गोबर बढ़ा रहा है किसानों की आमदनी, मज़ाक नहीं है, वीडियो देख लीजिए

गुजरात के एक गांव में सरकार ने गोबर गैस प्लांट लगवाए और उससे निकलने वाली स्लरी (तरल गोबर) को 1 से 2 रुपए प्रति लीटर खरीद लिया। जिससे इस गांव में लोगों की आमदनी बढ़ गई है, जानिए गोबर से कैसे बढ़ी इस गांव में आमदनी...

Update: 2020-02-07 11:45 GMT

आणंद (गुजरात)। आमतौर पर लोग गोबर को बेकार की चीज समझते हैं, शहरी भारत के लिए गोबर शिट से कम नहीं है। यहां तक की दूसरों को दिमागी कमजोर बताने के लिए लोग आसानी से कह देते हैं, तुम्हारे दिमाग में गोबर भरा है? या फिर गोबर गनेश कहने से भी नहीं चूकते।

ग्रामीण इलाकों की बात करें तो कुछ किसान इसे खाद के रूप में इस्तेमाल करते हैं। बहुत सारी जगहों पर खाना बनाने के लिए सुखाकर इसे उपला-कंडा बनाकर जलाते भी हैं। फिर भी इसकी कीमत लगभग न के बराबर है, लेकिन गुजरात के एक गांव के सैकड़ों किसान इसी गोबर (Animal Dung) से कमाई कर रहे हैं।

"हमारा जीवन भैंसों और दूध पर निर्भर है। गाय-भैंस जब दूध नहीं देती हैं तो उनको पालना भारी पड़ता है, लेकिन अब उनके गोबर (स्लरी) को खाद के रूप में हम बेच रहे हैं, तो दूध भले न हो लेकिन गोबर से पैसे मिलते रहते हैं तो दिक्कत नहीं होती।" जकरियापुर गांव के नट्टू भाई परमार (55 वर्ष) अपने द्वार पर एक तरफ फूले रबर के एक गुब्बारे (गोबर गैस प्लांट) को दिखाते हुए कहते हैं।


नट्टू भाई के गांव में राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB) और पशुधन मंत्रालय की तरफ से दूध के कारोबार से जुड़े (गाय-भैंस पालने वाले सभी) घरों में 2 क्यूबिक क्षमता वाले गोबर गैस प्लांट लगवाए गए हैं। जिससे महिलाओं को खाने बनाने के गैस मिल रही है, जबकि जो तरल गोबर मिलता है, (जो अभी तक बेकार माना जाता था) उसे किसानों से खरीदकर उसकी जैविक खाद बनाई जाती है जिससे किसानों की रोजाना अतिरिक्त आमदनी हो रही है। एनडीडीबी इस तरह का पायलट प्रोजेक्ट पहले आणंद जिले के मुजकुआ गांव में 2 साल से संचालित है।

हमारे देश में किसानों के पास दो तरह के पशु हैं, एक दूध देने वाले दूसरे दूध न देने वाले (नर और मादा-गाय सांड)। इन्हें कोई छुट्टा कहता है तो कोई अवारा। यूपी और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में ये पशु बड़ी समस्या हैं, लेकिन अगर मैं जकरियापुरा की तरह देखूं तो ये पशु ही किसान की आमदनी बढ़ा सकते हैं, क्योंकि दूध भले न दें वे गोबर और गोमूत्र रोज देती हैं। स्लरी से रोज पैसा मिलेगा।" गिरिराज सिंह, केंद्रीय पशुधन मंत्री

जकरियापुर गांव गुजरात की राजधानी अहमदाबाद से करीब 125 किलोमीटर दूर आणंद जिले के बोरवद तालुका में आता है। ग्राम पंचायत दहेवाण और इसके आसपास का इलाका दूध उत्पादन का गढ़ माना जाता है। गांव के आसपास कच्चा तेल भी निकाला जाता है। इस गांव को राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड ने गोद लेकर यहां पर किसानों के साथ कई प्रयोग किए हैं। जिसके तरत गोबर गैस और मुर्गी पालन प्रमुख हैं।

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गुजरात के जकरियापुरा में लगाए गए गोबर २ क्यूबिक मीटर के प्लांट , जिनमें औसतन रोज ४०-५० किलो गोबर डालना होता है। 

राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड के कार्यकारी निदेशक मीनेश शाह कहते हैं, "किसानों की आमदनी अगर बढ़ानी हो तो इसमें डेयरी और पशुधन को शामिल करना पड़ेगा, क्योंकि इसमें संभावनएं बहुत हैं। हमारी कोशिश है कि पशुपालकों की दूध के अलावा भी आमदनी हो। गोबर से गोबर गैस बना लो, जो स्लरी निकलती है उसे हम एक रूपए से 2 रुपए लीटर खरीद रहे हैं जिसकी जैविक खाद बन रही है। इसकी मांग बहुत है, जितनी बनाओ उतनी आमदनी बढ़ेगी।"

जकरियापुरा में कुल 461 घर हैं, जिसमें से 368 घरों में पशुपालन था। एनडीडीबी ने यहां महिलाओं की एक कॉपरेटिव (सहकारी समिति) बनाकर इन सभी घरों में गोबरगैस यूनिट लगवाई है और इसका कार्यभार महिलाओं को भी सौंपा है। एनडीडीबी ही ये स्लरी खरीद भी रहा है। जिसे प्रोसेज कर खाद बनाई जा रही है। एडीडीबी के मुताबिक इसे अमूल जैसी संस्थाओं के माध्यम से किसानों तक वापस पहुंचाया जाएगा।

गांव कनेक्शन ने छुट्टा पशुओं पर अपनी विशेष सीरीज में इस बात का जिक्र किया था अगर गायों के गोबर को सही तरीके से वैल्यू एडिशन किया जाए तो वो जैविक खाद का अच्छा विकल्प बन सकता है।.. संबंधित ख़बर यहां पढ़िए-

जकरियापुरा प्रोजेक्ट से उत्साहित देश के डेयरी, पशुधन और मत्स्य मंत्री गिरिराज सिंह इसे पहले गुजरात के हर जिले के एक गांव और पूर देश में लागू करने की तैयारी में है।

गिरिराज सिंह गांव कनेक्शन से जकरियापुरा मॉडल के बारे में बात करते हुए कहते हैं, "इस प्रोजेक्ट के गांव का दृष्य ही बदल गया है। इस गांव के डाटा के मुताबिक यहां 368 घरों में 1053 गाय-भैंस हैं। गांव में इन परिवारों की औसत आमनदी 18,000 रुपए सालाना थी, लेकिन जब स्लरी की खरीद शुरू हुई और हमने उसका आंकलन किया तो इन किसानों की आमदनी दो नहीं तीन गुना हो गई। एनडीडीबी (राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड) ने यहां 1.2 करोड़ रुपए का निवेश किया और पहले ही साल किसानों (इस गांव के) को एक करोड़ 90 लाख की आमदनी हुई।"

गोबर के वैल्यू एडिशन (मूल्य संवर्धन) में असीम संभावनाएं गिनाते हुए केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह कहते हैं, "हमारे देश में किसानों के पास दो तरह के पशु हैं, एक दूध देने वाले दूसरे दूध न देने वाले (नर और मादा-गाय सांड)। इन्हें कोई छुट्टा कहता है तो कोई अवारा। यूपी और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में ये पशु बड़ी समस्या हैं, लेकिन अगर मैं जकरियापुरा की तरह देखूं तो ये पशु ही किसान की आमदनी बढ़ा सकते हैं, क्योंकि दूध भले न दें वे गोबर और गोमूत्र रोज देती हैं। स्लरी से रोज पैसा मिलेगा।" जकरियापुरा मॉडल को लेकर गिरिराज सिंह का पूरा इंटरव्यू यहां पढ़ें और देंखे

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दिल्ली के कृषि मंत्रालय में अपने ऑफिस में बैठे गिरिराज सिंह टेबल पर पड़े कुछ कागजों पर हिसाब लगाते हुए कहते हैं, "पशुधन मंत्रालय की कोशिश है कि दूध किसान का बाय प्रोडक्ट हो, गोबर और गोमूत्र मुख्य, जिन्हें वैल्यूएड (मूल्यवर्धित) किया जाए। जब मैं ये बोलूंगा तो अधिकतर लोग मुझसे असहमत होंगे, लेकिन मैं ये साबित कर दूंगा। "

