-36, एच.यू.आर.-907, नरेन्द्र 3112-1, शियाट्स धान-1, शियाट्स धान-2, सरजू-52, एम.टी.यू.-10, पंत धान-24, पंत धान-26, पंत धान-28 आदि के बीज की व्यवस्था करें।


संकर प्रजातियों एराइज-6644 गोल्ड, प्रो.एग्रो.-6201 एराइज, प्रो.एग्रो.-6444 एराइज, एच.आर.आई.-157, पी.एच.बी.-71, नरेन्द्र संकर धान-2, 3, के.आर.एच.-2, पी.आर.एच.-10, जे.के.आर.एच.-401, वी.एस.आर. 202, यू.एस. 312, आर.एच. 1531, सहयाद्री 4, सवा-127 आदि के बीज की व्यवस्था करें ताकि जून के पहले सप्ताह में नर्सरी डाली जा सके।

धान की अल्प अवधि की प्रजातियों सूखा धान, एन.डी.आर.-97, आई.आर.-64, ड्राट (डी.आर.आर. धान-42), डी.आर.आर. धान-44, डी.आर.आर. धान-45, सहभागी धान एवं सी.ओ.-51 की जून के प्रथम सप्ताह मे नर्सरी डालने के लिए बीज की व्यवस्था करें।

काला नमक धान की खेती के लिए काला नमक 101, काला नमक102, बौना काला नमक और काला नमक किरन प्रजातियों की पौध तैयार कर सकते हैं । बीज शोधन के लिए 5 ग्राम प्रति किग्रा. बीज की दर से ट्राइकोडर्मा का प्रयोग करें।

मक्का की खेती

देर से पकने वाले मक्के की संकर प्रजातियों गँगा 11, सरताज़, एच.क्यू.पी.एम.-5, एच.क्यू.पी.एम.-8, प्रो.316 (4640), बायो-9681 व वाई-1402 के. और संकुल प्रजाति प्रभात की बुआई करें। अगर बीज शोधित न हो तो बीज बोने से पहले 1.5 किग्रा. बीज को 2 ग्राम थीरम 75 प्रतिशत डब्लू.पी. या कारबेन्डाजिम 50 डब्लू.पी. से बुवाई से पहले शोधित कर लें।

अरहर की खेती

सिंचित क्षेत्रों में पश्चिमी उ.प्र. के लिए अरहर की अगेती संस्तुत प्रजाति पारस और सम्पूर्ण उ.प्र. के लिए संस्तुत प्रजातियों यू.पी.ए.एस.120, टा 21 तथा पूसा-992, पी.ए.-6 की बुवाई जून के पहले सप्ताह में करने के लिये बीज की व्यवस्था अभी कर लेनी चाहिए। बुआई से पहले अगर बीज शोधित न हो तो एक किग्रा. बीज को 2 ग्राम थीरम, एक ग्राम कार्बेन्डाजिम के मिश्रण या 4 ग्राम ट्राईकोडर्मा , 2 ग्राम मैंकोजेब से उपचारित करें। बुआई से पहले बीज को अरहर के विशिष्ट राइजोबियम कल्चर से उपचारित करें।

गन्ना की खेती

तापमान अधिक होने के कारण गन्ने में 10 से 15 दिन के बीच सिंचाई कर नमी बनाये रखें और ज़रूरत के अनुसार गुड़ाई करें। गन्ने में जल संरक्षण के लिए गन्ने की पत्तियों का मल्च प्रयोग किया जा सकता है। पायरीला का प्रकोप होने पर और परजीवी (इपीरिकेनिया मेलानोल्यूका) न पाये जाने की स्थिति में मेटाराइजियम एनआईसोप्ली का छिड़काव करें।

पानी की बचत के लिये इक्षु केदार मोबाइल ऐप का इस्तेमाल अच्छा है, लेकिन इस ऐप से तय तारीख पर ही सिंचाई करें।

बागवानी

फलों के नये बाग लगाने के लिये जगह का चुनाव कर गड्ढों की खुदाई करें। इसके 15 दिन के बाद गड्ढे में खाद-उर्वरक की सही मात्रा और नीम की खली, मिट्टी की समान मात्रा मिलाकर ज़मीन की सतह से ऊँची भराई करें। आम में कोयलिया और अंदरूनी विगलन को रोकने के लिए एक प्रतिशत बोरेक्स का 15 दिन के अन्तराल पर दो बार छिड़काव करें।

नींबू में कैंकर के नियंत्रण के लिये 3 ग्राम कॉपर आक्सीक्लोराइड और स्ट्रेप्टोसाइक्लिन 10 ग्राम एक लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।

लीची के फलों को फटने से बचाने के लिये 20 से 22 ग्राम प्रति लीटर बोरोसॉल या बोरेक्स 8 से 10 ग्राम मिलाकर प्रति लीटर पानी से छिड़काव करें।

अमरूद की बारिश की फसल में 25 प्रतिशत यूरिया के घोल का छिड़काव बेहतर होगा।

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सब्जियों की खेती

सब्जियों में हल्की सिंचाई करते रहे। हल्दी, अदरक और सूरन की बुआई 15 जून तक पूरा कर लें।

पशुपालन

बड़े पशुओं में गला घोटू बीमारी की रोकथाम के लिए एच.एस. वैक्सीन से और लगड़िया बुखार से बचाव के लिए बी.क्यू. वैक्सीन से टीकाकरण करायें। यह सुविधा सभी पशु चिकित्सालयों पर मुफ्त उपलब्ध है। गर्मी से पशुओं को बचाने के लिए दोपहर में छायादार जगह पर बाँधें और सुबह, शाम ही चराई करायें।

अभी मौसम में तापमान अधिक होने के कारण पशुओं में डिहाइड्रेशन की समस्या हो सकती हैं। ऐसे में पशुओं को खनिज-लवण मिक्चर खिलायें।

लम्पी स्किन रोग (एलएसडी) एक विषाणु जनित रोग है जिसकी रोकथाम के लिए पशुपालन विभाग द्वारा टीकाकरण प्रोग्राम चलाया जा रहा है। नजदीकी पशु चिकित्सालय से संपर्क कर इसकी रोकथाम संबंधी जानकारी और टीकाकरण करा सकते है।

मत्स्य पालन

मई और जून में अधिकांश तालाब सूख जाते हैं। सूखे हुये तालाबों में खरपतवार की सफाई, बंधो की मरम्मत और खाद डालने के लिये यह उचित समय है। झाड़ियों की सफ़ई करके तालाबों की जुताई करनी चाहिए। इसके बाद तालाब सूखने पर गोबर की खाद डालकर तालाबों में फैला दें, जिससे बारिश शुरू होने पर तालाब मत्स्य बीज संचय के लिए तैयार हो सके। एक ज़रूरी बात, थाई माँगुर मछली पालना प्रतिबन्धित है, इसको न पालें।  

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