महिला हेल्पलाइन 181 के 390 कर्मचारियों को एक साल से नहीं मिली सैलरी, महिला ने ट्रेन के आगे कूदकर दी जान

यूपी महिला हेल्पलाइन 181 में काम करने वाले 390 कर्मचारियों को बीते एक साल से और महिला समाख्या से जुड़े 650 कर्मचारियों को 17 महीने से महिला एवं बाल विकास कल्याण विभाग द्वारा फंड जारी नहीं किया गया है

Update: 2020-07-04 13:25 GMT

लखनऊ (उत्तर प्रदेश)। महिला हेल्पलाइन 181 में काम करने वाली एक महिला कर्मचारी आयुषी सिंह ने तीन जुलाई को कानपुर में ट्रेन से कटकर आत्महत्या कर ली। आयुषी के परिजन और साथ में काम करने वाले कर्मचारियों का  आरोप है कि आयुषी (32 वर्ष) मानदेय न मिलने और नौकरी से निकाले जाने की वजह से काफी तनाव में थीं जिसकी वजह से उसने यह कदम उठाया।

आयुषी जिस महिला हेल्पलाइन 181 में काम करती थी यह यूपी सरकार की महिला सशक्तिकरण की दिशा में महिला सुरक्षा के लिए सबसे महत्वाकांक्षी योजनाओं में से एक थी। बीते एक साल से सरकार की अनदेखी की वजह से महिला एवं बाल विकास कल्याण विभाग द्वारा सेवा प्रदाता कंपनी जीवीके को बजट जारी नहीं किया गया।

सरकार द्वारा महिला हेल्पलाइन के संचालन की जिम्मेदारी निजी क्षेत्र की कम्पनी 'जीवीके एमआरआई' को पांच वर्षों के लिए दी गयी थी। विभाग की तरफ से फरवरी 2019 से इस कम्पनी का भुगतान रोक दिया गया था। कम्पनी का कहना है कि कर्मचारियों को जून 2019 महीने तक का वेतन खुद से दिया, जिससे ये योजना ठप्प न हो, लेकिन फिर भी बजट पास नहीं हुआ। सेवा प्रदाता कम्पनी ने पांच जून 2020 को सभी कर्मचारियों को सेवा समाप्ति का लेटर भेज दिया। इस लेटर के मिलने के बाद से कर्मचारियों की रही बची आख़िरी उम्मीद भी खत्म हो गयी। 

आयुषी मूलरूप से कानपुर के श्यामनगर की रहने वाली थीं इनकी शादी कल्यानपुर में हुई थी। इनके पति शारीरिक रूप से स्वस्थ्य नहीं हैं कि वे कोई काम कर सकें, पांच साल की एक बेटी भी है। आयुषी महिला हेल्पलाइन 181 में रेस्क्यू वैन फैसिलिटेटर के पद पर उन्नाव में कार्यरत थीं। परिवार के खर्चे की जिम्मेदारी आयुषी के ही कंधों पर थी।

आयुषी के पिता सुरेन्द्र सिंह बताते हैं, "नौकरी से निकाले जाने की जबसे उसे नोटिस मिली थी वो बहुत परेशान थी। पति दिव्यांग  हैं घर का पूरा खर्चा वही उठाती थी। अभी एक साल से पैसा नहीं मिला था, उसने कर्ज ले रखा था। शाम छह बजे वो दूसरी नौकरी के लिए रिज्यूम बनवाने को कहकर निकली थी। सात बजे जब उसे फोन किया तो चकेरी थाना की पुलिस ने उठाया।"  

उत्तर प्रदेश में महिलाओं की सुरक्षा और सशक्तिकरण के लिए काम करने वाली सरकार की 2 महत्वपूर्ण योजनाएं बजट के अभाव में बीते एक साल से शिथिल पड़ी हैं। पहली यूपी महिला हेल्पलाइन 181 में काम करने वाले 390 कर्मचारियों को बीते एक साल से और दूसरी महिला समाख्या से जुड़े 650 कर्मचारियों को 17 महीने से महिला एवं बाल विकास कल्याण विभाग द्वारा फंड जारी नहीं किया गया है। ये कर्मचारी बीते एक साल में कई बार धरना प्रदर्शन कर चुके हैं, कई बार विभाग में पत्राचार कर चुके पर सरकार की अनदेखी की वजह से कोई सुनवाई नहीं हुई। इस दौरान महिला समाख्या में काम करने वाले चार कर्मचारियों की मौत हो गई। साथी कर्मचारियों का आरपोप है कि पैसे के अभाव में इलाज न होने से उनकी मौत हुई।


आयुषी की टीम लीडर पूजा पाण्डेय बताती हैं, "एक साल से किसी भी कर्मचारी को कोई पैसा नहीं मिला है। इस समय सबकी मानसिक स्थिति बहुत खराब है। दस दिन पहले ही संतकबीर नगर की हमारी एक कार्यकर्ता ने आत्महत्या करने का प्रयास किया था पर उसे वक़्त रहते बचा लिया गया लेकिन हम आयुषी को नहीं बचा सके।"

"पैसे न मिलने से आयुषी बहुत निराश हो चुकी थी। उन्नाव में किराए के कमरे का भाड़ा वो एक साल से कैसे दे रही होगी? पति दिव्यांग है, एक छोटी बच्ची है, सबका खर्चा पूजा की तनख्वाह से ही चलता था। एक साल से वेतन नहीं मिला था इस बात से सब पहले से ही तनाव में थे तब तक पांच जून को सबके घर नौकरी से हटाये जाने का लेटर भेज दिया गया," पूजा ने बताया। 

