जानिए कैसे तैयार होता फांसी का फंदा, इस जेल में बने फंदे पर लटकाया गया था अफजल गुरु

देश के ज्यादातर जेलों में फांसी के लिए जिस रस्सी का प्रयोग किया जाता है वो बक्सर जेल में तैयार होती है

Update: 2019-12-11 13:19 GMT

फिल्मों और टीवी में हमने अक्सर देखा है कि अपराधी को फांसी के फंदे पर लटका दिया गया, लेकिन क्या आपको पता है यह फांसी का फंदा कहां और कैसे तैयार होता है। आजकल बिहार के केंद्रीय जेल बक्सर की चर्चा हर तरफ हो रही है, क्योंकि बक्सर जेल में बनने वाली फांसी की रस्सी का काफी पुराना इतिहास रहा है। देश के ज्यादातर जेलों में फांसी के लिए जिस रस्सी का प्रयोग किया जाता है वो बक्सर जेल में तैयार होती है। अफजल गुरु को भी फांसी पर लटकाने के लिए बक्सर में ही रस्सी तैयार की गई थी।

निर्भया कांड के दोषियों को फांसी देने की मांग काफी समय से चल रही है। ऐसी अटकलें लगाई जा रही हैं कि इन्हें जल्द ही फांसी के फंदे पर लटकाया जा सकता है। इस बात के कयास इसलिए भी लगाए जा रहे हैं क्योंकि बिहार के बक्सर सेंट्रल जेल में 10 फांसी के फंदे बनाने के आदेश दिए गए हैं।

सेंट्रल जेल में तैयार हो रहे 10 फांसी के फंदों पर किन्हें लटकाया जाएगा इस बात का अब तक खुलासा नहीं हुआ है। तमाम अटकलों के बीच बक्सर सेंट्रल जेल के अधीक्षक विजय कुमार अरोड़ा ने बताया, " पिछले सप्ताह हमारे अधिकारियों से निर्देश मिले थे कि 10 फांसी के फंदे तैयार करने हैं। हम लोग इसे बनाने में लगे हुए हैं। इन रस्सियों को कहां भेजना है मुझे इस बात की जानकारी नहीं है। "

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विजय कुमार ने बताया, " बक्सर जेल में अंग्रेजों के समय से ही फांसी की रस्सी तैयार होती है। एक फंदे में 72 सौ धागों का इस्तेमाल किया जाता है। इन रस्सियों को तैयार करने के लिए कुशल कैदियों को लगाया जाता है। एक रस्सी को चार-पांच कैदी मिलकर दो से तीन दिन में तैयार करते हैं। एक रस्सी की लंबाई 60 फीट होती है। पिछली बार जब हमारे यहां फांसी की रस्सी तैयार की गई थी उसकी कीमत 1725 रुपये थी। लेकिन इस बार कीमत में कुछ इजाफा हो सकता है, क्योंकि इसमें लगने वाले सामान के दाम बढ़ गए हैं। " 

" संसद हमले के दोषी अफजल गुरु को भी बक्सर जेल में तैयार फंदे पर लटकाया गया था। इस जेल में बनी रस्सी कभी फेल नहीं हुई। पहले ये रस्सी फिलीपींस की राजधानी मनीला से मंगाए गए धागों से तैयार होती थी, इसलिए रस्सी को 'मनीला रोप' भी कहा जाता है। पहले कॉटन से धागा बनाया जाता था, लेकिन अब बाजार से धागा खरीद लिया जाता है, जिससे फांसी का फंदा तैयार किया जाता है। " - जेल अधीक्षक विजय कुमार अरोड़ा

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फांसी पाए अपराधियों के अंतिम क्षणों के बारे में लिखी पुस्तक 'ब्लैक वॉरंट कनफेशंस ऑफ अ तिहाड़ जेलर' के लेखक सुनील गुप्ता ने अपनी किताब में भी बक्सर जेल में बनने वाली रस्सी का जिक्र किया है। एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, " ये रस्सी बाजार से खरीदी नहीं जाती बल्कि बिहार की बक्सर जेल में बनाई जाती है। इसको लचीला बनाने के लिए इस पर मोम या मक्खन का लेप किया जाता है। कुछ जल्लाद इसके लिए पके हुए केले को मसलकर रस्सी पर लगाते हैं।"

बक्सर सेंट्रल जेल के अधीक्षक विजय कुमार अरोड़ा।

 जेल नियमों के अनुसार किसी को फांसी देते वक्त कुछ नियमों का पालन करना बहुत जरूरी होता है। जिस वक्त फांसी दी जाती है उस समय जेल अधीक्षक, डीएम की तरफ से नियुक्त किया गया अधिकारी, डॉक्टर, जल्लाद के साथ ही सुरक्षा व्यवस्था में कुछ लोग भी मौजूद रहते हैं। अपराधी को फांसी सूर्योदय से पहले दी जाती है। फांसी के बाद अपराधी की मौत की जांच के लिए वहां मौजूद डॉक्टर दस मिनट बाद फंदे में ही यह चेक करता है कि अपराधी की मौत हो चुकी है की नहीं। डॉक्टर के कहने के बाद ही शव को फंदे से नीचे उतारा जाता है। आजादी के बाद भारत में पहली फांसी नाथूराम गोडसे को दी गई थी। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 1947 के बाद से देश में अब तक कुल 56 लोगों को फांसी दी गई है और याकूब मेमन भारत में फांसी की सजा (30जुलाई 2015) पाने वाला 57वां अपराधी था।

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