जकरियापुरा में लगाए गए 2 घनमीटर गैस प्लांट में एक तरफ से रोजाना (जरुरत के मुताबिक) पानी मिला गोबर डाला जाता है, जो पहली बार 30 से 45 दिन में मीथेन गैस उत्पादित करता है, उसके बाद ये सिलिसला हर वक्त जारी रहता है। प्लांट में दूसरी तरफ से अपशिष्ट गैस निकलने के बाद बचा तरल गोबर (जिसे स्लरी कहते हैं) निकलता है, जिसे एक टैंक में एकत्र किया जाता है। दूसरे या तीसरे दिन अमूल के कर्मचारी इसे आकर प्रति लीटर के हिसाब से किसानों से ले जाते हैं। ये स्लरी की कीमत कुछ पैरामीटर (इलेक्ट्रिकल कंडेक्टेविटी और माइक्रोव) पर तय की जाती है, जैसे दूध के लिए फैट देखी जाती है।

एडीडीबी के कॉपरेटिव सर्विसेज में मैनेजर संदीप भारती गांव कनेक्शन की टीम को एक प्लांट की पूरी गणित समझाते हैं। "सरल भाषा में कहें तो 2 क्यूबिक मीटर के इस प्लांट से हर महीने 2 एलपीजी सिलेंडर जितनी गैस मिलेगी। जिससे पूरे महीने 5-7 लोगों का खाना आसानी से बन सकता है। इनमें इनपुट की बात करें तो रोजाना 3 से 5 पशुओं का गोबर (40 से 50 किलो) डालना पड़ता है और गोबर के बराबर ही पानी डाला जाता है। 20-30 फीसदी अगर अपशिष्ट मान ले तो बाकी 70 फीसदी स्लरी निकलती है। जो अमूल द्वारा खरीद ली जाती है।"

जकरियापुरा दुग्ध उत्पादक महिला समिति की सचिव मधु बेन (57 वर्ष) कहती हैं, पहले हमारे पास सिर्फ दूध ही कमाई का जरिया था लेकिन अब स्लरी बिकने से हर महिला को 2000-3000 रुपए महीने की अतिरिक्त आमदनी होने लगी है। पिछले महीने हमने 30-35 महिलाओं को चेक दिए थे। अमूल-एनडीडीबी से पैसा हमारी समिति के खाते में आता है, जिसे हम चेक से बहनों को देते हैं।"

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गोबर से शुरू हुई कमाई ने कई किसानों के लिए नये आयाम भी खोले हैं। रमीला बहन (47वर्ष) कुछ दिनों पहले अपनी सभी भैंसे बेचने वाली थीं, लेकिन अब उन्होंने अपना इरादा बदल दिया है। रमीला कहती हैं, मेरे पास अभी 4 भैंसे हैं लेकिन दूध सिर्फ एक देती है। तो मैं पशुओं को बेचकर दूसरा काम कनरे की सोच रही थी, क्योंकि अक्सर कभी एक दूध देती है तो कभी दो, बाकी को बांधकर चारा पानी देना पड़ता है, तो खर्च नहीं निकल पा रहा था, लेकिन अब स्लरी भी बिकने लगी है तो ठीक है, अब तो मैं हजार भैंसे भी पाल सकती हैं।"अपनी बात खत्म करते हुए रमीला मुस्कुरा पड़ती हैं।

गोबर के वैल्यू एडिशन में किसानों का भविष्य दिखाते हुए गिरिराज सिंह (Giriraj Singh) कहते हैं, "जकरियापुर का मॉडल अगर में पूरे देश के परिपेक्ष्य में देखता हूं तो किसानों का चेहरा बदल जाएगा। जकरियापुर की स्लरी से एक साल में जो खाद तैयार होगी उसकी अनुमानित कीमत 107 करोड़ होगी। जिससे सरकार को 10 करोड़ की जीएसटी भी मिलेगी। शुरूआत में अगर सिर्फ सहकारी दुग्ध समितियों के माध्यम से ही काम करें तो पूरे देश में ढाई लाख दुग्ध समितियां और उनसे जुड़े 2 करोड़ सदस्य हैं। अगर पूरे देश से कलस्टर बनाकर स्लरी पर काम शुरु कराएं तो देश में 44.5 मिलिटन टन स्लरी उत्पादन होगा, जिससे बनी खाद की कीमत 3,44,000 करोड़ रुपए होगी और इससे 30,000 करोड़ की जीएसटी मिलेगा।" 

गोबर गैस प्लांट।


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