आत्महत्या का कारण बन रहीं बीमारियां

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की 2018 की रिपोर्ट में भी बताया गया है कि भारतीयों में आत्महत्या करने की दूसरी सबसे बड़ी वजह बीमारी है। रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2018 में कुल 1 लाख 34 हजार 516 लोगों ने आत्महत्या की, जिसमें 23764 लोगों ने बीमारी से तंग आकर आत्महत्या की

Update: 2020-01-17 07:15 GMT

उत्तर प्रदेश के जनपद मेरठ निवासी एक युवक ने ट्रेन के आगे कूदकर इसलिए आत्महत्या कर ली क्योंकि उसे कैंसर जैसी गंभीर बीमारी थी। इलाज में कुछ जमीन तक बिक गई, लेकिन सेहत नहीं सुधारी, और अंत में मौत को गले लगा लिया।

उत्तराखंड के रायवाला निवासी पूनम बिष्ट का मामला भी कुछ ऐसा ही है। 25 वर्षीय यह युवती लीवर की बीमारी से परेशान थी। इलाज के लिए दिल्ली, मुबई का भी चक्कर लगाया, लेकिन कोई फायदा न होता देख फांसी लगाकर जान दे दी।

ये मामले बस उदाहरण के लिए हैं। इनसे आप यह अनुमान लगा सकते हैं कि बीमारी से परेशान लोग मौत को गले लगा रहे हैं। शायद बेहतर इलाज का न मिलना भी एक प्रमुख कारण है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की 2018 की रिपोर्ट में भी बताया गया है कि भारतीयों में आत्महत्या करने की दूसरी सबसे बड़ी वजह बीमारी है। रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2018 में कुल 1 लाख 34 हजार 516 लोगों ने आत्महत्या की, जिसमें 23764 लोगों ने बीमारी से तंग आकर आत्महत्या की, जो कि कुल आत्महत्या का 17.7 प्रतिशत है।

"मेरी बेटी बहुत होनहार थी। हर कोई कहता था बड़ी होकर बड़ी अधिकारी बनेगी, लेकिन पता नहीं किसकी नजर लग गई। चार साल पहले एक दिन उसके पेट में दर्द उठा। हम लोग उसे अस्पताल लेकर गए, जहां जांच में पता चला कि उसके लीवर में दिक्कत है। इसके बाद वह परेशान रहने लगी। लोगों से बात भी कम करती थी। लीवर के साथ-साथ वह मानसिक रूप से भी बीमार हो गई। हमें नहीं पता था कि वो इतना बड़ा कदम उठा सकती है।" पूनम के पिता राजकुमार बिष्ट फोन पर बताते हैं।

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एनसीआरबी ने जो आंकड़ा दिया है उसमें से 172 एड्स, 1267 कैंसर, 1121 पैरालेसिस, 10134 मानसिक और 11070 अन्य गंभीर बीमारियों से परेशान लोगों ने आत्महत्या की। यहां गौर करने करने वाली बात है कि मानसिक विक्षिप्तता की वजह से 10134 लोग ने आत्महत्या की, जो गंभीर बीमारी के बाद दूसरी सबसे बड़ी वजह है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार भारत की 135 करोड़ की आबादी में 7.5 प्रतिशत (10 करोड़ से अधिक) मानसिक रोगों से प्रभावित हैं। वहीं भारत में एक लाख की आबादी पर 0.3 मनोचिकित्सक, 0.07 मनोवैज्ञानिक और 0.07 सामाजिक कार्यकर्ता हैं। वहीं विकसित देशों में एक लाख की आबादी पर 6.6 मनोचिकित्सक हैं। मेंटल हॉस्पिटल की बात करें तो विकसित देशों में एक लाख की आबादी में औसतन 0.04 हॉस्पिटल हैं जबकि भारत में यह 0.004 ही हैं।

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"भारत में मानसिक बीमारी से ग्रसित लोगों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ती जा रही है। आने वाले दस वर्ष में दुनिया भर के मानसिक समस्याओं से ग्रसित लोगों की एक तिहाई संख्या भारतीयों की हो सकती है। हमारे देश में मानसिक स्वास्थ्य पर उतना जोर नहीं दिया जाता जितने की जरूरत है।" ये कहना है लखनऊ में रहने वाली मनोवैज्ञानिक डॉ. शाजिया सिद्दीकी का।

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"भारत में पहले एक राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम प्रारंभ किया गया था, लेकिन उस दिशा में कोई खास प्रगति नहीं हो पाई। वहीं गम्भीर बीमारी होने पर गरीब आदमी के पास इतने पैसे ही नहीं होते कि वह अस्पताल में जाकर अपना इलाज करवा सके, लिहाजा वह आत्महत्या का रास्ता तय कर लेता है। " डॉ. शाजिया आगे कहती हैं।

आत्महत्या का सीधा अर्थ है स्वयं को मारना अर्थात जानबूझ कर अपनी मृत्यु का कारण बनना। देश में पिछले कुछ सालों से आत्महत्या के प्रकरण बढ़ते ही जा रहे हैं। ऐसा देखा गया है हर आत्महत्या के पीछे कोई न कोई कारण छिपा होता है। आर्थिक संकट, लम्बी बीमारियां, तनाव, अवसाद, मानसिक विकारों आदि अनेकों कारणों को आत्महत्या का कारण मन गया है।

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