वापस लौटने लगे प्रवासी मजदूर, फिर जुड़ा पूरब का पंजाब से रिश्ता

अब प्रवासी पुरबिया मजदूर वापस पंजाब लौट रहे हैं। यानी पूरब का पंजाब से रिश्ता फिर जुड़ने लगा है। गौरतलब है कि इस बार प्रवासी मजदूर 'आ' नहीं रहे बल्कि उन्हें पूरे आदर-मान के साथ 'लाया' जा रहा है।

Update: 2020-06-09 13:30 GMT
बरनाला के गांव क्या कैरो में वापस लौटे प्रवासी मजदूरों का हार डालकर स्वागत करते किसान।

कोरोना वायरस और लॉकडाउन की वजह से पूरब का पंजाब से रिश्ता एकबारगी टूट गया था। यहां रोजी-रोटी कमा रहे दस लाख से ज्यादा मजदूर वापस उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड लौट गए थे। इतने बड़े पैमाने पर हुए प्रवासी श्रमिक पलायन ने सूबे के किसानों और उद्योगपतियों को गहरी चिंता में डाल दिया था। मध्य जून को धान रोपाई शुरू होती है और धीरे-धीरे इंडस्ट्री भी शुरू हो रही है। अन्य काम-धंधे भी, जिनसे बड़ी तादाद में प्रवासी कामगार जुड़े हुए थे। अब प्रवासी पुरबिया मजदूर वापस पंजाब लौट रहे हैं। यानी पूरब का पंजाब से रिश्ता फिर जुड़ने लगा है। गौरतलब है कि इस बार प्रवासी मजदूर 'आ' नहीं रहे बल्कि उन्हें पूरे आदर-मान के साथ 'लाया' जा रहा है।

राज्य के किसान और उद्यमी उन्हें अपने खर्च पर परिवहन व्यवस्था मुहैया करके उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड से ला रहे हैं। उनकी आमद का सिलसिला दिन-प्रतिदिन रफ्तार पकड़ रहा है। फिलहाल आने वालों में ज्यादा तादाद खेत मजदूरों की है, जबकि उद्योगपतियों ने प्रवासी श्रमिकों को पंजाब लौटा लाने के लिए उनके टिकट बुक करवाने शुरू कर दिए हैं। अग्रिम राशि भी उनके खातों में डाली जा रही है। एक पखवाड़े के भीतर अकेले मालवा से 17 ट्रांसपोर्ट कंपनियों की 300 बसें उत्तर प्रदेश और बिहार भेजी गईं जो 10 हजार से ज्यादा मजदूरों को लेकर लौटी हैं।

ट्रांसपोर्टर गुरदीप सिंह के मुताबिक बसों के कई फेरे लगे हैं और उनके पास जून के अंत तक की बुकिंग है। मालवा में बड़े पैमाने पर धान की खेती होती है और रोपाई के लिए स्थानीय किसान पूरी तरह से प्रवासी मजदूरों पर निर्भर रहते हैं। इस बार वे दिक्कत में थे कि प्रवासी मजदूर नहीं आए तो फसल कैसे रोपी जाएगी।

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बरनाला के शेरपुर बड़ी के किसान भाइयों गुरमेल सिंह व बलजिंदर सिंह के पास 100 एकड़ से ज्यादा जमीन है। दशकों से सीजन के समय वे सिर्फ धान की खेती करते हैं। 1970 के बाद जून महीने में उनके खेत पूरी तरह से प्रवासी मजदूरों के हवाले हो जाते हैं। गुरमेल और बलजिंदर चिंता में थे कि इस बार प्रवासी मजदूर नहीं आ रहे तो क्या होगा? उन्होंने अपने आसपास के तपा, धनौला, महलकलां, शैहणा, भदौड़, फरवाही, खुड्डी, कैरे, ठीकरीवाला आदि गांवों के किसानों को एकजुट किया और प्रशासन से बात की। ऑनलाइन आवेदन के बाद पास हासिल करके वे खुद बसों में बैठकर अन्य राज्यों में गए और किसानों को लेकर आए। यह सिलसिला जारी है।

