सरकारी टीचर की नौकरी छोड़कर बन गईं किसान, करती हैं जैविक खेती

Update: 2019-11-14 10:08 GMT

मोदीनगर (गाजियाबाद)। सरकारी स्कूल में हेड की नौकरी छोड़कर जब सरिता चौधरी ने जब किसान बनने का फैसला लिया तो सभी लोगों ने उनका विरोध ही किया, लेकिन आज सरिता न केवल खेती से बढ़िया कमाई कर रही हैं, साथ ही जैविक खेती के जागरूक भी कर रही हैं।

गाजियाबाद मुख्यालय से लगभग 28 किलोमीटर दूर मोदीनगर तहसील के छोटे से गाँव दौसा की रहने वाली सरिता ने सरकारी नौकरी छोड़कर किसान बनाने की ठानी, आज हर वर्ष 25 से 30 लाख रुपए कमाने वाली सरिता चौधरी औरों के लिए मिसाल बन गई हैं। सरिता चौधरी फरीदाबाद में सरकारी स्कूल में हैड अध्यापक थी। उनकी हर माह की सैलरी लगभग 50 से 60 हज़ार रुपए थी।

एक दिन सरिता को पता चला कि फरीदाबाद में एशियन हॉस्पिटल है, वहां आसपास 6 गाँवो में लोगो की स्क्रीनिंग हुई तो पता चला कि 99 % लोगो को कैंसर जैसी घातक बीमारी हैं उसके बाद उन्हें लगा कि खानपान को लेकर ये बीमारी लोगो मे पनप रही है। साग सब्जी से लेकर दूध दही तक मिलावट मिल रही हैं। बस फ़िर क्या था फरीदाबाद की सरकारी नौकरी छोड़ कर अपने गाँव का रुख किया और फैसला लिया कि मैं अपनी तरफ़ से प्रयास करूंगी की लोगो तक साग-सब्जी दूध-दही नेचुरल पहुंचे ताकि किसी को ऐसी घातक बीमारी ना लगे।

12 एकड़ की धरती में कर रही हैं जैविक खेती

सरिता चौधरी 12 एकड़ में जैविक खेती कर आम लोगों को कैंसर जैसी घातक बीमारियों से बचाने का काम कर रही हैं, वो कहती हैं, "खानपान से कैंसर जैसी बीमारी हो रही हैं] जिसके चलते मैंने 12 एकड़ में 19 तरह की साग-सब्जी की बुवाई की है। जो कि पूरी तरह नैचुरल हैं किसी भी प्रकार की कोई दवाई या उर्वरक नही लगाया जाता। आसपास के लोग अब हमारे यहां से ही सागसब्जी ख़रीदने आते हैं।

19 से अधिक तरह की साग-सब्जी की बुवाई कर रही हैं सरिता

सरिता चौधरी आगे बताती है, "हमनें 12 एकड़ में साग - सब्जी दाल की ही बुवाई की है। जिसमें हल्दी, मूली, गाजर, गन्ना, धान, अरहर, मूंग, मसूर, चना, उड़द, आलू , प्याज़, जैसे कुल मिलाकर 19 तरह के उत्पाद हमनें तैयार किए जो पूरी तरह नैचुरल हैं दूर-दराज से लोग खरीदने आते हैं।

गाँव की दर्जनों महिलाओं को रोजगार भी मिल रहा है

सरिता चौधरी आगे बताती है, "गाँव की दर्जनों महिलाओं को रोजगार मिल रहा है। और मुझे देखादेखी गाँव की महिलाएं भी मुझसे जैविक खेती की जानकारी लेने आती हैं। मैं महिला किसान को बताती हूं किस तरह से उर्वरक या पेस्टीसाइड पौधों में डाला जाता हैं। जिन महिलाओं के पास कम खेती की जमीन हैं वो अब मेरी तरह की खेती कर रही हैं।

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25 से 30 लाख प्रति सलाना की होती है कमाई

सरिता चौधरी बताती है कि प्रति वर्ष हमें 25 से 30 लाख रुपए की कमाई हो जाती है। 12 एकड़ की धरती में जिसमे हमारा खर्चा लगभग प्रति सालाना 5 से 7 लाख रुपए आता है। उसमें मजदूरों की का ख़र्च जानवरों का खर्च शामिल है। जैविक खेती से अच्छा मुनाफ़ा कमाया जा सकता हैं।

