बिहार के गाँवों में एक बार फिर कुओं की तरफ लौट रहे ग्रामीण

बिहार के कई गाँवों में हैंडपंपों के पानी में जहरीले रसायनों की वजह से एक बार फिर लोग कुओं की तरफ लौट रहे हैं, उन्होंने कुओं को पुनर्जीवित करके फिर से इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। इन गाँवों में कुओं के इस्तेमाल से बीमारियों में भी कमी आयी है।

Update: 2022-05-26 13:18 GMT

मदारपुर (खगड़िया), बिहार

बिहार के खगड़िया जिले के मदारपुर के रहने वाले 72 वर्षीय मनुसत्यम राय का दावा है कि जब से ग्रामीणों ने पीने के पानी के लिए हैंडपंप का उपयोग छोड़कर कुओं से पानी का उपयोग करना शुरू कर दिया है, तब से उनके गाँव में कैंसर के मामलों में कमी आई है।

"2000-2010 के बीच, हमारे गाँव में कैंसर और पेट से संबंधित बीमारियों से 25 से अधिक लोगों की मौत हुई। उनमें से अधिकांश को लीवर कैंसर था, डॉक्टरों ने कहा कि जहरीले पानी पीने कारण ऐसा हुआ, "उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया। लेकिन, एक बार जब गाँव के निवासी हैंडपंपों पर निर्भर रहने के बजाय कुओं से पानी लाने लगे, तो मामले कम हो गए, 72 वर्षीय मनुसत्यम ने कहा।

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मदारपुर गाँव की आबादी करीब छह हजार है। मनुसत्यम के मुताबिक, ग्रामीण 2011 तक हैंडपंप से पानी पी रहे थे। मदारपुर गाँव में कुल चार कुएं हैं और उनमें से तीन गाँव की पीने योग्य पानी की ज़रूरतों के लिए उपयोग किए जाते हैं जबकि चौथे कुएं को अभी तक पुनर्जीवित नहीं किया गया है।

जब गाँव कनेक्शन ने निकटतम स्वास्थ्य केंद्र से संपर्क किया, तो पता चला कि मदारपुर गाँव में विषाक्त पदार्थों से भरे पानी के सेवन से होने वाली बीमारियों की संख्या में गिरावट दर्ज की गई है।

"खगड़िया जिले में विषाक्त पदार्थों से भरे पानी पीने के कारण होने वाले लिवर संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं। गोगरी ब्लॉक [जिसमें मदारपुर स्थित है] के लिए भी यही सच है, लेकिन यह देखा गया है कि मदारपुर गाँव और उसके आसपास के कुछ अन्य गाँवों में इस तरह की बीमारियों के मामलों में भारी गिरावट आई है, "डॉ अरविंद कुमार सिन्हा, जोकि मदारपुर गांव से करीब 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गोगरी प्रखंड मुख्यालय के रेफरल अस्पताल में नियुक्त हैं।

मदारपुर के साथ ही महेशखुंट और छोटी मदारपुर गाँव के ग्रामीण भी कुंए का पानी ही इस्तेमाल करते हैं। फोटो: राहुल तिवारी

मदारपुर के अलावा उसके पड़ोसी गाँव महेशखुंट और छोटी मदारपुर के ग्रामीण भी अपने पीने के पानी के उपयोग के लिए कुओं के पानी का उपयोग करते हैं।

गाँव कनेक्शन की 'पानी यात्रा' की सीरीज के दौरान रिपोटर्स और कम्युनिटी जर्नलिस्ट की हमारी टीम ने देश के विभिन्न राज्यों के दूरदराज के गाँवों की यात्रा कर रहे हैं। ताकि वे यह पता लगा सके कि गाँवों में रहने वाले लोग किस तरह से भीषण गर्मी में अपनी पानी की जरूरतों को पूरा कर रहे हैं।

"हमारे गाँव के अधिकांश ग्रामीण पीने के पानी के लिए कुओं का उपयोग करते हैं। जब से हमने लगभग दस साल पहले कुओं के पानी का उपयोग करना शुरू किया है, हमने देखा है कि पेट की बीमारियां अब बहुत कम होती हैं, "मदारपुर से लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित नीरपुर गाँव के राहुल कुमार ने गाँव कनेक्शन को बताया।

