निर्भया केस के बाद अब तक लापरवाही बरतने वाले कितने पुलिस अधिकारियों के खिलाफ़ दर्ज हुई एफआईआर?

निर्भया केस के बाद ऐसा कानून बना कि अगर रेप जैसे मामलों में पुलिस कोताही बरतती है तो उनके खिलाफ़ धारा 166 (ए) के तहत FIR दर्ज हो। बीते आठ सालों में बदायूं गैंगरेप पहला मामला है जहाँ तत्कालीन थानाध्यक्ष के खिलाफ़ एफआईआर दर्ज हुई है।

Update: 2021-01-14 05:30 GMT

बलात्कार जैसे गंभीर मामलों में आपने पुलिस की लापरवाही के तमाम किस्से देखे, पढ़े और सुने होंगे, बदले में विभाग इन्हें या तो सस्पेंड कर देता या फिर लाइन हाजिर। जबकि निर्भया केस के बाद ऐसा कानून बना कि अगर ऐसे मामलों में पुलिस कोताही बरतती है तो उनके खिलाफ़ एफआईआर दर्ज हो और उन्हें कठोर सजा मिले। बीते आठ सालों में आपने ऐसे कितने मामले सुने जिसमें पुलिस के खिलाफ़ धारा 166 (ए) के तहत एफआईआर दर्ज हुई हो? उत्तर प्रदेश पुलिस ये आंकड़े देने में असमर्थ है।

अभी हाल ही में हुए यूपी के बदायूं गैंगरेप केस में लापरवाही बरतने वाले उघैती थाना क्षेत्र के तत्कालीन इंस्पेक्टर राघवेंद्र प्रताप सिंह के खिलाफ धारा 166 (ए) के तहत मुकदमा दर्ज हुआ है। जब किसी पुलिस अधिकारी के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई हो। इस मामले से जुड़े अधिकारी और जानकार इसे पुलिस की अच्छी पहल बता रहे हैं। उनका मानना है इससे पुलिस में भय पैदा होगा जिससे वो आगे से लापरवाही नहीं बरतेंगे और मामले की गम्भीरता को समझेंगे। 

बरेली रेंज के आईजी राजेश कुमार पाण्डेय ने गाँव कनेक्शन को फोन पर बताया, "बरेली रेंज का यह पहला मामला है जब लापरवाही बरतने पर उघैती के तत्कालीन इंस्पेक्टर के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई है। निर्भया काण्ड के बाद आईपीसी की धाराओं में बहुत सारे बदलाव हुए। कानून में ये व्यवस्था है कि रेप जैसे गंभीर मामलों में यदि कोई पुलिसकर्मी लापरवाही बरतता है तो उसके खिलाफ उसी थाने में धारा 166 (ए) के तहत मुकदमा दर्ज हो।"

ये है वो मंदिर जहाँ मृतका 3 जनवरी 2021 को शाम 5 बजे पूजा करने आयीं थीं. फोटो : नीतू सिंह 

राजेश कुमार पाण्डेय आगे कहते हैं, "बदायूं केस में पुलिस की गंभीर लापरवाही रही है। इंस्पेक्टर मौके पर नहीं पहुंचा, उसने अपने एसएसपी को भी गुमराह किया। सूचना मिलते ही उसे तुरंत एफआईआर दर्ज करनी चाहिए थी, मौके पर पहुंचकर जांच-पड़ताल करनी चाहिए थी और सही गलत का पता लगाना चाहिए था पर उसने इसमें से कुछ भी नहीं किया।" 

चार्जशीट कब तक दाखिल हो जायेगी? इस सवाल के जवाब में राजेश कुमार पाण्डेय कहते हैं, "चार्जशीट दाखिल होने में समय लगेगा। अभी हमारी कई बिन्दुओं पर छानबीन चल रही है कि परिजनों की तरफ से कब कौन थाने आया? किसे मामला बताया गया और पुलिस ने कार्रवाई करने में इतना विलंब क्यों किया?." 