गुरमेल सिंह बताते हैं कि एक बस का खर्च करीब 50 से 60 हजार रुपए आता है और किसान इसे अपनी जेब से दे रहे हैं। खुद इसलिए जाना पड़ रहा है कि मजदूर आने को आसानी से तैयार नहीं। ज्यादा पारिश्रमिक और बेहतर रखरखाव तथा सुविधाओं के आश्वासन पर उन्हें लाया जा रहा है। तपा के संपन्न किसान आकाशदीप सिंह के अनुसार, प्रवासी मजदूरों के बगैर पंजाबी किसानों का वजूद ही नहीं है।

बरनाला के उपायुक्त तेज प्रताप सिंह फूलका कहते हैं, "किसानों की मांग पर उन्हें राज्य से बाहर जाने की अनुमति पास बनाकर दिए गए। एसडीएम ऑफिस की निगरानी में बसें भेजी गईं। मजदूर पहुंचते हैं तो सबसे पहले सेहत विभाग उनकी पूरी जांच करता है और उसके बाद उन्हें खेतों में काम करने की मंजूरी दी जाती है। वे निगरानी में हैं लेकिन क्वारंटाइन नहीं किए गए।"

भारतीय किसान यूनियन-लक्खोवाल भी प्रवासी मजदूरों को लाने के लिए बसों का बंदोबस्त कर रही है। यूनियन के अध्यक्ष जगजीत सिंह सीरा के अनुसार, "धान की रोपाई सिर पर है और किसान श्रमिकों की किल्लत से जूझ रहे थे। फिलहाल तक हमने 80 बसें भेजी हैं, जो चक्कर लगाकर मजदूरों को ला रही हैं। प्रवासी मजदूर नहीं आएंगे तो पंजाब के किसान तबाह हो जाएंगे। मेरे खुद के गांव में ही 4500 एकड़ जमीन पर धान की रोपाई की जानी है और सिर्फ डेढ़ सौ मजदूर उपलब्ध हैं, जो नाकाफी हैं। सूबे में किसानों को उत्तर प्रदेश और बिहार से श्रमिकों के आने का बेसब्री से इंतजार रहता है।"

पंजाब के तमाम जिलों से उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड के लिए इसी मानिंद बसें जा रही हैं और मजदूरों को लेकर आ रही हैं। जालंधर जिले के मंड गांव में बिहार के मोतिहारी जिले से लौटे कृषि श्रमिक दिनेश कुमार यादव ने बताया कि उन्हें धान रोपाई के लिए 4600 रुपए प्रति एकड़ मिलेंगे। शेष सुविधाएं अलग से। दिनेश का साथी निरंजन कहता है, "प्रदेश में कमाने नहीं आएंगे तो रोटी कैसे खाएंगे।" जिक्रेखास है कि पंजाब में तमाम काम ठप्प हो जाने के बाद प्रवासी मजदूरों का पलायन हुआ था लेकिन उत्तर प्रदेश और बिहार की सरकारों से उन्हें निराशा हाथ लगी।

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उत्तर प्रदेश केे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दावे-वादे किए थे कि प्रवासी श्रमिक घरों को लौटते हैं तो उन्हें काम और रोटी की दिक्कत नहीं आने दी जाएगी। वापस पंजाब आ रहे प्रवासी मजदूरों से बात करने पर पता चलता है कि जमीनी हालात विपरीत हैं। मोतिहारी के पास के गांव बापूधाम के रहने वाले रामेश्वर प्रसाद वापस जालंधर लौट आए हैं। कहते हैं, "यहां भुखमरी की नौबत आई तो वापस गांव चले गए और वहां भी हालात बदतर थे। सरदारजी (किसान) को फोन किया कि किसी तरह वापसी करवा दें। गांव में न काम है और न रोटी। चार बच्चे, पत्नी और माता-पिता हैं। पंजाब लौटने के अलावा चारा ही नहीं था।"

