प्राकृतिक खेती ही दिला सकती है छुट्टा गायों से मुक्ति, बस इन बातों को लोगों को समझना होगा

फसलों और पेड़ पौधों को विभिन्न प्रकार के रोग और बीमारियों से बचाने के लिए तैयार होने वाले उत्पादों के लिए भी विभिन्न पेड़ पौधों की पत्तियां, तंबाकू, हरी मिर्च, पुरानी खट्टी छाछ, लहसुन आदि के अलावा देसी गाय के गोमूत्र की विशेष महत्ता है। प्राकृतिक खेती में किसानों की फसलों पर आने वाली लागत को काफी हद तक कम किया जा सकता है साथ ही प्राकृतिक खेती के माध्यम से पैदा होने वाले कृषि उत्पाद रोग और बीमारियों से मुक्त होते हैं जिससे हम अपने आप को विभिन्न बीमारियों और रोगों से बचा सकते हैं।

Update: 2022-12-19 06:22 GMT

प्राकृतिक खेती भविष्य की कृषि है आने वाला समय प्राकृतिक कृषि का ही है। अगर हमको स्वयं और अपने समाज को रोग मुक्त रखना हैं तो हमें प्राकृतिक खेती अपनानी ही होगी। प्राकृतिक कृषि कम लागत और मात्र एक भारतीय देसी गाय के साथ की जा सकती है। आज समय जरुरत है कि प्राकृतिक कृषि के प्रति किसानों और आम जनमानस में जागरूकता पैदा की जाए जिससे अधिक से अधिक किसान प्राकृतिक खेती को उन्मुख हों और इसे अपनाने के लिए आगे आए।

प्राकृतिक खेती में देशी गाय का महत्वपूर्ण स्थान होता है। किसान एक गाय के साथ 30 एकड़ भूमि पर प्राकृतिक खेती आसानी से कर सकते हैं। देसी गाय के एक ग्राम गोबर में 300 से लेकर 500 करोड़ तक जमीन के लिए उपयोगी बैक्ट्रिया पाए जाते हैं। यह बैक्टीरिया जमीन के अंदर उर्वरा शक्ति बढ़ाने से लेकर जमीन की जल धारण क्षमता तक को बढ़ाने का कार्य करते हैं। जमीन में प्राकृतिक रूप से पैदा होने वाले बैक्टीरिया जमीन को भुरभुरा बनाने से लेकर उसके अंदर वायु स्पेस को बढ़ावा देते हैं, जिससे जमीन धीरे-धीरे उपजाऊ होकर प्राकृतिक रूप से सुदृढ़ और मजबूत होती है। क्योंकि प्राकृतिक खेती में रासायनिक उर्वरकों और जहरीले कीटनाशकों का प्रयोग पूरी तरह से बंद कर दिया जाता है इसके चलते प्राकृतिक खेती में पैदा होने वाले उत्पाद न केवल स्वास्थ्य के लिए बेहतर होते हैं बल्कि इनसे कई प्रकार के प्राण घातक रोगों से बचा जा सकता है।

आज हमारे देश के साथ पूरे विश्व में दो तरह की कृषि पद्धति अपनाई जा रही है जिसमें रासायनिक खेती और जैविक खेती प्रमुख है। लेकिन भारत में एक नई पहल के तहत आज प्राकृतिक खेती की बात की जा रही है। हालांकि भारत के लिए प्राकृतिक खेती कोई नई पद्धति नहीं है हमारे देश में सदियों से किसान प्राकृतिक खेती पर निर्भर रहे हैं और इसे करते आए हैं। लेकिन हरित क्रांति के दौर के बाद जिस प्रकार से खेती और किसानी में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का प्रयोग बढ़ा है उसके चलते धीरे-धीरे प्राकृतिक खेती विलुप्त होती चली गई। जिसे आज पुनः एक बार प्रचलन में लाने के प्रयास किए जा रहे हैं। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि प्राकृतिक कृषि भविष्य की कृषि है।


