टीचर्स डायरी: जब देखा बच्चों के पाँव में चप्पल भी नहीं है, तब एहसास हुआ गरीबी क्या है?

अपूर्वा कुटार मध्य प्रदेश के उमरियापान शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में अध्यापिका हैं। लंबा वक़्त शहर में गुजारने के बाद गाँव के एक स्कूल में हुई नियुक्ति से कैसे उनके नज़रिए में बड़ा बदलाव आया उसे वो यहाँ साझा कर रही हैं

Update: 2023-05-16 12:49 GMT

बचपन से टीचरों के बीच में पली-बढ़ी तो मेरा भी मन करता था टीचर बनूँ। मेरे पिता पीसी कुटार सिहोरा (तहसील) के मीडिल स्कूल में हेडमास्टर रह चुके हैं और माँ शांति कुटार अभी सिहोरा में हायर सेकेंडरी स्कूल की प्रिंसिपल हैं। टीचर बनने का सपना तो मैंने बचपन से ही देखा।

मध्यप्रदेश में गेस्ट फैकल्टी की हर साल वैकेंसी निकलती है और इसका कार्यकाल सिर्फ एक साल का होता है। 2019 में जब केंद्रीय विद्यालय की वैकेंसी निकली थी तो मैंने भी अप्लाई किया था। लेकिन रिजल्ट में देरी के कारण पिता जी ने कहा कि बैठे रहने से बेहतर है गेस्ट फैकल्टी के लिए अप्लाई कर दो। ताकि तुम्हारे पास कुछ अनुभव भी हो जाएगा। फिर मैंने इसमें अप्लाई किया और मेरा चयन हो गया। जबलपुर के ही सिहोरा (तहसील) के ही मुसाम गाँव के हाई स्कूल में पढ़ाने का मौका दिया गया। मैंने कभी गाँव नही देखा था, न रही हूँ। मैं हमेशा एक प्राईवेट स्कूल में पढ़ी और शहर में ही रहना हुआ।

इस स्कूल में जो बच्चे आते, कुछ ऐसे भी थे जिनकें पाँव में चप्पल तक नहीं थी, न सही से कपड़े हुआ करते थे। तब मुझे इन सबको देख कर रोना सा आ गया। यहाँ मुझे लगा कि एक साल में इन्हें कुछ ऐसा रास्ता दिखा दिया जाए जिस पर चलकर ये कामयाब हो सके।


इनको अपना विषय हिंदी तो पढ़ाया ही, उसके अलावा सामान्य ज्ञान, एमपी पीएस की बेसीक तैयारी कराने लगी। हर शनिवार उन्हें पढ़ाना जारी रखा।

ये समय वो था जब मैं खुद भी तैयारी कर रही थी। ये इतने होनहार थे कि इनका स्कूल में होना ही मुझे खुशी देता था। मेरी कक्षा का जो सबसे तेज बच्चा था वो हर सोमवार स्कूल नहीं आता था क्योंकि वो अपने पिता के साथ शहर जाता, जहाँ मंडी में अपनी सब्जी की दुकान लगाता। इतनी गरीबी के बावज़ूद टीचर्स को उपहार दिया करते थे ये बच्चे।

अब मुझे अहसास होता है कि पिता जी ने यहाँ पढ़ाने को क्यों कहा। संघर्ष भरा जीवन क्या होता है, हमने कभी नही जाना। अभी तक तो प्रतियोगी परिक्षाओं में एक या दो नम्बर से रह जाने को ही संघर्ष की श्रेणी में रख लेते थे। मगर गाँव के बच्चों को देखकर समझ आया कि संघर्ष क्या होता है। मैंने उन बच्चों से बहुत कुछ सीखा,शिक्षक के रूप में नहीं बल्कि उनके जैसे ही विद्यार्थी रहकर। सीखने का क्रम हमेशा जारी रहना चाहिए। व्यवस्था इतनी अच्छी होनी चाहिए की हर बच्चा अपने सपनों को साकार कर सके।


बेसिक शिक्षा विभाग, मध्यप्रदेश के द्वारा साल 2019 में हाई स्कूल टीचर की वैकेंसी निकाली गई। जिसमें मैंने भी अप्पलाई किया। 2023 में मेरा चयन हो गया। फिर मेरी ज्वाइनिंग कटनी के उमरियापान में शासकीय उत्कृष्ट उच्च माध्यमिक विद्यालय में हुआ। ये स्कूल एक एक्सीलेंस स्कूल है। यहाँ लगभग 1000 बच्चे हैं और 14 टीचर हैं। ये स्कूल सिर्फ लड़कों का है। यहाँ मैं एक लाइब्रेरी बनवाने की कोशिश कर रही हूँ। क्योंकि आज की तारीख में लाइब्रेरी का स्कूल, कॉलेज में होना बहुत जरूरी है।

बच्चों में आजकल कमी दिखती है कि वे नम्बरों और डिग्री के लिए पढ़ते हैं। बच्चों को पढ़ने में जिज्ञासा कैसे उत्पन्न हो उसका प्रयास अध्यापकों को भी करते रहना चाहिए। मुझे बीएड के समय पढ़ाया गया है कि बच्चे कई तरह के होते हैं। उनकों अलग-अलग तरीकों से पढ़ाना चाहिए। जैसे छोटे बच्चे खेल-कूद विधि से पढ़ते हैं, बड़े बच्चे व्याख्यान विधि से पढ़ते हैं।

अगर कोई बच्चा दूसरे विषय में अच्छा नम्बर नहीं ला पा रहा है तो इसमें मातृभाषा हिंदी विषय के ऊपर दोष नहीं मंढा जा सकता है क्योंकि मातृभाषा से ही सभी विषयों का अध्ययन संभव है। ये मैंने कई जगह पर पढ़ा और सुना है हिंदी भाषा को लेकर, इसलिए मैं इस पर बोल रही हूँ।

मेरा मानना है आने वाले कल में समाज और पर्यावरण अच्छा रखना है तो हमें वर्तमान में इन बच्चों को जागरुक करना होगा। मैंने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर इसकी शुरूआत कर दी है।

आज मैं उमरियापान मैं बच्चों को हिंदी पढ़ाने के अलावा कुछ और भी सिखाती रहती हूँ। जैसे मैंने योग की शिक्षा ली है, तो बच्चों को योगासान कराती हूँ। फिर मैं इनको संगीत भी सिखाती रहती हूँ, क्योंकि मैंने संगीत भी कई सालों तक सीखा है।

मैंने अपने परिवार के साथ मिलकर एक प्लान तैयार किया है, जो इस साल से लागू करने जा रही हूँ। गाँव के जो बच्चे पैसे के आभाव में नीट या आईआईटी जैसी परीक्षाओं की तैयारी नहीं कर पाते हैं, उनको हमारा परिवार खासकर मेरे भैया जो वर्तमान में मध्य प्रदेश पुलिस में सब इंस्पेक्टर हैं, इन बच्चों की तैयारी अपने पैसों से करवाएंगे। बस ये बच्चे अपने सपनों को साकार कर लें। इनके खुशी में हमारी खुशी है।

जैसा कि अपूर्वा कुटार ने गाँव कनेक्शन के इंटर्न दानिश इकबाल से बताया

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