बिहार: लक्ष्य से पिछड़ने के बाद भी नितीश सरकार ने धान खरीद की समय सीमा घटाई, किसानों को हर क्विंटल पर 500-600 रुपए का घाटा

कृषि कानूनों और MSP पर चल रहे हंगामे के बीच बिहार के किसानों के किसान अलग मुश्किल में फंसे हैं। बिहार सरकार मार्च के बजाए सिर्फ जनवरी तक ही धान खरीदेगी जबकि सरकार तय लक्ष्य से अब तक महज 22 फीसदी खरीद ही कर पाई है।

Update: 2021-01-09 11:45 GMT
देशभर की मंडियों में अभी भी धान की खरीदी हो रही है। ( फाइल फोटो- गांव कनेक्शन )

बिहार सहकारिता विभाग के आंकड़ों के अनुसार 8 जनवरी तक कुल 9,92,230.088 मीट्रिक टन ही धान की खरीद हो पाई जो तय लक्ष्य (45 लाख मीट्रिक टन) का लगभग 22% है। अभी तक महज 1,30,877 किसानों से ही धान की खरीद हुई है जबकि ऑनलाइन पांच लाख से ज्यादा किसानों ने आवेदन किया है।

बिहार सरकार की नयी अधिसूचना के अनुसार प्रदेश में प्राइमरी एग्रीकल्चरल क्रेडिट सोसाइटी (पैक्स) और व्यापार मंडल अब 31 जनवरी तक ही सरकारी रेट पर धान की खरीद करेंगे, जबकि पहले 31 मार्च तक धान खरीदा जाना था। प्रदेश में 15 नवंबर से धान की खरीद 6,491 पैक्स व व्यापार मंडलों द्वारा किया जा रहा।

गया जिले के किसान कुंदन कुमार के पास अभी भी लगभग 100 क्विंटल धान रखा है। वे दो बार मंडी गये लेकिन उन्हें यह कहकर लौटा दिया गया कि अभी धान में नमी ज्यादा है। कई बार खुले बाजार में भी धान बेचना चाहा लेकिन सही कीमत नहीं मिली। वे सही कीमत और धान की नमी कम होने का इंतजार ही कर रहे थे कि उन्हें सरकार के नये आदेश की जानकारी मिली। अब वे किसी भी कीमत पर उपज बेचने को तैयार हैं।

बिहार के जिला गया, प्रखंड खिजरासराय के गांव इस्मालपुर के कुंदन ने 10 बीघा खेत (लगभग 6 एकड़) में धान लगाया था। वे बताते हैं, "इस साल बहुत अच्छी बारिश हुई। खूब धान पैदा हुआ, नहीं तो 100 क्विंटल तो जल्दी पैदा ही नहीं होता था। पैदावार ज्यादा देखकर खुशी तो हुई लेकिन कीमत न मिलने की वजह से दुख भी है। दो बार पैक्स गया लेकिन उन्होंने नमी ज्यादा बताकर धान लौटा दिया। यहां बाहर के व्यापारी 1,200, 1,250 रुपए क्विंटल में धान मांग रहे हैं।"

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"नमी कम करने के लिए धान अभी धूप में रखे हैं। अब खबर आ रही है कि सरकार ने 31 जनवरी तक ही धान खरीदेगी। पैक्स लेकर जाउंगा तो फिर वही सब होगा। अब अच्छी कीमत की आस नहीं है। अब जो मिलेगा, उसे लेकर हटा देना है।" कुंदन नाराजगी जताते हुए कहते हैं।

इसी गांव के युवा किसान अमन मिश्रा लगभग 10 क्विंटल धान लेकर पैक्स की मंडी में गये थे, लेकिन नमी बताकर उन्हें लौटा दिया गया। वे कहते हैं, "मुझे गेहूं लगाना था तो मेरे पास दूसरा कोई विकल्प नहीं था। 1,800 वाला धान मैंने 1,250 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से बेच दिया। सरकारी खरीद केंद्रों पर कोई न कोई कारण किसानों को लौटा ही दिया जाता है।"

