कोविड-19 लॉकडाउन और जलवायु परिवर्तन से असम के चाय बागानों के वजूद पर संकट

असम में चाय उद्योग, जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के साथ-साथ इस साल कोरोना लॉकडाउन के कारण भी अधिक प्रभावित हुआ। उसमें भी छोटे चाय उत्पादक सबसे ज्यादा प्रभावित हैं।

Update: 2020-08-04 09:00 GMT

- अमरज्योति बरुआ

यह कहना बिल्कुल गलत नहीं है कि साल 2020 विपत्तियों का साल बन गया है। एक के बाद एक नई मुसीबतें दुनिया भर को परेशान कर रही हैं। एक ओर जहां विश्वव्यापी महामारी कोविड-19 की वजह से पूरी दुनिया लगभग ठप पड़ गई है, वहीं अनियमित बारिश से भी जीना मुश्किल हो गया है। हालात यह है कि असम और बिहार समेत लगभग पूरा पूर्वोत्तर भारत बुरी तरह से बाढ़ से प्रभावित है। असम की भयावह बाढ़ का असर खासतौर पर वहां के चाय बागानों पर पड़ा है।

भारत में लगभग हर घर में सुबह-सुबह चाय की भीनी भीनी खुशबू से ही नींद खुलती है। एक-एक घूंट ताज़गी भरा एहसास दिलाती चाय दिन को यूं ही बना देती है। अब चाय की बात बिना असम का ज़िक्र किए पूरी नहीं हो सकती।

भारत के सेवन सिस्टर स्टेट्स में से एक असम अपनी संस्कृति और प्रकृति के लिए विश्वप्रसिद्ध है। राह चलते दिखने वाले हरे-भरे चाय बागान आंखों को सुकून देते हैं। हालांकि कोविड-19 के चलते लगे लॉकडाउन और अनियमित वर्षा के कारण चाय बगानों की हालत पहले जैसी नहीं रही है।

खासतौर पर चाय बागानों में मजदूरी करके जीवन यापन करने वाले कर्मचारियों की हालत तो और बुरी हो गई है। दरअसल, अ‍सम चाय की अपनी खासियत है। गहरी सुनहरी रंग की चाय, अपने अलग स्वाद और कड़कपन के लिए प्रसिद्ध है। हालांकि अब यह उद्योग बेहद कठिन दौर से गुजर रहा है। इसका असर न केवल बड़े कारोबारियों पड़ रहा है ‌बल्कि चाय उद्योग में काम करने वाले लाखों मजदूर बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं।


छोटे उत्पादकों को 500 करोड़ का नुकसान

चाय उद्योग से जुड़े जानकारों का कहना है कि बड़े उत्पादक और चाय उद्योग तो किसी तरह से गुजारा कर ले रहे हैं लेकिन छोटे उत्पादों की समस्या बहुत जटिल है। गांव कनेक्शन से बातचीत में छोटे चाय उत्पादकों के संघ के अध्यक्ष राजन बोरा कहते हैं, '86 हजार से अधिक छोटे चाय उत्पादक हैं, जिन्हें इस बार कम से कम 500 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। हालांकि इस नुकसान के कई कारण हैं। पर सबसे ज्यादा मार कोरोना के चलते लगे लॉकडाउन से पड़ी है।"

बातचीत आगे बढ़ाते हुए बोरा ने कहा, "छोटे चाय उत्पादकों के अपने कारखाने नहीं होते। ये लोग जीविकोपार्जन के लिए छोटे पैमाने के निज़ी चाय कारखानों पर निर्भर रहते हैं। ताज़गी बरकरार रखने के लिए तोड़े गए पत्तों को उसी दिन या 24 घंटे के भीतर इन कारखानों तक पंहुचना जरूरी होता है। पर अचानक हुए लॉकडाउन और उसके आगे बढ़ने से ऐसा हो नहीं पाया और भारी नुकसान हुआ।" बोरा ने कहा, अब अगर फिर लॉकडाउन हुआ तो हमें ऐसे ही नुकसान होता रहेगा।