गाँव के बड़े बुजुर्ग लोग देते थे ताना नहीं मानी हार

सरिता चौधरी बताती है, "गाँव मे जो आसपास के बड़े बुजुर्ग लोग हैं वो ताना देते थे। मेरे पति को बुलाकर बोलते थे बेटा तेरी दादी या माँ आजतक खेत पर नहीं आई और तू बहु को खेत पर लाया है, मेरे पति ने जवाब दिया कि बाबा आज से मैं नहीं मेरी बहु ही खेत पर आएगी। मेरे पति ने मेरा साथ दिया जिसकी वजह से आज मैं यहां पहुंची हूं। आज वो लोग हमारे यहां खेती देखने आते हैं।"

भारत सरकार ने हार्टिकल्चर अवार्ड से नवाजा

सरिता चौधरी को भारत सरकार ने पिछले दो माह पहले सितंबर में डेढ़ लाख रुपए की धन राशि से सरिता चौधरी को समान्नित किया। वो बताती हैं, "इसमें हार्टिकल्चर अवार्ड भी मिला उस के बाद से मेरा काम और हौंसला, मेहनत दोगुनी बढ़ गई है मुझे आज लगता है मैं एक गृहणी होने के नाते एक अच्छे काम का प्रयास कर रही हूं, जिसमें अब लोगों का सहारा भी मिल रहा है।

शहर की जिंदगी छोड़ गाँव की जिंदगी जी रहा है ये परिवार

सरिता चौधरी आगे बताती है कि हम हरियाणा से सटे फरीदाबाद में रहते थे, जो व्यस्तम शहर था आज हम गाँव की जिंदगी जी रहे हैं और खुश भी है परिवार में बच्चों को भी खेती के गुण सीखा रही हूं। आजकल की नौजवान पीढ़ी खेती से दूर भागती हैं जो कि पूरी तरह गलत है।

हाथ की चक्की से दाल व आटे पीसते हैं और फोन पर आते है ऑर्डर

सरिता चौधरी आगे बताती है कि हमारे यहां लगभग 7 या 8 तरह की दाल की बुआई होती है, जिसमे हम एक किलोग्राम के पैकेट तैयार करते हैं। और वो हाथ की चक्की से ही पिसा जाता हैं हमने घर मे तीन हाथ की चक्की लगाई है और पैकेट में तैयार कर के बेच देते हैं। मार्किट से लगभग 30 या 40 रुपए महंगी बेची जाती हैं, जिसमे लोग फोन पर ही ऑर्डर कर देते है लोगो की पूर्ति भी नही हो पाती ।

देसी गाय का घी 3500 रुपए किलो बेचा जाता हैं नहीं होता ऑर्डर पूरा

सरिता चौधरी आगे बताती है कि उन्होंने 4 देसी गाय को पाल रखा हैं जिसमे हमारे दो काम होते है। एक तो खेत को गो मूत्र, गोबर मिल जाता है दूसरा हम देसी गाय के दूध से घी तैयार करते हैं , 29 या 30 किलोग्राम दूध से एक किलोग्राम घी तैयार होता हैं जिसकी काफी डिमांड है , उसे हम 3500 रुपए किलोग्राम देते हैं। जिसमें हमारे ऑर्डर भी पूरे नहीं हो पाते अभी से ही दिसबंर और जनवरी बुक हैं।

खेती में पानी की भी करते है बचत, ड्रिप से होती है सिंचाई

सरिता चौधरी बताती हैं कि खेत मे पानी की बचत सबसे पहले है क्यों कि हमारे देश मे पानी हर वर्ष कम होता जा रहा हैं जिसके चलते मैंने खुद ने फैसला किया कि हम खेत मे ड्रिप द्वारा ही सिंचाई करते हैं। और पानी की बचत में मेरा पूरा योगदान हैं।

चाइनीज़, यूरोपियन सब्जियों की कर रही खेती

सरिता चौधरी बताती हैं कि अपने खेत में सबसे अधिक इक्जॉटिक वेजिटेबल्स जैसे यूरोपियन और चाइनीस सब्जियां चाइनीस कैबैज, सेलरी, जुकीनी, चेरी टोमैटो, ब्रॉकली, पासर्ले सहित 25 सब्जियां उगाते हैं। यह सभी ऑर्गेनिक तरीके से उगाई जाती हैं वह महिलाओं को रोजगार भी दे रही हैं।

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