तरबूज की खेती और एक महिला किसान कंपनी की सफलता की कहानी

परंपरागत रूप से पश्चिम बंगाल के बांकुड़ा जिले के छोटे और सीमांत किसान सालों से धान की खेती करते आ रहे थे जिसमें उन्हें काफी कम रिटर्न मिलता है। लेकिन पिछले दो वर्षों में तरबूज की खेती की शुरुआत और किसान उत्पादक कंपनी की स्थापना ने उनकी किस्मत बदल दी।

Update: 2022-07-28 12:10 GMT

कृषि कैडरों की पहचान कर ली गई थी और वे तरबूज की खेती करने वाले किसानों की सहायता के लिए कीट प्रबंधन और उर्वरक कार्यक्रम की ओर उन्मुख हुए हैं।

हिमाद्री दास और राजशेखर बंदोपाध्याय

बांकुड़ा, पश्चिम बंगाल। पश्चिम बंगाल में बांकुड़ा जिले में ज्यादातर एक फसल वाला क्षेत्र है जहां किसान खरीफ सीजन के दौरान धान पर निर्भर हैं। समुद्र जैसी लहरों वाली इस जगह की खासियत इसकी भौगलिक स्थिति ही है। यहां सालभर में 1,200-1,400 मिलीमीटर की बारिश दर्ज की जाती है और यह क्षेत्र कृषि-जलवायु क्षेत्र VII के अंतर्गत आता है। जलवायु परिस्थितियों और प्राकृतिक संसाधनों में कम निवेश के चलते किसान सिर्फ पारंपरिक फसलों की खेती पर निर्भर हैं।

हालांकि पिछले दो सालों से, जिले के दो ब्लॉकों - पांच ग्राम पंचायतों के हिरबंध और सात ग्राम पंचायतों वाले इंदपुर में कुछ किसान तरबूज की खेती करने में लगे हैं और भारी मुनाफा कमा रहे हैं।

दरअसल यहां एक महिला आधारित और महिलाओं के नेतृत्व वाली किसान उत्पादक कंपनी, दलमदल फॉर्मर प्रोड्युसर कंपनी लिमिटेड की भी शुरुआत की गई, जो उपज की मार्केटिंग और इन तरबूज किसानों के नेटवर्क को और मजबूत करने में मदद कर रही है।

कम आय वाले छोटे और सीमांत किसान

हिरबंध और इंदपुर क्षेत्र में ज्यादातर छोटे और सीमांत किसान हैं। ग्रामीण अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि, पशुपालन, दिहाड़ी मजदूर और मौसमी प्रवास है। हालांकि यह क्षेत्र काफी हद तक कृषि पर निर्भर है, लेकिन किसानों की आय का स्तर अलग-अलग है।

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) की रिपोर्ट के मुताबिक , कृषि वर्ष 2018-19 के दौरान प्रति कृषि परिवार की औसत वार्षिक आय 122,616 रुपये है, जबकि प्रदान (PRADAN) के वार्षिक घरेलू आय सर्वेक्षण में इन दो ब्लॉकों की प्रति परिवार अनुमानित औसत वार्षिक आय की गणना लगभग 57,000 रुपये (वित्त वर्ष 2020-21) की गई थी। जानकारी का न होना, जागरूकता की कमी, गुणवत्ता वाले बीजों की पहचान न कर पाने, उर्वरक और कीटनाशक कब डालना है जैसी जानकारियों के अभाव में किसानों के लिए उत्पादन और फलों की गुणवत्ता बढ़ाना मुश्किल हो जाता है।


बंगाल में PRADAN की स्थानीय क्षेत्र-आधारित टीम 2010 से हिरबंध और इंदपुर ब्लॉक में काम कर रही है। उनकी यह टीम डायरेक्ट सिडेड राईस, चावल की गहनता की प्रणाली, ट्रेली में ककड़ी और फ्लैट बीन्स, बैगन, रेन शेल्टर टमाटर की खेती आदि जैसे कई नए कृषि हस्तक्षेप लेकर आई।