वर्ष 2012 में दिल्ली में हुए निर्भया कांड के बाद सरकार ने यह महसूस किया कि महिलाओं के खिलाफ होने वाले अत्याचार और उत्पीड़न के मामलों में कानून में स्पष्ट दिशा निर्देश नहीं होने के कारण अक्सर दोषी बच निकलते हैं। कई मामलों में पुलिस व चिकित्सक भी अपने कर्तव्य का निर्वहन करने में आनाकानी करते हैं। जिस पर न्यायालय भी समय-समय पर टिप्पणी करती रही है। इन सभी से छुटकारा पाने के लिए आईपीसी की धारा 166 में संशोधन कर धारा 166 (ए) तथा धारा 166 (बी) को संसद में पारित कराकर कानून बना दिया गया। 

देखें पूरा वीडियो ... मृतका की माँ ने पुलिस की कार्रवाई पर क्या कहा :

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धारा 166 (ए) में यह प्रावधान है कि कोई भी महिला दुष्कर्म, एसिड फेंकना व मानव व्यापार से संबंधित मामलों की सूचना वह स्वयं या किसी अन्य के माध्यम से पुलिस को देती है तो उस सूचना पर पुलिस अधिकारी का कर्तव्य है कि वह तुरंत केस दर्ज कर जल्द से जल्द पीड़िता को इंसाफ दिलाए। पुलिस अधिकारी द्वारा केस न दर्ज करने या उसमें आनाकानी करने की स्थिति में संबंधित पुलिस अधिकारी के विरुद्ध आईपीसी की धारा 166 (ए) के तहत मुकदमा दर्ज करना पुलिस अधिकारी की कानूनी बाध्यता है। जिसमें दोषी पाये जाने पर संबंधित पुलिस अधिकारी को दो साल तक की सजा व जुर्माने का प्रावधान किया गया।

महिलाओं से संबंधित ऐसे मामलों में इलाज करने में निजी व सरकारी अस्पताल प्रशासन द्वारा आनाकानी करने या इलाज करने से इंकार करने पर आईपीसी की धारा 166 (बी) के तहत संबंधित चिकित्सक के विरुद्ध मुकदमा दर्ज किया जा सकता है। जिसमें दोषी पाये जाने पर एक साल तक की सजा व जुर्माने का प्रावधान है। निर्भया के केस के बाद पॉक्सो जैसे मामलों में पुलिस के खिलाफ लापरवाही बरतने पर सेक्शन 21 (बी) के तहत एफआईआर का प्रावधान है। महत्वपूर्ण बात यह है कि जानकारी के आभाव में पुलिस के खिलाफ कोई एफआईआर दर्ज नहीं करवा पाता। यही वजह है कि ये कानून लागू हुए आठ साल हो गये पर अभी तक किसी को सजा नहीं मिली।

यूपी, झारखंड और बिहार राज्यों में महिलाओं को नि:शुल्क कानूनी विधिक सलाह प्रदान करने वाली संस्था एसोसिएशन फॉर एडवोकेसी एंड लीगल इनिशिएटिव (आली) की कार्यकारी निदेशक एवं वकील रेनू मिश्रा कहती हैं, "मेरी जानकारी में आठ साल इस कानून को लागू हुए हो गये हैं लेकिन यूपी में किसी को भी सजा नहीं मिली है। बदायूं में पुलिस के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई ये विभाग की तरफ से एक अच्छा कदम है पर इसमें ये जरूरी है कि निष्पक्ष होकर जांच हो, समय से चार्जशीट फाइल हो अगर वो दोषी पाया जाए तो उसे सजा भी मिले।"

ये है वो कमरा जहाँ मृतका रहती थीं. फोटो : नीतू सिंह 

रेनू मिश्रा आगे कहती हैं, "कई बार जब मामले तूल पकड़ लेते हैं तब पुलिस के खिलाफ़ एफआईआर तो दर्ज हो जाती है पर चार्जशीट से नाम हटा दिया जाता है। ये कार्रवाई खानापूर्ति के लिए न हो, हो सकता है इसमें एफआर (फाइनल रिपोर्ट) लगा दी जाए क्योंकि ज्यादातर मामलों में ऐसा देखने को मिला है कि पुलिस, पुलिस के खिलाफ कार्रवाई नहीं करती। अगर इस मामले में सख्त कार्रवाई हुई तो एक अच्छा संदेश जाएगा, पुलिस में अपनी जवाबदेही को लेकर भय होगा।"  

आली संस्था द्वारा सूचना के अधिकार के तहत ये ये जानकारी प्राप्त की गयी कि 166 (ए) के तहत लापरवाही बरतने पर कितने पुलिस कर्मियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई है? जवाब में उन्हें पता चला कि यूपी में एक भी एफआईआर दर्ज नहीं हुई हैं, बदायूं गैंगरेप वो पहला मामला है जहाँ पुलिस के खिलाफ इस धारा के तहत कार्रवाई हुई है।  