2009-2011 के बीच, एक गैर सरकारी संस्था मेघ पाइन अभियान, जोकि बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल जैसे कई राज्यों में जल संकट के मुद्दे पर काम करता है, ने खगड़िया के लोगों को एक हैंडपंप और कुएं से लिए गए पानी की गुणवत्ता को दिखाया। हैंडपंप के पानी में लोहे की उच्च उपस्थिति का अमरूद के पत्तों पर संक्षारक प्रभाव पड़ा, जबकि कुओं से निकाले गया पानी साफ रहा।

गैर सरकारी संस्था मेघ पाइन अभियान ने ग्रामीणों को कुंए का पानी प्रयोग में लाने के लिए जागरूक किया। फोटो: राहुल तिवारी

इस परीक्षण के साथ ही पिछले कुछ वर्षों में कैंसर के मामलों में गिरावट ने ग्रामीणों को आश्वस्त किया कि पानी के लिए हैंडपंप बिल्कुल सुरक्षित नहीं है।

2009-2011 के बीच, मेघ पाइन अभियान ने कुल 64 खोदे गए कुओं को पुनर्जीवित करने में सुपौल, सहरसा, खगड़िया, मधुबनी और पश्चिम चंपारण जिलों में स्थानीय लोगों की मदद की जबकि 41 ऐसे कुओं की मरम्मत में भी सहायता की गई।

50 वर्षीय निवासी अमरलता देवी लगभग एक दशक पहले किए गए इन प्रयासों को याद करती हैं, जिससे उनके गाँव को पीने के पानी की जरूरतों के लिए हैंडपंप से कुओं में बदलने में मदद मिली।

उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया कि स्वच्छ पेयजल के महत्व के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए कुछ सामाजिक कार्यकर्ता और गैर-लाभकारी संस्थाएं गाँव में आई थीं।

"कुछ सामाजिक कार्यकर्ता ने हमारे गाँव में आए और हमें अमरूद के पत्तों से नुकसान पहुंचाने वाले हैंडपंपों के जहरीले पानी का असर दिखाया। ये वही पानी था जिसे हम पीते थे। उन्होंने हमारे पुराने टूटे हुए कुओं को भी वापस लाने में हमारी मदद की, "अमरलता देवी ने कहा।

जब गाँव कनेक्शन ने प्रदेश में कुओं की स्थिति की जानकारी के लिए जल जीवन हरियाली मिशन के मिशन निदेशक राहुल कुमार से संपर्क किया तो उन्होंने बताया कि कुल 13,630 सार्वजनिक अतिक्रमित कुओं को चिन्हित किया गया है, जिनमें से 5490 कुओं को अतिक्रमण मुक्त कर लिया गया है और बाकी अभी प्रक्रिया में हैं।

मिशन निदेशक राहुल कुमार ने बताया, "अभियान के तहत कुल 30,425 सार्वजनिक कुओं के जीर्णाद्धार का लक्ष्य रखा गया है, जिनमें से 18,170 का जीर्णाद्धार कार्य पूरा कर लिया गया है और बाकी अभी प्रक्रियाधानी हैं। इस योजना के तहत सभी सार्वजनिक कुओं के पास सोख्ता का निर्माण भी कराया जा रहा है। कुल लक्षित 18,760 सार्वजनिक कुओं में से 12,871 कुओं के किनारे सोख्ता निर्माण हो गया है।"

"ग्रामीणों के बीच यह धारणा है कि पानी तोड़ना या कुएं में बाल्टी डालकर पानी निकालने से पानी साफ होता है, लेकिन इसका एक वैज्ञानिक कारण भी है।" फोटो: एकलव्य प्रसाद

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एक बार फिर अपनी जड़ों की ओर लौट रहे, विज्ञान भी करता है समर्थन

