मसालों की खुशबू से महक रही इन ग्रामीण महिलाओं की जिंदगी

एक साल पहले उत्तर प्रदेश के सीतापुर में ग्रामीण महिलाओं के एक समूह ने स्वयं सहायता समूह के रूप में मिलकर घर पर हल्दी, मिर्च और धनिया मसाला बनाना शुरू किया। अब वे मिड डे मिल के लिए लगभग 400 स्कूलों तक अपने मसालों को पहुंचाने की तैयारी कर रही हैं।

Update: 2022-07-30 07:55 GMT

सीतापुर, उत्तर प्रदेश। सीतापुर जिले के रामपुर मथुरा ब्लॉक में पड़ने वाले गोरिया गाँव में एक बंद टिन शेड के पास पहुंचते ही हल्दी, मिर्च और धनिया पाउडर की खुशबू आती है।

लगभग पांच से दस महिलाएं, मसाला पाउडर का वजन करती हैं और फिर उन्हें छोटे-छोटे पैकेट में पैक करती हैं जिन्हें उनके अपने गाँव और आसपास की कई छोटी दुकानों में पहुंचाया जाएगा।

महिला स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) की निदेशक रूपा देवी ने गाँव कनेक्शन को बताया, "पिछले साल जून में हम में से कुछ लोग एक साथ मिले और हमने एक समूह बनाया जिसका नाम हमने माँ भवानी महिला स्वयं सहायता समूह रखा।"

महिलाएं बड़े ही सलीके से तसले से मसालों को उठाती हैं और उन्हें पैकेट में भरती हैं। इनमें से कई रामपुर मथुरा और महमूदाबाद के दो ब्लॉकों सीतापुर में लगभग 400 स्कूलों में अपना रास्ता खोज लेंगे।

रूपा देवी ने गर्व के साथ कहा, "प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालय, जिनकी संख्या लगभग 400 है, हमारे मसाले का उपयोग मिड डे मिल के लिए करेंगे।" सीतापुर के मुख्य विकास अधिकारी अक्षत वर्मा ने एसएचजी को दोनों ब्लॉक के सभी स्कूलों में मिर्च, हल्दी और धनिया पाउडर की आपूर्ति करने का निर्देश दिए हैं।


इसने महिलाएं अब और तेजी से काम करने लगी हैं और उनका उत्पादन कई गुना बढ़ गया है। रूपा देवी के अनुसार, जब उन्होंने पिछले साल शुरू किया था, तब पांच या छह महिलाएं जो एसएचजी की सदस्य थीं, एक महीने में केवल पांच से 10 किलोग्राम पाउडर बनाती थीं। "अब हम महीने में छह क्विंटल तक कुछ भी बनाते हैं, "उन्होंने कहा। आमतौर पर वे कुल छह क्विंटल (1 क्विंटल = 100 किलोग्राम) से थोड़ा अधिक बनाते हैं।

SHG को सरकार द्वारा 110,000 रुपये का फंड दिया गया था। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएन) के जिला समन्वयक सुशील कुमार श्रीवास्तव ने गाँव कनेक्शन को बताया, "एसएचजी की महिलाओं ने इस अनुदान का अच्छा इस्तेमाल किया है।"

उन्होंने कहा, "स्कूलों को इन मसालों की आपूर्ति करने से न केवल उनकी कमाई में वृद्धि होगी, बल्कि यह भी सुनिश्चित होगा कि बच्चे शुद्ध, बिना मिलावट के इन महिलाओं द्वारा बनाया गया खाना खाएं।"

शुरुआत में मुट्ठी भर महिलाओं ने जो कुछ भी उनके पास कम संसाधन थे, उन्हें एकत्र किया और हल्दी, मिर्च और धनिया पाउडर बहुत कम मात्रा में बनाना शुरू किया, जिसे वे 50 से 100 ग्राम के पैकेट में गाँव की दुकानों में बेच देती थीं। लेकिन धीरे-धीरे उनके बनाए मसालों की मांग बढ़ती गई।