उत्तर प्रदेश की पूर्व डीजीपी सुतापा सान्याल कहती हैं, "पुलिस में जवाबदेही तय नहीं है, सिस्टम में ही कई दिक्कतें हैं। पुलिसिंग की ट्रेनिंग और रिफ्रेशर ट्रेनिंग में संवेदनशीलता पर बात बढ़ानी होगी। ट्रेनिंग में मनोवैज्ञानिक को भी शामिल करना होगा जो एटीट्यूड पर बात करे। ऐसा ट्रेनिंग मॉड्यूल होना चाहिए जिसमें व्यवाहारिकता पर बात हो। एसओपी बनानी होगी, जिससे जवाबदेही तय हो। जो लीडर हैं उन्हें बताना होगा कि 166 (ए) में कोई कोताही नहीं बरती जाएगी।"

बदायूं के उघैती थाना पुलिस पर आरोप है कि मृतका का परिवार जब 4 जनवरी 2021 थाने शिकायत लेकर पहुंचा तो उसे तहरीर रखकर टरका दिया गया। परिजनों ने 112 पर फोन किया तब शाम को पुलिस पहुंची। घटना के 18 घंटे बाद शव का पंचनामा हुआ और 48 घंटे बाद पोस्टमार्टम। घटना का मुख्य आरोपी महंत घटना के दूसरे दिन शाम तक मन्दिर में ही बना रहा और सबको यह कहकर गुमराह करता रहा कि मृतका पूजा करने आयी थी और कुएं में गिर गयी जिस वजह से उसकी मौत हो गयी। पांच जनवरी को जब पोस्टमार्टम रिपोर्ट आयी तब कहीं जाकर इस घटना खुलासा हुआ और तब पुलिस सक्रिय हुई। मुख्य आरोपी महंत सत्यनारायण पर 50,000 रुपए का ईनाम भी रखा गया था। सात जनवरी को देर रात ग्रामीणों ने महंत को पकड़कर पुलिस के हवाले कर दिया था, दो आरोपी पहले ही गिरफ्तार हो चुके थे।

मृतका अपने बेटे के लिए स्वेटर बना रहीं थीं, बेटे ने कहा, 'अब ये स्वेटर कौन बनाएगा' फोटो : नीतू सिंह  

निर्भया केस लड़ चुकीं वर्तमान में हाथरस केस लड़ रहीं वकील सीमा समृद्धि कुशवाहा गाँव कनेक्शन को फोन पर बताती हैं, "इस कानून के लागू होने के बाद अगर किसी पुलिस अधिकारी के खिलाफ 166 (ए) के तहत एफआईआर दर्ज हुई है तो हमारी जानकारी में बदायूं पहला मामला होगा। मैं इस महत्वपूर्ण कदम की सराहना करती हूँ इससे अपराधियों में भय पैदा होगा और जनता का भरोसा पुलिस पर बढ़ेगा। मेरे पास जितने भी केस आते हैं उसमे 90 फीसदी मामलों में पुलिस की लापरवाही होती है। निर्भया केस के बाद कई नये कानून बने, धाराओं में संशोधन हुआ लेकिन उसका क्रियान्वयन न के बराबर देखने को मिला।" 

गाँव कनेक्शन ने उत्तर प्रदेश पुलिस महानिदेशक से लेकर कई वरिष्ठ अधिकारियों को फोन करके ये आंकड़े जुटाने की कोशिश की कि धारा 166 (ए) लागू होने के बाद कितने पुलिस अधिकारियों पर लापरवाही बरतने पर इस कानून के तहत एफआईआर दर्ज हुई है पर पुलिस विभाग ये आंकड़े देने में असमर्थ रहा। एडीजी लॉ एंड ऑर्डर ने कहा कि ईमेल करिए तब आंकड़े मिलेंगे। इस जानकारी के सन्दर्भ में गाँव कनेक्शन ने पुलिस महानिदेशक को एक ईमेल भेजते हुए पुलिस विभाग से सम्बंधित जितनी भी मेल आईडी वेबसाईट पर मिलीं सभी को सीसी करते हुए 12 जनवरी को एक ईमेल भेजा है। जैसे ही मेल का जवाब आ जाएगा खबर में अपडेट कर दिया जाएगा।  

यूपी में बलात्कार जैसे मामलों की घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं। एक के बाद एक लगातार वीभत्स घटनाएं सामने आ रही हैं। अभी हाल ही में जारी राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के वर्ष 2019 के आंकड़ों के अनुसार देश भर में हर दिन बलात्कार की 87 घटनाएँ दर्ज की जा रही हैं। इसी साल बलात्कार के कुल 32,033 मामले दर्ज किये गए, जिसमें सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही 3,065 मामले थे, जो कुल बलात्कार के मामलों का 10 प्रतिशत हैं।

कमरे में मृतका का सामान रखा देख उनके बच्चे रह-रहकर अपनी माँ को याद कर भावुक हो रहे थे. फोटो : नीतू सिंह 

