बिहार: झूठी मान्यताओं और मछलियों के जाल में फंसकर जान गंवा रहीं गंगा नदी की डॉल्फ़िन

गंगा नदी डॉल्फ़िन की आबादी में खतरनाक रूप से गिरावट आई है, बिहार के भागलपुर जिले में नदी के किनारे 60 किलोमीटर की दूरी को 1991 में विक्रमशिला गंगा डॉल्फिन अभयारण्य के रूप में अधिसूचित किया गया था। तीन दशक बाद, लुप्तप्राय प्रजातियों को खतरों का सामना करना पड़ रहा है, और पिछले छह वर्षों में महीनों से अभयारण्य में तीन डॉल्फ़िन की मौत हो चुकी है।

Update: 2022-10-17 13:33 GMT

भागलपुर जिला के इस्माइलपुर प्रखंड कार्यालय के समीप स्पर संख्या 01 पर गंगा किनारे 13 सितंबर की सुबह एक मृत डॉल्फिन मिली। फोटो: अरविंद मिश्रा

भागलपुर, बिहार। पिछले महीने 13 सितंबर को नदी की सतह पर एक गंगा डॉल्फिन तैरती मिली, लेकिन यह जिंदा नहीं थी। भारत के इस राष्ट्रीय जलीय जीव की मौत नाक में मछली का जाल फंसने के कारण हुई थी।

गंगा नदी डॉल्फिन सिर्फ मीठे पानी में रह सकती हैं और वास्तव में अंधी होती है। इसे 'लुप्तप्राय' जीवो की कैटेगरी में रखा गया है। उसकी 'हत्या' ने खतरे की घंटी बजा दी, क्योंकि बिहार के भागलपुर जिले में विक्रमशिला गंगा डॉल्फिन अभयारण्य की सीमा के भीतर पिछले छह महीनों में संरक्षित प्रजातियों की यह तीसरी मौत थी। गंगा के ---- किलोमीटर क्षेत्र में फैले इस संरक्षित अभयारण्य को 1991 में लुप्तप्राय जलीय प्रजातियों के संरक्षण के लिए अधिसूचित किया गया था।

गोपालपुर गाँव के रहने वाले 52 साल के चंदन मांझी ने गाँव कनेक्शन को बताया, "उसकी नाक पर एक फिशनेट फंसा हुआ था। मैंने देखा कि मरी हुई सुसु (मीठे पानी की डॉल्फिन का स्थानीय नाम क्योंकि सांस लेते हुए यह ऐसी ही आवाज निकालती है) को वन अधिकारी पोस्टमार्टम के लिए ले जा रहे थे। मैंने मार्च में उसी तरह से एक और डॉल्फिन की मौत होते हुई देखी थी। उसके मुंह में प्लास्टिक की रस्सी लटकी हुई थी। इन मौतों के लिए अब तक किसी को सजा नहीं मिली है।"

डॉल्फ़िन की ये मौतें चिंता का कारण हैं क्योंकि गंगा नदी की डॉल्फ़िन विलुप्त होने के कगार पर है।

दुनिया भर में, केवल 2,500-3,000 मीठे पानी की डॉल्फ़िन जंगली में बची हैं, जैसा कि वर्ल्ड वाइड फंड (WWF) के 2019 ब्रीफिंग दस्तावेज़ में बताया गया है। इनमें से लगभग 1,150 ऐसी डॉल्फ़िन बिहार में पाई जाती हैं, जैसा कि 2019 में भारतीय प्राणी सर्वेक्षण द्वारा नोट किया गया था।

तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान विभाग के प्रोफेसर सुनील चौधरी ने गाँव कनेक्शन को बताया, "बिहार की नदियों में केवल 1,150 डॉल्फ़िन बचे हैं और उनकी संख्या लगातार घट रही है।" भारतीय वन्यजीव संस्थान के साथ विश्वविद्यालय ने 2019 में जलीय जनगणना के सर्वेक्षण में भारतीय प्राणी सर्वेक्षण के साथ भागीदारी की।

मार्च 2022 में इस्माइलपुर पुरानी दुर्गा मंदिर के निकट एक मृत मादा की मौत मछुआरे के जाल की वजह से हो गई थी। फोटो: अरविंद मिश्रा

डॉल्फिन अभयारण्य में जलीय प्रजातियों के संरक्षण की दिशा में काम कर रहे भारतीय वन्यजीव संस्थान के संरक्षक दीपक कुमार ने कहा कि अधिकांश डॉल्फिन की मौतों के लिए फिशनेट जिम्मेदार है।

कुमार ने गाँव कनेक्शन को बताया, "मछुआरे छोटी मछलियों को फंसाने के लिए जाल डालते हैं. लेकिन उन जालों में अक्सर डॉल्फिन उलझ जाती हैं और काफी संघर्ष करने के बाद अपनी जान गंवा देती हैं।"

