पंजाब: लॉकडाउन के चलते हुए नुकसान से डेयरी कारोबार को छोड़ना चाहते हैं पशुपालक

पंजाब में 23 मार्च से पहले प्रतिदिन तकरीबन 45 लाख लीटर दूध की खपत होती थी। अब यह 20 लाख तक सीमित है। ज्यादातर दूध बेकार हो रहा है और डेयरी मालिक इसे नदियों-नालों में बहाने को मजबूर हैं। खपत में कमी आने के बाद राज्य भर के शहरों, कस्बों और गांवों में दूध के खुले लंगर भी लगाए गए। लॉकडाउन के चलते दूध के इन लंगरों को बंद करना पड़ा। आलम यह हो गया कि दूध की कीमत में 10 से 15 रुपए की गिरावट आ गई है।

Update: 2020-05-18 13:04 GMT

अमरीक सिंह

कोरोना वायरस के चलते लागू लॉकडाउन के चलते पंजाब के दुग्ध उत्पादन पर कहर बनकर टूटा है। सूबे में दुग्ध उत्पादन का धंधा, कृषि क्षेत्र की कुल घरेलू पैदावार का एक तिहाई हिस्सा है। ग्रामीण-पंजाब के 34 लाख परिवारों में से कम से कम 60 फ़ीसदी परिवार इस धंधे से सीधे तौर पर जुड़े हुए हैं। इसके अतिरिक्त जम्मू-कश्मीर के लगभग 20 हजार प्रवासी गुर्जर परिवार भी पंजाब में दूध का कारोबार करते हैं और वे इत्तर कारणों से दिक्कतों में हैं। उनके धंधे को फिरकापरस्ती ने निगला है।

राज्य में सहकारी और बड़ी कंपनियों को छोड़कर दुग्ध उत्पादन की खपत असंगठित क्षेत्रों में होती है। कोरोना वायरस के संकट के बाद कर्फ्यू और लॉकडाउन लागू हुआ तो बाकी सब के साथ-साथ होटल, रेस्टोरेंट, मैरिज पैलेस, कैटरिंग, हलवाई, दही और पनीर की बिक्री भी ठप्प हो गई। 23 मार्च से पहले प्रतिदिन तकरीबन 45 लाख लीटर दूध की खपत होती थी। अब यह 20 लाख तक सीमित है। ज्यादातर दूध बेकार हो रहा है और डेयरी मालिक इसे नदियों-नालों में बहाने को मजबूर हैं। खपत में कमी आने के बाद राज्य भर के शहरों, कस्बों और गांवों में दूध के खुले लंगर भी लगाए गए। सख्त कर्फ्यू और लॉकडाउन के चलते दूध के इन लंगरों को बंद करना पड़ा। आलम यह हो गया कि दूध की कीमत में 10 से 15 रुपए की गिरावट आ गई है।


राज्य सरकार की हिदायत पर मिल्कफैड और कुछ अन्य सरकारी एजेंसियों ने अपने-अपने तौर पर दूध की ज्यादा खरीदारी शुरू कर दी। दूध का पाउडर और देसी घी बनाकर स्टॉक करने की कवायद शुरू हुई लेकिन वह ज्यादा कारगर साबित नहीं हुई। इसलिए भी कि राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय बाजार बंद हैं और मंदी का दायरा फैलता जा रहा है। निर्यात पूरी तरह से बंद होने के कारण मिल्कफैड खुद संकट में है। फौरी स्थिति यह है कि सरकारी एजेंसियों के पास फिलहाल 16.21 टन देसी घी और 11,335 टन दूध का पाउडर गोदामों में पड़ा है। दूध का जो पाउडर पहले 350 रुपए प्रति किलो था, वह अब 200 रुपए किलो के हिसाब से बिक रहा है।

,पंजाब डेयरी एसोसिएशन के प्रधान हरनेक सिंह के मुताबिक कई दुग्ध उत्पादक अब इस धंधे से किनारा कर रहे हैं लेकिन फिलहाल सबसे बड़ी समस्या यह है कि पशु मंडियां एकदम बंद है और वे अपने पशु कहां और किसे बेचें? मौजूदा हालात में दुग्ध उत्पादक पशुओं के लालन-पालन अथवा रखरखाव का खर्चा भी नहीं निकाल पा रहे।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार के 20 लाख करोड़ रुपए के घोषित पैकेज की बाबत दावा किया गया है कि इसमें से 8 लाख करोड़ रुपए डेयरी के बुनियादी ढांचे को दिए जाएंगे। विशेषज्ञों के अनुसार यह दो साल पहले की गई घोषणा का दोहराव है। झांसा है। प्रोग्रेसिव डेयरी फार्मर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष दलजीत सिंह कहते हैं, "डेयरी उत्पादन के लिए केंद्रीय पैकेज में जो घोषणाएं की गई हैं, वे खोखली हैं। दुग्ध उत्पाद को और संबंधित सहकारी समितियों को सीधे तौर पर सहायता दी जानी चाहिए थी लेकिन ऐसा नहीं किया गया।" राज्य पशुपालन विभाग के निदेशक डॉ इंद्रजीत सिंह के अनुसार दुग्ध उत्पादकों के विशेष पैकेज के लिए केंद्र को लिखा गया है। इस संकट में निहायत जरूरी है कि केंद्र पंजाब के दुग्ध उत्पादकों के लिए विशेष राहत पैकेज दे।


सरकारी जानकारी के मुताबिक पंजाब में रोजाना 345 लाख लीटर दूध की पैदावार होती है। इसमें से 170 लाख लीटर दूध ग्रामीण क्षेत्र में खपता है। 10 सरकारी मिल्क प्लांट और 35 निजी मिल्क प्लांट लगभग 25 लाख लीटर दूध खरीदते हैं। 40 लाख लीटर दूध शहरी क्षेत्र में लगता है। जबकि 45 लाख लीटर दूध हलवाई, दही और पनीर बेचने वाले, मैरिज पैलेस, कैटरिंग मालिक तथा होटल व रेस्टोरेंट खरीदते हैं। कोरोना वायरस के चलते फिलहाल यू सेक्टर बंद हैं और नतीजतन ज्यादातर दूध बेकार जा रहा है और दुग्ध उत्पादकों का संकट दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है।

गौरतलब है कि पंजाब में जम्मू-कश्मीर के मुस्लिम गुर्जर भी बड़े पैमाने पर दूध का कारोबार करते हैं। इन दिनों वे ज्यादा संकट में हैं क्योंकि सांप्रदायिक और नफरत की हवा ने उनके खिलाफ अफवाहें फैलाई हैं। कई जगह उनका बहिष्कार किया जा रहा है और वे भी अपना दूध नहरों में बहाने को मजबूर हैं।

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