महिलाओं को कानूनी विधिक सलाह प्रदान करने वाली दो संस्थाएं एसोसिएशन फॉर एडवोकेसी एंड लीगल इनिशिएटिव (आली) और कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव (सीएचआरआई) ने यूपी के 2016 -19 के बीच घटित 14 ऐसे मामलों के बीच 2019-20 में एक शोध किया। रिपोर्ट के अनुसार 11 मामलों की थाने में एफआईआर दर्ज कराने में दो दिन से लेकर 228 दिन तक का वक़्त लगा, वो भी तब जब हर पीड़िता की मदद के लिए एक सामाजिक कार्यकर्ता का साथ था। इस रिपोर्ट के अनुसार 14 में से हर मामले में पुलिस ने पहली बार में प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) दर्ज करने से मना कर दिया। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि पुलिस के इस रवैए के खिलाफ़ विधिक उपायों को आज़माना मुश्किल है और अक्सर इसका हल नहीं निकलता। 

इस रिपोर्ट पर सुप्रीम कोर्ट की वकील वृंदा ग्रोवर कहती हैं, "यह रिपोर्ट आज के दौर में महत्वपूर्ण है। इस बात को लिखना और समझना बहुत जरुरी है कि थाने के अंदर जानकारी का बहुत अभाव है। बलात्कार को लेकर पुरानी सोच उन पुलिस वालों में भी है जिन्हें न बलात्कार की समझ है ना ही कानून की। एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि किस कदर केस बढ़ रहे हैं। पर उपाय के नाम पर कुछ भी नहीं हो रहा है।"

सीमा समृद्धि कुशवाहा अप्रैल 2021 में ललितपुर जिले में हुए एक केस का उदाहरण देती हैं कि एक 15 साल की बच्ची के साथ उसका पड़ोसी रेप करता है, पीड़िता आहत होकर आग लगा लेती हैं। पीड़िता को डराया-धमकाया जाता है कि अगर उसने पुलिस से कुछ कहा तो उसके भाई और पिता को वो मार देंगे। पीड़िता बयान देती है कि उसने गुस्से में आकर आग लगा ली। पुलिस बिना किसी जांच पड़ताल के एफआईआर दर्ज कर लेती है कि बच्ची ने आत्महत्या की कोशिश की। जब मेरे संज्ञान में यह मामला आया तो मुझे थानाध्यक्ष से लेकर मुख्यमंत्री तक बहुत सारे ट्वीट करने पड़े, जिले के सभी जिम्मेदार अधिकारियों को फोन किया तब कहीं जाकर एक महीने में 164 के बयान दर्ज हो पाए और आरोपी गिरफ्तार हुआ। वहां के जांच अधिकारी को सिर्फ सस्पेंड किया गया जो पर्याप्त नहीं था। ज्यादातर मामलों में पुलिस धाराएं बहुत हल्की लगाती है जिससे केस बहुत कमजोर हो जाता है और अपराधियों को सजा कम मिलती है। लंबित पड़े मामले भी अपराधियों को बढ़ावा देते हैं क्योंकि उन्हें पता है सजा मिलने में सालों लग जाएंगे।

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चार मार्च, 2020 को लोकसभा में केंद्रीय कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने एक प्रश्न के जवाब में बताया, "उच्च न्यायालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार, देश भर में 31 दिसम्बर 2019 तक बलात्कार और पाक्सो एक्ट से जुड़े लंबित मामलों की संख्या 2,44,001 है।" कानून और न्याय मंत्रालय द्वारा लोकसभा में एक लिखित जवाब के अनुसार, उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा 66,994 मामले कोर्ट में लंबित हैं। दूसरे और तीसरे स्थान पर महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल आते हैं, जहाँ क्रमशः 21,691 और 20,511 मामले लंबित हैं।

इससे पहले दिसम्बर में केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने बलात्कार के मामलों की जांच और फैसलों में तेजी लाने के लिए सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों और हाई कोर्ट के न्यायाधीशों को पत्र लिखा था। इस पत्र में उन्होंने बलात्कार और पाक्सो के मामलों में जांच दो महीने में, जबकि ऐसे सभी मामलों में ट्रायल छह महीने में पूरी करने की बात कही थी। कानून मंत्री ने पत्र में देश में 1023 फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट खोले जाने की भी बात कही थी।