मेघ पाइन अभियान के संस्थापक एकलव्य प्रसाद गाँव कनेक्शन से बताते हैं, "ग्रामीणों के बीच यह धारणा है कि पानी तोड़ना या कुएं में बाल्टी डालकर पानी निकालने से पानी साफ होता है, लेकिन इसका एक वैज्ञानिक कारण भी है।"

बाल्टी से निकाला गया पानी साफ होता है। एक बाल्टी से पानी को हिलाने से वातन (पानी के साथ हवा का मिश्रण) होता है, जिससे लोहे और आर्सेनिक जैसे तत्वों का ऑक्सीकरण होता है, उन्होंने समझाया।

ऑक्सीकरण के कारण तत्व कुएं के तल पर बैठ जाते हैं।

"बाल्टी से पानी को हिलाने से लोहे को उसके घुलनशील से अघुलनशील रूप में बदल दिया जाता है जो अवक्षेपित हो जाता है। इसी तरह, घुलनशील आर्सेनिक अपनी अघुलनशील अवस्था में बदल जाता है और कुएं के तल पर जमा हो जाता है, "एकलव्य प्रसाद ने आगे कहा।

दूसरी ओर एक हैंडपंप में, इसके संलग्न डिजाइन के कारण ऑक्सीकरण शायद ही कभी होता है।


खगड़िया जिले में जन स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी ने कहा कि कुएं का पानी आर्सेनिक से मुक्त है, जिसे कैंसर का कारण माना जाता है।

"ग्रामीण क्षेत्रों में कुएं स्वच्छ पानी का सबसे अच्छा स्रोत हैं। इसका पानी आर्सेनिक के हानिकारक स्तरों से मुक्त पाया गया है। यही कारण है कि कई जल विशेषज्ञ कुओं से पानी के उपयोग को प्रोत्साहित करने के लिए जागरूकता अभियान चला रहे हैं। यह बस इतना ही है, "जन स्वास्थ्य विभाग के रासायनिक वैज्ञानिक संजय पांडेय ने गाँव कनेक्शन को बताया।

साथ ही राज्य सरकार के जल संसाधन विभाग के एक इंजीनियर राजेंद्र कुमार ने कहा कि सरकार द्वारा किए गए शोध में कुओं के पानी में आर्सेनिक या उच्च स्तर या लोहे की मौजूदगी नहीं पाई गई है।

राजेंद्र कुमार ने गाँव कनेक्शन को बताया, "यह महसूस करना महत्वपूर्ण है कि बिहार में भूजल में आर्सेनिक का उच्च स्तर औद्योगिक अपशिष्ट या प्रदूषण के कारण नहीं है, बल्कि भूमिगत जल भंडार के अत्यधिक दोहन के कारण है।" कुएं यह सुनिश्चित करते हैं कि पानी का अत्यधिक दोहन या अपव्यय न हो। उन्होंने कहा कि सूरज की किरणें सीधी कुओं के अंदर पड़ने से कुओं का पानी दूसरे स्रोतों के मुकाबले साफ होता था।

'नल तो हैं, लेकिन पीने के लिए पानी नहीं'

इस बीच, मदारपुर गाँव की निवासी राम काली देवी ने ग्रामीण घरों में नल के पानी के कनेक्शन पर सरकार की पहल के बारे में शिकायत की।

"सरकार के की योजना से कोई फायदा नहीं हो रहा। नल तो लगा हुआ है लेकिन नल में पानी नहीं आता है। वहां पर बहुत नल की टोटी टूटी हुई है। सरकार ने गाँव में नल जल का पानी टैंक लगवा दिया है लेकिन टैंक में पानी कौन भरेगा, उसका रख रखाव की कोई व्यवस्था नहीं है। पहले कभी-कभी पानी आता था लेकिन अब नहीं आ रहा है, "50 वर्षीय राम कली देवी ने बताया।

उन्होंने कहा कि नलों के खराब होने की शिकायतों का कोई समाधान नहीं किया जा रहा है।

सरकार द्वारा किए गए शोध में कुओं के पानी में आर्सेनिक या उच्च स्तर या लोहे की मौजूदगी नहीं पाई गई है। फोटो: राहुल तिवारी