विभाग के द्वारा किस वजह से इस योजना के लिए फंड रिलीज नहीं किया गया? इस सवाल के जवाब में उत्तर प्रदेश महिला एवं बाल विकास कल्याण के निदेशक मनोज राय ने बताया, "सरकार से जब मुझे पैसा मिलता है तब मैं आगे पेमेंट करता हूँ। कुछ तकनीकी समस्या थी जिसकी वजह से पेमेंट जारी नहीं हो पा रहा था। संस्था (सेवा प्रदाता कम्पनी जीवीके) का चयन टेंडर के समय सही तरीके से नहीं किया, इसपर अभी सरकार में विचार चल रहा है। जितने लोगों ने भी काम किया है पेमेंट सबको दिया जाएगा।"

महिला हेल्पलाइन 181 में 90 टेलीकाउंसलर काम करती हैं.

क्या इन कर्मचारियों को सेवा समाप्ति का जून में कोई पत्र जारी किया गया? इसपर मनोज राय बोले, "हमारी तरफ से कोई पत्र जारी नहीं किया है। ये सवाल आप जीवीके से करिए ये लोग उनके लिए काम करते थे। आगे इनकी सेवाएं रहेंगी या नहीं इसकी जिम्मेदारी हमारी नहीं जीवीके की है। हम जीवीके नहीं है हम उत्तर प्रदेश सरकार हैं।" 

खबर लिखे जाने तक इस योजना की सेवा प्रदाता कम्पनी जीवीके के सीईओ और महिला विकास विभाग की विशेष सचिव से फोन पर बात नहीं हो सकी। बात होते ही खबर में अपडेट कर दिया जाएगा।

घरेलू हिंसा से पीड़ित सुदूर क्षेत्रों में रहने वाली महिलाओं की घर बैठे निशुल्क मदद हो सके इस मंशा से इस योजना की शुरुआत अखिलेश यादव सरकार में आठ मार्च 2016 को छह सीटर के साथ 11 जनपदों में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू की गयी थी। इस योजना के अच्छे परिणाम को देखते हुए योगी सरकार ने 24 जून 2018 को छह सीटर से बढ़ाकर 30 कर दिया और 11 जनपदों से 75 जनपदों में कर दिया। लखनऊ हेड ऑफिस में 90 टेलीकांसलर काम करती हैं, हर जिले में फील्ड काउंसलर और रेस्क्यू वैन है जो जिले स्तर पर पीड़ित महिला के घर पहुंचकर मदद करती है। कुल 390 कर्मचारी काम करते हैं जिसमें महिलाओं की संख्या 351 है।

इस हेल्पलाइन के जरिए उत्तर प्रदेश में अबतक पांच लाख से ज्यादा पीड़ित महिलाओं की मदद हो चुकी है। लेकिन इसके बावजूद यह योजना सरकार और विभाग की अनदेखी की वजह से बंद हो गयी है। इसमें काम करने वाली ज्यादातर वो महिलाएं और लड़कियाँ हैं जो घरेलू हिंसा से पीड़ित हैं, तलाकशुदा हैं, एकल हैं। आयुषी की आत्महत्या सरकार द्वारा महिला सुरक्षा के लिए शुरू की गयी इस महत्वपूर्ण योजना की पोल खोलती है।

महिला हेल्पलाइन 181 में काम कर रही टेलीकाउंसलर नाजनीन सरकार की अनदेखी के कई किस्से बताती हैं, "विभाग के चक्कर लगाते-लगाते चप्पलें घिस गईं पर किसी ने कोई सुनवाई नहीं की। विभाग के अधिकारी ही हमारा मजाक बनाते थे, कहते थे तुम्हारी कम्पनी भाग गयी है।  योजना लांच तो बड़े जोरों-शोरों से की गयी पर बात में इसपर किसी का ध्यान नहीं गया। दो साल में चार प्रमुख सचिव बदले। हमलोग मुख्यमंत्री के यहाँ चार बार प्रार्थना पत्र दे चुके हैं पर कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई।" 

महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए महिला हेल्पलाइन 181 की तरह ही यूपी में महिला समाख्या नाम की एक परियोजना काम करती है जिसमें 10 लाख महिलाएं जुड़ी हुई हैं। महिलाओं से सम्बन्धित योजनाओं को धरातल पर क्रियान्वयन करने के लिए ये यूपी सरकार के पास एकमात्र योजना है। 

महिला समाख्या की राज्य परियोजना निदेशक डॉ स्मृति सिंह बताती हैं, "इस योजना के ठप्प होने से 10 लाख परिवार प्राभावित हुए हैं। पिछले साल हमारी चार महिला कर्मचारियों की मौत हो गयी वो बीमार थीं। मुझे तो यही लगता है पैसे के अभाव में उनका वक़्त से इलाज नहीं हो पाया तभी उनकी मौत हो गयी। हमारे यहाँ चलने वाले नारी अदालत को सरकार ने खूब सराहा था, इस नारी अदालत ने 20,000 से ज्यादा घरेलू हिंसा के मामले सुलझाए थे। अभी 16 जनपदों में हमारे कार्यालय हैं. पिछले 17 महीने से पैसा न मिलने से स्थिति बहुत गम्भीर है पर इसपर किसी का ध्यान नहीं है।" 


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