पिछले पांच साल में उत्पादन की तुलना में धान की सरकारी खरीद।

बिहार में पिछले साल एक नवंबर से धान की खरीद शुरू हुई थी जो अप्रैल तक चली थी। इस बार खरीद भी 15 दिन की देरी से शुरू हुई। लक्ष्य से बहुत पीछे होने के बावजूद खरीद की समस सीमा सीधे दो महीने क्यों कम कर दी गई? इस बारे में सहकारिता विभाग, बिहार के रजिस्ट्रार संभू सेन ने गांव कनेक्शन को फोन पर बताया, "ये फैसले तो ऊपर से लिए जाते हैं। हमें तो इतना बताया गया कि हमने शुरुआती महीनों पर अच्छी खरीद की है। इसलिए समय सीमा को कर करना ठीक रहेगा, और अभी तो खरीद हो ही रही है। कोई किसान बेचगा नहीं। जिन लोगों रजिस्ट्रेशन कराया, उनसे खरीद होगी।"

इस पर ज्यादा जानकारी के लिए हमने खाद्य एवं उपभोक्ता संरक्षण विभाग, बिहार के अधिकारियों से भी बात करने की कोशिश की। सचिव विनय कुमार के कार्यालय से बताया कि मीटिंग में हैं और अपर सचिव चंद्रशेखर कुमार ने इस मुद्दे पर कुछ भी कहने से मना कर दिया।

बिहार में प्राथमिक कृषि ऋण सोसायटी, जिसे आमतौर पर PACS के रूप में जाना जाता है, एक पंचायत और ग्रामीण स्तर की इकाई है जो किसानों को ग्रामीण ऋण प्रदान करती है। इसके साथ ही उन्हें अपने उत्पाद को अच्छी कीमत पर बेचने में मदद करने के लिए विपणन सहायता भी प्रदान करती है और अपने अधिकार क्षेत्र के तहत कितना क्षेत्र बोया जाता है, इसके आधार पर खाद्यान्नों की सरकारी खरीद का लक्ष्य दिया जाता है। PACS के अलावा 500 व्यापार मंडल हैं जो धान की खरीद भी करते हैं।

अचानक से समय सीमा घटाने से किसानों के साथ-साथ जिलों में बैठे खरीद एजेंसियों के लोग भी परेशान हैं। जिला कैमूर के मसाढ़ी पंचायत के पैक्स अध्यक्ष गुप्तेश्वर सिंह ने फोन पर बताया, "हर पैक्स केंद्र को टारगेट दिया गया था जो मार्च तक पूरा करना था। अब इस फैसले की वजह से दिक्कत हो रही है। किसानों की भीड़ भी बढ़ने लगी है, लक्ष्य पूरा करने में दिक्कत होगी। हमारे पंचायत में 20 हजार क्विंटल धान खरीद का टारगेट था जबकि अभी तक हम 7,345 क्विंटल ही खरीद पाये हैं। जबकि बेनीपुर पंचायत में 15,000 हजार क्विंटल का टारगेट है और खरीद 6,600 क्विंटल की ही हुई है। बड़ौरा पंचायत में 10,000 क्विंटल का टारगेट था और खरीद 1,155 क्विंटल की हुई है।"

कैमूर के ही ब्लॉक रामगढ़ पंचायत देवहलिया के पैक्स अध्यक्ष गजेन्द्र सिंह बताते हैं, "हमारे पंचायत को 20 हजार क्विंटल धान खरीदने का लक्ष्य दिया गया है जबकि अभी तक 6 हजार क्विंटल ही धान खरीदा जा पाया है। 160 किसानों ने रजिस्ट्रेशन कराया है जबकि 100 अभी वेटिंग लिस्ट में हैं।"

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गया के वरिष्ठ पत्रकार और खेती-किसानी के मामलों पर लिखने वाले विनय कुमार समय सीमा करने से किसानों को होने वाली असल परेशानी की ओर ध्यान दिलाते हैं। वे बताते हैं, "किसानों को सबसे ज्यादा दिक्कत नमी को लेकर आती है। बिहार सरकार 17 प्रतिशत तक नमी वाला धान ही खरीदती है और नमी कम तभी होती है जब धूप थोड़ी कड़क होगी। जो फरवरी से पहले नहीं होने वाली। कई जिलों में बारिश होने से बहुत से किसानों का धान भी गया है, जबकि सुखाने के लिए समय बहुत कम बचा है।"

"जहां धान की कटाई हो भी गई है तो वहां भी नमी 17% ज्यादा ही होगी। सरकार नमी में छूट की मांग तो केन्द्र से हर साल करती है, लेकिन दो प्रतिशत छूट देने का आदेश जब तक केन्द्र से आता है तब तक धान पूरा सूख जाता है और नमी खुद ही कम हो जाती है।" विनय आगे जोड़ते हैं।