इस को बढ़ावा देकर तथा किसानों द्वारा इसे अपनाकर हम आने वाली पीढ़ियों को रोग और बीमारियों से मुक्ति के साथ ही एक अच्छी जमीन अपनी संतति के लिए छोड़कर जा पाएंगे। जिस प्रकार से विगत कुछ दशकों में खेतिहर जमीन के अंदर रासायनिक उर्वरकों और जहरीले कीटनाशकों का प्रयोग बढ़ा है। उसे देखते हुए एक तरफ जमीन की उर्वरा शक्ति क्षीण हुई है वही प्राणघातक बीमारियों के प्रकोप से कैंसर जैसी महामारी का प्रभाव आम लोगों के बीच में बड़ा है। आज लोगों के पास पैसा है दौलत है परंतु अच्छा भोजन जहरमुक्त खाने-पीने के कृषि उत्पाद मिलना मुश्किल हो रहा है। किसान धीरे-धीरे प्राकृतिक कृषि की ओर उन्मुख होते हैं तो आने वाले समय में आम जनमानस को जहर मुक्त कृषि उत्पाद आसानी से सुलभ हो सकेंगे। इससे लोगों का स्वास्थ्य बेहतर होगा और बीमारियों पर होने वाला खर्चा कम होने के साथ ही वह अपनी प्राण रक्षा भी कर सकेंगे। इसलिए आज नहीं तो कल हमें प्राकृतिक खेती की ओर सोचना ही नहीं बल्कि उसकी और आगे बढ़ना ही होगा।

प्राकृतिक कृषि जहां मृदा और मानव के अच्छे स्वास्थ्य की गारंटी है वही प्राकृतिक कृषि के माध्यम से किसान अपनी खेती में बढ़ने वाली लागत को काफी हद तक कम कर सकते हैं। क्योंकि प्राकृतिक कृषि गौ आधारित अर्थात देशी गाय आधारित कृषि है। इस प्रकार से कह सकते हैं कि प्राकृतिक कृषि के माध्यम से हम गाय और खासकर भारतीय गाय की रक्षा कर पाएंगे। आज गांव कस्बों से लेकर शहरों, महानगरों यहां तक कि सड़को और हाईवे तक पर आवारा देसी घुमंतू गायों के झुंड के झुंड देखे जा सकते है। यह कहना थोड़ा कड़वा परंतु सत्य है कि यह जो आज आवारा गाय हैं वह हमारे किसानों द्वारा छोड़ी हुई ऐसी गाय हैं जो दुग्ध उत्पादन नहीं करती हैं अथवा बांझपन की शिकार है. अनउत्पादक होने के कारण ही किसानों ने इन्हें आवारा छोड़ने को मजबूर किया है। आज हमारे देश के गांव कस्बों से लेकर शहरों तक में लाखों करोड़ भारतीय गोवंश दर दर की ठोकर खाने को मजबूर है।

प्राकृतिक कृषि में आवारा घुमंतू देसी गांव का भी महत्वपूर्ण स्थान है। बताया जाता है कि आवारा घुमंतू देसी गाय के गोबर और मूत्र में पालतू देसी गाय से भी ज्यादा खेती में काम आने वाले कीटाणु पाए जाते हैं। ऐसे किसान जिनके पास आज देसी गाय नहीं है वह भी आवारा घूमने वाली देसी गाय को पकड़कर प्राकृतिक खेती की शुरुआत कर सकते हैं। इससे जहाँ आवारा देसी गाय को नया जीवनदान मिलेगा उन्हें भरपेट भोजन मिल सकेगा वहीं किसान की आमदनी में इजाफा होने के साथ ही उनके खेतों की मिट्टी की दशा और दिशा में सुधार होगा। किसानों का इस प्रकार का कदम देसी गाय की रक्षा के साथ ही प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देगा। इसलिए किसानों को इस दिशा में गंभीरता से विचार करने के साथ ही इसे जितनी जल्दी हो सकता है अपनाने की जरूरत है।