गोरिया की एक अन्य एसएचजी सदस्य संगीता देवी ने गाँव कनेक्शन को बताया, "जल्द ही हमने आस-पास के अन्य गाँवों में भी भेजना शुरू कर दिया है और अधिक महिलाएं हमारे समूह में शामिल हो गईं।" वे उस ब्लॉक में मेलों और प्रदर्शनियों में भाग लेने लगी जहां उन्होंने अपने सामान के लिए एक स्टाल लगाना शुरू किया और लोगों को अपने उद्यम के बारे में बताया।


"जब पहले हम अपने मसाले पांच और 10 ग्राम के छोटे पैकेट में बेचते थे, अब हम 250 ग्राम से आधा किलो के पैकेट तैयार करते हैं। पहले, हम एक महीने में 400 से 500 रुपये से ज्यादा नहीं कमा पाते थे। लेकिन अब जब हमारे मसाले की डिमांड बढ़ गई है तो प्रतिदिन 300 से 400 रुपए तक की हम सब की कमाई हो जाती है और अपनी कमाई का पैसा जब परिवार पर खर्च करते हैं और अपनी जरूरतों पर खर्च करते हैं तो बहुत अच्छा लगता है, "संगीता देवी ने गर्व के साथ गाँव कनेक्शन को बताया।

सीतापुर में मिर्च, धनिया और कुछ हद तक हल्दी की खेती की जाती है और मसाला बनाने के लिए इन सामग्रियों का उपयोग करना शुरू किया जो कि भरपूर मात्रा में उपलब्ध थे।

एसएचजी सदस्य रेणु देवी ने गाँव कनेक्शन को बताया, "हम जहां भी और जब भी सीधे किसानों से खरीद सकते हैं और अगर हमारे पास कमी आती है, तो हम बाजार से कच्चा माल खरीदते हैं।" मसालों की मात्रा मांग के आधार पर महीने दर महीने बदलती रहती है। लेकिन, रूपा देवी के मुताबिक, वे कच्चा माल खरीदने में जो कुछ भी खर्च करती हैं, उन्हें हर महीने 15 फीसदी का मुनाफा होता है।

बढ़ रहा है व्यापार का दायरा

शुरुआत में महिलाएं मसालों को हाथ से ही पीसती थी लेकिन जब उनके मसालों की मांग बढ़ी तो महिलाओं ने चक्की खरीदी और अब इसी से पीसती हैं।

महिलाएं अपने छतों और आंगनों पर मसालों को सुखाती हैं और फिर इसे उन्हें चक्की में पीसती हैं।

शकीला बानो ने गाँव कनेक्शन को बताया, "पहले खेतों में कभी कभार मजदूरी मिलती थी लेकिन जब से अपना खुद का काम शुरू किया है तो अपने हिसाब से काम करना होता है।"


उन्होंने आगे कहा, "अब धूप में खेतों में काम नहीं करना पड़ता है छत के नीचे बैठकर मसाला की पैकिंग और साफ सफाई का काम करना होता है और पैसे भी अच्छे मिलते हैं पहले जो हम लोगों के द्वारा बनाया गया मसाला दो-चार गांव तक ही सीमित था आज जिले के दो ब्लॉक के सभी विद्यालयों में और पड़ोसी जिलों तक हमारी मसाले की पहुंच हो गई।"

संगीता देवी मुस्कुराई, "हर पैसे के लिए अपने आदमियों पर निर्भर नहीं रहना पड़ता, अब तो हम घर चलाने के मदद ही करते हैं, अब बहुत अच्छा लगता है।"

श्रीवास्तव ने कहा, "हम इस एसएचजी की महिलाओं की कड़ी मेहनत की सराहना करते हैं और उन्होंने सिर्फ एक साल में इतना कुछ हासिल किया है।" "अगली चीज़ जो हम उनकी मदद करना चाहते हैं, वह यह है कि उनके द्वारा उपयोग किए जा रहे प्लास्टिक पैकेट को बदलना और उन्हें कपड़े या किसी अन्य पर्यावरण के अनुकूल परिवर्तन के साथ बदलना है।

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