इससे भले ही उत्पादन बढ़ाया गया था लेकिन किसान अभी भी बाजार की मांग के अनुसार समय पर उत्पादन सुनिश्चित करने और अपनी फसलों का अच्छा मूल्य पाने के लिए संघर्ष कर रहे थे। मानसून की कटाई के बाद, अगले मानसून तक उनकी भूमि बंजर रहती थी। उस पर कुछ नहीं उगाया जाता था।

पेश है तरबूज की फसल

बांकुरा क्षेत्र की जलवायु और किसानों के अनुभवों को देखते हुए, हमने जाना कि तरबूज गर्मियों के दौरान एक लाभदायक फसल हो सकती है। एक एकड़ में तरबूज उगाने से एक सीजन में औसतन आठ मीट्रिक टन (एमटी) का उत्पादन और उससे किसानों को 70 से 80 हजार रुपये की आमदनी होने की संभावना थी। बाजार में दैनिक आधार पर इस फसल की मांग 50-60 मीट्रिक टन है।

किसान आमतौर व्यक्तिगत तौर पर अपने निवेश की लागत पाते हैं और अपने अलग-अलग खेतों में बिखरे हुए तरीके से कृषि करने के लिए मजबूर हैं। इसलिए, समकालिक खेती करने के लिए किसानों, विशेषकर महिला किसानों को एक साथ लाने की जरूरत महसूस की गई।


PRADAN ने सामूहिकता की सुविधा प्रदान की और महिला किसान बाजार जोखिम को कम करने और अतिरिक्त आय सुनिश्चित करने के उद्देश्य से दलमदल फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी (FPC)लिमिटेड में शामिल हुईं। FPC को 10 सितंबर, 2021 को पंजीकृत किया गया था और इसके संचालन की पूरी जिम्मेदारी महिला सदस्यों के कंधे पर है।

तरबूज की खेती शुरू

PRADAN टीम ने तरबूज की खेती के लिए उन किसानों की पहचान करना शुरू किया, जिनके पास बारहमासी जल स्रोत उपलब्ध थे। कृषि कैडरों की पहचान कर ली गई थी और वे तरबूज की खेती करने वाले किसानों की सहायता के लिए कीट प्रबंधन और उर्वरक कार्यक्रम की ओर उन्मुख हुए।

तरबूज के फायदों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए टीम और एफपीसी ने ग्राम स्तरीय बैठकें आयोजित करनी शुरू कर दीं। किसानों को उनके घर के पास ही गुणवत्तापूर्ण बीज, उर्वरक, कीटनाशक मिल सके इसके लिए एफपीसी ने किसानों की मदद की। किसानों को प्रशिक्षण दिया गया और एक्सपोजर विजिट भी कराए गए जिससे उन्हें फसल उगाने के लिए विश्वास हासिल करने में मदद मिली।

PRADN ने पहली बार 2020 दिसंबर के महीने में किसानों के साथ तरबूज की खेती की शुरुआत की और किसानों ने फसल के प्रति अपना उत्साह दिखाना शुरू कर दिया। हम एक सौ दो किसानों के साथ आगे बढ़े और जनवरी 2021 के महीने में तरबूज की फसल उगने लगी थी.

PRADN टीम ने मार्केटिंग कंपिनयों को जोड़ने के लिए सरकार और संबंधित विभागों जैसे विभिन्न विकल्पों की खोज की। सुफल बांग्ला (लोगों के लाभ के लिए उनके दरवाजे पर उचित मूल्य पर ताजी सब्जियां सुनिश्चित करने के लिए पश्चिम बंगाल सरकार की एक पहल) के साथ तो हाथ मिलाया ही था। इसके अलावा हम बांकुरा, दुर्गापुर, आसनसोल, मुर्शिदाबाद, जमशेदपुर और दिल्ली के विक्रेताओं से भी जुड़े।

मार्केटिंग चैनलों के जरिए किसान 456 मीट्रिक टन तरबूज का उत्पादन करके 39 लाख रुपये का लाभ कमाने में कामयाब हुए थे।