उन्होंने कहा, "इसके अलावा कुछ मछुआरे जानबूझकर उनका 'तेल' पाने के लिए डॉल्फिन का शिकार करने की कोशिश करते हैं। वह इसे छोटी मछलियों को लुभाने के लिए चारा के रूप में भी इस्तेमाल करते हैं। इसके अलावा एक लोकप्रिय मिथक ये भी है कि सुसु का तेल गठिया के दर्द से निजात दिला सकता है। इन कुछ वजहों से भी डॉल्फिन का शिकार किया जाता है।"

जाहिर तौर पर राज्य के अधिकारी मीठे पानी की डॉल्फिन की हालिया मौतों से खासे चिंतित हैं। बिहार सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ एनवायरनमेंट, फॉरेस्ट एंड क्लाइमेट चेंज के सोशल मीडिया कार्यकारी संजय कुमार ने गांव कनेक्शन को बताया, " आखिरी बची कुछ डॉल्फिन की सुरक्षा के लिए शीर्ष अधिकारियों की छह बैठकें आयोजित की गई हैं। वहां (विक्रमशिला गंगा डॉल्फिन अभयारण्य) डॉल्फिन की सही संख्या बताने का कोई तरीका नहीं है, लेकिन आधिकारिक तौर पर अभयारण्य में लगभग 300 डॉल्फिन हैं।"

खतरे में भारत का राष्ट्रीय जलीय जीव

यह लुप्तप्राय प्रजाति भारत-गंगा के मैदानी इलाकों की नदियों में पाई जाती है जिसमें नेपाल और बांग्लादेश की नदियां भी शामिल हैं। गंगा नदी डॉल्फिन पूरी तरह से अंधी होती है और इकोलोकेशन पर निर्भर करती है। इसका मतलब है कि डॉल्फिन पानी की ध्वनि तरंगों को नेविगेट करने, शिकार का पता लगाने और संवाद करने के लिए इस्तेमाल करती है।

WWF के अनुसार, गंगा नदी डॉल्फिन नदी के पारिस्थितिकी तंत्र के लिए महत्वपूर्ण हैं। जंगल में जो भूमिका बाघ की होती है, ठीक उसी के समान डॉल्फिन नदी में अपना काम करती है। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ ने उल्लेख किया, "गंगा नदी डॉल्फिन, जिसे अक्सर "गंगा का बाघ" कहा जाता है, एक संकेतक प्रजाति है, जिसकी नदी के इकोसिस्टम में वही भूमिका होती है जो एक बाघ की जंगल में होती है।

भागलपुर के एक पर्यावरणविद् अरविंद मिश्रा ने गाँव कनेक्शन को बताया कि कई अन्य लुप्तप्राय प्रजातियों के मामलों की तरह उनके साथ भी कई मिथक जुड़े हैं। कुछ के मुताबिक, डॉल्फिन का अर्क कामोत्तेजक औषधि के रूप में बेहतर तरीके से काम करता है और यह उनके शिकार के कई बड़े कारणों में से एक है।

 विक्रमशिला गंगा डॉल्फिन अभ्यारण में सैलानी

मिश्रा ने कहा, "लोगों का मानना है कि डॉल्फिन के कुछ हिस्सों का सेवन करने से उनकी सेक्स ड्राइव बढ़ जाएगी। यह दुखद है। इस तरह के अमानवीय विश्वासों के चलते ये प्रजातियों विलुप्त होती जा रही हैं, जिन्हें मनुष्य के साथ पृथ्वी पर बने रहना चाहिए था।"

पर्यावरणविद ने यह भी बताया कि कभी-कभी डॉल्फ़िन गंगा नदी की कुछ सहायक नदियों की ओर भटक जाती हैं जो अक्सर उनकी मौत का कारण बनता है।

उन्होंने कहा, "ये मछलियां अंधी होती हैं। वे शिकार के लिए करने के लिए आवाज का सहारा लेती हैं। कभी-कभी वे छोटी नदियों की ओर मुड़ जाती हैं। बेतहाशा सिंचाई की वजह से इन नदियों का जल स्तर काफी कम होता है। डॉल्फिन के लिए उथले पानी में नेविगेट करना काफी मुश्किल होता है। ऐसे में स्थानीय लोग या तो उन्हें पकड़ लेते हैं या फिर वे अपने भोजन (छोटी मछलियों) तक नहीं पहुंच के कारण भूख से मर जाती हैं।"

तत्कालीन केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय द्वारा प्रकाशित 'कंजर्वेशन एक्शन प्लान फॉर दि गेंगेटिक डॉल्फिन 2010-2020' में उल्लेख किया गया है, "डॉल्फिन की आबादी वाली नदियों के हिस्सों में नायलॉन मोनोफिलामेंट फिशिंग गिलनेट के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया जाना चाहिए, क्योंकि यह जाल डॉल्फिन को घायल करता है।"