जालंधर सिविल अस्पताल में अपनी मेडिकल जांच करवा रहे उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के बैजनाथ के अनुसार, "सोचा था कि अपने मूल राज्य लौटेंगे तो सरकार सुध लेगी लेकिन दूर-दूर तक कोई पूछने वाला नहीं। पंजाब में धान के सीजन में ठीक-ठाक कमाई मजदूरी करके मिल जाती है। उसके बाद गेहूं की फसल से भी। दोनों फसलों के दौरान मजदूरी करके साल भर का खर्चा निकल आता है।"

प्रवासी मजदूरों की धीरे-धीरे ही सही, हो रही आमद किसी हद तक पंजाब के किसानों को राहत और हौसला दे रही है। पंजाब लोक मोर्चा के संयोजक अमोलक सिंह कहते हैं कि केंद्र ने जैसे मजदूरों की घर-वापसी के लिए विशेष ट्रेनें चलाईं थीं, वैसे अब उन श्रमिकों के लिए चलाईं जानी चाहिएं जो कामकाज के लिए पंजाब आना चाहते हैं।

यूनाइटेड साइकिल एंड पार्ट्स मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन, लुधियाना के अध्यक्ष डीएस चावला भी कुछ ऐसा ही कहते हैं। चावला के अनुसार उद्योगपति श्रमिकों को अपने खर्च पर वापिस बुला रहे हैं। बड़ी समस्या ट्रेनों की कमी की है और जो चल रही हैं उनमें सीट के लिए लंबा इंतजार है। जालंधर ऑटो पार्ट्स मैन्युफैक्चर्स एसोसिएशन ने प्रधानमंत्री, केंद्रीय गृहमंत्री और रेलमंत्री को ईमेल किया है कि ट्रेनों की संख्या व रूट बढ़ाया जाए ताकि प्रवासी मजदूर लौट सकें। ऑटो पार्ट्स मैन्यूफैक्चर में जालंधर की 80 औद्योगिक इकाइयों में लगभग साढ़े सात सौ करोड़ रुपए का कारोबार होता है। लॉकडाउन से पहले इन इकाइयों में 50 हजार प्रवासी श्रमिक काम करते थे। अब 10 हजार काम कर रहे हैं। इन इकाइयों में जेसीबी, चार पहिया वाहनों और ट्रैक्टर के उत्पाद तैयार होते हैं।

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निर्माण का तमाम काम प्रवासी मजदूर संभालते हैं। बसंत इंटरनेशनल व एसोसिएशन के तुषार जैन के अनुसार, "उत्पादन तो शुरू हो चुका है लेकिन श्रमिकों की कमी की वजह से पूरा प्रोडक्शन नहीं हो रहा। औद्योगिक जगत बहुत ज्यादा परेशान है। हमने श्रमिकों को वापस बुलाने के लिए उनकी टिकटों के इंतजाम किए हैं।" जालंधर ऑटो पार्ट्स मैन्युफैक्चर्स एसोसिएशन के चेयरमैन व सीआईआई के सदस्य बलराम कपूर कहते हैं कि ट्रेनों की कमी के कारण प्रवासी श्रमिक वापस नहीं आ पा रहे हैं। सरकार को फौरन इस तरफ ध्यान देना चाहिए। राज्य के उद्योग मंत्री श्यामसुंदर अरोड़ा के मुताबिक, "श्रमिकों की कमी पूरी करने के लिए जरूरी कदम उठाए जा रहे हैं। पंजाब में जितने प्रवासी मजदूरों ने घर वापसी के लिए पंजीकरण कराया था, उसमें 60 फ़ीसदी मजदूर अपने राज्यों को गए हैं और 40 फ़ीसदी यहां हैं। उनसे काम शुरू करवाया गया है। शेष मजदूरों को वापस लाने के प्रयास भी शुरू हो गए हैं। इनके आते ही प्रोडक्शन बढ़ जाएगा।"

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