झारखंड के गांवों में अफीम से 'लड़ाई' में कैसे आगे बढ़ रहा लेमनग्रास?

माओवाद, उग्रवाद से प्रभावित खूंटी के आदिवासी और गैर आदिवासी किसान लेमनग्रास के सहारे अपने ऊपर लगे अफीम के खेती के दाग को हटाने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध हैं।

Update: 2020-07-24 15:49 GMT

खूंटी (झारखंड)। गूगल पर हिन्दी में जैसे ही सर्च करते हैं, 'खूंटी में अफीम', तो परिणाम आते हैं, 'खूंटी में सात लाख रुपए के अफीम के साथ सात तस्कर गिरफ्तार', 'पुलिस ने पांच दिन में 32 एकड़ अफीम की खेती को किया नष्ट', 'खूंटी पुलिस ने दस लाख रुपए का अफीम डोडा किया बरामद'।

खूंटी पुलिस की ओर से उपलब्ध कराई गई आंकड़ों के मुताबिक जिले में इस साल अब तक अवैध अफीम की खेती के लिए 54 लोग गिरफ्तार हो चुके हैं। कुल 673.60 एकड़ में फिलहाल खेती को नष्ट किया है। वहीं 2571 किलोग्राम अफीम डोडा, 65.96 किलो अफीम जब्त हुई है।

बीते साल आई हिन्दी फिल्म थप्पड़ के दृश्यों में अभिनेत्री तापसी पन्नू जब भी चाय बनाने जाती हैं, किचन की खिड़की के पास के गमले से कुछ पत्ते तोड़ कर उसमे डाल देती हैं। यह पत्ता लेमनग्रास का रहता है। माओवाद, उग्रवाद से प्रभावित खूंटी के आदिवासी और गैर आदिवासी किसान इसी लेमनग्रास के सहारे अफीम के इस दाग को हटाने के लिए आगे बढ़ चुके हैं।


एक साल पहले यहां लेमनग्रास की खेती ने दस्तक दी थी। दस्तक से अब दखल की ओर बढ़ते किसान उस वक्त उम्मीदों से भर गए जब 'लाह' के बड़े कारोबारी पंजाब निवासी रौशन लाल शर्मा ने कहा कि वह लेमन ऑयल को अमेरिका में एक्सपोर्ट करने के लिए तैयार हैं। बशर्ते बड़ी मात्रा में इसकी पैदावार इस इलाके में हो।

केंन्द्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा अनुसंधान केंद्र, लखनऊ इन किसानों की मदद कर रहा है। उसकी ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक प्रति एकड़ लेमनग्रास से 50 से 100 लीटर तेल निकल सकता है। पहले साल में दो कटाई और अगले साल से चार कटाई तक आराम से कर सकते हैं। यही नहीं, सिंचाई के बाद चार कटाई और बिना सिंचाई के भी दो कटाई आराम से की जा सकती है।

रांची से 54 किलोमीटर दूर कुदा पंचायत के कोजरोंग गांव के चारा मुंडा (45) ने लगभग दो एकड़ में लेमग्रास का पौधा लगाया है। उन्होंने अपने घर के आगे घास से तेल निकालने के लिए देसी जुगाड़ से पेराई मशीन भी खुद से तैयार किया है।

वह कहते हैं, "बीते साल 14 जून को सेवा वेलफेयर सोसाइटी की पहल पर खूंटी के एक सभागार में इसको लेकर एक बैठक हुई थी, जहां पर इसकी खेती को लेकर किसानों के बीच चर्चा हुई।''

किसान अर्जुन पाहन के मुताबिक, ''जिले के 700 गावों में से तब से अब तक कुल 80 गांवों में इसको लेकर बैठक हो चुकी है। हर जगह किसान इसकी खेती के लिए तैयार हो रहे हैं, और उन्हें लेमनग्रास दिया जा रहा है।'' 


पहले जमीन के लिए लड़ाई, अब जमीन से हो रही लड़ाई

किसान मंगा मुंडू (25) कहते हैं ''हर ग्रामसभा में किसानों की लिस्ट तैयार होती है। उनके पास कितना जमीन है, इसका हिसाब तैयार होता है, फिर उसके हिसाब से उन्हें लेमनग्रास का पौधा दिया जाता है। एक बार फसल लगाने के बाद अगले तीन से पांच साल तक फसल ली जा सकती है।''

खास बात है कि ''यह पथरीली जमीन पर बहुत ही कम लागत में हो रही है। एक बार पौधा लगाने के बाद दो बार पटवन करना पड़ता है। लगभग एक महीने तक जानवरों से इसकी रक्षा करनी पड़ती है, पौधों के बड़ा हो जाने पर वह भी इसे नहीं खाते। लगभग एक क्विंटल घास से एक लीटर तेल निकलता है। फिलहाल इसका तेल 1500 रुपए लीटर बिक रहा है।''