वो आगे कहती हैं, "शिकायत करने के बावजूद भी कार्रवाई नहीं होती है। सरकार का जल नल योजना गाँव में कारगर नहीं है। सरकार की जल नल योजना से गाँव को जोड़ने के बजाय और कुएं का निर्माण हो तो गाँव वालों को ज्यादा फायदा होगा।"

दिलचस्प बात यह है कि जल जीवन मिशन के आंकड़ों के अनुसार, 92.72 प्रतिशत ग्रामीण घरों में नल का पानी है। केंद्र सरकार की नल जल योजना का लक्ष्य 2024 तक देश के सभी ग्रामीण घरों में नल के पानी के कनेक्शन उपलब्ध कराना है।

बिहार में भूजल प्रदूषण संकट

राज्य सरकार की वार्षिक बजट पूर्व रिपोर्ट, बिहार आर्थिक सर्वेक्षण 2021-22 के अनुसार, राज्य के 38 जिलों में से 29 में भूजल आर्सेनिक, फ्लोराइड या आयरन से दूषित है। कुल 114,691 ग्रामीण वार्डों में से 56,544 ग्रामीण वार्डों में पानी और स्वच्छता राज्य के जन स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के दायरे में आता है।


"इन वार्डों में से 30,272 वार्डों में पेयजल गुणवत्ता प्रभावित क्षेत्रों में और 26,272 गैर-गुणवत्ता प्रभावित क्षेत्रों में आता है। वर्तमान में, 4742 वार्डों में पीने के पानी में आर्सेनिक, 3791 में फ्लोराइड और 21,739 में उच्च स्तर का आयरन होता है। इनमें से 4238 आर्सेनिक प्रभावित, 3763 फ्लोराइड प्रभावित और 20,996 आयरत प्रभावित वार्ड में काम पूरा हो चुका है।

पटना स्थित महावीर कैंसर संस्थान एवं अनुसंधान केंद्र और मैनचेस्टर विश्वविद्यालय द्वारा किया गए एक संयुक्त शोध में राज्य के कम से कम दस जिलों के भूजल में यूरेनियम का उच्च स्तर पाया गया।

बिहार, भारत में भूजल पेयजल में आर्सेनिक और यूरेनियम के वितरण और भू-रासायनिक नियंत्रण शीर्षक से शोध अध्ययन 6 अप्रैल, 2020 को इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एनवायरनमेंटल रिसर्च एंड पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित हुआ था। अध्ययन के अनुसार, सुपौल, गोपालगंज, सीवान बिहार में सारण, पटना, नालंदा, नवादा, औरंगाबाद, गया और जहानाबाद ऐसे 10 जिले हैं जहां भूजल में यूरेनियम का उच्च स्तर पाया गया।

पटना स्थित महावीर कैंसर संस्थान एवं अनुसंधान केंद्र और मैनचेस्टर विश्वविद्यालय द्वारा किया गए एक संयुक्त शोध में राज्य के कम से कम दस जिलों के भूजल में यूरेनियम का उच्च स्तर पाया गया। फोटो: एकलव्य प्रसाद

आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट का संज्ञान लेते हुए, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग [एनएचआरसी] ने 4 मार्च, 2022 को कहा कि प्रदूषित पानी लिवर और किडनी से संबंधित समस्याओं सहित गंभीर स्वास्थ्य खतरे पैदा कर सकता है'।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग [एनएचआरसी] ने मुख्य सचिव और सचिव, सार्वजनिक स्वास्थ्य इंजीनियरिंग विभाग, सरकार को नोटिस जारी किया है। बिहार सरकार ने छह सप्ताह में रिपोर्ट मांगी है। इसमें उन जिलों में पीने योग्य पानी उपलब्ध कराने के लिए किए गए सुरक्षा उपायों और "हर-घर-जल-नल-योजना" के तहत योजना का कार्यान्वयन भी शामिल होना चाहिए। आयोग ने राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से भूजल के रैंडम सैंपलिंग पर रिपोर्ट देने को भी कहा है।

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