पिछले कुछ वर्षों के रिकॉर्ड देखेंगे तो पता चलता है कि प्रदेश में सरकारी दर पर धान की खरीद लक्ष्य के अनुरूप हो ही नहीं पा रही। भारतीय खाद्य निगम, बिहार सरकार और मीडिया रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2019-20 में 20 लाख टन धान की खरीद की गई थी, जबकि लक्ष्य 30 लाख टन का था। 

इससे पहले वर्ष 2014-15 में धान खरीद का लक्ष्य 24 लाख टन था जबकि खरीद हुई मात्र 19 लाख टन की। 2015-16 में 27 लाख टन का लक्ष्य था और 18.23 लाख टन ही हो पाई थी। 2016-17 में 18.42 लाख टन 2017-18 में 11.84 लाख टन, 2018-19 में 14.16 लाख टन, 2019-20 में 20.01 लाख टन चावल खरीद हुई, जबकि इन सालों में सरकार का लक्ष्य 30 लाख टन से ज्यादा का ही था।


कम खरीद होने का खामियाजा 79.46 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि में से लगभग 32 लाख हेक्टेयर (40 प्रतिशत से अधिक) में धान की खेती करने वाले किसानों को उठाना पड़ता है। शायद यही वजह है कि प्रदेश के किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य का फायदा नहीं मिल पाता।

कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) की वर्ष 2017-18 की रिपोर्ट के अनुसार बिहार धान उत्पादन के मामले में देश में पांचवे स्थान पर था। अभी भी शीर्ष 10 राज्यों में शामिल है लेकिन एमएसपी के मामले दूसरे राज्यों से बहुत पीछे है।

पिछले साल 18 सितंबर को राज्यसभा में पूछे गये एक सवाल के जवाब में उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय की तरफ से केंद्रीय उपभोक्ता मामलों के राज्य मंत्री रावसाहेब दानवे पाटिल ने बताया कि 9 सितंबर 2020 तक देश के एक करोड़ 24 लाख किसानों से एमससपी पर धान की खरीद हुई थी।

एमएसपी से लाभान्वित होने वाले किसानों की संख्या- 18 सितंबर को राज्यसभा में पूछे गये एक सवाल के जवाब में उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय का जवाब। राज्यवार दिये गये आंकड़ों के अनुसार खरीफ विपणन वर्ष 2019-20 (9 सितंबर तक) में बिहार के 279,402 लाख किसानों को एमएसपी का लाभ मिला। इससे चार वर्ष पहले भी प्रदेश के 275,484 लाख किसानों से धान की खरीद सरकारी दर पर हुई थी।

18 सितंबर को राज्यसभा में पूछे गये एक सवाल के जवाब में उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय का जवाब।

वर्ष 2017-18 में तो ये आंकड़ा 163,425 पर आ गया था। बिहार की अपेक्षा दूसरे प्रदेशों की बात करें तो वर्ष 2019-20 (9 सितंबर तक) छत्तीसगढ़ के 18,38,593, हरियाणा के 18,91,622 किसानों से धान की खरीद एमएसपी पर हुई। दूसरे राज्यों से बिहार बहुत पीछे है।

गया के वरिष्ठ पत्रकार और खेती-किसानी के मामलों पर लिखने वाले विनय कुमार समय सीमा करने से किसानों को होने वाली असल परेशानी की ओर ध्यान दिलाते हैं। वे बताते हैं, "किसानों को सबसे ज्यादा दिक्कत नमी को लेकर आती है। बिहार सरकार 17 प्रतिशत तक नमी वाला धान ही खरीदती है और नमी कम तभी होती है जब धूप थोड़ी कड़क होगी। जो फरवरी से पहले नहीं होने वाली। कई जिलों में बारिश होने से बहुत से किसानों का धान भी गया है, जबकि सुखाने के लिए समय बहुत कम बचा है।"

"जहां धान की कटाई हो भी गई है तो वहां भी नमी 17% ज्यादा ही होगी। सरकार नमी में छूट की मांग तो केन्द्र से हर साल करती है, लेकिन दो प्रतिशत छूट देने का आदेश जब तक केन्द्र से आता है तब तक धान पूरा सूख जाता है और नमी खुद ही कम हो जाती है। कुल मिलाकर सरकार को धान खरीदना ही नहीं होता।" विनय आगे जोड़ते हैं।

धान का एमएसपी (ग्रेड ए धान का 1,888 रुपए प्रति क्विंटल और अन्य धान के लिए 1868 रुपए प्रति क्विंटल) आमतौर पर खुले बाजार की कीमत से अधिक होता है

इनपुट- अंकित सिंह, कैमूर

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