वहीं सनिका पाहन (35) का कहना है, ''इसके एक पौधे की कीमत 1 रुपया पैसा है। एक एकड़ में लगभग 22,000 पौधा लगता है। हमारे पास इतना पूंजी कहां से आएगा? सरकार अगर मदद करे तो ही हम अच्छे से खेती कर पाएंगे। वह ये भी कहते हैं कि चूंकि बंजर जमीन पर इसकी खेती होती है, तो समझिये जिस जमीन का कोई उपयोग नहीं, वह अगर हमें कुछ हजार रुपए भी दे रहा है तो फायदा ही है।''

ग्रामीणों के बीच इस अभियान का नेतृत्व कर रहे स्थानीय पत्रकार अजय शर्मा कहते हैं, ''यहां के आदिवासी किसान पहले जमीन के लिए लड़ाई लड़ी और अब जमीन से लड़ रहे हैं। नक्सलवाद, उग्रवाद, इसके बाद पत्थलगड़ी आंदोलन और इन सब के बीच अफीम की खेती ने जिले के इमेज को राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर बहुत नुकसान पहुंचाया है। ग्रामीणों की मदद से इसे बदलने की कोशिश हो रही है। बड़ी संख्या में यहां के किसान फूल और तरबूज की खेती भी कर रहे हैं।''

सफलता से उत्साहित अजय शर्मा कहते हैं, ''हाल ही में किसानों ने दस लीटर तेल निकाले हैं। ग्रामसभा के माध्यम से जितने किसानों की लिस्ट आई है, उसके मुताबिक इस साल 100 एकड़ में इसकी खेती होने जा रही है।''

इसकी खेती में झारखंड सरकार की संस्था 'झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी' भी किसानों की मदद कर रही है। संस्था के प्रवक्ता कुमार विकास ने बताया लेमन ऑयल की बाजार में काफी डिमांड हैं। केंद्र सरकार के ई-बाजार और मेला में खूब इसकी बिक्री होती है।


कृषि मंत्री की घोषणाओं के अमल का है किसानों को इंतजार

बीते एक जुलाई को कृषि मंत्री बादल पत्रलेख इन किसानों के बीच पहुंचे। कामकाज देखा और फिर घोषणा की कि इन सौ एकड़ में होने वाली खेती का खर्चा राज्य सरकार उठाएगी। संधु पाहन (31) के मुताबिक घोषणा तो हो गई, लेकिन इसकी प्रक्रिया बहुत जटिल है।

वह कहते हैं, ''हॉर्टिकल्चर विभाग की तरफ से 6,477 रुपया प्रति एकड़ देने की बात कही गई है। लेकिन इसके लिए ग्रामसभा का फोटो, बैठक की कार्रवाई, किसानों की सूची आधार नंबर और जमीन के ब्योरे के साथ देनी है।''

वह आगे बताते हैं, ''इसके अलावा एक कमेटी का गठन और उस कमेटी का बैंक अकाउंट खोलने के बाद उसका विवरण सरकार को देना है। फिलहाल बरसात है, फसल आसानी से लग जाएगी। इलाके में सिंचाई की सुविधा नहीं है। लगता है इन प्रक्रियाओं को पूरा करने में ही समय बीत जाएगा, फिर अपने भरोसे ही खेती करनी होगी।''


इस पर कृषि मंत्री बादल पत्रलेख कहते हैं, ''मैंने किसानों के बीच इसकी खेती को लेकर भरोसा जगाया है तो साथ भी दूंगा। यह बात सही है कि 20 दिन बीत गए, अभी तक उन किसानों को जरूरी पैसा नहीं पहुंच पाया है। बुधवार को हम एक बार फिर अधिकारियों के साथ इसपर चर्चा करते हैं, इसके बाद इन जटिलताओं को तत्काल आसान बनाया जाएगा। किसान कुछ दिन का और समय हमें दें।''

चारा मुंडा की पत्नी उनके साथ मिलकर एक बार फिर बरतन में लेमनग्रास भर दी है। नीचे से सूखी लकड़ी डालकर आंच लगा दी है। इंतजार कर रही है कि नीचे रखे प्लास्टिक की बोतल में बूंद-बूंद गिर रहे तेल के भरने का। उन्हें अफीम नहीं, लेमग्रास के खुशबू वाली पैसे का इंतजार है।

(आनंद दत्ता झारखंड से स्वतंत्र पत्रकार हैं।) 

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