'साढ़े तीन साल की थी वह, उसे दद्दा कहकर बुलाती थी, उसी ने मेरी बेटी की रेप करके हत्या कर दी'

"गांव में वह सुरक्षित रहेगी तभी उसे अपने साथ नहीं ले गये। एक साल से नहीं मिली थी उससे, होली में मिलना था। पर हमें नहीं पता था कि हम अपनी बिटिया से कभी नहीं मिल पाएंगे।"

Update: 2020-02-12 15:19 GMT

महोली (सीतापुर)। "दो दिन पहले ही उसने फोन करके लहंगा और सैंडिल मंगवाई थी। मैं एक साल से नहीं मिली थी उससे, सोचा था होली में मिलूंगी।" ये बताते हुए उस मां के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे।

ये तकलीफ के आंसू उस मां के हैं जिनकी साढ़े तीन साल की बेटी के साथ 10 फरवरी को रेप हुआ और फिर हत्या। खुशी (बदला हुआ नाम) अपने बाबा-दादी के साथ गांव में रहती थी। खुशी के माता-पिता काम के सिलसिले में देहरादून में रहते हैं। इनकी मां इन्हें अपने साथ इसलिए नहीं ले गईं थीं क्योंकि इन्हें लगता था कि वह अपने गांव में ज्यादा सुरक्षित है।

"साढ़े तीन साल की थी वह, उसे दद्दा कहकर बुलाती थी, उसके मांगने पर उसे बिस्किट भी खाने को दे देती थी। उसी ने मेरी बेटी की रेप करके हत्या कर दी।" खुशी की मां के इन शब्दों में रिश्तों से भरोसा उठने की तकलीफ साफ़ जाहिर हो रही थी।

ये है वो जगह जहां साढ़े तीन साल की बच्ची का शव छिपाया गया था.

ये घटना उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के कोतवाली महोली की है। परिवार के मुताबिक़ बच्ची 10 फरवरी को शाम छह बजे पास की दुकान पर बिस्किट लेने गयी थी। कुछ देर तक जब वह घर वापस नहीं आयी तो परिवार वाले उसे खोजने में जुट गये। कुछ लोगों ने पड़ोसी राजू के घर के बाहर खेलते हुए देखने की बात बताई।

"मेरा भाई बिटिया का नाम लेकर बहुत देर तक बुलाता रहा पर कोई आवाज़ नहीं आई। जब उसके घर के अंदर देखने गये तो एक चप्पल बिटिया की दिखाई दी। शक बढ़ गया, फिर दूसरी चप्पल भी दिख गयी।" ये बताते हुए खुशी की बुआ रोने लगीं।

आरोपी ने अपने घर में नल के पास पीड़िता की हत्या करके उसे बोरी में भरकर बाल्टी से ढक दिया था। परिवार वालों को जैसे ही बिटिया मिली वो लोग उसे उम्मीद के साथ तुरंत अस्पताल ले गये कि शायद बेहोश हो और बच जाये। डॉक्टर ने उसे मृत घोषित कर दिया।

"पूरे दिन बाबा-बाबा करती रहती थी। बहुत मुंह लगी थी हम सबके तभी सात महीने की थी तबसे हमलोगों के साथ ही रहती थी। जब बोरी से उसे निकाला जा रहा था तो मेरा कलेजा फटा जा रहा था। एक पल को तो भरोसा ही नहीं हुआ।" ये बताते हुए खुशी के बाबा दीवार के सहारे से बैठ गये।

घटना के बाद से गाँव में पसरा है सन्नाटा.

खुशी की रेप के बाद निर्मम हत्या से पूरे गांव में सन्नाटा पसरा है। हर कोई उस बच्ची के इस तरह से जाने से दु:खी और परेशान है। खुशी की उम्र के बच्चे इस घटना के बाद से दहशत में हैं।

लखनऊ परिक्षेत्र के आईजी एसके भगत पीड़िता के गांव पहुंचकर परिवार को आश्वासन देते हुए कहा, "सात दिन के अन्दर चार्जशीट हो जायेगी। फ़ास्ट ट्रैक में मामला चला गया है। यह बहुत ही वीभत्स घटना है। हम बच्ची को तो वापस नहीं करा सकते पर दोषी को कठोर से कठोर सजा जल्द ही दी जायेगी।"

अधिकारियों के इन शब्दों से परिवार को कोई मतलब नहीं है क्योंकि अब वो अपनी बच्ची को कभी खेलते हुए नहीं देख पाएंगे। खुशी की तमाम यादें समेटकर बैठी उनकी मां सिर्फ रोयें जा रही हैं।

"जब भी फोन पर वह बात करती बहुत खुश होती थी, कुछ-कुछ सामान मंगाती रहती थी। उसके लिए वहां पर जैकेट, कैप सब लेकर रखा था। नहीं पता था कि वो नहीं पहन पायेगी, कब किसको पहनाएंगे?" खुशी की मां कभी उसकी हरी फ्राक दिखतीं तो कभी नीला कप।

खुशी के पकड़े दिखाती उनकी मां.

वो उन नये कपड़े को भी दिखा रहीं थीं जिसे खुशी ने अभी तक पहने नहीं थे।

"बिटिया के चाचा से दो महीने पहले ही ये कपड़े भिजवाये थे। पर उसने अभी तक अपने अंग पर नहीं रखे थे। अब कौन पहनेगा इसे? हमें पता होता उसके साथ ऐसा होगा तो उसे कभी गांव नहीं रखते।" खुशी की मां ने बताया, "जब भी फोन पर पूछते आओगी नहीं हमारे पास, हमेशा मना कर देती थी। उसे बाबा-दादी के पास बहुत अच्छा लगता था।"

खुशी के परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है इसलिए खुशी के माता-पिता देहरादून में रहकर एक प्राईवेट नौकरी करते हैं। खुशी सात महीने की उम्र से अपने गांव में ही रहती थी। खुशी की दादी का रो-रोकर बुरा हाल है।


"मेरी एक ही बेटी थी। शादी के छह साल हो गये हैं। सोच रहे थे इस बार होली में आएंगे तो उसे अपने साथ ले जाएंगे, वहीं पढ़ाएंगे-लिखाएंगे। अब थोड़ी बड़ी भी हो गयी थी। जिसके लिए मेहनत करके कमाते थे अब वही नहीं बची।" खुशी की मां के पास उसकी अनगिनत बातें थीं जिन्हें वह रह-रहकर याद कर रहीं थीं।

खुशी की मां ने बताया, "जब वह पेट में थी तो हर महीने अल्ट्रासाउंड कराती थी कि वह ठीक तो है। हमें नहीं पता था जिसे इतना सब दुलार करते थे वो इतने जल्दी ऐसे हम लोगों को छोड़कर चली जायेगी।"

"अगर बच्चे उसे खेल में मारते तो घर आकर बताती थी पलटकर कभी मार नहीं पाती थी, सब कहते थे तुम्हारी खुशी बहुत सीधी है। चाय नहीं पसंद थी उसे, जब भी फोन पर बात करती एक-एक बात बताती थी। मोहल्ले में ही बेटी नहीं बच पायी, अब किसके सहारे जिएंगे?" खुशी की मां के एक-एक शब्द भारी थे जिसका किसी के पास जबाब नहीं था।

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