उत्तर प्रदेश के पूर्व आईजी आरके चतुर्वेदी गाँव कनेक्शन को बताते हैं, "दुर्भाग्य से पुलिस प्रोटोकॉल छोड़ कर बाकी सब कुछ करती है। आप हाथरस मामले को ही देख लीजिये एससी-एसटी एक्ट का मामला था तो 24 घंटे के अन्दर डीएसपी को मौके का मुआयना कर लेना चाहिए था, जो नहीं किया गया। मामले की तुरंत जांच कर सच्चाई सामने लानी चाहिए थी, जो नहीं की गयी, इसलिए पुलिस की विश्वसनीयता पर सवाल उठते हैं।"

बदायूं जिले का ये वो आंगनबाड़ी केंद्र है जहाँ वो सहायिका पढ़ाती थीं. फोटो : नीतू सिंह 

निर्भया केस के बाद ही महिला सुरक्षा के लिए केंद्र सरकार ने साल 2013 में 'निर्भया फंड' की स्थापना की गयी। निर्भया फंड के तहत वित्त मंत्रालय द्वारा राज्य सरकारों को पैसा जारी किया जाता है।जिसको एक निश्चित समय (तीन से छः महीने) में प्रशासन को पीड़िता तक पहुंचाना होता है। पूरे देश में स्वीकृत फंड का केवल 63.45 प्रतिशत ही खर्च हो पाया। फंड का खर्च न हो पाना भी पुलिस की लापरवाही है। 

दिल्ली से बदायूं मृतका के परिजनों से मिलने पहुंची राष्ट्रीय महिला आयोग की सदस्य चन्द्रमुखी देवी ने भी पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठाये, "मैं पुलिस की भूमिका से बिल्कुल संतुष्ट नहीं हूँ। पुलिस अधीक्षक के अनुसार जब मृतका घर आयी थी तब जिंदा थी अगर उसे समय से इलाज मिल जाता, कार्रवाई हो जाती तो हो सकता है आज वो जिंदा होती। अगर पुलिस अनावश्यक लाठियां भांजने के बजाए ऐसे केसों में संवेदनशीलता दिखाए, त्वरित कार्रवाई करके दोषियों को सजा दिलाए तभी ये घटनाएं रुक सकती हैं।"

यूपी के बदायूं जिले में एक 40 वर्षीय आंगनबाड़ी सहायिका अपने गाँव से लगभग 12 किलोमीटर दूर अपने मायके में बने एक मंदिर में 3 जनवरी 2021 की शाम 5 बजे पूजा करने गईं थीं। मृतका के बेटे ने बताया, "मंदिर के महंत (मुख्य आरोपी) ने दिन में मम्मी को कई बार फोन किया था, शाम पांच बजे वो अकेले घर से निकलीं थीं। रात साढ़े ग्यारह बजे महंत दो और लोगों के साथ उन्हें घर छोड़ गया था। वो खून से लथपथ थीं उनकी सांसे नहीं चल रही थीं। हम पुलिस के पास सुबह 10 बजे पहुंचे, पर वहां से कोई नहीं आया तब 112 पर फोन किया। शाम करीब चार बजे पुलिस आयी।"

मृतका की माँ का आरोप कि पुलिस ने उनकी एक न सुनी. फोटो : नीतू सिंह 

वहीं मृतका की 60 वर्षीय माँ बुजुर्ग माँ उघैती पुलिस पर आरोप लगाया, "उस दिन पुलिस ने मुझसे कहा, "पंचायतनामा भरकर मिट्टी जला दो, तुम्हारे पास पैसा नहीं है ... केस कैसे लड़ पाओगी?' तुम बुजुर्ग हो, कौन करेगा केस की पैरवी? हमने पुलिस से बहुत कहा कि हम मिट्टी जला देंगे बस आप एक बार चलकर मेरी बेटी की हालत देख लीजिये और उस बाबा से इतना पूछ लीजिये, आख़िर कैसी मरी वो? मुझे धीर (तसल्ली) हो जायेगी, पर पुलिस ने मेरी एक न सुनी।"

सीमा समृद्धि कहती हैं, "पुलिस तब तक किसी मामले में त्वरित कार्रवाई नहीं करती जब तक की वो मामला बहुत ज्यादा हाईलाईट न हो जाए। हमारे देश की पुलिस अलग ही अपनी वर्दी के रौब में रहती है। इनके ऊपर राजनैतिक दवाब रहता है, ये पित्रसत्तात्मक सोच रखते हैं, भ्रष्टाचार बहुत है, जातिगत सोच रखते हैं, इनके पास सेन्स ऑफ़ ह्यूमर नहीं है। बिना किसी जांच-पड़ताल के ये केस को सही-गलत ठहरा देते हैं। यही वजह है अपराधियों में पुलिस का खौफ़ ख़त्म हो गया है, घटनाओं की वीभत्सता लगातार बढ़ रही है।" 

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