सीखने से मिली मदद

अगले साल पिछले साल के अनुभव से हमें काफी कुछ सीखने को मिला। यह साल अधिक व्यवस्थित और गहन था। चूंकि एफपीसी को वर्ष 2021 में पंजीकृत किया गया था, इसलिए टीम ने किसानों की जरूरतों को पूरा करने के लिए एफपीसी सदस्यों को तैयार करना शुरू किया। कैडर नियमित रूप से तरबूज के खेतों का दौरा करने, उत्पादक समूह के साथ साप्ताहिक बैठकें करने और फसल से संबंधित मुद्दों को हल करने के लिए काम कर रहे थे।

दो सौ छह किसानों ने 471 एकड़ क्षेत्र में तरबूज उगाना शुरू किया। साल 2022 में काफी बारिश हुई जिसने तरबूज के खेतों को प्रभावित किया। किसानों को काफी ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा, जिससे किसानों की संख्या 206 से घटकर 162 हो गई। और फसल का क्षेत्र घटकर 115 एकड़ रह गया।


तरबूज मार्च 2022 के महीने में ऊपर से हरे रंग और अंदर से लाल रंग के फल में बदलना शुरू हो गए थे. फिर 2 अप्रैल से टीम और एफपीसी ने उत्पादों की स्थानीय और दूर के बाजारों में मार्केटिंग करनी शुरू कर दी।

एफपीसी ने 140 किसानों के 222.37 मीट्रिक टन तरबूज के लिए बाजार खोजा। उनकी आमदनी बढ़कर 24.23 लाख रुपये हो गई, जिससे किसानों पर खासा प्रभाव पड़ा। मार्केट लिंकेज के जरिए एफपीसी ने किसानों और विक्रेताओं से कुल 1.78 लाख रुपये के कमीशन के साथ पहला लेनदेन किया था। इन प्रयासों ने किसानों के बीच विश्वास बनाने में मदद की है क्योंकि उन्हें मार्केटिंग, लागत वसूली और एफपीसी से महत्वपूर्ण आय मिलने में मदद मिली।

भविष्य में सहयोग की जरूरत

इन दो ब्लॉकों में तरबूज की फसल एक सफल प्रयास हो सकता है लेकिन लाभ कमाने की क्षमता का एहसास करने के लिए बड़ी संख्या में किसानों को संगठित करने के प्रयासों की जरूरत है। कई सरकारी योजनाएं हैं जो किसानों के लिए शुरू की गई हैं लेकिन जमीनी स्तर पर जानकारी की कमी है। एफपीसी में इस अंतर को पाटने की बहुत बड़ी क्षमता है।

इसके लिए सरकार, नागरिक समाजिक संगठनों, पंचायती राज संस्थाओं (पीआरआई) निकायों सहित हितधारकों के सहयोग की जरूरत है। जो कृषि आजीविका के संदर्भ में किसान सामूहिक कार्रवाई पर आधारित होंगे और छोटे, सीमांत और भूमिहीन किसानों के जीवन में प्रभाव पैदा करेंगे।

पूरी पहल को पश्चिम बंगाल के सरकारी विभागों जैसे पंचायत और ग्रामीण विकास, जल संसाधन जांच और विकास विभाग (WRIDD), कृषि विभाग, कृषि-विपणन विभाग और हमारी सहायक डोनर एजेंसियां जैसे भारत ग्रामीण आजीविका फाउंडेशन (बीआरएलएफ), हिंदुस्तान यूनिलीवर फाउंडेशन (एचयूएफ), अजीम प्रेमजी फाउंडेशन (एपीएफ), रत्नाकर बैंक लिमिटेड (आरबीएल), एचडीएफसी बैंक ने अपना समर्थन दिया था। वे ग्रामीण पश्चिम बंगाल के जंगलमहल क्षेत्र में महिला किसानों के जीवन में एक स्थायी आर्थिक परिवर्तन लाने के लिए लगातार PRADAN का समर्थन कर रहे हैं।

दास प्रसाद PRADAN की रिसोर्स मोबिलाइजेशन, कम्युनिकेशन एंड पार्टनरशिप यूनिट में कार्यरत हैं। बंदोपाध्याय के पास PRADAN में काम करने का 15 साल का जमीनी अनुभव है, और उन्होंने महिलाओं के नेतृत्व वाले समूहों को बढ़ावा देने और उनका पोषण करने में योगदान दिया है। इनके विचार व्यक्तिगत हैं।

Similar News