प्राकृतिक कृषि के तहत: तैयार किए जाने वाले उत्पादों में जीवामृत, घनजीवामृत, वीजामृत आदि को तैयार करने में देशी गाय के गोबर और गोमूत्र की आवश्यकता पड़ती है. इसी प्रकार से नीमास्त्र, अग्नियास्त्र, ब्रह्मास्त्र, नेमपेस्ट, दशपर्णी अर्क, सप्तधान्य आदि आज को तैयार करने में देसी गाय का गोबर और गोमूत्र, गुड़, बेसन के अलावा घर में मिलने वाले विभिन्न प्रकार के अनाज और दानों की आवश्यकता पड़ती है।

फसलों और पेड़ पौधों को विभिन्न प्रकार के रोग और बीमारियों से बचाने के लिए तैयार होने वाले उत्पादों के लिए भी विभिन्न पेड़ पौधों की पत्तियां, तंबाकू, हरी मिर्च, पुरानी खट्टी छाछ, लहसुन आदि के अलावा देसी गाय के गोमूत्र की विशेष महत्ता है। प्राकृतिक खेती में किसानों की फसलों पर आने वाली लागत को काफी हद तक कम किया जा सकता है साथ ही प्राकृतिक खेती के माध्यम से पैदा होने वाले कृषि उत्पाद रोग और बीमारियों से मुक्त होते हैं जिससे हम अपने आप को विभिन्न बीमारियों और रोगों से बचा सकते हैं। आज कैंसर जैसी प्राणघातक बीमारी इन कीटनाशकों और रासायनिक खेती की वजह से ही पैदा हो रही है। इसलिए समय की मांग है कि किसान प्राकृतिक खेती की और आगे आए और इसे अपनाएं. किसान अपनी जमीन के कुछ हिस्से से प्राकृतिक खेती की शुरुआत कर सकते हैं। इसके बाद आने वाले सीजन से प्राकृतिक खेती से प्राप्त परिणामों को देखकर आगे इसे और बड़े पैमाने पर बढ़ा सकते हैं। इस प्रकार से प्राकृतिक कृषि से सुखद और अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं तो उसे देखकर धीरे-धीरे संपूर्ण भूमि पर प्राकृतिक खेती की जा सकती है।

प्राकृतिक कृषि फसलों, फल-फूल, बागवानी, सब्जी, मसाला, दलहनी, तिलहनी, खाद्यान फसलों से लेकर चारा फसलों में प्राकृतिक खेती के उत्पादों का बखूबी प्रयोग किया जा सकता है। आज कृषि मंत्रालय, भारत सरकार और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली मिशन मोड में प्राकृतिक कृषि के प्रति किसानों को जागरूक करने और प्राकृतिक कृषि को अपनाने के लिए कृषि विज्ञान केंद्रों, कृषि विश्वविद्यालयों, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के विभिन्न संस्थानों एवं राज्य सरकारों के कृषि विभाग, उद्यान, पशुपालन आदि विभागों के माध्यम से वृहद स्तर पर जागरूकता अभियान चला रही है।

आज जरूरत इस बात की है कि किसान प्राकृतिक कृषि से होने वाले लाभ बारे में भली प्रकार से समझे जाने और कृषि विज्ञान केंद्रों के माध्यम से प्रशिक्षण प्राप्त करें और प्राकृतिक खेती की ओर आगे आएं। आज किसानों को सोचना है कि वह प्राकृतिक खेती से किस प्रकार से जुड़कर इसका लाभ उठा सकते हैं। आज प्राकृतिक खेती के प्रति किसानों में अलख जगाने का काम हो रहा है अभी भी किसान नहीं जागे तो बहुत देर हो जाएगी और इस देर की भरपाई करना आने वाली पीढ़ियों के लिए दुष्कर होगा। इसलिए जागो सोचो और प्राकृतिक खेती को अपनाने की ओर हाथ आगे बढ़ाओ, क्योंकि आने वाले समय में प्राकृतिक कृषि से ही हमारा और आपका जीवन बचने वाला है।

(डॉ. सत्येन्द्र पाल सिंह, कृषि विज्ञान केंद्र, लहार (भिण्ड), मध्य प्रदेश के प्रधान वैज्ञानिक और प्रमुख हैं।)

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