उसमें आगे लिखा है, "मॉस्किटो नेट मैटेरियल (कपड़ा जाल) से बने मछली पकड़ने के जाल के इस्तेमाल पर भी रोक लगाई जानी चाहिए क्योंकि मछुआरे इससे छोटी मछलियों को पकड़ते हैं। ये मछलियां ही डॉल्फ़िन के लिए भोजन का काम करती हैं। इनसे मछुआरों को ज्यादा कुछ आमदनी नहीं होती है।"

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'डॉल्फिन मित्रों' को समर्थन की जरूरत

अभयारण्य में डॉल्फिन की रक्षा के लिए काम करने वाले संरक्षक कुमार ने गाँव कनेक्शन को बताया कि जब तक सरकार या गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) ग्रामीण आबादी को डॉल्फिन से जुड़े मिथकों को दूर करने के लिए जागरूकता अभियान नहीं चलाएंगे, तब तक लुप्तप्राय जीव की रक्षा करना मुश्किल है।

उन्होंने कहा, "सरकार ने स्थानीय समुदाय के लोगों को नियुक्त किया है और उन्हें डॉल्फिन मित्रा के रूप में नामित किया है। ये लोग सुनिश्चित करते हैं कि शिकारी या मछुआरे डॉल्फ़िन का शिकार न करें। लेकिन इनमें से कोई भी चीज अकेले डॉल्फिन को नहीं बचा सकती है जब तक कि लोगों को इनसे जुड़े मिथकों को दूर करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया जाता।"

जब गाँव कनेक्शन ने एक 'डॉल्फ़िन मित्र' से बात की, तो पता चला कि सरकार द्वारा नियुक्त इन स्वयंसेवकों को हमेशा मछुआरों से हमले का खतरा बना रहता है।

डॉल्फिन मित्र सहदेव ने कहा "हम अभयारण्य से फिशनेट को हटाने के लिए बहुत कुशलता से काम कर रहे हैं, लेकिन ग्रामीण इलाकों में सरकार के प्रयासों की काफी ज्यादा जरूरत है। हम अकेले गांव वालों से नहीं निपट सकते हैं। महादेव घाट क्षेत्र में मछुआरे हमें जान से मारने की धमकी देते हैं। जब तक सरकार डॉल्फिन संरक्षण के लिए और संसाधन समर्पित नहीं करती, तब तक बहुत कुछ नहीं किया जा सकता है"।

चीन की यांग्त्ज़ी नदी से कुछ सीख लें

डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के अनुसार, आज दुनिया में नदी डॉल्फिन की सिर्फ पांच मौजूदा प्रजातियां बची हैं और वे सभी लुप्तप्राय या गंभीर रूप से संकटग्रस्त हैं। इन प्रजातियों में गंगा नदी डॉल्फिन, अमेजन नदी डॉल्फिन, सिंधु नदी डॉल्फिन, इरावदी नदी डॉल्फिन और मेकांग नदी डॉल्फिन शामिल हैं।

यांग्त्ज़ी नदी डॉल्फिन को इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) ने गंभीर रूप से लुप्तप्राय और संभवतः विलुप्त माना है।

आईयूसीएन ने प्रजातियों पर अपने नोट्स में उल्लेख किया है, "यांग्त्ज़ी नदी डॉल्फिन या बाईजी (लिपोट्स वेक्सिलिफ़र) मध्य-निचली यांग्त्ज़ी नदी (चांगजियांग) ड्रेनेज और पूर्वी चीन में पड़ोसी कियानतांग नदी में काफी ज्यादा संख्या में थीं।"


इसमें आगे लिखा है, "बीसवीं सदी के अंत में बाईजी की आबादी में भारी गिरावट होती नजर आने लगी थी। 1980 में इसकी आबादी लगभग 400 थी, लेकिन 1997-1999 में इनकी संख्या सिर्फ 13 गई । इस संख्या का लगातार कम होते जाने का प्राथमिक कारक संभवतः स्थानीय मत्स्य पालन में विशेष रूप से रोलिंग हुक लॉन्ग-लाइन्स, के साथ-साथ व्यापक तौर पर उनके निवास स्थान में गिरावट था। "

पटना के एक पर्यावरणविद गोपाल प्रसाद ने आगाह किया कि अगर सरकार ने गंगा नदी की डॉल्फिन की सुरक्षा के लिए तत्काल उपाय नहीं किए तो उनके लिए भी यही स्थिति आ सकती है।

प्रसाद ने गाँव कनेक्शन को बताया, "नदी में ज्यादा संख्या में मछली पकड़ने की वजह से यांग्त्ज़ी नदी डॉल्फिन की आबादी में गिरावट आई। ये नदी डॉल्फिन सिर्फ उन नदियों में रह सकती हैं जहां पानी साफ है। इनकी मौजूदगी मनुष्य के लिए भी वरदान है। लेकिन जिस तरह से अवैध खनन और मछली पकड़ना पारिस्थितिकी तंत्र को नष्ट कर रहा है, उसे देखते हुए तो लगता है कि बिहार की डॉल्फिन का भविष्य भी अब चीन में बाईजी डॉल्फिन के समान ही होने वाला है।"

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