उत्पादन पर भी पड़ा बुरा असर

बकौल बोरा, सामान्य परिस्थिति में एक वर्ष में प्रति बीघा 2000 किलोग्राम चाय पत्ती की उपज होती है। जबकि इस साल यह केवल 1400 किलोग्राम तक सिमट जाएगी।

टी रिसर्च एसोसिएशन के प्रमुख अधिकारी और सचिव जॉयदीप फूकन ने गांव कनेक्शन से कहा, "लॉकडाउन बढ़ते रहने के कारण चाय उत्पादन की गति धीमी पड़ गई। चाय की खेती का प्रारंभिक चरण 15 मार्च से 15 अप्रैल तक होता है। जबकि 15 मई से 7 जुलाई तक इसका दूसरा चरण होता है। यह चरण प्रीमियम चाय का होता है जिसकी बाज़ार में बहुत मांग रहती है। इस बार हालत यह हुई कि पहले चरण के दौरान आधे समय से ही लॉकडाउन लग गया और वह कमोवेश अब भी जारी है।"


हर 10-11 साल पर आती है मुश्किल

चाय उत्पादकों की जद्दोजहद भरी ज़िन्दगी का नया संकट कोरोना संक्रमण रोकने के लिए लगा लॉकडाउन है। इन सबके बाद दीर्घकालिक समस्या और चुनौती जलवायु परिवर्तन है। इसने असम के चायबागानों की मुसीबतों को और बढ़ा दिया है।

अत्यधिक वर्षा और धूप की कमी से चाय बागान बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। फूकन कहते हैं कि वर्ष 1910 में भी ऐसे ही परेशानी का सामना चाय उत्पादकों को करना पड़ा था। इसे सोलर मिनिमम कहा जाता है। यह हालात तब बनते हैं जब बारिश बहुत ज्यादा होती है और सूरज की किरणें जमीन तक नहीं आ पाती हैं। ऐसा लगभग हर 10-11 वर्ष के अंतराल में होता ही रहता है।


ज्यादा बारिश से पड़ता है बुरा असर

दूसरी ओर, चाय वैज्ञानिकों की अपनी राय है। उनके अनुसार अनियमित वर्षा, तापमान में बढोत्तरी और वर्षा में कमी चाय उत्पादन को प्रभावित करते हैं। टॉकलै टी रिसर्च इंस्टीटूट के वैज्ञानिक कामरूज़ा ज़मान अहमद ने गांव कनेक्शन को बताया, जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा में कमी आई है। बावजूद इसके सूखे और अत्यधिक बारिश के उदहारण ज्यादा मिलते हैं।

अहमद कहते हैं कि सर्दियों में कम बारिश की वजह से पहले और दूसरे चरण के प्रीमियम चाय का उत्पादन कम होता है। अप्रत्याशित वर्षा हमारे प्रयासों, जैसे पौधे लगाना, शुरुआती दौर में चार बागान की देखभाल और प्रबंधन, खाद-उर्वरक आदि की व्यवस्था, कीट प्रबंधन और खरपतवार से निपटने जैसे उपायों को विफल करती है। इसका असर पूरे उत्पादन पर पड़ता है।


चाय बागानों से मिलता है 12 लाख को रोजगार

आंकड़े बताते हैं कि चाय उद्योग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर असम के 12 लाख लोगों को रोजगार देता है। इनमें आधी से ज्यादा महिलाएं हैं।

असम के श्रम, चाय और जनजाति कल्याण मंत्री संजय किशन ने गांव कनेक्शन को बताया, "हम जिला प्रशासन, चाय बागान मालिकों, सामजिक संस्थाओं और चाय बागान कर्मचारियों से विचार-विमर्श कर रहे हैं। कोविड-19 से बचने के लिए हर संभव सुरक्षा जैसे दो गज की दूरी रखना, फेस मास्क पहनना और सैनेटाइजेशन को ध्यान में रखते हुए चाय उत्पादन को फिर पटरी पर लाना है।"

उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने कर्मचारियों को बकाया वेतन और महामारी से बचने के लिए हर सुविधा देने का आश्वासन दिया है। मंत्री ने कहा कि असम के लिए चाय बागान बेहद महत्वपूर्ण हैं और हम यह बात अच्छी तरीके से समझते हैं। 

अनुवाद- इंदु सिंह

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